किसी कारणवश इस बार का रविवारीय चिंतन पाठकों के समक्ष परोस नहीं सका। फिर भी श्रीमती सुसंस्कृति परिहार का एक आलेख किसान बिलों की वापसी-घोषणा के बाद मिला और मैं समझता हूं कि उनके द्वारा प्रकट किए गए विचार मेरे चिंतन से काफी मेल खाते हैं। इसलिए उस आलेख को मैं हू-बहू प्रकाशित कर रहा हूं। -विश्वम्भर नेवर
अविश्वसनीयता का जटिल समय और जुझारू किसान
सुसंस्कृति परिहार
अचानक शुक्रवार सुबह सूर्य की किरणों की तेजी के साथ बीच पी एम साहिब जी की घोषणा ''किसानों के तीन कानून रद्दÓÓ की खबर ने सबको चकित कर दिया। उन्होंने किसानों से वापस खेतों पर जाने का आह्वान भी कर डाला। इधर चारों तरफ से किसान जिंदाबाद और लोकतंत्र की फासिस्टों पर जीत की अपार खुशी भी नजर आई। लेकिन राकेश टिकैत ने कहा है कि आंदोलन तत्काल वापस नहीं होगा। उन्होंने कहा है कि हम उस दिन का इंतजार करेंगे जब कृषि कानूनों को संसद में रद्द किया जाएगा। राकेश टिकैत ने साथ ही ये भी साफ किया है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के साथ-साथ किसानों से संबंधित दूसरे मुद्दों पर भी बातचीत करे। राकेश टिकैत ने आजतक से बातचीत में पीएम मोदी के ऐलान पर अविश्वास जताया। उन्होंने साफ कहा कि अभी तो बस ऐलान हुआ है. हम संसद से कानूनों की वापसी होने तक इंतजार करेंगे। राकेश टिकैत ने साथ ही ये भी कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य समेत किसानों से जुड़े अन्य मसलों पर भी बातचीत का रास्ता खुलना चाहिए।कृषि कानूनों को वापस लेने का एलान होने के बाद झारखंड में लोग इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं. इस बीच झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा है कि अविलंब केंद्रीय कृषि मंत्री को इस्तीफा दे देना चाहिए। वे मृत किसानों को शहीद का दर्जा देने की भी मांग कर रहे हैं।
शायद यह भी ऐतिहासिक ही कहा जाएगा जब बिना एप्रोच एकाएक इतना नेक करम हो जाए। विदित हो किसान संघर्ष का पूरा एक साल 26नवम्बर को होने वाला है। उस दिन यह निश्चित ही था कि किसानों का जमावड़ा दिल्ली में होगा और सरकार के विरुद्ध ही निर्णय लिए जाते। खासतौर पर होने वाले चुनावों की भूमिका विषयक। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों पर इसका भी असर जाता। इसलिए पहले ही यह घोषणा कर दी किसानों का दिल जीतने।
लेकिन अब किसान इतने गए बीते तो नहीं रहे कि सरकार की घोषणा को यकीन मान लें। कहते हैं कि बार बार झूठ नहीं चलता सात आठ साल के झूठों के बीच किसान ही नहीं आज आम मतदाता भी परिपक्व हो चुका है । इसलिए किसानों ने ठान लिया है कि हुक्मरानों की बात पर यकीन ना करें और अपना आंदोलन जारी रखें। प्रधानमंत्री के इस झुकाव का असर आंदोलन को और मजबूत करेगा क्योंकि अब वे भली-भांति समझ चुके हैं कि एकता के मंत्र की ताकत ना केवल प्रजातंत्र को मजबूत करती है बल्कि गलत कार्ययोजना पर रोक लगाने का माद्दा भी रखती है। इस आंदोलन ने अन्य जुझारू संगठनों को भी एकजुटता का संदेश दिया है।एक बात जो सबसे महत्वपूर्ण है वह यह कि चुनाव आने पर नेतागण इतनी सक्रियता से काम और घोषणाएं करने लगते हैं उसका फायदा लेना चाहिए। आज किसानों के बिल वापस लेने के पीछे चुनाव ही है।
कुछ लोग अब इस माथापच्ची में लग गए हैं यदि यह हो जाता है तो अडानी को कई हज़ार करोड़ का नुकसान उठाना होगा।उसका क्या होगा जिसकी यारी के लिए देश के साथ सौ किसानों ने अपनी जान कुर्बान कर दी। लगता है इसमें कोई बड़ा पेंच है जिसे किसान नेताओं ने भली-भांति समझ लिया है वे आंदोलन तब तक जारी रखेंगे जब तक उनकी तमाम मांगों को कानून के दायरे में नहीं मान लिया जाता। अभी शह मात का खेला चलेगा । किसानों को दो फाड़ करने की कोशिश होगी। ये झूठ फरेब की राजनीति का दौर है एक एक कदम फूंक-फूंक कर रखना होगा।इस ज़बरदस्त आंदोलन को कोई आंच ना आए इस पर तैयारी जरुरी है।
किसानों की ताकत को यह सच है कि पी एम साहिब ने अच्छे से जान लिया है। चुनाव सर्वे से ही यह सब खलबली है उनका रोना, झुकना, घोषणाएं पूरी तरह अविश्वसनीय रही है । जनता जनार्दन उसका दंश बराबर झेल रही है। आज तक उनकी कही बातों के उलट ही काम हुए हैं सिर्फ एक ही उदाहरण काफी है कहा था ''देश नहीं बिकने दूंगाÓÓ और क्या हाल है बताने की आवश्यकता नहीं। विश्वास है किसान अपना संघर्ष मंजिल तक पहुंचने तक जारी रखेंगे। हम सब साथ है। किसान एकता जिंदाबाद। अभी बहुत कुछ लेना बाकी है। हम बेहद जटिल समय में कुटिल राजनीतिज्ञों बीच हैं। एक दौर था जब प्रधानमंत्री का कहा पत्थर की लकीर होता था। अब झूठ का तिलिस्म है अतएव अपने संगठन को मजबूत रखने की हरदम कोशिश जारी रखें।
Comments
Post a Comment