जायें तो जायें कहां?

 जायें तो जायें कहां?

महानगर में एक सौ से अधिक मकान ऐसे हैं जो कभी भी धराशायी हो सकते हैं। उनके किरायेदार अपनी मौत का इन्तजार कर रहे हैं

कोलकाता महानगर की उम्र तीन सौ वर्ष से अधिक है। तीन गांव- सूतानाटी, कोलिकाता, गोविन्दपुर को मिलाकर बना है हमारा कोलकाता। गंगा के किनारे बसा यह शहर अपनी भौगोलिक सुविधाओं एवं यहां के भद्र लोगों के सद्भाव के कारण बसता गया एवं बढ़ता गया। आज देश का सबसे बड़ा शहर तो नहीं पर सबसे घनी आबादी वाला शहर है। यहां जल निकासी व्यवस्था बहुत प्राचीन है इसलिए थोड़ी सी वर्षा के बाद कई इलाके जलमग्न हो जाते हैं। महानगर के बुढ़ापे की पीड़ा तब प्रकट होती है जब भारी वर्षा में कोई पुराना जीर्ण-शीर्ण मकान या उसका हिस्सा टूट कर गिरता है। इसी पुरानी व्यवस्था के कारण कई पुराने मकानों में आगजनी की घटनायें अक्सर होती हैं। तभी यह कहा जाता है कि शहर के कई मकान लक्षागृह बन गये हैं जहां किसी भी वक्त आग दावानल की तरह फैल जाती है। पुराने मकानों या इलाकों में झूलते हुए नंगे तार देखते-देखते अग्निकुंड बन जाते हैं। सिर्फ मकान ही नहीं कई मोहल्लों में आग पूरे बाजार या कटरों को लील चुकी है। देखते-देखते न्यू मार्केट, बागड़ी मार्केट, नंदराम कटरा, मंगला हाट जैसे विशाल महाकाय बाजारों के अस्तित्व मिट गये या अग्निकांड में उनका नवनिर्माण किया गया।


गत 29 सितम्बर को अहिरीटोला में ढहे मकान के मलबे में फंसे लोगों को बाहर निकालते दमकलकर्मी।         (फाईल फोटो)

विगत 29 सितम्बर को उत्तर कोलकाता के एक पुराने इलाके अहिरीटोला लेन में तेज बारिश के बाद दो मंजिला जर्जर मकान का हिस्सा ढह गया। हादसे में तीन साल की बच्ची तथा उसकी नानी की मौत हो गयी। मलबे में फंसे सात लोगों में पांच को दमकल विभाग ने निकाल कर बचा लिया। दो की जान चली गयी।

जब भी ऐसी कोई घटना होती है, महानगर के नागरिक जीवन की कुछ खौफनाक हकीकत सामने आती है। नगर निगम से लेकर नागरिकों द्वारा चिन्ता भी जतायी जाती है। दो-तीन दिनों की सरगर्मी के बाद अगले हादसे तक तूफान के पहले की शांति छा जाती है। कोलकाता महानगर के मेयर जो अभी प्रशासक के रूप में कार्य कर रहे हैं ने इस हादसे के बाद कहा कि कोलकाता में करीब सौ ऐसे मकान हैं जिन्हें खतरनाक घोषित किया जा चुका है। फिर भी पुराने जर्जर मकानों से किरायेदार हट नहीं रहे। कोलकाता नगर निगम ऐसे जर्जर मकानों पर एक तख्ती लगा देती है-''विपदजनक बाड़ीÓÓ यानि खतरनाक मकान है। महानगर के पुराने इलाकों में ऐसे कई मकान हैं जो लगभग एक सौ वर्ष पुराने हैं जिनका हिस्सा बारिश के बाद गिर पड़ता है। मकान मालिक इन मकानों में नहीं रहते हैं। रहते हैं किरायेदार जिनके पास एक या दो कमरे होते हैं। इनका भाड़ा 25-50 रुपये के लगभग होता है। ये सभी बहुत पुराने किरायेदार हैं। प्राय: किरायेदारों के बाप-दादा के नाम से भाड़े की रसीद है जो अब इस संसार में नहीं हैं। चार मंजिले मकान में चालीस-पचास कमरे हैं जिनका कुल भाड़ा एक हजार से पन्द्रह सौ रुपये आता है। इनमें कई किरायेदार ऐसे भी हैं जो वहां रहते तो पीढिय़ों से हैं पर उनके नाम से भाड़े की रसीद नहीं। उन्हें कोई पुराना किरायेदार कुछ रुपये लेकर बसा जाता है। इस तरह इन मकानों का कोई माई-बाप नहीं होता। इनमें औरतें और छोटे बच्चे भी होते हैं। मकान मालिक की अपनी मजबूरी है एवं सबसे अधिक असहाय तो किरायेदार होते हैं। इन मकानों में रहने वाले बेबस किरायेदार जानते हैं कि यह जर्जर मकान किसी भी घड़ी गिर सकता है और हादसे में उनकी मृत्यु निश्चित है। ऐसा लगता है कि ये लाचार किरायेदार अपनी मौत का इन्तजार कर रहे हैं। इन किरायेदारों से खतरनाक मकान को खाली करवाना भी अमानवीय कृति है क्योंकि आखिर वे कहां जायें? मध्यम व निम्न मध्यम श्रेणी के किरायेदारों की आर्थिक बोझ से ऐसे भी कमर झुकी रहती है। बड़़ी अजीब स्थिति है। मौत उनके सामने नाचती रहती है और बेबस होकर देखने के अलावा उनकी नीयति में और कुछ नहीं है। आखिर वे जायें तो कहां जायें?

शहर में पुरानी जर्जर खतरनाक इमारतें काल बनकर मासूम जिंदगियों को लील रही है। ऐसे में राजकपूर की एक फिल्म का गाना याद आता है जो बहुत कुछ हकीकत बयां करता है- ''जितनी भी बिल्डिंगें थी, सेठों ने बांट ली है, फुटपाथ बम्बई के अब आशियां हमारा।ÓÓ आंकड़ों को माने तो कोलकाता में इन दो महीनों में विभिन्न इलाकों की 20 इमारतें ढही है। परिणामस्वरूप 3 लोगों की मौत हुई और 20 से अधिक लोग घायल हुए हैं। शहर के कुछ इलाकों में तो जर्जर मकानों की यह हालत है कि उसके नीचे से गुजरने में डर लगता है। ऐसे अधिकांश मकान बड़ाबाजार, बड़तल्ला, तालतल्ला, बऊबाजार, अहिरीटोला, पाथुरिया घाट स्ट्रीट, भवानीपुर, बीडन स्ट्रीट, विवेकानन्द रोड, एपीसी रोड, अम्हस्र्ट स्ट्रीट, महात्मा गांधी रोड में स्थित है।

अहिरीटोला के जिस मकान का हादसा हुआ वह करीब 100 साल पुराना था। ऐसा नहीं है कि इस समस्या का कोई समाधान नहीं है। इसके लिये नगर निगम को कड़ाई से पेश आना होगा। सिर्फ ''विपदजनक बाड़ीÓÓ का बोर्ड लगाकर अपनी जिम्मेवारी से पल्ला झाड़कर निगम बच नहीं सकता। जिन जर्जर मकानों के किरायेदार वहां से निकलना नहीं चाहते उनका अधिग्रहण किया जाना चाहिये। फिर किरायेदारों को सुदूर स्थान पर विकल्प स्थान देकर उन मकानों का एक निश्चित समय में जीर्णोद्धार होना चाहिये। कलकत्ता में जमींदारों की सैकड़ों कोठियों में बहुमंजिला मकान बनाये जा चुके हैं। मकान भले ही खंडहर बन चुके हैं किन्तु जिस जमीन पर वे खड़े हैं उसकी कीमत भारी भरकम है। कई मकान मालिक तो साजिशतन मकानों में आग लगवा देते हैं। कुछ समय बीतने के बाद वहां नये बहुमंजिले भवन बन जाते हैं। कहने का अर्थ यह है कि इसका समाधान सरकार एवं प्रशासन ही कर सकता है। इन मकानों के किरायेदारों को भी जीर्णोद्धार में विकल्प स्थान पर जाकर सहयोग करना चाहिये ताकि देर-सबेर उनका पुनर्वास हो सके। इसकी पहल सरकार एवं प्रशासन को करनी होगी। ऐसे मकानों के रिहायशी जनता में प्रशासन के प्रति विश्वास पैदा करना होगा ताकि उनको दिलजमी हो कि उन्हें उनका घर वापस मिल जायेगा।

महानगरों में विकास की यह परिणति अवश्यम्भावी हैं किन्तु हर समस्या का समाधान निकलता है बस मजबूत इरादा एवं ²ढ़ ईच्छा शक्ति की जरूरत है। ठ्ठ



Comments

  1. कोलकाता व्यथा पढी लेकिन लेख में सपष्ट है कि दशकों से नाममात्र किराये पर रहने वाले किरायेदारों के कारण ही धर्मसंकट पैदा होता है इसलिए सरकार को उन्हें मानवीय स्वभाव से अन्य जगह बसाकर फिर वो एतिहासिक इमारत तोड़ देनी चाहिए.
    खैर आपकी दास्तान पढकर जानकारी मिली लेकिन इसका उपाय भी जटिल है इसलिए....

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