नौटंकी का दूसरा नाम-देव कुमार सराफ!
आनन्दलोक में सेवा के नाम पर करोड़ों का विज्ञापन खर्च
आनन्दलोक की स्थापना का एक सुनहरा इतिहास है। गैरेज में इस चिकित्सा सेवा केन्द्र की स्थापना देव कुमार सराफ ने की थी। धीरे-धीरे सराफ जी के सेवा भाव एवं गरीबों का भला करने की उनकी निष्ठा के कारण यह संस्था फलती-फूलती गयी। बाद में मारवाड़ी समाज के कई प्रतिष्ठित लोगों ने आनन्दलोक की सेवाओं को आगे बढ़ाने के लिये मुक्त हस्त दान दिया। आनन्दलोक ने वृहत रूप धारण किया। कई इस संस्था से जुड़े और सराफ जी के साथ खड़े हुये। लेकिन इतिहास साक्षी है कि हर क्षेत्र में ऐसे कुछ लोग अहम् के शिकार हो जाते हैं। इनमें निरंकुश बनने की एवं ''अहम् ब्रह्मास्मि द्वितीयो नास्ति। यानि मैं ही सब कुछ हूं दूसरा कोई कुछ भी नहीं है, की प्रवृत्ति जाग उठती है। ऐसा व्यक्ति फिर पागल हाथी की तरहआगे तो बढ़ता है पर रास्ते में पेड़, निर्माणों को नेस्तनाबूत करके चलने लगता है। सराफ जी के साथ भी यही हुआ। इसकी एक बानगी उन्होंने 17 जनवरी 2020 में अखबारों में विज्ञापन में छपवा कर प्रस्तुत की। ठाकुर जी से अंतिम ईच्छा प्रकट की कि मरणोपरान्त उन्हें मनुष्य योनि मत देना। किसी पशु की योनि दे देना पर भूल कर भी मनुष्य जीवन मत देना। मनुष्य का जीवन पशु से भी अधम है। सराफ जी अपने मानसिक विक्षुब्धता के कारण एक मूल बात भूल गये कि मानव सेवा कार्य उन्हीं को शोभा देता है जो आशावादी हैं। जिस व्यक्ति को मानव मात्र से विरक्ति हो वह सेवा क्या खाक करेगा? विज्ञापन प्रकाशित होने के कुछ पहले आनन्दलोक के अध्यक्ष पद से श्री अरुण पोद्दार इस्तीफा देकर अलग हो गये थे। वैसे ये पहले अध्यक्ष नहीं हैं जिन्होंने आनन्दलोक के इस प्रमुख पद से किनारा कर लिया हो। श्री ओम प्रकाश धानुका जो एक बड़ी चीन मिल के मालिक हैं ने इसके पहले त्यागपत्र दिया था। बहुत मनाने पर भी वे नहीं माने लेकिन पोद्दार जी को हाथ-पांव पकड़ कर सराफ जी ने किसी तरह मना लिया। आनन्दलोक के एक विज्ञापन में सराफ जी ने दावा किया कि अरुण जी मान गये हैं और पहले की तरह काम करेंगे। अरुण जी पहले की तरह क्या काम करेंगे इसका विज्ञापन में कोई जिक्र नहीं था।
सराफ जी ने जनसेवा के नाम पर झूठ बोलने एवं समाज को झांसा देने का उपक्रम शुरू कर दिया एवं अपनी पुरानी प्रतिष्ठा को ताक पर रख दी तभी से शुरू हुआ सराफ जी का ढोल पीटने का उपक्रम। अखबारों में लगभग प्रतिदिन बड़़े-बड़े विज्ञापन छपवा कर उन्होंने उल्टे सीधे-दावे करने शुरू कर दिये और अपने आप को ठाकुर जी का देवदूत बताने में लग गये। उन्होंने मई 2018 में एक विज्ञापन छपवा कर गरीबों में बैटरी चालित पंखे बांटने का कार्यक्रम किया। सराफ जी ने विज्ञापन में दावा किया कि इस तरह का गरीबों का कल्याण कोई दूसरा करके दिखाये। सराफ जी को यह मामूली ज्ञान भी नहीं रहा कि गर्मी में पंखे, सर्दी में कम्बल, बच्चों को स्कूली फीस, छात्र-छात्राओं को पाठ्य-पुस्तकें आदि-आदि नेक कार्य एक-दो नहीं कोलकाता महानगर की सैकड़ों संस्थायें कर रही हैं। प्रेम मिलन एक लाख से अधिक लोगों को मुफ्त चश्मा दे चुकी है। 25 हजार के करीब लोगों की आंखों का नि:शुल्क ऑपरेशन कर चुकी है। नागरिक स्वास्थ्य संघ, मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी, भारत रिलीफ सोसाइटी आदि कई संस्थायें सेवा कार्य में अग्रणी हैं। सराफ जी की इसतरह विरदावली गाने से लोगों में एक एक बहुत तीव्र प्रतिक्रिया हुई। आनन्दलोक की जो छवि बनी थी तेजी से धूमिल होने लगी।
सराफ जी ने गांवों के गरीबों को मुफ्त में मकान बनाकर देने का एक बड़ा झूठ परोसा। इनकी झूठ और बढ़ा-चढ़ाकर दावा करने का फर्जीवाड़ा के लिये कुछ मोटी-मोटी बातें हम पाठकों के सामने रख रहे हैं ताकि इस तरहका फरेब फिर नहीं दोहराया जाये।
जून 2013 तक इन्होंने 4122 मकानों के बनाने का दावा किया। आनन्दलोक की वार्षिक रिपोर्ट (2013-14) के अनुसार मात्र 1451 मकान बनाये गये। इस वर्ष कुल मकानों की संख्या 6290 बतायी गयी। एक रिपोर्ट के अनुसार कुल मकानों की संख्या 6290 बतायी जबकि दूसरी रिपोर्ट में यह संख्या 5573 बतायी गयी। खर्च का आंकड़ा देखा जाय तो वह भी कम भ्रामक नहीं है। मकान बनाने पर कुल खर्च 1 करोड़ 40 लाख 16 हजार 411 रुपये बताये गये हैं और एक मकान पर खर्च 1 लाख 35 हजार बताया गया। इस गणित के अनुसार तो मकानों की संख्या मात्र 104 ही आती है। ग्रामीण क्षेत्रों में आनन्दलोक के सराफ जी ने रिपोर्ट में प्रकाशित किया कि 2013-14 में 1451 मकान बनाये जिस पर 1 करोड़ 40 लाख खर्च हुए, 2014-15 में रिपोर्ट के अनुसार 2627 मकान बनाये उसपर भी खर्च 1 करोड़ 42 लाख हुए - यह कैसे हो सकता है? 2016-17 में एक हजार मकान बनाकर दिये जिस पर 2 करोड़ 91 लाख रुपये का खर्च बताया गया। यानि मकान बनाने के खर्च पर मनमाने आंकड़े पेश किये गये।
इससे भी आश्चर्य की बात यह है कि क्या वास्तव में मकान बनाये गये, और बनाये गये तो कितने और वे किनको दिये गये? इसका एक ज्वलन्त नमूना पेश है। मोयना ग्राम पंचायत के सचिव को यह भार दिया गया था कि वह आनन्दलोक के सराफ जी द्वारा ग्रामीणों को दिये गये पक्के मकानों के दावे की जांच-पड़ताल करे। एक महीने तक आनन्दपुर गांव में आनन्दलोक के 90 मकानों के बारे में जांच-पड़ताल की गयी। इसके पश्चात् ग्राम पंचायत के सचिव ने ब्लाक डेवलपमेन्ट अधिकारी मोयना को रिपोर्ट भेजी कि उन 90 मकानों की जो सूची भेजी गयी उसमें मात्र एक मकान के ही अस्तित्व का पता चल पाया। पत्र की प्रतिलिपि हम हू-ब-हू यहां प्रकाशित कर रहे हैं। ऐसे ही उनके कई हजार मकान सिर्फ विज्ञपनों में थे।
अब उनके एक और फरेब की गन्दी तस्वीर पर नजर डालिये। राजारहाट में ली गयी 182 कट्ठा जमीन के मूल्य का घपला समझिये- 3 मई '16 और बाद में 7 मई '16 में सन्मार्ग में प्रकाशित विज्ञापन में लिखा गया कि धूत ग्रुप से जमीन के लिए 6 करोड़ रुपये का दान मिला। फिर 29 मार्च 2017 को प्रभात खबर में छपे आनन्दलोक के विज्ञापन के अनुसार धूत ग्रुप ने जमीन लेने में 3.5 करोड़ रु. की मदद की। 6 अप्रैल '17 में प्रकाशित विज्ञापन के अनुसार आनन्दलोक ने धूत ग्रुप से 4 करोड़ 67 हजार रुपये में जमीन खरीदी। लेकिन 2016-17 में आनन्दलोक की बैलेंसशीट के अनुसार आनन्दलोक ने जमीन 2 करोड़ 74 लाख रुपये में खरीदी। एक और झूठ का पर्दाफाश- सन्मार्ग में प्रकाशित 17 दिसम्बर 2010 सराफ जी ने आनन्दलोक के लिए राजारहाट में 800 कट्ठा जमीन का सौदा किया। इसके लिए 2 करोड़ रुपये अग्रिम दिये गये। यह जमीन कहाँ है? थोड़ा और धैर्य रखिये और जानिये कि 29 जनवरी 2015 में सन्मार्ग में छपे विज्ञापन बताता है कि वृन्दावन में एक संन्यासी द्वारा करोड़ों रुपये का मठ एवं लाखों रुपये आनन्दलोक को दान दिया गया। पर यह जमीन का आज तक कहीं पता नहीं है।
सराफ जी का सफेद झूठ यहीं खत्म नहीं होता। 7 जुलाई 2016 को सन्मार्ग में प्रकाशित विज्ञापन के अनुसार श्री देवकुमार सराफ ने अपने घर के गहने बेचकर 5 करोड़ रुपये का दान आनन्दलोक को दिया। बताया गया कि मेसर्स सराफ कम्पनी (पार्क स्ट्रीट) एवं जालान फर्म को कई बार गहने बेचे। आनन्दलोक की 2016-17 की बैलेंस शीट को सही मानें तो श्री सराफ ने मात्र लाख 88 हजार रुपये का ही दान दिया। यही नहीं 19 जुलाई 2016 को प्रभात खबर में प्रकाशित विज्ञापन के अनुसार आनन्दलोक को पुरी के नजदीक 5 एकड़ जमीन मिली है जिसका बैलेंस शीट में कोई जिक्र नहीं है।
आनन्दलोक के एक सूत्र ने बताया कि कमाई का टैक्स बचाने के लिए जो सेवायें दिखायी जाती है या उनका दावा किया जाता है वह कुछ और है और वास्तविकता कुछ अलग है। हमने उसके कुछ नमूने ऊपर दर्शाये हैं।
इतनी सारी ''सेवायें'' करने के बाद जाहिर है कि सराफ जी की ईच्छा हो कि उनके बारे में कुछ प्रशस्ति ग्रंथ लिखे जायें तो यह मानवीय दुर्बलता स्वाभाविक है। पहले उन्होंने राष्ट्रपति से पद्मश्री का सम्मान लेने के लिए काफी मशक्कत की। सराफ जी ने तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से पद्मश्री हासिल करने का जुगाड़ बैठाने की कोशिश की। एक पुस्तक प्रकाशित करवायी गयी जिसमें प. बंगाल के गांवों में दस हजार पक्के मकान देने की पूरी सूची प्रकाशित की गयी। राष्ट्रपति सचिवालय को जब पता लगा कि यह सूची फर्जी है तो उनका जुगाड़ का भांडा फूट गया और फिर घर के बुद्धू घर पर आ गये। इस ओर जब निराश हुए तो उनकी अब अंतिम ईच्छा है कि उनकी प्रशस्ति में कोई पुस्तक लिखे। वे एक दिन मेरे घर आये थे। मैं बीमार था, इसलिये हालचाल पूछने। उस वक्त उन्होंने मुझे आग्रह किया कि मैं लिखूं लेकिन सन्मानपूर्व मैंने ना कर दिया। बाद में साहित्य मनीषी एवं पद्मश्री से सम्मानित डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र से भी उन्होंने आग्रह किया। जाहिर है कि कृष्ण बिहारी जी इस तरह का समझौता नहीं कर सकते। देवकुमार जी सराफ अपना ढोल पीटने के पागलपन में इतने बहक गये कि अविश्वसनीय एवं हास्यास्पद या दूसरे शब्दों में मूर्खतापूर्ण शेखियां बखारने लगे हैं। आनन्दलोक के 38वें स्थापना दिवस पर डा. आशीष कुमार एमबीबीएस ने एक किताब लिखी है जिसका नाम है- श्वश्चद्बह्यशस्रद्गह्य शद्घ ष्टशद्वश्चड्डह्यह्यद्बशठ्ठ। इस पुस्तक के विमोचन पर प्रेषित किये गये निमंत्रण में लिखा गया है कि महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइन्सटाइन अगर आज जिन्दा होते तो वे सराफ जी के बारे में कुछ तरह लिखते-इस ''पचास वर्ष बाद, कोई भी यह विश्वास नहीं करेगा कि एक कम पढ़ा-लखा व्यक्ति जो एक सफेद-पैंट और कमीज पहनता था एवं चटाई पर बैठा करता था, ने हर्ट बाई पास सर्जरी 45 हजार रुपये कर दिखायी।'' हालांकि उस वक्त आनन्दलोक में हर्ट सजरी 85 हजार रुपये में की जाती थी।
अब मैं क्या कहूं - आइन्सटाइन जो विश्व के महानतम वैज्ञानिकों में से थे की महात्मा गांधी के प्रति गहरी आस्था थी। लेकिन शायद उनका दुर्भाग्य था कि वे आज के युग में पैदा नहीं हुए वरना गांधी जी से भी बड़ा महामानव का दर्शन करते। कोरोना से अधिक भयानक काल हमने नहीं देखा। इस काल में सभी ने अपने-अपने ढंग से सेवा की। सराफ जी जरा बतायें कि इस कोरोना काल में उन्होंने क्या चिकित्सा सेवा उपलब्ध करायी। हां वे खुद कोरोनाग्रस्त हो गये थे, लेकिन अपना इलाज भी उन्होंने अपोलो अस्पताल में करवाया।
सराफ जी के चित्र के साथ लगभग हर दूसरे दिन अखबारों में बड़े विज्ञापन छपते हैं जिसमें देव कुमार सराफ जी का अनर्गल, हास्यास्पद एवं मारवाड़ी समाज के बारे में अनर्गल बातें लिखी होती हैं। मारवाड़ी समाज में बड़ा धैर्य और समझदाती है कि वह सराफ जी के बड़बोलेपन एवं बेहूदा प्रलाप को बर्दाश्त कर लेती है। सराफ जी विज्ञापनों के माध्यम से जनसेवा की नौटंकी करते हैं जिसे पढ़कर लोग हंसते हैं। अपनी झूठी प्रशंसा को विज्ञापन के रूप में आये दिन छपवाकर सराफ जी ने जनसेवा को भी कलंकित किया है। हमारे पास सराफ जी के उपरोक्त झूठ एवं फरेब के कई प्रमाण हैं। फिलहाल के लिये इतना ही काफी है।
सच्चाई को आईना दिखाते हुए समाजसेवा के नाम पर अहम ब्रह्मास्मि की पोल खोलता आलेख।
ReplyDeleteदेवकुमार सराफ ने यह भी दावा किया है कि कोलकाता के प्रतिष्ठित मारवाड़ी घरानों की शादियों में खाने में गोमांस का उपयोग हो रहा है... इस वार्तालाप की रिकॉर्डिंग भी है... उनपर इस आक्षेप को सिद्ध करने हेतु समाज द्वारा आग्रह किया जाना चाहिए अन्यथा उनका सामाजिक बहिष्कार करना उचित है।
ReplyDeleteBeautiful history
ReplyDeleteपैसा और आत्मसमोहन से ऐसा ही होता है। पता नही यह व्यक्ति क्या साबित करना चाहता है ?
ReplyDeleteप्रणाम आदरणीय
ReplyDeleteआपका व्यक्तित्व प्रेरणादायक है सच बोलने की हिम्मत आपके व्यक्तित्व से सीखने को मिलती है। देव कुमार सराफ जी के बारे में आज भी एक विज्ञापन' सन्मार्ग 'समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ है। मैंने पढ़ा कि किस प्रकार उन्होंने अपने घर के गहने बेचकर कुष्ठ रोगियों के लिए मकान बनवाए। ऐसी खबरें पढ़कर ऐसे समाजसेवियों के प्रति मन में श्रद्धा की भावना जगती है, पर समाजसेवी के मन में अहंकार की भावना नहीं होनी चाहिए, और न ही मुंह मियां मिट्ठू बनने का भाव। सच्चा समाज सेवी तो वह होता है जो निस्वार्थ भाव से सेवा करें। प्रशंसा पाने या करवाने के लिए नहीं। आप के आलेख को पढ़कर वास्तविकता की जानकारी हुई।
भारतीय संस्कृति हमें यह सिखाती है कि नेकी कर दरिया में डाल या दाहिने हाथ से दान करें तो बाएं हाथ को भी इसकी जानकारी नहीं होनी चाहिए, परन्तु सराफ जी के विज्ञापनों को देखकर ऐसा लगता है कि ये सब गुज़रे ज़माने की बातें हो गई हैं। अभी तो जो दिखता है वही बिकता है।
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