हिन्दुस्तान क्लब में प्याज-लहसुन के खिलाफ धर्मयुद्ध

 


हिन्दुस्तान क्लब में प्याज-लहसुन के खिलाफ धर्मयुद्ध

क्लब को हथियाने का कुचक्र


हिन्दुस्तान क्लब महानगर की एक प्रमुख सामाजिक संस्था है जिसकी स्थापना के पीछे समाज के पुरोधाओं का सात्विक मकसद था कि समाज के लोग पारिवारिक वातावरण में स्वस्थ मनोरंजन का उपभोग कर सकें। वर्ष 1946 यानि देश की स्वतंत्रता के लगभग एक वर्ष पूर्व इसकी स्थापना हुई और 75 वर्षों में क्लब कुछ उतार-चढ़ाव के साथ आज एक नये रंग रूप में हैं। क्लब का बहुमंजिला भव्य मकान है, उसमें स्वीमिंग पुल भी है। खेल, आधुनिक प्रसाधन के सरअंजाम के साथ क्लब उत्तरोत्तर प्रगति कर रहा है। पिछले कुछ वर्षों से क्लब का वातावण चुनाव के पहले पारे पर चढ़ जाता है। एक-दो बार तो थाना-पुलिस की नौबत आ चुकी है। जाहिर है पारिवारिक वातावरण को भंग कर क्लब कुछ सदस्यों की महत्वाकांक्षा का शिकार होता जा रहा है। हिन्दुस्तान क्लब में कभी मिल बैठ कर सर्वसम्मति से कमिटी का चुनाव हो जाया करता था किन्तु गत एक दशक में इस परिपाटी पर विराम लग गया है। हर वर्ष चुनाव के पहले क्लब पर काबिज होने के मकसद से बड़ी-बड़ी पार्टियां की जाया करती हैं। अब इस पर भी रोक लगाने का निर्णय लिया गया। किन्तु जब मन-भेद होता है तो रंजिश किसी न किसी रूप में प्रकट हो जाती है।


इस साल चुनाव कोविड प्रकोप के कारण समय पर नहीं हो पा रहा है। बीच में एक साल क्लब बंद भी रही है, पहले कोविड और फिर श्रमिक अशान्ति के चलते। नया चुनाव कब होगा, अधर में है। असाधारण वार्षिक सभा 9 अक्टूबर को होने वाली थी पर अध्यक्ष ने सदस्यों के नाम पांच पेज का पत्र भेजकर उसे रद्द कर दिया।

अब हालिया एक नया दिलचस्प विवाद शुरू हो गया है। क्लब में प्याज, लहसून के सेवन को लेकर एक धर्मयुद्ध-सा छिड़ गया है। हिन्दी के कुछ समाचार पत्रों में क्लब के पदाधिकारियों ने प्रमुखता के साथ विज्ञप्तियां प्रकाशित करवायी। आज के युग में प्याज और लहसुन को रसोई में इंट्री हो इस पर तर्क-वितर्क कल्पना से बाहर है। हमारे घरों में भी इस गुत्थी को आसानी से सुलझा लिया गया है। कुछ दशक पहले तक मारवाड़ी एवं गुजराती परिवारों में प्याज लहसून से परहेज था। अब यह मुद्दा समाप्त हो गया। अधिकांश घरों में प्याज-लहसून हमारी थाली का अभिन्न अंग बन चुका है। कुछ घरों में अगर परहेज है तो इसको लेकर कहीं विवाद नहीं है। दो वर्ष पूर्व देश में प्याज संकट को लेकर संसद में परिचर्चा हुई। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जब कहा कि वे प्याज नहीं खाती तो उनके इस बयान की सबने आलोचना की। सांसदों ने कहा आप खाती हैं या नहीं इससे क्या फर्क पड़ता है, लेकिन प्याज के ऊंचे दाम देश को बर्दाश्त नहीं। कई वर्ष पूर्व सुषमा स्वराज की दिल्ली में सरकार उलट गयी थी क्योंकि प्याज का भारी संकट पैदा हो गया था। उसी तरह हिन्दुस्तान क्लब में पुरानी परम्परा बनी रहे या प्याज लहसुन परोसा जाये इससे क्या फर्क पड़ता है। जब परिवारों ने यह गुत्थी सुलझा ली तो क्लब में इसे विवाद क्यों बनाया जा रहा है, समझ के बाहर है। परम्परायें परिवर्तनशील होती है। आज के आधुनिक वातावरण में क्लब भवन में स्वीमिंग पुल है जो पहले नहीं था। एक वरिष्ठ सदस्य ने तो नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि किसी समय क्लब में जुआ खेलते हुए कई नामधारी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया था एवं टेबल के नीचे ले देकर वे किसी तरह मुक्त हुये थे। कहने का मतलब कि अब प्याज लहसून को लेकर एक सार्वजनिक विवाद छेड़ा जाय, यह अवांछित है और संकीर्ण मनोवृत्ति की परिचायक है। लेकिन जैसा मैंने पहले कहा कि क्लब के धाकड़ लोगों में आपसी मनभेद इतना उग्र हो गया है कि प्याज-लहसुन का जिन बोतल से निकल कर डराने लगा है।


हिन्दुस्तान क्लब का बहुमंजिला भव्य मकान

क्लब के कई सदस्यों ने बताया कि चुनाव के पूर्व छेड़ा गया यह विवाद दरअसल इस पुरानी संस्था पर कब्जा करने की भूमिका है। क्लब में सदस्यों की संख्या अधिकतम सीमा पर पहुंच गयी है। क्लब का खजाना खाली हो गया है। नये सदस्य बनने पर ही आर्थिक संकट से निपटा जा सकता है। अत: पुराने सदस्यों को ऑफर दिया जाने का प्रस्ताव है कि वे पांच लाख रुपये लेकर सदस्यता छोड़ दें। इस तरह खाली स्थानों में नये सदस्य बनाने जा सकेंगे एवं क्लब को आर्थिक संजीवनी मिल जायेगी। लेकिन सबसे गौर करने की बात है कि क्लब के चुनाव को निरर्थक बनाने की मंशा से ऐसी कमिटियां बनाने का भी प्रस्ताव है जो क्लब का वास्तविक संचालन करेगी एवं निर्वाचित सदस्यों का अख्तियार क्लब की छुट-पुट गतिविधियों तक सीमित हो जायेगा। कई सदस्यों का सोचना है कि क्लब पर कब्जा करने का यह कुचक्र है, प्याज-लहसुन तो बहाना मात्र है। कई पुरानी एवं जनोपयोगी संस्थाओं पर बिना चुनाव एवं सदस्यों से बिना राय मशविरा किये कब्जियाने का कुचक्र चल रहा है। इसमें कुछ प्रभावशाली लोग मोहरा बन रहे हैं जिसके चलते सदस्य कुछ बोल नहीं पाते लेकिन अन्दर ही अन्दर उनमें असन्तोष और आक्रोश है।

हिन्दुस्तान क्लब के कुछ सदस्यों को यह आशंका है कि संकट पैदा कर इस क्लब को भी हार बनाकर किसी के गले में डाल दिया जाय। हाल ही में एक नामी संस्था की यही परिणति हुई है।




Comments

  1. शायद आपका इशारा श्री काशी विश्वनाथ सेवा समिति की ओर है... कमोबेश जिन संस्थाओं में मारवाड़ी सदस्यों का कार्यकारिणी में बाहुल्य था, सभी संस्थाएँ आज अंतिम सांसें ले रही हैं। इसका कारण है सदस्यों के आपस में तालमेल की कमी, मिथ्या अहंकार एवम् पदाधिकारियों द्वारा संस्था के सदस्यों के राय मशविरे को नजरअंदाज करना।

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  2. आपसी मतभेद, स्वार्थपरक मनोदशा परम्पराओं का सरेआम कत्ल कर रही है और मूकदर्शक प्रवृत्ति इन्हें बढ़ावा देने में तनिक भी नहीं हिचक रही है । दुर्भाग्यपूर्ण !
    सविता पोद्दार

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