अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष द्वारा कथित आत्महत्या के गंभीर मायने

 मठ-मंदिरों में घुसे हुए हैं भू माफिया

अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष द्वारा कथित आत्महत्या के गंभीर मायने

अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरि जी महाराज का शव प्रयागराज के उनके बाघंबरी मठ में ही फांसी के फंदे से लटका मिला। नरेन्द्र गिरि की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के बाद कई सवाल भी उठ रहे हैं। उनके शिष्ट रडार पर हैं। मठ-मंदिरों एवं धार्मिक स्थलों के साथ धर्म के नाम पर अपराधियों के फलते-फूलते गोरख धंधे पर चर्चा करें इसके पूर्व आपको बता दूं कि आखिर यह अखाड़े हैं क्या? इनकी परम्परा और इतिहास क्या है? अखाड़ा परिषद् अध्यक्ष का चुनाव कैसे किया जाता है?


अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरि। (फाईल फोटो)

शैव, वैष्णव और उदासीन पंथ के संन्यासियों के मान्यता प्राप्त कुल 13 अखाड़े हैं। अखाड़ा शब्द का चलन मुगल काल से शुरू हुआ। अखाड़ा साधुओं का वह दल है जो शास्त्र विद्या में भी पारंगत रहता है। कुम्भ मेले जैसे विशाल धार्मिक आयोजनों के अवसर पर साधु-संतों के टकराव की बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिए अखाड़ा परिषद् की स्थापना हुई। अखाड़ा परिषद की सभा में सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुना जाता है। महंत नरेन्द्र गिरि दो बार अखाड़ा के अध्यक्ष रहे थे।

अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरि का फांसी पर लटकना एक गम्भीर सामाजिक विकृति की तरफ इशारा करता है। आमतौर पर करोड़ों-अरबों की सम्पत्ति को लेकर पारिवारिक विवाद एवं उससे उपजे अपराध सामने आये हैं पर मंदिर-मठों में सम्पत्ति एवं चढ़ावे को लेकर विवाद एवं हत्या जैसी गम्भीर आपराधिक घटना भारत जैसे धर्म प्रधान देश की बुनियाद की चूलें हिलाने का काम कर रहा है। मठों में भू माफिया किस तरह सर्प कुंडली जमाये बैठे हैं, इस एक घटना से उजागर होता है। यह पहली घटना नहीं है कि किसी महंत को आत्महत्या के लिये मजबूर होना पड़ा या उसकी रहस्यमय परिस्थिति में मौत हो गयी। आज के दौर में धर्म भी एक तरह का व्यवसाय हो गया है या यह कहें कि बना दिया गया है। इस युग में भी लोग बिना सोचे-समझे धार्मिक गुरुओं पर आंख मूंद कर विश्वास करते हैं, जबकि उनके अनैतिक कृत्य खुलेआम नजर आते हैं। जनता दिन प्रतिदिन गरीब होती जा रही है और धर्म के यह तथाकथित सेवक अमीर होते जा रहे हैं। रोजाना धार्मिक स्थलों पर करोड़ों का चढ़ावा जाता है और बेशर्मी की हद यह है कि इन धार्मिक स्थलों द्वारा जोर-शोर से चढावे में मिलने वाली अकूत दौलत का गुणगान कर-करके दुनिया को बताया जाता है।

गौर करने की बात है कि अगर दान अथवा चढ़ावे का यह पैसा गरीबों के उत्थान, बीमारों के इलाज अथवा अनाथ बच्चों के पोषण तथा शिक्षा जैसे नेक कार्यों में खर्च होता तो देश और समाज का कितना भला हो सकता है। करोड़ों की सरकारी जमीन ऐसे संस्थानों को कौडिय़ों के दामों दे दी जाती है जबकि अनाथालयों, शिक्षण संस्थाओं, अपंग बच्चों, असहाय विधवाओं के लिए जगह मांगने वाले संस्थान के लोग सरकारी दफ्तरों का चक्कर लगाते-लगाते थक जाते हैं। नैतिकता का ढोल पीटने वाले धार्मिक संस्थान जगह-जगह सार्वजनिक जमीन पर कब्जा जमाये हुए बैठे हैं।

साधु-संतों के बीच उठने वाले विवादों को निपटाने में पारंगत माने जाने वाले महंत नरेन्द्र गिरि अपने मठ के विवाद को क्यों नहीं सुलझा पाये? उन पर कौन सा दबाव था? उनका शिष्य क्यों उन्हें ब्लैकमेल कर रहा था। आमतौर पर मठों में साधु-संतों की चहल-पहल रहती है पर गिरि जी महाराज दिन के उजाले में कैसे पंखे से लटक गये? उन्होंने आत्महत्या की या किसी ने उन्हें मारकर पंखे से लटका दिया? आदि-आदि कई सवाल के उत्तर जांच करने वाली टीम ही दे सकती है। पर यह प्रश्न तो अनुतरित ही रह जायेगा कि जिन मठ-मंदिरों को हम आस्था का केन्द्र मानते हैं, वहां अपराधियों की बेबाक इन्ट्री कैसे होती है? राम नाम की चादर ओढ़े साधु-सन्तों को देखकर हम नतमस्तक हो जाते हैं या उनके प्रति श्रद्धा उमड़ जाती है, उस भेष में छंटे हुए अपराधी कैसे पनप जाते हैं? कथित संत और संन्यासी जिस कदर सम्पत्ति और धन के लालच में डूबे हैं इससे शक होता है कि ये मोह माया में डूबे लोग कैसी आथ्यात्मिकता के पुरोधा हैं? लानत है ऐसे लिप्त ढोंगियों पर।

ज्यादा दिन नहीं हुए जब अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट पर भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोप लगे। ट्रस्ट द्वारा 10 मिनट पहले खरीदी गयी दो करोड़ की जमीन का रिजस्टर्ड एग्रीमेन्ट 18.5 करोड़ रुपये में करा लिया गया। आरोप लगाया गया कि बैनामा व रजिस्ट्री एक ही दिन हुई और दोनों के गवाह रहे ट्रस्टी डॉ. अनिल मिश्रा व अयोध्या महापौर ऋषिकेश उपाध्याय। अयोध्या की बाग बिजेस्वर में 12080 वर्ग मीटर जमीन का बैनामा इसी साल 18 मार्च 2021 को शाम 7.05 बजे बाबा हरिदास ने व्यापारी सुल्तान अंसारी व रवि मोहन तिवारी को दो करोड़ में किया था। 10 मिनट बाद 7.15 बजे इसी भूमि का रजिस्टर्ड एग्रीमेन्ट सुल्तान अंसारी व रवि मोहन तिवारी से श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने 18.5 करोड़ में करा लिया। ट्रस्ट ने 17 करोड़ रुपये सुल्तान व रवि मोहन के खाते में आरटीजीएस के माध्यम से ट्रांसफर किये हैं। प्रश्न है कौन सी परिस्थिति आ गयी कि दो करोड़ में बैनामा करायी गयी जमीन को 10 मिनट बाद ही 18.5 करोड़ में खरीदना पड़ा। हिन्दुस्तान क्या दुनिया में कोई जमीन दस मिनट में इतनी महंगी नहीं हुई होगी।

मामला अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष द्वारा कथित आत्महत्या का हो या अयोध्या में भूमि घोटाले का, सबसे अहम् बात यह है कि आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक क्षेत्रों में भ्रष्टाचार पर हम चिन्तित हैं एवं इसमें कैसे अंकुश लगाया जाये एवं विराम लगे, संसद और संसद के बाहर इन मुद्दों पर बहस छिड़ी हुई है। सरकार द्वारा समय-समय पर कानून बनाकर या कानून में संशोधन कर प्रयास किये जा रहे हैं। पर धार्मिक केन्द्रों में जहां लोग श्रद्धा से शीश झुकाते हैं वे ही अगर गम्भीर अपराध एवं भ्रष्टाचार के अड्डे बन जाये तो हमारी सामाजिक एवं नैतिक व्यवस्थाएं ही ढह जायेंगी। हिन्दू धर्म की आस्थाओं को भड़का कर एवं उसे सीढ़ी बनाकर लोग सत्ता के शिखर पर पहुंच जाते हैं या पहुंचने की चेष्टा करते हैं। पर यह ''पब्लिक है सब जानती हैÓÓ। मैं यह तो नहीं कहता कि इस तरह के जघन्य कांड से धर्म के प्रति आस्था खत्म हो जायेगी क्योंकि धर्म की जड़ें गहरी होती हैं। किन्तु धर्म के नाम पर भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे लोगों की असलियत सामने आते ही इन कथित महात्माओं एवं धर्म के नाम पर सत्ता हथियाने वालों की खैर नहीं है।



Comments

  1. Very good never sb. Thanks to point out so sensitive topic.
    KHUDA YA BHAWAN JAHA BHI HO
    SAHI SALAMAT HAI.
    CHINTA TO INSAAN WHO BHI GARIB,ANPAR KI HAI.
    CHAHAI JAHA BHI HO

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  2. सचमुच अब तो हद हो गई, अपराधियों के हाथ साधु संतों के गले तक पहुंच गई है |

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  3. सही कहा है आपने। कडवी सच्चाई

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  4. Aakara parishad ko central govt apne under le le tab ja ke land mafia kam honge

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  5. Ye india h yaha kuc bhi ho sakta hai

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