तालिबानी सोच के अंकुर इसी तरह प्रस्फुटित होते हैं

 विधानसभा में नमाज अता करने का कमरा

तालिबानी सोच के अंकुर इसी तरह प्रस्फुटित होते हैं

तालिबान की अन्तरिम सरकार का गठन अफगानिस्तान में हो चुका है। प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री और रक्षामंत्री उनको नियुक्त किया गया है जो छंटे हुए आतंकवादी हैं। अफगानिस्तान में भगवान बुद्ध की मूर्ति को तोडऩे वाले मुल्ला हसन आखुंद देश का मुखिया बनाया गया है। खूंखार आतंकी व हक्कानी नेटवर्क के नेता सिराजुद्दीन हक्कानी को गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गयी है। हक्कानी का नाम वैश्विक स्तर के आतंकियों की सूची में है। अमेरिका ने उस पर 50 लाख डॉलर का ईनाम घोषित कर रखा है। वैसे 33 तालिबानियों का पूरा मंत्रिमंडल आतंकवादियों का कुनबा है। कहने को तालिबानियों ने दावा किया कि उनमें काफी बदलाव आ गया है। महिलाओं को अहमियत देने के दावे के बावजूद 33 मंत्री बनाये, पर किसी एक महिला को भी शामिल नहीं किया गया।

अफगानिस्तान के राजनीतिक घटनाक्रम भारत पर प्रभाव डाले बिना नहीं रह सकते। इतिहास साक्षी है कि वहां चाहे कितने भी युद्ध हों लेकिन उसका नजला हमेशा भारत पर गिरता रहा है। सिकंदर भी जब अफगानिस्तान से हटा, तो वह भारत आया। अफगानिस्तान में जो कुछ भी होता है, उसका हम पर असर होता है। हम उससे पीडि़त रहे हैं। फिर चाहे सोने की चिडिय़ा होने की वजह से हम पर धावा बोला जाता हो, अथवा हमारी कमजोरियों के कारण। इसीलिये इतिहास बार-बार हमसे यह सवाल भी करता है कि आखिर हमने ऐसा कुछ क्यों नहीं किया कि आततायी हमारे यहां आने से डरें? यही वजह है कि काबुल पर तालिबानी कब्जे के बाद फिर से यह चिंता जाहिर की जाने लगी है कि कश्मीर में इसका क्या असर होगा?

झारखंड विधानसभा

यह मात्र एक संयोग है कि जब तालिबान में आतंकवादियों की सरकार बनने की प्रक्रिया चल रही थी उसी दौरान भारत के नये प्रदेश झारखंड की विधानसभा में नमाज पढऩे के लिए अलग कमरा बंटित करने की घोषणा की गयी। आखिर झारखंड की विधानसभा में मुस्लिम भाइयों को नमाज पढऩे के लिए अलग कमरा क्यों चाहिये? यह सही है कि मुसलमान पांच बार नमाज अता करता है फिर चाहे वह उसका घर हो चाहे वह ट्रेन का कंपार्टमेंट। विधानसभा में जहां प्रदेश की जनता के लिये कानून बनाये जाते हैं, राज्य के विकास के विभिन्न मुद्दों पर चर्चा होती है, उसमें नमाज अता करने के लिये अलग कमरे की व्यवस्था की कौन सी जरूरत आन पड़ी। उन्हें असुविधा होती है तो कभी यह भी सोचें कि फिर सभी धर्मावलम्बी अपने पूजा या प्रेयर के लिये अलग जगह की मांग कर सकते हैं। झारखंड को ही लीजिये। इस प्रान्त में आदिवासियों के लम्बे संघर्ष का इतिहास है। उसी संघर्ष की ही परिणति है कि उन्हें अपनी संस्कृति एवं विकास कार्य को अंजाम देने हेतु एक अलग प्रान्त गठन का सुयोग दिया गया। झारखंड में सभी धर्मावलम्बियों के विधायक हैं। हिन्दू, मुस्लिम के अलावा ईसाई भी बड़ी संख्या में हैं। भारतीय जनता पार्टी ने मांग की है कि हनुमान चालीसा पढऩे के लिये उन्हें भी अलग कमरे का आबंटन किया जाये। ईसाई भी प्रेयर के लिये चर्च बनाने की मांग करें, तो सोचिये क्या स्थिति बनेगी। विधानसभाओं या संसद में लोग पूजा करने, इबादत या अपनी-अपनी धार्मिक मान्यताओं एवं पूजा पद्धतियों को अंजाम दें तो फिर देश-प्रदेश की चिन्ता कहां बैठकर करेंगे। आश्चर्य एवं दु:ख की बात यह है कि झारखंड जैसे प्रदेश ने इसकी पहल की है जहां कांग्रेस के समर्थन से सरकार चल रही है। कांग्रेस अपने को सेक्यूलर यानि धर्मनिरपेक्ष पार्टी मानती है, उसने विरोध क्यों नहीं किया? झारखंड देश के सबसे पिछड़े राज्यों में एक है। इसे अलग प्रदेश बनाने का उद्देश्य था कि इस पिछड़े भू खंड को विकसित करने का अवसर दिया जाये। वहां बड़ी संख्या में खनिज श्रमिक हैं, जो जान हथेली पर रखकर खनिजों का दोहन करते हैं। गरीबी रेखा के नीचे बसने वाले लाखों लोग हैं, शिक्षा के नाम पर प्राइमरी स्कूल तक नहीं है। लोगों को न्यूनतम सुविधायें नहीं है। वहां उन पर बहस और आंदोलन की बजाय वहां चिन्ता की जा रही है कि लोग नमाज कैसे अता करेंगे? यह भी विडम्बना है कि हमारे कट्टर राष्ट्रवादियों या संघ परिवार ने भी इस विधानसभा में नमाज परस्ती का विरोध नहीं किया। इसका विरोध करने की बजाय उन्होंने भी पूजा एवं आरती करने की अलग जगह की मांग की। यानि अगर उन्हें पूजा की जगह मिल जाये तो फिर नमाज हेतु अलग कमरे के बंटन पर उन्हें कोई एतराज नहीं है।

इधर उत्तर प्रदेश में एक समाजवादी विधायक इरफान सोलंकी ने विधानसभा स्पीकर से नमाज के लिए अलग कमरे की मांग कर दी। बिहार में भारतीय जनता पार्टी के विधायक हरिभूषण ठाकुर ने मांग की है कि बिहार विधानसभा में हनुमान चालीसा का पाठ करने के लिये अलग कमरा बनाया जाये। इतना नहीं उन्होंने मंगलवार की छुट्टी भी घोषित किये जाने की मांग कीहै। देश, प्रान्त, गरीबी, बेरोजगारी पर चिन्ता करने की बाजय सभी लोग पूजा-पाठ, इबादत की मांग को लेकर सड़क पर उतर गये हैं।

आखिर तालिबानी सोच भी क्या है। अफगानिस्तान तो मुस्लिम देश है। वहां गैर मुस्लिम की कोई वकत ही नहीं है। फिर भी उन्होंने मुसलमानों पर अत्याचार किये, औरतों के साथ बदसलूकी की। औरतों को पढऩे, खेलने की इजाजत नहीं है। वे पुरुषों के भी बहुत अधिक पढऩे लिखने के पक्ष में नहीं हैं। मुस्लिम शरीयत (पर्सनाल लॉ) से भी उन्हें संतोष नहीं है। यह सब हमें हैरान करती है। पर विधानसभाओं में पूजा-इबादत के कमरे आबंटित होने की मांग की अंतोतगत्वा परिणति भी इसी तरह की तालिबानी सोच में है। ऐसी सोच के अंकुर आज प्रस्फुटित हो रहे हैं और फिर कालान्तर में पौधा एक बरगद का पेड़ के आकार का बन जाये जिसकी छत्रछाया में हम अपनी समस्याओं को दरकिनार कर अन्ध धार्मिक मान्यताओं के प्रति समर्पित हो जायें तो देर-सबेर उसकी परिणति उस समाज में होगी जिसका खूंखार रूप हमें तालिबान में दिखाई दे रहा है।

Comments

  1. कांग्रेस कभी भी धर्म निरपेक्ष पार्टी नही रही। आप उनके सारे कारनामों को देख लीजिए.. देश की आजादी, विभाजन, काश्मीर समस्या आदि से लेकरअभी तक ... इस party ने हमेशा मुस्लिमों के पक्ष मे फैसला लिया है। ऐसा हो भी क्यों न .. इस पार्टी को चलानेवाला परिवार एक मुस्लिम परिवार है,जो दशकों से भारत की जनता की आंखों मे धूल झोन्कता आया है अपने को हिन्दू बताकर।

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  2. प्रणाम महोदय
    हम बरसों से धर्म के नाम पर लड़ते - मरते आ रहे हैं। शिक्षा के नाम पर हमने बस डिग्रियां हासिल की है। वास्तविक शिक्षा मनुष्यता का पाठ पढ़ने में है। कोई भी धर्म मानवता से बढ़कर नहीं होता, यह जब तक हम सभी धर्मों को मानने वाले लोग स्वीकार नहीं कर लेते तब तक हम यूं ही धर्म के नाम पर समाज में अराजकता ही फैलाते रहेंगे। नमाज पढ़ने के लिए या हनुमान चालीसा पढ़ने के लिए अलग कमरों की मांग जब उठी थी वही उसे खत्म कर देना चाहिए था
    अगर नमाज पढ़ने के लिए अलग कमरा देंगे तो हनुमान चालीसा के लिए भी अलग कमरा देना होगा। क्योंकि फिर बात तो अपने - अपने धर्म की आ जाएगी और जहां यह बातें आती है वहाँ समझदारी ही दम तोड़ देती है। हमारे देश में सभी धर्मों को एक समान माना जाता है। किसी भी एक धर्म के लिए पक्षपात करना, समाज और देश विरोधी विचारधारा को पनपने का अवसर प्रदान करना होगा। अनपढ़ गवार के हाथ में अगर सत्ता की बागडोर आएगी तो वहां यही होगा। गरीबी - भुखमरी, बेरोजगारी जैसी समस्याओं पर दृष्टिपात ना करते हुए बस धर्म के नाम पर ही मूर्खों की तरह लड़ते मरते देश को खोखला बनाते जाएंगे। राजनीति के क्षेत्र में आवश्यकता है पढ़े - लिखे समझदार नौजवानों को मौका देने की, जिसे से तालिबानी विचारधारा को पनपने से पहले ही कठोरता से खत्म किया जा सके।

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  3. बहुत अच्छा लगता है जब आप एक एक विषय पर तथ्यात्मक विश्लेषण करते हैं आपके अनुभव से हम लोगो को काफी जानकारी मिलती है ्
    ईश्वर आपको उतम स्वास्थ्य तथा स्वस्थ चिंतन प्रदान करें.

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  4. आपने जो विचार वयक्त किया है बहु सुनदर है लेकिन
    आप आपनी विचार धारा का पालन सवयं नही कर रहे है
    जयहिन्द

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  5. If everyone ask separate prayer room,the day will come when
    Every State assembly will be a prayer assembly house where
    All M.L.A,s will pray according to their respective religion.

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  6. श्री मान जी आज के परिपेक्ष्य में आपकी सटीक टिपणी ये सोचने पर मजबूर कर रही है कि के
    हम किधर जा रहे है, राजनीति पार्टिया हमे कहा ले जा रही है।।

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  7. यह सवाल बिल्कुल लाज़मी और प्रासंगिक है कि तालीबानियों को अब तक ऐसी नकेल क्यों नहीं दी गयी, जिससे उनके हौसले पस्त नज़र आते।

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  8. तथ्य सही है परन्तु प्रस्तुतिकरण अपूर्ण है।भारत में जयश्रीराम के गुण्डों से लेकर गोडसेवादियों ने जिस प्रकार पिछले सात सालों में जो आतंक देशभर में फैला दिया है दरअसल तालीबानियों की सोच यहीं से पनपती है। भारत के गृहमंत्री की देखरेख में दिल्ली में दंगा कराया जाना और दिल्ली पुलिस के द्वारा अदालत को गुमराह किया जाना भी तालीबानी सोच से कम नहीं।

    संघ प्रमुख मोहन जी भागवत भले ही कितनी ही दलील मुसलमानों के भारतीय होने की दे दें। सच तो यह है कि भारत आज जो देख रहा है वह नये विभाजन की तरफ हमें ले जा रहा है।
    आप इन बात से अंदाज लगा लिजिए कि 1. पिछले साल कोरोना की शुरुआत में भारत सरकार के नियमित प्रेसवार्ता में खुलकर हिन्दू-मुसलमान किया गया।
    2. बंगाल के विधानसभा चुनाव के समय चुनाव आचार संहिता को ताख पर रखकर सांप्रदायिक प्रचार किये गए। जगह-जगह दंगे जैसे माहौल पैदा किये गए। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी जहर उगलते रहे।
    3. अब वैक्सीन की ही बात कर लें
    भारत सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह देश के हर नागरिकों को वैक्सीन लगाने की व्यवस्था करें, पर इनकी भाषा पढ़ें "हमने राज्यों को इतनी वैक्सीन दे दी"
    अहंकार जब सर चढ़कर बोलता है तो सत्ता विभाजन की ओर बढ़ती है। एक धर्म के रहते हुए भी पाकिस्तान से बंग्लादेश अलग हो गया। बात तो भाषा की थी। आज भारत में धर्म राम का हो गया। कृष्ण का हो गया। दुर्गा-काली मां का हो गया।
    कोई शिव के नाम की दुकान खोल रखा है, कोई बजरंगबली की।
    सत्य तो यह है कि इस राजनीति से किसी भी कौम का कोई भला नहीं हो सकता।
    विधानसभा में नमाज अदा कर लें या हनुमान चालीसा पढ़ लें, इससे देश का कितना भला होगा यह तो वक्त ही बतायेगा।
    हां संपादक जी ने विषय को बहुत मजबूती से प्रस्तुत किया है। बस जो कमी खटकती थी वह मैंने लिख दी।
    कोलकाता से शंभु चौधरी.
    बी.कॉम, एम.ए.(एम.सी), एल एल.बी. अधिवक्ता, कलकत्ता हाईकोर्ट

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