राखी के बंधन को निभाना...

 राखी के बंधन को निभाना...

''भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना''- हिन्दी फिल्म का यह गाना रक्षा बंधन के त्यौहार पर लिखे गये बहुत से गीतों में सबसे लोकप्रिय हुआ। इस गीत की लोकप्रियता का एक कारण यह भी है कि इसमें बहन ने भाई से राखी के बंधन को निभाने की बात कही है। वैसे भी गीत वही बार-बार गुनगुनाया जाता है जो दिल को छुए-या उसमें हमारी भावना के मिठास की अभिव्यक्ति हो। भारत में रक्षा बंधन धार्मिक से अधिक सामाजिक परम्परा के रूप में मनाया जाता रहा है। यह भावना प्रधान त्यौहार है जो रीति रिवाजों पर भारी पड़ता है इसलिये जाति और धर्म के बन्धनों से ऊपर उठकर मनाया जाता है। इसकी जड़ें हिन्दू धर्म में निहित है। धार्मिक कथाओं के अनुसार रक्षा बंधन के पावन पर्व को मनाने की शुरुआत माता लक्ष्मी ने की थी। सबसे पहले लक्ष्मी जी ने अपने भाई को राखी बांधी थी। दूसरी कथा के अनुसार पहला रक्षा सूत्र देवी शचि ने अपने पति इन्द्र को बांधा था। पौराणिक कथा के अनुसार जब इन्द्र वृत्तासुर से युद्ध करने जा रहे थे तो उनकी रक्षा की कामना से देवी शचि ने उनके हाथ में मौली बांधी थी। लेकिन सबसे प्रचलित कथा कृष्ण और द्रोपदी की है। महाभारत में प्रसंग आता है जब राजसूय यज्ञ के समय भगवान कृष्ण ने शिशुपाल का वध किया तो उनका हाथ भी इसमें घायल हो गया। इसी क्षण द्रोपदी ने अपने साड़ी का एक सिरा कृष्ण जी की चोट पर बांधा। कृष्ण ने द्रोपदी को इसके बदले रक्षा का वचन दिया। इसी के परिणामस्वरूप जब हस्तिानापुर की सभा में दुस्शासन द्रोपदी का चीरहरण कर रहा था तब भगवान कृष्ण ने उनका चीर बढ़ाकर द्रोपदी के सम्मान की रक्षा की थी।

आज भाई ने बहन का कुसुम कोमल प्यार पाया

एक धागे में सिमटकर स्नेह का संसार समाया


इस त्यौहार का प्रचलन धार्मिक सीमाओं में बंधा नहीं रहा। मध्यकालीन युग में राजपूत और मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था, तब चित्तौड़ के राजा की विधवा कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख हुमायूं को राखी भेजी थी। हुमायूं ने उनकी रक्षा कर उन्हें अपना बहन बनाया था। हिन्दू-मुस्लिम सौहाद्र्र का यह उदाहरण है जिसका इतिहास साक्षी है। 1905 में बंग भंग के पश्चात् बंगाल में साम्प्रदायिक तनाव व्याप्त हो गया था. उस वक्त विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने रक्षा बंधन त्यौहार को दोनों बंगाली कौम के बीच सौहाद्र्र स्थापित करने के लिये किया। टैगोर जानते थे कि अंग्रेजी शासन की फूट डालो और राज करो की नीति का अगर खात्मा करना है तो हिन्दू और मुसलमानों को एक करना होगा। वह 16 अक्टूबर 1905 का दिन था। रक्षाबंधन बीते एक माह से ऊपर हो चुका था। टैगोर राखी की टोकरी लेकर निकल गये और बंगाली हिन्दू और मुस्लिमों को आपस में राखी बांधकर उनमें भाईचारे की भावना जागृत करने का भावनात्मक प्रयास किया।

इस तरह रक्षाबंधन का त्यौहार का व्यापक दायरा सहज ही समझ में आता है। भाई-बहन के प्रेम, बहन की रक्षा के साथ धार्मिक सौहाद्र्र के लिये इस पर्व का उपयोग अतीत में किया गया। हिन्दू धर्मावलम्बी इस बात पर गर्व कर सकते हैं कि उनके धर्म ने एक ऐसा पर्व दिया जिसे लोगों ने धार्मिक सीमाओं को लांघ कर मनाया। यह इस बात का प्रमाण है कि धर्मनिरपेक्षता हमारे त्यौहारों में भी निहित है। साम्प्रदायिक या धार्मिक संकीर्णता के मुकाबले सद्भाव इस त्यौहार की घुट्टी में मिला हुआ है।

त्यौहारों का रूप स्वरूप में परिवर्तन हमेशा होता रहा है। होली हो या दिवाली, रक्षा बंधन का त्यौहार हो या छठ पूजा, हर त्यौहार को प्रेम एवं भाईचारे के लिये मनाना हमारी गौरवशाली परम्परा रही है। इस संदर्भ में मुसलमानों की ईद भी धार्मिक परीधियों से बाहर निकली है हिन्दुस्तान में। रमजान में मुस्लिम तो रोजा तोडऩे के मौके पर सभी धर्म के लोगों को बुलाते हैं। यही नहीं रमजान पर खाने-पीने का कार्यक्रम हिन्दुओं द्वारा आयोजित करने का प्रचलन भी भारत में है। रमजान पर कई पार्टियों में गया हूं, वहां हम जैसे लोगों के लिये शुद्ध शाकाहारी व्यंजन भी परोसे जाते हैं।

एक तरफ रक्षा बंधन के त्यौहार ने आपसी भाईचारे प्रेम एवं सौहाद्र्र को फलने फूलने में मदद की और भारतीय समाज को एक सभ्य एवं उत्कृष्ट समाज की पहचान दी, जिसके परिणामस्वरूप मिलकर दुनिया की सबसे बड़ी ताकत ब्रिटिश साम्राज्य को भारत छोडऩे पर मजबूर कर दिया। दूसरी तरफ कई समूह हमारे देश में ही इस वातावरण को नेस्तनाबूद करने पर तुले हैं। देश के कुछ हिस्सों में साम्प्रदायिक दंगा भड़काये गये हैं और लोगों के जान मालकी क्षति हुई है। दंगों का सबसे बड़ा खामियाजा गरीबों को भुगतना पड़ता है। इसीलिये प्रशासन भी इन दंगों को पूरी ताकत के साथ दबाने में बेरुखी दिखाता है। लेकिन कुल मिलाकर जहां भी दंगे हुए हैं वे अल्प समय में ही नियंत्रित कर लिये गये हैं। फिर भी साम्प्रदायिक संघर्ष आधुनिक समाज पर कलंक है। रक्षा बंधन जैसे त्यौहार से हम तनाव और संघर्ष को कम और समाप्त कर सकते हैं, जिसका उदाहरण कविगुरु ने रखा था।

भागदौड़ की जिंदगी में अर्थ की प्रधानता हर जगह सिर चढ़कर बोल रही है। यह रक्षाबंधन पर भी हावी हो गया है। भाई-बहन की पवित्र भावना पर पैसा प्रधान हो चला है। अभी कोविड काल में रक्षाबंधन पर सुरक्षा की ²ष्टि से अंकुश लग गया है लेकिन बाजार में इस बार भी 1500 से 2000 रुपये कीमत तक की राखियां खरीदी गयी हैं। यह तब है जब राखी तीनरंग के मोली धागे से प्रारम्भ होने वाला त्यौहार है। राखी बांधने का मतलब है भाई, तुम दुर्घायु हो, स्वस्थ रहो और बुरे समय में बहन की रक्षा करो। आज के दौर में बहनें भी इस होड़ में लगी हैं कि मेरी राखी सबसे महंगी हो। कुछ अपवाद के साथ ज्यादातर भाई इस रक्षा पर्व पर अपनी बहन को उपहार के रूप में कोई प्रिय वस्तु या नगद देते हैं। गुड़ की ढेली से मुंह मीठा कराने की शुरुआत हुई जो अब महंगी मिठाइयों या चॉकलेट के रूप में पनप रही है।

आर्थिक प्रतिस्पर्धा एवं अपने को बड़ा दिखाने की होड़ ने प्रेम की इस अद्भुत धरोहर की गरिमा को चौपट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इन सामाजिक विसंगतियों एवं विकारों के बावजूद रक्षाबंधन का त्यौहार एक महान उत्सव है। इसी के आधार पर हम अपने देश के संस्कारों को अक्षुण्ण बना कर रख सकते हैं।




Comments

  1. कुरान के हिसाब से अलग majhab को मनाने वाला काफिर होता है तो ये क्यों मानने लगे,,,,,

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  2. Raksha Bandhan ek pyar ka bandhan hai jo bahna Rakhi bhai ka kalae par bandhati hai

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  3. रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं

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  4. Happy raksha bandhan 🥰🥰🙏🙏

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  5. "यह तब है जब राखी तीनरंग के मोली धागे से प्रारम्भ होने वाला त्यौहार है। राखी बांधने का मतलब है भाई, तुम दुर्घायु हो, स्वस्थ रहो और बुरे समय में बहन की रक्षा करो। आज के दौर में बहनें भी इस होड़ में लगी हैं कि मेरी राखी सबसे महंगी हो। कुछ अपवाद के साथ ज्यादातर भाई इस रक्षा पर्व पर अपनी बहन को उपहार के रूप में कोई प्रिय वस्तु या नगद देते हैं। गुड़ की ढेली से मुंह मीठा कराने की शुरुआत हुई जो अब महंगी मिठाइयों या चॉकलेट के रूप में पनप रही है।"
    कुछ दिन तो मैं भी सबको मना करता रहा, अब परिवार में जब बच्चों को यही करते देखता हूँ, तो सोचता हूँ कि जिन बुराइयों को हम नाकारते हैं वही हमारे घर में स्थायी जगह बना लेती है और हम भी उसमें सहभागिता निभाने लगतें है।
    जैसे
    # विवाह की बारात निकालते वक्त गहनों से लदी महिलाओं का सड़कों पर शराब पीकर नाचना।
    # कॉकटेल पार्टी करना।
    # जन्मदिन पर मंहगे केक काटना।
    # जन्मदिन के नाम पर नाइट पार्टियों का आयोजन।
    # सालगिरह के नाम से आडंबर करना।
    # दिपावली में धन का प्रदूषण फैलाना।
    # शादी समारोह में आयोजन के नाम से मंहगे प्लेट (भोजन) की बर्बादी करना।
    यह प्रचलन सभी समाज में फैली है। राखी के त्योहार को तो हमने इतना मंहगा बना दिया कि आर्थिक रूप से कमजोर बहनों के लिए अभिशाप बन चुका है।
    -शंभु चौधरी

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  6. बहुत सुन्दर आलेख ।
    ये एकदम सही है की आज दिखावा ज्यादा हो गया है।पहले जो त्योहार मनाये जाते थे वो पारंपरिक तरीके से,स्नेह के धागे से बहने कलाई सजाती थी। ना कोई दिखावा था ना ही ये सोचती थी की क्या उपहार देना है,आज तो एक होड़ सी लगी रहती है की कौन किससे महंगा उपहार और राखी ला रहा है।
    क्या यह सही है?
    ये रक्षा सूत्र किसी धर्म का मोहताज नही है
    किसी भी धर्म मे किसी और के धर्म के लिये गलत बात नही कही जाती है।ये हम इंसान है जो स्वयं ही
    सही और गलत तय कर लेते है।
    इस स्नेह की डोरी को
    पावन ही रहने दो
    दौलत से आंक कर
    इसकी गरिमा को ना नष्ट करो
    । ।।।।सीमा भावसिंह्का


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  7. प्रणाम आदरणीय
    रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ
    यह त्यौहार मुख्य रूप से भाई-बहन के प्यार को दर्शाता है। बहने भाई की कलाई पर राखी बांधतीं है और उसकी मंगल कामना करती हैं, और भाई बहन की रक्षा करने का वचन देता है।

    रक्षा करने का वचन एक तरफा नहीं होना चाहिए बल्कि बहन और भाई दोनों ही एक दूसरे की रक्षा करने के लिए तत्पर रहें। बदलते परिवेश में अब बहने अबला नहीं रही उन्हें भी अपनी रक्षा की पूरी जिम्मेदारी भाई के कंधों पर नहीं डालनी चाहिए बल्कि भाई के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते हुए एक दूसरे का सहारा बनना चाहिए।


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  8. आपकी दी जानकारी से हम कनिष्ठ साहित्यकारों को काफी कुछ सीखने को मिलता है ईश्वर आपको उतम स्वास्थ्य तथा स्वस्थ चिंतन प्रदान करें 🙏

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  9. https://photos.app.goo.gl/sHsb1dHXZ83ZN2Zt9
    मेरी पुत्री आयशा परवीन अपने भाई जयदीप यादव की कलाई पर हर रक्षाबंधन पर राखी बांधती है।
    मुझे गर्व है, मैं रक्षाबंधन के त्यौहार को अपने देश की संस्कृति मानता हूं।

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