स्वाधीनता दिवस की 74वीं वर्षगांठ पर विशेष
भारत की राजनीति गंगा की तरह मैली एवं कुछ हद तक विषैली हो रही है
स्वतंत्रता दिवस की 74वीं वर्षगांठ पर देश भर में स्वाधीनता दिवस मनाया जा रहा है। स्वतंत्र्योत्तर जन्म लेने वाले युवक या प्रौढ़ ने स्वाधीनता संग्राम नहीं देखा है, सिर्फ सुना है या इतिहास की किताबों में पढ़ा है। स्वतंत्रता के लिए किस प्रकार लोगों ने जीवन की आहुति दी, यातना और प्रताडऩा सही उसके लिये सुनी-सुनायी बातें हैं। स्वतंत्रता के पश्चात् देश में विकास के साथ-साथ समानान्तर रूप से भ्रष्टाचार और अपराध बढ़े हैं। हमारे युवा साथियों का आलम यह है कि वे स्वतंत्रता आंदोलन की चर्चा नहीं करते, बस उनकी बातचीत का विषय होता है उनका अपना कैरियर। उनकालक्ष्य है उनके लिये कोई बड़ी कमाई वाला जॉब।
स्वतंत्रता का इतिहास हमारे युवा साथियों के लिए अप्रांसगिक बनता जा रहा है। परिणामस्वरूप राजनीति में कैरियर बनाने वाले, पैसा कमाने वालों की बेबाक इंट्री हो रही है। आज का नौजवान यह नहीं बता पाता है कि किसी देश के लिये आजादी क्यों जरूरी है। उसे गुलाम देश की बदहाली के बारे में नहीं मालूम और वह यह भी नहीं जानता कि स्वतंत्रता के लिये 90 वर्षों तक लोग क्यों संघर्ष करते रहे। राजनीति में अपराधी प्रवृत्ति के लोगों का इस कदर प्रवेश हो चुका है कि राजनीति गंगा की तरह मैली एवं कुछ हद तक विषैली भी बन गयी है।
चुनावी उम्मीदवारों के अपराधिक रेकार्ड पर सुप्रीम कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण आदेश दिये हैं। बीजेपी, कांग्रेस समेत नौ राजनीतिक दलों पर ऐसे उम्मीदवारों के बारे में पूरी जानकारी सार्वजनिक ना करने पर जुर्माना भी लगाया है। ताजा आदेश में हाईकोर्ट ने पार्टियों को कहा है कि अब से उम्मीदवार को चुन लेने के 48 घंटों के अंदर ही आपराधिक मामलों की जानकारी उन्हें अपनी वेबसाइट पर डालनी होगी। चुनाव आयोग को अब एक मोबाइल ऐप बनाना पड़ेगा जिसमें सभी उम्मीदवारों के आपराधिक मामलों की जानकारी उपलब्ध रहेगी, ताकि मतदाता किसी धोखे में ना रह जाएं।
राजनीतिक और अपराध या सत्ता और अपराध अब एक सिक्के के ही दो पहलू बन गये हैं। वर्तमान केन्द्रीय सरकार की समीक्षा करें तो 78 मंत्रियों में से 33 के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें 24 के खिलाफ हत्या, हत्या की कोशिश, चोरी जैसे संगीन मामले चल रहे हैं। भारतीय संसद जिसे हम लोकतंत्र का मंदिर कहते हैं उसकी पवित्रता कितनी भ्रामक है, उसका अंदाज इसी से लगाइये कि संसद के 46 प्रतिशत सदस्य आपराधिक पृष्ठभूमि से हैं। इनमें 29 प्रतिशत सदस्यों पर संगीन आपराधिक मामले दर्ज हैं। ऐसे सांसदों की संख्या बढ़ रही है जिनके दामन पर नापाक छींटे लगे हुए हैं। वर्ष 2004 में संसद के दागी सदस्यों की संख्या 128 थी जो वर्ष 2009 में 162 और 2014 में 185 और वर्ष 2019 में बढ़कर 233 हो गयी। 2009 की संसद में गम्भीर अपराध के आरोपी 76 थे जो 2019 में बढ़कर 159 हो गये यानि एक दशक में 109 प्रतिशत की बढ़ोतरी। ज्ञारत रहे कि गम्भीर मामलों में बलात्कार, हत्या अथवा हत्या का प्रयास, नारी प्रताडऩा, आदि मामले शामिल हैं। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 दोषी राजनेताओं कोचुनाव लडऩे से रोकती है। लेकिन जिन पर अभी तक मुकदमा चल रहा है, वे चुनाव लडऩे के लिये स्वतंत्र हैं।
कैसी विडम्बना है कि राजनैतिक दलों में अपराधी रेकार्ड वाले प्राथमिक सूची में रहते हैं और उन्हें चुनाव लड़ाया जाता है क्योंकि वे अपेक्षाकृत सहज में चुनाव जीत सकते हैं। जबकि अच्छी छविवाले प्रार्थियों को जीतने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ती है, इनमें तो कई बेचारे हार जाते हैं। अपराधी रेकार्ड वाले चुनाव लडऩेके लिये आतुर रहते हैं, पार्टी केलिये बड़े फंड का भी जुगाड़ करते हैं क्योंकि चुनाव जीतने के बाद वे अपने विरुद्ध चल रहे मुकदमों को खारिज करवा लेते हैं। और फिर मूंछ पर ताव देकर पॉवर लॉबी के साथ घूमते हैं। लोकतंत्र ऐसे लोगों से जख्मी हुआ पर वे अपने क्षेत्र में सिकन्दर बन गये। सन् 2002 के नरसंहार के अपराधी देश के सिरमौर बन जाते हैं। उनके मामले खत्म होते हैं और फिर उन मामलों की तहकीकात करने वाले जज की कथित तौर पर हत्या कर दी जाती है। बेदाग बरी करने वाले जब साहिब को सरकार उपकृत करती है। किन्तु कहते हैं कि झूठ और गलत की उम्र ज्यादा नहीं होती। 9 अगस्त के ''भारत छोड़ोÓÓ आंदोलन की वर्षगांठ के ऐतिहासिक मौके पर सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश जारी हुआ कि उच्च न्यायालय की अनुमति के बिना सांसदों एवं विधायकों के खिलाफ कोई मुकदमा वापस नहीं लिया जा सकेगा। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री सहित कई मंत्रियों और विधायकों के खिलाफ दर्ज मुकदमे वापस लिये गये हैं। इनमें से कई मुकदमें आईपीसी की संगीन धाराओं के हैं। सुप्रीम कोर्ट ने ये बड़ा कदम एमिक्स क्यूरी विजय हंसारिया की रिपोर्ट पर उठाया। इसके मुताबिक यूपी सरकार मुजफ्फरपुर दंगों के आरोपी बीजेपी विधायकों के खिलाफ 76मामले वापस लेना चाहती है। कर्नाटक सरकार विधायकों के खिलाफ 61 मामलों को वापस लेना चाहती है। उत्तराखंड और महाराष्ट्र सरकार भी इसी तरह केस वापस लेना चाहती है।
अपने विधायकों या सांसदों के खिलाफ मुकदमे वापस लेने की प्रवृत्ति किसी एक पार्टी तक सीमित नहीं है। सत्ता में आते ही पार्टी के दागदार लोगों को वाशिंग मशीन में डालकर धो दिया जाता है। बंगाल में तृणमूल के नेता ज्योंही भाजपा का दामन थामा उन पर चिटफंड या नारदा-सारधा के अन्तर्गत सभी मामले वापस कर लिये गये। मुकुल राय तृणमूल से भाजपा में चले गये और जब सत्ताधारी दल को लगा मुकुल बाबू का पूरा भगवाकरण हो गया तो उनके बारे में सफाई देते हुए कहा गया नारदा में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं थी। भाजपा की क्लीन चिट मिलते ही मुकुल का मिशन पूरा हो गया और वे पुन: तृणमूल में चले गये। इस तरह अब भाजपा अपने ही धोबीघाट पर फंस गयी। महाराष्ट्र में कुछ वर्ष पहले भाजपा-शिवसेना के बीच तकरार शुरू हो गया था। चुनाव पूर्व शिवसेना ने भाजपा के सामने शर्त रखी कि उनके आठ सौ कार्यकर्ताओं के विरुद्ध जो मामले चल रहे हैं उनको वापस ले लिये जायें तभी वे भाजपा के साथ चुनावी गठबंधन कर सकेंगे। काफी मान-मनौव्वल के बाद भाजपा ने शर्त मानी और दोनों भगवाधारी दलों में चुनावी समझौता हो गया। भाजपा-शिवसेना ही नहीं, कांग्रेस के लम्बे शासन में भी इस तरह की घटनायें हुई हैं।
भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में अंतर्निहित देरी ने राजनीति के अपराधीकरण को प्रोत्साहित किया है। अदालतों द्वारा आपराधिक मामलों को निपटाने में औसतन 15 वर्ष लगते हैं। निर्वाचन में धन-बल- बाहु-बल निर्वाचन आयोग की कार्यप्रणाली में मौजूद खामियांभी राजनीति के अपराधीकरण का कारण है। अपराधियों के दबदबे से राजनीति की छवि तो धूमिल हुई है लोकतंत्र की जड़ें भी कमजोर हुई है। अगर हमारा ढांचा या स्तम्भ ही कमजोर हो गया तो भारत के भविष्य पर प्रश्नचिह्न लग सकता है। भारत की सभ्यता और इतिहास बहुत प्राचीन है। लोक पंचायत हमारे देश का पुराना इतिहास है। भारत ने चार धर्मों का प्रादुर्भाव किया। सभी धर्मों के संस्कार से भारत की जड़ें मजबूत हुई है। हमारा विश्वास अभी तक नहीं डगमगाया है। हम आशावादी हैं कि राजनीति का वर्तमान विषैलेपन से राजनीति का शुद्धिकरण करेंगे। स्वाधीनता दिवस की 74वीं वर्षगांठ पर सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनायें। जय हिन्द...।

🙏🏻👍🏻
ReplyDelete🙏👍
DeleteRight
ReplyDelete65 salo ki gandgi se Bahut kam hai
ReplyDeleteBahusankhyak ke biruddh galat na soche
ReplyDeleteBeautiful
ReplyDeleteCorrect 🙏🙏🙏🙏I pray to god to make our country free from gandagi.
ReplyDeleteCorrect analysis let ìt be implemented in true ßpìrit to root out gandagi in our country ßystem
ReplyDeleteने
ReplyDeleteनेवर साहेब!!! संप्रति भारतीय राजनीति पर आप का आलेख सठीक है परन्तु शीर्षक 'भारतीय राजनीति गंगा की तरह मैली एवं कुछ हद तक विषैली हो रही है।'कहीं न कहीं सनातनियों के भावना को आहत करता है। गंगा अब भी सनातनियों में माँ समान पूज्य एवं श्रद्धेय समझी जाती है। यह अब भी उतनी ही पवित्र मानी जाती है जितना शताब्दियों पूर्व। अति उत्तम होता यदि आपने अपने आलेख का शीर्षक'भारतीय राजनीति नाले की तरह मैली एवं कुछ हद तक विषैली हो रही है। अशोक कुमार सोनकर सहायतक अध्यापक
ReplyDeletePura sistam hi Ching karnaa Hoga
ReplyDeleteबहुत ही दुखद आपने जो कहा है माँ गंगा के बारे में मेरे जैसे कई गंगा पुत्र आहत है आपने नाले से तुलना किया होता तो कोई बात नही था आप लोग हिंदू सनातनियों का अपमान कर रहे हैं माँ गंगा हमारे लिए माँ के समान है आप माँ गंगा के बारे में आपका विचार दुर्भाग्य पुर्ण है गंगा समग्र हावड़ा आपके बातों का खंडन करता है बहुत दुखद
ReplyDeleteसही
Deleteकुछ चर्चा कुछ चर्चा तृणमूल के बारे में भी हो जाए
ReplyDeleteआपके खबर का मेन टॉपिक समझ से बाहर है , सनातनीयों की भावना को ठेस पहुंचाने वाला वह आहत करने वाला है उसे सुधारे (हम आपके इस खबर के मुख्य बिंदु मेन शीर्षक का विरोध करते हैं) आप की भी गंदी राजनीति लग रही है, आपने तृणमूल के बारे में बहुत ज्यादा नहीं लिखा है साफ-साफ कहें किसी प्रकार का डर है या गुलाम है आपने चर्चा तो सही विषय पर की है परंतु केवल भाजपा या कांग्रेस सहित लिखते हुए आप कांग्रेस भाजपा तृणमूल सहित भी तो लिख सकते थे
ReplyDeleteसहमत है जी सही पकड़ है आपकी
DeleteRight
ReplyDeleteबड़ी देर कर दी हुजूर आते-आते।
ReplyDeleteआप का लिखना बिलकुल प्रासंगिक है सत्य है।
ReplyDeleteभ्रष्ट नेता जात पात , धर्म , मंदिर आदि के आधार पर जनता को राजनैतिक शिक्षा से वांछित रख कर फायदा उठाते है वोटों का। इससे जो सही मान्यता के नागरिक है उन्हे नुकसान उठाना पड़ता है। वे कुंठित हो गए है।
अग्र लेख की प्रतिक्रियाओं में गंगा को मैली कहने पर विरोध हुआ है और उसे सनातन धर्म का अपमान कहा है। यह वास्तविकता से आंखे चुराना है। गंगा को साफ और पवित्र कहना उचित नहीं है आज के दिनों में। इसे साफ और पवित्र करने के बहाने टैक्स भुगतान करने वालो का करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे है। यहां तक की अलग से मंत्री और अलग विभाग भी निश्चित किए गए है। पर परिणाम के नाम पर कुछ विशेष प्राप्त नहीं हुआ है। बल्कि गंगा सफाई अभियान कुछ लोगो के लिए फायदे का श्रोत हो गया है।
Yes
ReplyDeleteसनातन संस्कृति का ये पत्रिका मजाक उड़ाती है, सायद ये सेकुलर है, सेकुलर को सायद मजाक उराने की छुट मिली है
ReplyDeleteइनकी हिम्मत कहाँ
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