शेयर बाजार का मायाजाल
शेयर बाजार को कुछ लोग अर्थव्यवस्था का बैरोमीटर मानते हैं। लेकिन यह देखा गया है कि जब भारतीय अर्थव्यवस्था देश के लिये चिन्ता का कारण बन जाती है, उस वक्त शेयर बाजार को पंख लग जाता है, वह उड़ान भरने लगती है। लेकिन यह भी सच है कि पंखों पर उडऩे वाले पक्षी चाहे जिनता ऊंचा उड़े आखिर उसे नीचे आकर किसी पेड़ पर या जमीन पर आकर बैठना ही पड़ता है। इसी तरह शेयर बाजार उछलता है पर ज्यादा देर टिकता नहीं है, जैसे सुप्रसिद्ध शायर मुनव्वरराणा ने अर्ज किया-
बुलन्दी देर तक किस शख्स के हिस्से में रहती है
बहुंत ऊंची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है।
पिछले कुछ दिनों से शेयर बाजार का सूचकांक लगातार ऊंचाई का रिकार्ड बना रहा है। निवेशकों में उत्साह है। फरवरी से अब तक करीबन 30 शेयरों ने शत प्रतिशत रिटर्न दिया है। चालू वित्त वर्ष के शुरुआती दो महीनों में ही 44.7 लाख खुदरा निवेशकों के खाते खुले हैं। आकाश छूता शेयर बाजार को क्या भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रतिबिम्ब माना जा सकता है? कोरोना वायरस महामारी ने भारत की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से चौपट कर दिया है। जो देश कभी 5 ट्रिलियन इकोनॉमी के सपने देख रहा था उस समय देश की जीडीपी माइनस में चली गयी।
दरअसल शेयर बाजार पूरी तरह भविष्य के भरोसे आगे बढ़ता है यानि उसे दिखाई दे रहा है कि आने वाले भविष्य में भारत की अर्थव्यवस्था अच्छी होने वाली है तो उसमें बढ़त जारी रहती है। शेयर बाजार में बढ़त की सबसे बड़ी वजह है, कंपनियों को होने वाला मुनाफा। बाजार की स्थिति देखें तो हमारी मांग में बदलाव आया है और हम बगल की दुकान से नहीं बल्कि ऑनलाईन खरीददारी ज्यादा करने लगे हैं। इसलिये इन कंपनियों पर निवेशकों का भरोसा बढ़ा है। इसी के कारण कुछ कंपनियों के आईपीओ आश्चर्यजनक रूप से काफी ज्यादा पर खुले। अमेजन, फेसबुक जैसी कंपनियों के इतिहास ने भी निवेशकों को इन जैसी कंपनियों पर पैसा लगाने को प्रोत्साहित किया।
जब अर्थव्यवस्था अधोगति पर हो तो शेयर बाजार में पैसा लगाने वालों की चांदी क्यों है? भारत में आयी आर्थिक मंदी का सबसे बड़ा कारण, सभी जानते हैं कोरोना वायरस है। उम्मीद है 2021 और 22 की दूसरी छमाही तक आर्थिक गतिविधियां सामान्य हो जायेगी। दुनिया भर की अर्थव्यवस्थायें कोरोना से लड़ रही है, इसलिये बैंकों ने अपने-अपने यहां लिक्विडिटि यानि तरलता बढ़ायी है। व्यापारी वर्ग के हाथों में पैसे आने से वे निवेश की सोचने लगता है। चूंकि रियल इस्टेट में ज्य्दा रिटर्न नहीं है, और बैंकों में भी ब्याज दरें कम कर दी गयी हैं, इसलिए अच्छे रिटर्न की उम्मीद में शेयर बाजार उनके लिए सबसे भरोसेमन्द डेस्टिनेशन बन गये हैं। भारतीय शेयर बाजार इसलिए भी निवेशकों को लुभा रहे हैं क्योंकि भारत एक बड़ा बाजार है। नतीजतन यहां उन कंपनियों के दाम भी चढऩे लगे हैं जिनका भविष्य बहुत ज्यादा साफ नहीं दिखता। आम निवेशकों के लिये यह एक मायाजाल बिछाता है। मृग मरीचिका की तरह वह एक खूबसूरत भ्रम है।
जाहिर है, शेयर बाजार में उन कंपनियों के निवेशक मुनाफे में रहते हैं, जो भविष्य में अच्छा रिटर्न देने का भरोसा देती है, लेकिन उन कंपनियों के निवेशकों को नुकसान हो सकता है, जिनके बदहाल होने की आशंका अधिक है। कम्पनियों के वर्तमान-भूत-भविष्य का सही-सही अध्ययन लोगों को नहीं होता। परिणामस्वरूप निवेशक कई बार भ्रम पाल लेता है। उसे मति भ्रम होना स्वाभाविक है। अभी भारतीय शेयर बाजार का यही हाल है। इसलिये स्वाभाविक तौर पर इस बात का खतरा है कि जब यह टूटेगा जो देर-सबेर निश्चित है, निवेशकों को नुकसान होगा।
इसका एक दूसरा पहलू भी है जिसे समझना बहुत जरूरी है। पूंजी की इस आपाधापी में निवेश उनकी झोली में आ जाता है जो मुनाफे का भ्रमजाल पैदा कर सकते हैं। वे क्षेत्र जिनमें देश का भविष्य सचमुच समाहित होता है वे निवेश से वंचित रहते हैं। समंदर पर बारिश होती है। इनके रिटर्न तुलनात्मक रूप से कम होते हैं। इसलिए लोग अभी इनमें निवेश करने से बच रहे हैं। इसका पैसा तुरंत लाभ देने वाली कंपनियों के खाते में जा रहा है जिससे अर्थव्यवस्था को नुकसान होता है।
हमारे शेयर बाजार में कार्पोरेट सेक्टर का दबदबा है। ऐसे उद्योगपतियों की संख्या 5 से 10 लाख के करीब है। मगर देश की कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी महज 0.1 फीसदी है। शेयर बाजार के उछलने से ज्यादा फायदा उसी वर्ग का होगा। यही अब तक होता रहा है, जबकि अमेरिका जैसे देशों में खुदरा निवेशकों की संख्या भी काफी है। इसकी वजह से शेयर बाजार में निवेश का फायदा वहां कई वर्गों में बंटता है। भारत में एक बड़ी आबादी शेयर बाजार के फायदे से वंचित रह जाती है। फिर, शेयर बाजार जब धड़ाम होता है तो बड़े निवेशक या तो फायदा करके निकल जाते हैं, या जैसे-तैसे उसे सह जाते हैं लेकिन कम पूंजी होने के कारण खुदरा निवेशकों को बड़ा नुकसान होता है। हर्षद मेहता केस इसका बहुत बड़ा उदाहरण है। तेजी के दौरान उन कंपनियों में निवेश को प्राथमिकता देनी चाहिये, जिनकी बुनियादी स्थिति बहुत मजबूत है। पिछले कुछ दिनों में शेयर बाजार में आई तेजी को देखकर निवेश का फैसला नहीं करें। अभी बाजार में लिक्विडिटी काफी अधिक है। विदेशी फंडों के साथ पीई फंडों ने भी घरेलू बाजार में काफी ज्यादा निवेश किया है, जिससे कई शेयरों की कीमतों में अनावश्यक उछाल आया है। सरकार को भी कुछ ठोस कदम उठाने चाहिये। उसे छोटी अवधि वाले पूंजीगत लाभ को टैक्स बढ़ा देने चाहिये। इतना ही नहीं शेयर बाजार में लेन-देन यानि ट्रांजेक्शन पर ब्रेक लगेगा। रातों रात अच्छा खासा रिटर्न पाने की उम्मीद में बड़ा निवेश करने वाले निवेशक भी अपना हाथ खींचने को मजबूर होंगे। इससे सरकार का कोष भी बढ़ेगा, बल्कि बुनियादी ढांचों के विकास पर सरकार कहीं ज्यादा रकम खर्च कर सकेगी। अभी लिक्विडिटी अधिक होने की वजह से शेयर बाजार में लोग पैसे तो लगा रहे हैं, लेकिन जब उनके हाथ तंग होंगे तो वे अपनी पूंजी निकालने से हिचकेंगे भी नहीं। कुछ मिलाकर आज शेयर बाजार की चढ़ी हुई खुमारी उतरते ही भारतीय अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचायेगी। सरकार को और नीति-नियंताओं को इस पर गम्भीरता से विचार करना चाहिये।

Well written on Capital market. Munnawar had rightly said.
ReplyDeleteShare Market is mixed blessing. Blooming market helps in raising big funds for big projects from public and financial institutions. So share market is a necessary evil.
ReplyDeleteIndividual investors in Indian share market is hundreds of millions in number. In last 12 months ending March 2021, number of individual investors in stock market has gone up by 14.2 millions. Almost every Marwari and Gujarati has made some investment in shares. It is in their blood.
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