गौहत्या पाप है तो गाय का दूध नाली में बहाना महापाप
ऋतुओं में बसन्त को सबसे श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि उस दौरान खुशनुमा मौसम होता है और पेड़ों पर नये पत्ते आते हैं। धरती हरी चादर से ढक जाती है। पर धार्मिक या आध्यात्मिक ²ष्टि से श्रावण मास का बड़ा महत्व है। वर्षा का आगमन होता है। हमारा देश कृषि प्रधान और धर्म प्रधान है इसलिये भी श्रावण मास की अहमियत है। इस दौरान भक्ति, आराधना तथा प्रकृति के कई रंग देखने को मिलते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस मास में विधिपूर्वक शिव उपासना करने से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यता है कि समुद्र मंथन से निकले विष को अपने कंठ में रखा और उस विष के प्रभाव को शांत करने के लिये भगवान शंकर ने गंगा को अपनी जटां में धारण किया। इसी धारणा को आगे बढ़ाते हुए भगवान शंकराचार्य ने ज्योतिर्लिंग रामेश्वरम पर गंगा जल चढ़ाकर जगत को शिव के जलाभिषेक का महत्व बताया। इसी मान्यता के अनुसार श्रावण मास में गंगा से जल लेकर लाखों लोग कांवड़ यात्रा करते हैं एवं भगवान शिव को जल अर्पित कर पुण्य प्राप्त करते हैं।
इस स्पष्ट मान्यता के बावजूद शिव पर जल के स्थान पर भक्तों ने दूध चढ़ाना शुरू कर दिया। कुछ लोग जो धर्म के मर्म और उसकी पौराणिकता को नहीं समझते हैं, ने शिव के जलाभिषेक के स्थान पर भगवान पर दूध चढ़ाने की परिपाटी शुरू कर दी। भगवान शिव पर थोड़ा सा दूध चढ़ाना धर्मसंगत हो सकता है क्योंकि दूध एक पवित्र एवं पौष्टिक पदार्थहै। कई धर्मपरायण भगवाधारियों ने इस परम्परा को गलत मोड़ देकर पानी को गौण और दूध को प्रमुख स्थान देकर जलाभिषेक के स्थान पर दूध से अभिषेक करने की अवधारणा शुरू कर दी। दुर्भाग्य है कि धर्मानुरागी लोगों में भ्रम पैदा कर भगवान शिव को प्रसन्न करने दूध चढ़ाने के उपक्रम को भगवान की भक्ति के साथ जोड़ दिया। हमारे देश में शिव के ही सर्वाधिक मन्दिर हैं। इसका कारण तो मुझे मालूम नहीं पर एक सर्वे के अनुसार भारत में शिवालय सबसे अधिक है, इसके बाद हनुमान जी के मन्दिरों का क्रम है। तीसरे स्थान पर राधाकृष्ण और उसके बाद कई देवी-देवताओं के उपासना केन्द्र हैं। विडम्बना है कि राम के मन्दिर बहुत कम किन्तु उनके अन्यतम भक्त हनुमान जी के मन्दिर राम के मन्दिरों से कहीं ज्यादा है। खैर हम अभी शिव पर जल या दूध अर्पण की चर्चा कर रहे हैं।
श्रावण मास जो भगवान शिव की भक्ति के लिये जाना और माना जाता है, के दौरान दूध की बिक्री कई गुना बढ़ जाती है। बैद्यनाथ धाम देवघर में शिव-पार्वती मन्दिर की बड़ी मान्यता है। इस मंदिर में लाखों भक्त पीत वस्त्र पहन कर सौ-सौ मील पैदल चलकर पांव में छाले की परवाह किये बिना शिव मंदिर में जल चढ़ाते हैं।
एक बार मैं नेपाल की राजधानी काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर गया था। यह बात तीस वर्ष पहले की है। एक-दो रिश्तेदारों एवं पड़ोसियों ने मुझे पशुपतिनाथ मंदिर में उनकी तरफ से दूध चढ़ाने का आग्रह किया। किसी ने दो सौ तो किसी ने पांच सौ रुपये दिये जिससे मैं वहां दूध खरीदकर भगवान पशुपतिनाथ पर विसर्जित करवा सकूं। मैंने उनके आग्रह के अनुसार काठमांडू में दूध का भगवान शिव पर अभिषेक कर बड़ा संतोष महसूस किया एवं कुछ देर के लिए मैंने समझा भले ही किसी और के लिये मैंने एक बड़े पुण्य का काम किया है। वहां से निकला तो मंदिर के बाहर कोई चालीस-पचास बच्चे जिनमें अधिकांश पूर्ण नग्न थे, कुछ ने तो फटे हुये चिथड़े पहन रखे ते ने मुझे घेर लिया। मैं तो खाली हाथ था, उन्हें क्या देता? लेकिन वहां मुझे आत्मग्लानि का बोध हुआ कि अगर इन बच्चों को मैं दूध पिलाता तो इनके मुर्झाये चेहरों पर कुछ हंसी बिखरती और मुझे भी संतोष होता। मुझे लगा कि पुण्य की बजाय मैंने एक पाप किया है कि इन बच्चों का दूध भगवान पशुपतिनाथ को चढ़ा आया। मंदिर से एक नाली बहती है, उस गंदी नाली से बहकर दूध बगल की नदी में प्रवाहित हो जाता है। बर्बाद होते दूध की अन्तव्र्यथा वहां जाकर देखी जा सकती है। हो सकता है धर्म के नाम पर हम इसे जायज ठहरायें पर दूध की इस बर्बादी के लिये क्या हमें नौनिहालों की पीढ़ी माफ करेगी? बच्चों के मुंह से दूध छीनकर हम गन्दी नाली में बहा दें यह कौन सा धर्म है? कलकत्ता में मैंने कई पंडितों से चर्चा की। उन्होंने शिव पर दूध चढ़ाने के महातम्य की बात बतायी। पर मुझे इस बात का जवाब नहीं मिला कि दूध पर पहला हक किसका है? बच्चों का या हमारी धार्मिक एवं रूढि़वादी मान्यताओं का? हमारे देश में चार करोड़ से अधिक बच्चे कुपोषित हैं जिसके कारण उन्हें कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं। बहुतेरे परिवारों में बच्चों को अर्थाभाव के कारण दूध नसीब नहीं होता। ऐसे में हमें क्या हक है कि हम मनो मन दूध का अभिषेक करें। कुछ पंडितों ने लेकिन बताया कि अभिषेक के लिये पानी का प्रावधान है इसलिये इसे जलाभिषेक कहते हैं। पर इसी जमात के कुछ पोंगा पंडितों जिन्हें शास्त्र का ज्ञान कम और अपनी दुकानदारी की चिन्ता ज्यादा है, ने यह गलत एवं अमानुषिक परिपाटी चलायी।
गाय को हम मां ही नहीं भगवान भी मानते हैं। इसके पीछे सबसे बड़ा तर्क यह दिया जाता है कि मां की तरह यह हमें दूध देती है एवं दूध पीकर हमारे शरीर को जीने का आधार मिलता है। इसीके चलते गौ हत्या होने पर हमारी धार्मिक भावना पर जबर्दस्त प्रहार होता है। क्या दूध की बर्बादी गौ हत्या जैसा पाप नहीं है? इस बर्बादी का मंजर श्रावण मासमें शिवालयों में ही नहीं वृन्दावन में गोवद्र्धन पूजा में भी मैंने देखा। भगवान कृष्ण गायों को चराते थे एवं गाय से उनका बड़ा लगाव था। उन्हीं के धाम वृन्दावन में गोवद्र्धन पूजा में मनोमन दूध की बर्बादी मैंने देखी है।
धर्म ने हमारा मार्ग दर्शन किया है। आज के वैज्ञानिक युग में भी साधारण लोग अपनी दु:ख-दर्द, पीड़ा के उपचार हेतु धर्म की ओर ताकते हैं। हमारी मान्यता है कि ईश्वर ने ही यह ब्रह्मांड रचा है। हम सभी प्राणी मात्र उसी परमपिता की सन्तान हैं। फिर जिसने हमें जन्म दिया वह परमपिता यह सोच भी कैसे सकता है कि हम उसके नाम पर दूध नाली में बहायेें और उसके बच्चे एक-एक बूंद को तरसते रहें।

Human is the only animal who drinks somebody else's milk. For example cows milk is for his calf, not for us. is it not sin
ReplyDeleteI think everyone has right to worship as per it's religion otherwise every religion has dark side which we Hindu people avoid n as expected from other people or from so called secular minded which have no guts to question the way of worship of other relig
Deleteमेरे विचार में मंदिर में भोग लगाने के बाद प्रसाद बाँटने की परम्परा है अगर दुग्धाभिषेक के बाद बांटने को न बचे तो यह पूर्ण नहीं हुआ अतः संतुलन बनाए रखना चाहिए।
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Deleteवहीं सावन के महीने में दूध न पीने की सलाह भी दी जाती है। आयुर्वेद के मुताबिक सावन के महीने में दूध या दूध से बने किसी पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए। सावन के महीने में भैंस या गाय घास में कई कीडे़-मकोड़े खा लेती हैं, जिसके कारण दूध सेहत के लिए हानिकारक होता है। सावन के महीने में वात संबंधी बीमारियां सबसे ज्यादा उत्पन्न होती हैं। सावन के महीने में ऋतु परिवर्तन होता है, जिसके कारण शरीर में वात परिवर्तन की प्रवृति बढ़ जाती है। यही कारण है कि सावन के महीने में शिव को दूध अर्पित करने की प्रथा बनाई है।
Birendrakumar gupta ji इस जगह मैं आप गलत । ऐसा कोई जिक्र नही क्या गया है की सावन के महिना जब चल रही हो तो दूध नही पी सकते हो करके। कृपया करके ये सब गलत बाते ना बोले। और हिंदू समाज मैं लोग बहुत टिपनी करते है । कृपया करके दुसरे समाज का भी टिपनी करे फिर आप लोगो पता चल जाएगा।
Deleteआपकी व्यथा जायज एवं न्याय संगत है लेकिन किसी रुढ़िवादी परंपरा को तोङना बिल्ली के गले में घंटा बांधने के समान है लेकिन हम साहित्यकार इसी तरह अपने विचार रखते गए तो शायद कभी ना कभी अंधभक्त समझ पाये.
ReplyDeleteउचित ठहराने के लिए यजुर्वेद से मंत्र एवं लिंग महापुराण के श्लोक सैंकड़ो की संख्या में लिखे जा सकते है, एक मन हुआ था लिखने का मगर…
Deleteनही यार!
हमेशा सनातन धर्मानुयायी ही क्यो प्रमाण दे!
हमेशा सनातन धर्म की प्रथाएँ ही क्यों समाज सुधार की भेंट चढ़े।
हमेशा हर किन्तु-परंतु और क्यों-क्या का उत्तर सनातन धर्मानुयायी ही क्यो दे।
स्वतंत्र सेक्युलर भारत है, सबको अपने धर्म को यथाशक्ति यथामर्ज़ी पालन करने का अधिकार है!
पुरातन कथा है की मनुष्य कितने योनियों में जन्म के बाद मनुष्य में जन्म होता है और जो कॉमेंट किया गया है की शिव लिंग पर दूध क्यों चढ़ाते है क्योंकि दूध नालियों में जाता है जबकि गौ हत्या पाप है तो इस तरह दूध भी नाली में बहाना पाप है" तो बंधुगण जन ले की नली का श्री सीधे नही पर अप्रताछ्य रूप से मां गंगा में मिलती है और नली में जो जीवात्मा बसते है वो अपने बुरे कर्मो का जीवन kat रहे होते है इसलिए शिव लिंग पर तो दूध या गंगा जल एक बहाना है दरअसल हम उन नाली के जीवात्मा को शुद्ध जल और दूध को अर्पण कर उनकी आत्मा को तृप्त करते है तरीके अनेको बनाए गए है जैसे छठ पर्व में वही क्रिया दोहराई जाती है, जैसे पितृ तर्पण में भी वही प्रक्रिया परन्तु नली के जीवों की तृप्ति श्रावण के पांच सोनवारी से होती है, क्योंकि कहा गया है एक जीव दूसरे का भोजन अगर है तो एक दूसरे का मददगार भी है और यही हिंदू की परंपरा है जो दूसरो के लिए जीना सिखाती है, ॐ नमः शिवाय, बम बम भोले।
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ReplyDeleteवेद और उनकी ऋचायें हमारे सनातन धार्मिक जीवन का आधार है किंतु किस काल खंड में उनका अर्थ सर्पिले पथ की भांति घूम कर अनर्थ की ओर चला गया यह किसी को ज्ञात नहीं है।
इनमें कहा गया है " धारयति धर्म: .."
अर्थात् जो धारण करने योग्य है वही धर्म है।
वर्तमान समाज में धारण करने योग्य सभी कर्म जो कभी धर्म की श्रेणी में आते थे आज अलग-थलग पड़ चुके हैं। परंपराओं का ह्रास एवं रूढ़िवादिता ने हमें मूल पूजा पद्धति से अलग कर दिया है।
हमलोग देखा देखी, अनचाहे मन से वही करते हैं जो समाज में परंपरा के रूप में व्याप्त है।
यह सत्य है की पूजा पद्धति में मनों-मन दूध भगवान की मूर्ति पर अभिषेक के नाम पर चढ़ाए जा रहे हैं जिनका उपयोग उचित प्रबंधन के अभाव में नहीं हो पा रहा है। अभिषेक के लिए प्रयोग किए जाने वाले दूध यदि स्वच्छ ढंग से प्रसाद के रूप में संग्रहित कर कुपोषित बच्चों के बीच वितरित कर दिए जाएं तो सचमुच में यह भगवान द्वारा दिया गया अमृततुल्य पोषण होगा। इससे बड़ा प्रसाद और क्या हो सकता है..?
किंतु चिंतन का विषय यह है कि जब पुराणों में जलाभिषेक की चर्चा है अर्थात् भगवान शिव स्वच्छ जल अथवा गंगाजल से ही प्रसन्न हो जाते हैं तो दुग्धाभिषेक की परंपरा कब और कैसे विकसित हो गई..?
किसी कालखंड में यदि ऐसा प्रारंभ हुआ होगा तो यह उस समय के लिए प्रासंगिक हो सकता है। किंतु वर्तमान संदर्भ में यह सचमुच अब व्यवहारिक नहीं दिखता है।
धार्मिक कुरीतियां कभी भी अथवा किसी भी अवस्था में सुधारने योग्य एवं सामाजिक उत्थान के लिए एक आवश्यक कदम है।
मैं स्वयं ब्राह्मण परिवार से हूं किंतु मुझे भी यह व्यावहारिक नहीं प्रतीत होता है। जबकि मैं स्वयं धर्म से जुड़ा हुआ हूं किंतु मन में एक खटक सी बनी रहती है।
यह भी सही है कि पूजन में दुग्धाभिषेक एक आवश्यक विधान है, किंतु आज के प्रसंग में यह मात्र सांकेतिक होता तो कितना अच्छा होता.?
मंदिर के गर्भ गृह में विधि विधान से पूजन करने के उपरांत बाहर निकलने पर भूख से बिलबिलाते हाथ पसारे, कुछ मांगते बच्चों को देखकर सचमुच मन अशांत हो जाता है...!
- अमर तिवारी
Ye sare gyan Sirf Hinduo ko,,
Deleteअगर आप विधि का विधान मानते है, तो सिर्फ अपना कर्तव्य कीजिए, सारे संसार का बोझ अपने कंधे पर न ले, भगवान पे छोड़ दे,वो अपने न्याय से सबको देखता है।
Deleteऔर बकरियों निर्दोष जनवर की कत्ल कर दिया जाता हैं धर्म के नाम पर, तब सारा ज्ञान अपने मे घुसा लेते हो।
ReplyDeleteRight
DeleteDosto aaj maine chapte chapte paper me padha ki gou hatya pap hai to dudh nali me bhana kya hai . Ye hmlog kbhi nhi smjhenge jis bhi din insano ko ye pta chalega ki Mandir masjid church ya gurudwara me dudh hi kyon bhot sare chije hai jinhe hmlog brbad krte hai kripya sbhi chijo ke bare me btaye . Monday ko shivji, Tuesday ko hanumanji, Wednesday ko sree ganesh ji, Thursday ko Vishnu Ji , Friday ko santoshimata, Saturday ko sanimaharaj aur Sunday ko surya bhagvan sbhi din to bhgvano ka hai insano ka din kaun sa hai . Isliye phle hmlog insano ko dekhe phir Mandir msjido me dudh ya chadr ya aur kuch chdhaye . Ye paisa nali me n bhakr gribo ko khana kpra siksha sb milega . Lekin hmlog pdh likh kr bhi murkh hai phle desh to apahij tha jahilo ke chalte unse kuch gyaniyo ne bahr to nikala lekin hmare under ke jahilpan ko nhi nikal paya . Mai ye nhi bolta ki apne dhrm ko nhi mano . Maniye lekin koi bhgvan ya allah ke ghr hmlog kuch chadhane jate hai aur bolte hai mera ye kam hoga to mai aapko chdhava cdhaunga . Kya manushya me itni sakti hai ki god ko kuch de ske nhi . Manushya god ko kuch de skta hai to wo hai bhakti aur koi aukat nhi hai hmlogo ka . Jai mahakaal
DeleteBakrid pe jab khun bahata ha naliyon me tab tumhara gyan kaha ghus jata ha...tum jaise dogle patrakar..desh aur samaj ke satru ha...abhi sudhar jao....musalmano ke khilaf likhne me kyon fat jati ha tumhari kamine....tum jaise jaychand se kothe pe baithi vaisya achi hoti ha...kamine chand sikko ke liye apne dharm aur desh se gaddari kartw ho....kash tumhari maa banjh hoti...
DeleteBakrid pe jab khun bahata ha naliyon me tab tumhara gyan kaha ghus jata ha...tum jaise dogle patrakar..desh aur samaj ke satru ha...abhi sudhar jao....musalmano ke khilaf likhne me kyon fat jati ha tumhari kamine....tum jaise jaychand se kothe pe baithi vaisya achi hoti ha...kamine chand sikko ke liye apne dharm aur desh se gaddari kartw ho....kash tumhari maa banjh hoti...
ReplyDeleteIt is actually indìvìsal faith dependson òwn way worshiping God but in my thing it is nothing but superstitious to get rid of thesdsuperstitions shri gurunanaķ devji preached all mankind that God is one which is away from any type fear adamber use kisi se berviroth nahi . Vah niraķar hai hence we should jap Japan sahib daily will help àvoid reaching God by reciting guruna added japji sahib vani sothat mankind could live peacefully along with his godfath always in heart thereby no question of thinking God ievahegurum
ReplyDeleteIn spite of religious comments on faith of individual religion we have to focus our attention on the root problem why the poor children are there? Where is the problem in system of our country that even after 74 years of independence the peoples of our country is still poor. Just by giving up milk to poor children will never solve our problems
ReplyDeleteधार्मिक भावना से खिलवाड़ नहीं होना चाहिए। आप कितने ही आधुनिक हो पर दूसरो की भावना का ख्याल रखे। आप liberal है पर दूसरो की आस्था को रूढ़िवाद बता कर आप कोई महान काम नही कर रहे हैं, सनातन धर्म को गलत बता के आप क्या सिद्ध करना चाहते है।
ReplyDeleteआज के समय में कोई आज के समय में कोई गरीब नहीं है वही बच्चा मंदिर के सामने भीख मांगता है वह कहीं काम करता दो पैसा भी आता और सब कुछ प्राप्त होता
ReplyDeleteRight
Deleteमेरी समझ मे एक बात बिलकुल नहीं आती की जितने भी ज्ञानी पुरुष यहाँ कमेंट कर रहे है सभी ने PHD किया है सिर्फ हिन्दू धर्म मे कमिया निकलने का ये सभी तर्क दे रहे है मात्र हिन्दू धर्म मे कमियों पर क्या इनको पता नहीं की या सब कॉमरंट्स करके ये हिन्दू को कमजोर ही करोगे मजबूत नहीं
ReplyDeleteजरा सोचे क्योंकि भविष्य मे बहुत अंधकार है हिन्दू के लिए
Right
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