अपने ही घर में जासूसी

 अपने ही घर में जासूसी

भारी बहुमत के बावजूद सरकार डरी हुई क्यों है?

पेगासस प्रकल्प के खुलासे के फोन टैपिंग का मामला फिर गरम हो गया है। जासूसी इजराइली कंपनी एनएसओ के स्पाईवेयर पेगासस के जरिये की जा रही है। माना जा रहाहै कि इसमें पत्रकार, कानूनविद् और नेता शामिल हैं। सरकार ने आरोपों से इंकार किया है।



देश में जासूसी कांड का इतिहास नया नहीं है। राजनीति और जासूस या फोन टेपिंग का रिश्ता बहुत पुराना है। इसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर सांसद, उद्योगपति और फिल्म जगत के बड़े लोगों के नाम पहले भी आ चुके हैं। जासूसी कांड के चलते देश में सरकारें गिरने का भी इतिहास रहा है। कर्नाटक में रामकृष्ण हेगड़े की कुर्सी चली गयी थी। हेगड़े मामूली नेता नहीं थे। एक वक्त पर उन्हें प्रधानमंत्री पद का प्रमुख दावेदार माना जाने लगा था। 1988 में उनके लिए फोन टैपिंग का ऐसा भुत सामने आया जिसने उनकी कुर्सी छीन ली। 2019 में भी इजराइल द्वारा तैयार किया गया स्पाईवेयर पेगासस सुर्खियों में था। तब कहा गया था कि वह इजराइल की इस कम्पनी के खिलाफ केस कर रहा है क्योंकि इसीके लिए लगभग 1400 लोगों के वाट्सएप की जानकारी उनके फोन से हैक की गयी थी। रिपोर्ट के अनुसार पेगासस ने भारत की तकरीबन दो दर्जन बुद्धिजीवियों, वकीलों, दलित, एक्टिविस्ट, पत्रकारों के अकाउंट की जानकारी को हैक किया था।


भारत में फोन टेपिंग की शुरुआत पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के जमाने में ही हो गयी थी। तत्कालीन संचार मंत्री रफी अहमद किदवई ने गृहमंत्री सरकार पटेल पर लगाया था आरोप, हालांकि उन्होंने इसको तूल नहीं दिया। नेहरू सरकार में ही वित्तमंत्री टी टी कृष्णामाचारी ने 1962 में फोन टेप होने का आरोप लगाया था। सेना प्रमुख के एस थिमाया ने 1959 में अपने और आर्मी ऑफिस के फोन टेप होने का आरोप लगाया था। जून 2004 से मार्च 2006 के बीच सरकार की एजेंसियों ने 40 हजार से ज्यादा फोन टेप किये थे। सांसद अमर सिंह ने 2006 में दावा किया था कि इंटेलीजेंस ब्यूरो उनका फोन टेप कर रही है। अमर सिंह ने सोनिया गांधी पर फोन टेपिंग का आरोप लगाया था और मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबे समय तक चला। अक्टूबर 2007 में सरकार ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के फोन भी टेप करवाये। बड़े उद्योगपति भी इस जाल में फंसने से नहीं बचे। रतन टाटा और मुकेश अम्बानी की कंपनियों के लिए पीआर का काम कर चुकी नीरा राडिया के फोन टेप का मामला सामने आने के बाद देश में राजनीतिक भूचाल आ गया था। 2013 में अरुण जेटली राज्यसभा में विपक्ष के नेता थे। उस समय उनके फोन टेपिंग मामले में दस लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

वर्तमान में भारतीय राजनीति में पेगासस जासूसी कांड ने हड़कंप मचा दिया है। संसद के दोनों सदनों को विपक्ष ने सिर पर उठा लिया। मांग की गयी कि सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश जांच करे लेकिन जो रहस्योद्घाटन हुआ है, उससे पता चला है कि सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश रंजन गोगोई का नाम भी इस कांड में शामिल है। जिस महिला ने यौन-उत्पीडऩ का आरोप उन पर लगाया था, उस महिला और उसके पति के फोनों को भी पेगासस की मदद से टेप किया जाता था। यदि यह प्रमाणित हो गया तो भारत सरकार की बड़ी भद्द पिटेगी। यह माना जायेगा कि गोगोई को बचाने में या उनके कुछ फैसलों का एहसान चुकाने के लिये सरकार ने उनकी करतूत पर पर्दा डालने की कोशिश की थी। इसके अलावा सूचना तकनीक के नये मंत्री अश्विनी वैष्णव का नाम उस सूची में होना सरकार के लिए बड़ा धक्का है। आप जिस पर जासूसी कर रहे थे, उसे ही अपना मंत्री बना दिया है और वही व्यक्ति अब उस जासूसी पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहा है। प्रधानंत्री ने या उस मंत्री ने अभी तक इस बारे में मुंह नहीं खोला है कि पेगासस का जासूसी यंत्र भारत सरकार ने खरीदा है या नहीं? लगभग 500 करोड़ का यह जासूसी मशीन यदि खरीदी गयी है तो सरकार कहती क्यों नहीं। फिर यह भी बताये कि उसने किन-किन लोगों के विरुद्ध इसका इस्तेमाल किया है? हां यदि आतंकवादियों, दंगा भड़काउओं, तस्करों और विदेशी जासूसों के विरुद्ध इस्तेमाल हुआ है तो इसका औचित्य है। लेकिन यदि यह पत्रकारों, नेताओं, जजोंऔर उद्योगपतियों के खिलाफ इस्तेमाल करे तो सरकार को उसका कारण बताना चाहिए। जब इजराइल साफ कह रहा है कि वह किसी सरकार के अलावा अन्य किसी निजी कंपनी या पार्टी को अपना साफ्टवेयर उपलब्ध नहीं कराता। केन्द्रीय सरकार ने तो पल्ला झाड़ लिया लेकिन विपक्ष की जांच की मांग को वह क्यों दबा रही है? अब मोदी जी के प्रिय सखा इजराइल के पूर्व प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्यूह तो नहीं हैं। कहीं राफेल जैसी जांच की आंच इजराइल से ना आ जाये।

देखा गया है कि हमारे देश का विशेष रूप से देश की प्रतिरक्षा के लिये इंटेलिजेंस बहुत कमजोर है। जिसका प्रमाण हमें कई बार मिला। जब पाकिस्तान ने हमारी सीमा में बंकर बना लिये, हमें जानकारी नहीं मिली। हमारा खुफिया तंत्र विफल हो गया। बाद में कारगिल युद्ध में लड़कर अपने कई जवानों की शहादत के बाद हम बंकर खाली करवा पाये। कश्मीर के पुलवामा में भारतीय सेना के 44 जवान शहीद हो गये क्योंकि आरडीएक्स से भरी गाड़ी दूसरी दिशा से आ टकरायी। बाद में हमने बदले की कार्रवाई में दुश्मन के कई सैनिकों को मार दिया पर सवाल उठता है कि हमारी सेना उस संवेदनशील इलाके से गुजर रही थी जिसका पता दुश्मन को था। हमारा जासूस तंत्र क्या कर रहा था? हाल ही में जम्मू इलाके में ड्रोन से हमले ने फिर यह साबित कर दिया। हमारा खुफिया तंत्र खोखला है।

यह ठीक है कि जासूसी किये बिना कोई सरकार चल नहीं सकती लेकिन जो जासूसी नागरिकों की निजता का उल्लंघन करती हो और जो सत्य को प्रकट होने से रोकती हो, वह अनैतिक तो है ही गैर-कानूनी भी है। जायज जासूसी की प्रक्रिया भी तर्क सम्मत और प्रामाणिक हो तथा संकीर्ण स्वार्थपरक न हो, यह जरूरी है।

भारी बहुमत से बनी हमारी सरकार इतनी आतंकित क्यों है? क्यों उसे आतंरिक जसूसी की जरूरत पड़ी। किसी पर भी भरोसा ही नहीं। अपने ही मंत्रियों की जासूसी, फौज और जज पर निगरानी। पत्रकारों को भी नहीं बख्शा। विपक्ष के नेता राहुल गांधी, अभिषेक बनर्जी, राजनैतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर की जासूसी। लंबी सूची है अविश्वासी लोगों की। कहते हैं डरते वही हैं जो गलत करते हैं। विपक्ष कमजोर है फिर भी सरकार को डर लगता है। अभी पता नहीं सरकार के कितने और राज छुपे हुए हैं पाकिस्तान, इजराइल, चीनकी दोस्ती में। क्या ईवीएम हैकिंग का कारोबार भी इजराइल से चलता है? लोकसभा के 2019 के चुनाव की भारी जीत भी रहस्यमय ही है। ठ्ठ


Comments

  1. गुप्तचर व्यवस्था संगठित सभ्यता के समय से शासन प्रणाली का एक अंग रही है । हर युग में शासको ने इस का प्रयोग किया है । फ़र्क़ केवल इतना है की अब यह व्यवस्था तथ्य प्रयुक्ति पर आधारित हो गई है । इसका उपयोग विरोधी पक्ष भी करते हैं । इस तथ्य को अस्वीकार नहीं किया जा सकता ।

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  2. देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए जासूसी एक प्रणाली हैं, इसे प्राचीन काल से उपयोग में लाया जा रहा है, कांग्रेस शासन में भी यही हुआ था, उद्योगपति और राजनीतिज्ञ पर फोन टैप किया गया था तो अब इस पर बवाल क्यों।

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  3. सरकार को अपने आप पर ही भरोसा नहीं है। बांए हाथ को दाहिने पर ऐतबार नहीं है तो वह दूसरे पर कैसे भरोसा करे।तानाशाह हमेशा आतंकित रहते हैं। वे किसी पर भी भरोसा नहीं करते। संपादकीय बहुत ही खोज के साथ लिखा गया है। फोन टैपिंग के बारे पूरी जानकारी उपलब्ध हो गई।

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  4. सफल शासन चलाने के लिए गुप्तचरी एक आवश्यक प्रयास है । यह अति प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा है। यदि कोई व्यक्ति गलत नहीं है तो उसे डरने की जरूरत नहीं। गलत कार्यों में सम्मिलित नागरिक को डरना भी चाहिए।

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  5. सरकार का इस बात से इनकार करना ही दर्शाता है मोदी सरकार ने इजराइली सॉफ्टवेयर का गैर कानूनी रूप से अपना काम करवाने के लिए इस्तेमाल किया है... आलोक वर्मा, मुख्य चुनाव आयुक्त लवासा, यहां तक की कांग्रेस की सरकार गिराने में भी इसका इस्तेमाल किया गया... सरकार कभी जांच नहीं करवाएगी, जब तक वह सत्ता में है, सरकार को सिर्फ अपनी कुर्सी की चिंता है देश के नागरिकों की चिंता नहीं है, पूरे देश को भुखमरी के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया, सिर्फ अपनी झूठी महत्वकांक्षी के कारण... अभी सरकार पर्दाफाश होना चाहिए जेपीसी के द्वारा

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  6. Sarkar desh hit ke nam se janta gumrah, jumalebaji, tod fod kar chunaw me jit hashil kiya h, chunki sarkar banali desh ke shanshthan bech rahe h, janta ke vishwasghat kar mahgai, rojgar, vikas me fail hi chuki h unse bachane ke liye janta ki narajagi, vipaksh aur media ki jashusi kar sarkare girana, chhape dalna hi sarkar dari huwi h lekin desh aur democracy ke liye ghatk h

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