बढ़ती जनसंख्या का शोर चुनाव की वैतरणी पार करायेगा?

बढ़ती जनसंख्या का शोर

चुनाव की वैतरणी पार करायेगा?

जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि को लेकर कई बार चिंता प्रकट की गयी है। विभिन्न मंचों पर इस समस्या पर गम्भीर परिचर्चा भी हुई। अतीत में भारत सरकार द्वारा कई बार जन जागृति अभियान भी किया गया। 1960 के दशक में कई नामधारी सामाजिक संस्थाओं ने जनसंख्या नियंत्रण परअंकुश लगाने हेतु कार्यक्रम हाथ में लिये पर कोई विशेष नतीजा नहीं निकला। यह सत्य है कि भारत की जनसंख्या लगातार बढ़ती जा रही है और हम दुनिया के दूसरे सबसे घनी आबादी वाले देश हैं। जनसंख्या का बेलगाम बढऩा कोई अच्छी बात नहीं है पर हमारे देश में हम समस्या के मूल से भटकाने के लिये बढ़ती हई आबादी पर तोहमत लगाकर अपनी विफलताओं पर पर्दा डालने की कोशिश करते हैं।


अभी जनसंख्या नियंत्रण का मामला उत्तर प्रदेश में प्रस्तावित कानून के संदर्भ में फिर खड़ा हुआ है। इस कानून के तहत दो से ज्यादा जिनके बच्चे होंगे उन्हें चुनाव लडऩे के लिये अयोग्य घोषित कर दिया जायेगा, सरकारी नौकरी में प्रमोशन नहीं मिलेगा- जैसे तमाम प्रस्ताव हैं। विडम्बना यह है कि जो विधायक इस कानून को पास करने जा रहे हैं उन पर ही अगर यह लागू कर दिया जाये तो सत्तारुढ़ बीजेपी सरकार के आधे विधायक अयोग्य करार कर दिये जायेंगे। यूपी के 304 भाजपा विधायकों में 152 के तीन या तीन से ज्यादा बच्चे हैं। एक विधायक के तो 8 बच्चे हैं, एक के सात, आठ विधायकों के 6-6 बच्चे हैं, 15 विधायकों के 5-, 44 विधायकों के 4-4, बाकी 83 एमएलए के प्रत्येक के 3 बच्चे हैं। लोकसभा के सदस्य भोजपुरी फिल्म के अभिनेता गोरखपुर से सांसद रविकिशन इस बिल को संसद में निजी बिल के रूप में लाने वाले हैं, खुद के चार बच्चे हैं। कुछ विपक्षी दल इस आधार पर बिल का विरोध कर रहे हैं कि यह मुस्लिम-विरोधी है। लेकिन उनकी संकीर्ण सोच है क्योंकि यह बिल सबके लिये समान है। यह ठीक है कि मुसलमानों में जनसंख्या के बढऩे का अनुपात ज्यादा है लेकिन उसका मुख्य कारण उनकी गरीबी और अशिक्षा है इसमें भी सामाजिक जागरुकता की कमी इसका बड़ा कारण है। वे इसे अल्लाह की दी हुई नियामत मानते हैं जबकि इसमें बेचारा अल्लाह क्या करेगा? किसी इस्लामिक धर्मग्रंथ में नहीं लिखा कि ज्यादा बच्चा पैदा करो। हिन्दुओं में भी उन्हीं समुदायों के बच्चे ज्यादा हैं, जो गरीब, अशिक्षित और मेहनतकश हैं। पढ़े-लिखे और सम्पन्न मुस्लिमों के परिवार सीमित रहते हैं।

दुर्भाग्य है कि हमारे देश में जो साम्प्रदायिक राजनीति करते हैं वे अपने-अपने सम्प्रदाय का संख्या-बल बढ़ाने के लिए लोगों को उकसाते हैं। ऐसे लोगों को हतोत्साहित करने के लिए उत्तर प्रदेश का यह कानून कारगर सिद्ध हो सकता है। कानून में इस बात का भी प्रावधान होना चाहिये कि ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए प्रचार करने या उकसाने वालों को भी दंड मिले। एक बच्चा पैदा करने वालों को इस कानून का लाभ मिलेगा लेकिन जिन लोगों की वजह से जनसंख्या बहुत बढ़ रही है उन लोगों को न तो सरकारी नौकरी चाहिये और न ही चुनावों में उन्हें लडऩा है। इस कानून से वे अगर नाराज हो गये तो भाजपा सरकार को मुसलमानों के वोट तो मिलने से रहे, गरीब और अशिक्षित हिंदुओं के वोटों में भी सेंध लग सकती है। दो बच्चों की यह राजनीति महंगी पड़ सकती है।

उत्तर प्रदेश में चुनाव अगले वर्ष के प्रारम्भ में होने वाले हैं। इसकी तैयारी बहुत जोरों पर है। प. बंगाल में करारी हार के बाद भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश का चुनाव जीतना अत्यावश्यक है। इसलिये भी क्योंकि यह चुनाव 2024 में लोकसभा के चुनाव की भी भूमिका तैयार करेगा। जनसंख्या वृद्धि सिर्फ उत्तर प्रदेश की नहीं पूरे देश की समस्या है। यह कानून भी चुनाव के ठीक पहले लाया जा रहा है जबकि विगत पांच वर्षों में यूपी में मुख्यमंत्री ने कभी भी जनसंख्या वृद्धि को लेकर चिंता नहीं जतायी। फिर यकायक यह जिन्न कहां से जाग गया। इसलिये लगता है यह कानून महज लोगों को, खासकर एक विशेष कौम की मन:स्थिति खराब करने वाली है। लगता है चुनाव जीतने के लिये किसी फसाद की तैयारी की जा रही है। अच्छी बात यह है कि बहुसंख्याक वर्ग ही इसके विरुद्ध आवाज उठा रहा है। उसे बेचैनी इस बात की है कि साक्षी महाराज, प्रज्ञा जैसे सांसद और संघ प्रमुख जहां आबादी बढ़ाने की गुहार लगाते रहे हैं वहां योगी का यह कैसा फैसला है?

मुझे नहीं लगता है कि यूपी सरकार या योगी जी की जनसंख्या वृद्धि को लेकर नींद हराम हो रही है। अगर ऐसा होता तो इस पर बहस होती- जनसंख्या रोकने हेतु उचित अभियान चलाया जाता, लोगों विशेषकर अल्पसंख्यक एवं गरीब तबके के लोगों को समझाया जाता, शिक्षित किया जाता। वैसे लोग यह समझने वाले हैं कि चुनाव के पहले इस तरह के फंडे  राजनीतिक कारणों से विशेषकर जो समस्यायें जनता को परेशान किये हुए हैं, उनसे ध्यान भटकाने के लिए ये कम महत्व के मुद्दे उछाले जाते हैं। पेट्रोल, डीजल के दामों में आग लग गयी है, खाद्य पदार्थों के दाम आसमान छू रहे हैं, घरेलू गैस के दामों में भारी वृद्धि, रोजमर्रा के उपयोगी सामानों में बेलगाम उछाल के अलावा कोरोना से आम आदमी की पहले ही कमर टूट चुकी है। उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था चौपट हो गयी है। नेशनल क्राइम रेकॉड्र्स ब्यूरो के मुताबिक उत्तर प्रदेश में वर्ष 2019 में महिलाओं के विरुद्ध 59,853 एवं बच्चों के यौन प्रताडऩा के 7,444 मामले दर्ज हुए हैं जो भारत में सर्वाधिक है। जनसंख्या के मामले में राहत की बात यह है कि 2001 से 2011 के दौरान पिछले 100 वर्षों में पहला ऐसा दशक रहा है जब भारत में पिछले दशक के मुकाबले कम आबादी बढ़ी। फिर भी जनसंख्या नियत्रण पर सतत् प्रयास की आवश्यकता है। इस समस्या के समाधान का बेहतर तरीका तो यह है कि शादी की उम्र बढ़ायी जाये, स्त्री शिक्षा बढ़े, परिवार-नियंत्रण के साधन मुफ्त बांटे जायें, शारीरिक श्रम की कीमत ऊंची हो, जाति और सम्प्रदाय के वोटों की राजनीति का खात्मा, जनसंख्या बढ़ाने के लिये भड़काऊ भाषण दंडनीय हो। ठ्ठ

 

Comments

  1. बहुत सुंदर सकारात्मक समीक्षा की गई है.

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  2. Very nice bahut achha bichar ko aap ne rkha nmo nmo

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  3. Good information shared by you, Thank you for sharing this.

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  4. बहुत अछा बोलने से कुछ नही होगा। हम सबको इगे आ कर ईस समस्या को सुलजाना चाहिए, हमारा भि हमारे देश औस समाज के प्रति कौइ करतव है. आये हम सब मिल कर ईस चेन को आगे ही नही लेकिन मजबूत वनाये.
    जय हींद. भारतमाता कि जय

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  5. Bhai satya bolun koi bhi sarkar kisi bhi gareeb kay liya kuch nahi karayga apnay mulk may chahay voh kisi bhi party say ho mai almost 55 ka hoon aur nawab family say hoon so acchi pahuch rakhta hoon awam may aur leader may magar janta aaj jitna dari hui hai kabhi daikha he nahi lagta hai ki aghoshit emergency hai jahan bolna ya likhna sub mana hai aap jaisay kitnay log hai ungliyan zada hai log kum hai nirbheak patrkarita ya such bolnay wale

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  6. हमारे यहां विडंबना यह है कि समाज में उठाई गई प्रत्येक विचार को राजनीति के चश्मे से देखा जाने लगता है। जनसंख्या नियंत्रण आज वैश्विक समस्या है जो समान नागरिक जीवन में स्वत स्फूर्त चिंतन के रूप में शामिल होना चाहिए। इसे सरकारी दबाव में लागू करने का फलाफल पूर्व में देखा जा चुका है। साथ ही यह भी सत्य है कि कानून बना देने मात्र से ही सब कुछ सही नहीं हो जाता। अमलीजामा पहनाने वाले लोगों पर ही इसकी सफलता निर्भर करती है।
    चिंतन का विषय यह है कि आने वाले दिनों में बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में देश में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों एवं आधारभूत संरचना की क्या स्थिति रहेगी। उन दिनों की तैयारी आज से यदि हो रही हो तो क्या बुरा है किंतु इसे लागू करने की एकमात्र प्रक्रिया सामाजिक चेतना ही है।
    एक बड़ा वर्ग इसे अल्लाह की नेमत समझता है, यह केवल अशिक्षा और पिछड़ापन नहीं है बल्कि धार्मिक कट्टरपना भी है। इसके पीछे उनका उद्देश्य वोट बैंक का आधार बढ़ाकर शासन सत्ता पर कब्जा करना भी हो सकता है। तो इसके प्रत्युत्तर में राजनीतिक रोटियां सेकने वाले भी कहां चुप रहने वाले हैं। यह सब पारस्परिक लाभ हानि का राजनीतिक मामला अवश्य है।
    पड़ोसी देश चीन अपने यहां जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बनाकर उसके दुष्परिणाम भुगत चुका है। अपने देश में इमरजेंसी की अवधि के पूर्व इस प्रकार के कानून का असर देश की जनता भुगत चुकी है।
    किंतु आने वाले दिनों में यह एक आवश्यक प्रक्रिया है जिसे आम जनमानस के सहयोग से पूरा किया जा सकता है। यह सही है की शिक्षा एवं चेतना इसे पूरा करने का एक आवश्यक अस्त्र है, किंतु बिना राजनैतिक प्रयास के यह भी संभव नहीं है।

    बच्चों का जन्म गृहस्थ जीवन की एक स्वभाविक प्रक्रिया है। सरकार द्वारा जो विचार पेश किए जाने वाले हैं यदि उसमें एक बिन्दु यह भी रहता कि किसी भी व्यक्ति के 2 बच्चे ही सभी सरकारी सुविधाओं के पात्र होंगे। इससे ज्यादा बच्चे स्वयं ही सरकारी सुविधाओं एवं मताधिकार प्रयोग के लिए अपात्र हो जाएंगे, तब ज्यादा अच्छा होता।

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  7. हमारे यहां विडंबना यह है कि समाज में उठाई गई प्रत्येक विचार को राजनीति के चश्मे से देखा जाने लगता है। जनसंख्या नियंत्रण आज वैश्विक समस्या है जो समान नागरिक जीवन में स्वत स्फूर्त चिंतन के रूप में शामिल होना चाहिए। इसे सरकारी दबाव में लागू करने का फलाफल पूर्व में देखा जा चुका है। साथ ही यह भी सत्य है कि कानून बना देने मात्र से ही सब कुछ सही नहीं हो जाता। अमलीजामा पहनाने वाले लोगों पर ही इसकी सफलता निर्भर करती है।
    चिंतन का विषय यह है कि आने वाले दिनों में बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में देश में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों एवं आधारभूत संरचना की क्या स्थिति रहेगी। उन दिनों की तैयारी आज से यदि हो रही हो तो क्या बुरा है किंतु इसे लागू करने की एकमात्र प्रक्रिया सामाजिक चेतना ही है।
    एक बड़ा वर्ग इसे अल्लाह की नेमत समझता है, यह केवल अशिक्षा और पिछड़ापन नहीं है बल्कि धार्मिक कट्टरपना भी है। इसके पीछे उनका उद्देश्य वोट बैंक का आधार बढ़ाकर शासन सत्ता पर कब्जा करना भी हो सकता है। तो इसके प्रत्युत्तर में राजनीतिक रोटियां सेकने वाले भी कहां चुप रहने वाले हैं। यह सब पारस्परिक लाभ हानि का राजनीतिक मामला अवश्य है।
    पड़ोसी देश चीन अपने यहां जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बनाकर उसके दुष्परिणाम भुगत चुका है। अपने देश में इमरजेंसी की अवधि के पूर्व इस प्रकार के कानून का असर देश की जनता भुगत चुकी है।
    किंतु आने वाले दिनों में यह एक आवश्यक प्रक्रिया है जिसे आम जनमानस के सहयोग से पूरा किया जा सकता है। यह सही है की शिक्षा एवं चेतना इसे पूरा करने का एक आवश्यक अस्त्र है, किंतु बिना राजनैतिक प्रयास के यह भी संभव नहीं है।

    बच्चों का जन्म गृहस्थ जीवन की एक स्वभाविक प्रक्रिया है। सरकार द्वारा जो विचार पेश किए जाने वाले हैं यदि उसमें एक बिन्दु यह भी रहता कि किसी भी व्यक्ति के 2 बच्चे ही सभी सरकारी सुविधाओं के पात्र होंगे। इससे ज्यादा बच्चे स्वयं ही सरकारी सुविधाओं एवं मताधिकार प्रयोग के लिए अपात्र हो जाएंगे, तब ज्यादा अच्छा होता।
    जैसा समझा जाए, किंतु जनसंख्या नियंत्रण वर्तमान में आवश्यक है। किंतु इसे राजनीतिक नजरिए से देखा जाना उचित नहीं। क्योंकि देश में बहुसंख्यक वर्ग को भी इस नियम से शासित होना होगा। ऐसी स्थिति में जनसंख्या का वास्तविक अनुपात बढ़ने घटने का सवाल ही नहीं होता है।

    अमर तिवारी

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  8. This is Kishor Barman from Kolkata i do endorse your idea

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  9. सकारात्मक एवं उत्तम विचार जिसे आप लोग आम आदमि के बिच रखा है|

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  10. आप भी परिस्थिति का सही विश्लेषण करने की जगह राजनेतिक सही द्रष्टिकोण रहने की कोशिश की है। आपको बुरा लग सकता है लेकिन भारतीय जनसंख्या को समझने के लिए दो मुख्य समुदाय की जनसंख्या दर की वृद्धि दर को अलग अलग समझना होगा। दुसरा कि चुनाव के लिए मुदा उठा है कहना गलत होगा क्योंकि पिछले दो वर्ष से चर्चा चल रही है

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  11. बिल्कुल नहीं, क्यूंकि हम चर्चा ज्यादा करते है काम कम, लोग क्या कहेंगे इस पर ज्यादा सोचते हैं मदद करना तो भूल ही गए हैं। जनसंख्या ज्यादा है तो क्या व्यवसाय बड़ी है नही न, माना व्यवसाय आए हैं तो जनसंख्या ने दिखने नहीं दिया है। कई घरों में सभी काम कर रहे है ओर कई घरों में एक भी नहीं, वजह है सोर्स...
    उदाहरण के तौर पर बिहार पर नजर डालें

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  12. आपने मुद्दा बहुत अच्छा उठाया है और और बहुत अच्छे तरीके से समझा कर लिखा है, जगन वर्तमान समय में हमारे देश में हर मुद्दे को राजनीति से जोड़ दिया जाता है इसीलिए वास्तविकता की ओर ध्यान नहीं जाता हर पार्टी वोट बैंक की तरह लोगों को वर्गलाती रहती है... जबकि वास्तव में शिक्षा के ऊपर ध्यान देना चाहिए... जनसंख्या तो अपने आप ही कम हो जाएगी जब रोजगार नहीं रहेगा

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