कोरोना ने हसीन सपने छीन लिये
The Show Must Go On
भारत में कोविड-19 संस्करण का जनजीवन पर जबर्दस्त असर हुआ। मुझे याद नहीं है और नहीं मैंने इतिहास में पढ़ा है कि भारतीय समाज की जीवन-शैली में इतने परिवर्तन पहले कभी हुए हों जबकि देश में प्राकृतिक विपदायें तो आती रही हैं। विपदा के कारण एक खास क्षेत्र में उसका असर हुआ लेकिन दो चार वर्षों में फिर स्थिति सामान्य हो जाती थी। किन्तु कोरोना ने हमारी रफ्तार पर ऐसा ब्रेक लगाया कि हम सिर्फ रुके नहीं बल्कि पीछे चले गये। हमारे सांस्कृतिक जगत को इस महामारी ने इतना सताया है कि हमारे दिलों के बादशाह इस दौरान धूल चाटते दिखाई दिये। हमारे कलाकार, चित्रकार, संगीतज्ञ, सांस्कृतिक विधाओं के उभरते चेहरे को सांप सूंघ गया। इन पर निर्भर मनोरंजन उद्योग के साथ तो वैसा हुआ जैसा महायुद्ध के दौरान कई शहर बस्तियां नेस्तनाबूद होकर जैसे वीरान हो जाती है। सभी तरह के कार्यक्रमों पर मानो कफ्र्यू लग गया। मैं ऐसे कलाकारों को जानता हूं जिनके बारे में मुझे यकीन है कि वे आने वाले समय में अपने हुनर के बल पर चमकते किन्तु एकदम ओझल हो गये। उनके हालात इतने बिगड़ गये कि उनके घर में चुल्हे जलने बंद हो गये।
मछली बेचने को मजबूर टॉलीवुडके मशहूर अभिनेता अरिंदम प्रामाणिक
मैं व्यक्तिगत रूप से ऐसे कलाकारों को जानता हूं जिनके सामने दो जून की रोटी के लाले पड़ गये। एक मशहूर कलाकार ने मुझे और शायद कई लोगों को वाट्सअप भेजा कि उसके पास काफी समय से कोई काम नहीं है। उसने मदद की गुहार की। कुछ लोगों ने मदद की भी होगी। एक वाद्ययंत्र प्लेयर स्वयं कोरोना संक्रमण का शिकार हो गया। उसका कुछ लोगों ने मिलकर इलाज कराया, वह बच तो गया पर मुझे नहीं लगता कि अब सामान्य जीवन जी सकेगा क्योंकि बेहद कमजोर हो गया और आंख की ज्योति भी लगभग चली गयी है। इसी तरह रोजगार का एक आयाम नया खुला था ''ईवेन्ट प्रबंधनÓÓ का। कई युवाओं ने विवाह-शादियों एवं अन्य सामाजिक या पारिवारिक समारोह के प्रबंध का काम कर अपना व्यवसाय स्थापित कर लिया था। पांच-सात वर्षों में अच्छा काम मिला और चेहरे की रंगत बदल गयी। लेकिन 2020 के पूर्वाद्र्ध से उनका काम-धन्धा अकालग्रस्त हो गया और वर्ष के अंत तक ईवेन्ट प्रबन्धक सड़क की खाक छानने लगे। उनका जीवनयापन किसी पारिवारिक सम्बन्ध या मित्र की कृपा का मोहताज हो गया। इसी तरह होटल, रेस्तरां या इससे संबंधित छोटा-मोटा व्यवसाय करने वाले दर-दर भटकने लगे। इनमें कई अब कहां हैं मझे पता नहीं। कुछ गांव चले गये और कुछ अपने किसी सम्बन्धी के यहां दूसरे शहर।
कोविड-19 ने देश-दुनिया का कितना नुकसान किया इसके सटीक आकलन में तो न जाने कितने साल लगेंगे क्योंकि अभी तो इस पर जीत पाने के लिए ही जद्दोजेहद हो रही है। लेकिन इसने हमारे आस-पास के समाज उसके सपनों को कितनी बुरी तरह जख्मी किया है, इसकी खबरों के ब्यौरे आ ही रहे हैं।
इसी तरह खेल-क्षेत्र को हुआ नुकसान इसलिये कचोटता है क्योंकि इस दौर ने कई संभावनाओं को हमेशा-हमेशा के लिए खत्म कर दिया, तो कई निखरती उभरती प्रतिभाएं अब इससे मुंह मोडऩे लगी है। अखबार में कुछ समय पूर्व मैंने पढ़ा सुप्रसिद्ध धावक जिन्सन जॉनसन 1500 मीटर दौड़ के राष्ट्रीय रिकार्डधारी हैं। उम्मीद बंधी जाने लगी थी कि जॉनसन टोक्यो ओलंपिक में जरूरत शानदार प्रदर्शन करेंगे। लेकिन कोरोना काल में उनका अभ्यास रुक गया और बाद में खुद कोरोना पॉजिटिव हो गये। अब टोक्यो ओलंपिक में खेलने का उनका सपना टूटता हुआ नजर आ रहा है। ऐसे कई खिलाड़ी हैं जो पहली दफा खेलों के महाकुंभ में भारतीय तिरंगे के नीचे उतरना चाहते थे। कई ऐसे भी थे, जो इस बार का ओलंपिक खेलकर खेल जीवन को अलविदा कहना चाहते थे। इन सबकी उम्मीदों पर महामारी ने पानी फेर दिया है। कोरोना काल ने उनके अभाव को विकराल बना दिया है।
सुप्रसिद्ध धावक जिन्सन जॉनसन
भारतीय खेल प्राधिकरण और भारतीय ओलंपिक संघ से जुड़े संगठनों के अनुसार देश भर में ऐसे पांच करोड़ से अधिक खिलाड़ी हैं जो विभिन्न खेलों में अपना भविष्य बनाने के लिए जान लगाये हुए थे। पिछले एक साल से भी अधिक समय से इन सबका प्रशिक्षण बुरी तरह प्रभावित हुआ है। एथलेटिक्स, बालीबाल, फुटबॉल, हॉकी जैसे खेलों के ज्यादातर खिलाड़ी गरीब परिवारों से ताल्लुक रखते हैं। किसी ने अभ्यास छोड़ दिया तो किसी को कोरोना निगल गया। पिछले 14 महीने से देश के लाखों खिलाडिय़ों का अभ्यास थम गया है। कुछ प्रशिक्षक ऑनलाईन ट्रेनिंग देने का प्रयास कर रहे हैं। पर खेल ऐसी विधा है जिसमें कोच जब तक सीटी लेकर मैदान में खड़ा नहीं होता, तब तक ट्रेनिंग नहीं हो पाती। बड़े खिलाडिय़ों के लिए विशेषज्ञों-मनोविज्ञानियों के सत्र आयोजित किये जा रहे हैं ताकि वे अवसाद के शिकार न बनने पायें।
खेल का मैदान हो या कलाकारी, खिलाड़ी हो या चित्रकार, गायक हो या नर्तक ये सभी देश की युवा प्रतिभाएं हैं। प्रधानमंत्री ने युवाओं को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में बड़ा स्थान दिया है। यह युवा मंत्रिमंडल देश के सितारों के साथ कितना न्याय करेंगे, यह तो समय ही बतायेगा। किन्तु इस संकट काल में सरकार को इनकी आर्थिक मदद चरनी चाहिये। इस काम में देश के संपन्न उद्यमियों और निजी क्षेत्र को भी आगे आना चाहिए। युवा प्रतिभायें चाहे किसी भी क्षेत्र की क्यों न हो, को यह भरोसा दिलाना होगा कि उनका भविष्य गर्दिश में नहीं है।
प. बंगाल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनाव के समय नारा दिया था - ''खेला होबेÓÓ। खेला नहीं रुकना चाहिये चाहे जैसी भी विकट घड़ी हो। एक प्रसिद्ध कथन है जिस पर हमारी सारी उम्मीदें रहती हैं। ञ्जद्धद्ग स्द्धश2 रूह्वह्यह्ल त्रश ह्रठ्ठ यानि खेल बंद नहीं होना चाहिये। स्टेज हो या खेल का मैदान शो रुकना नहीं चाहिये।


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