भारत की बेटियां
कब तक दया-पात्र बनी रहेंगी?
भारत में नारी को जितना महिमा मंडित किया जाता है, उसका उदाहरण विश्व में अन्यत्र कहीं नहीं है। देवियों की पूजा ही नहीं होती, सरकार के मंच एवं सार्वजनिक रूप से आये दिन नारी शक्ति को आगे बढ़ाने की बात जोर-शोर से की जाती है। यह अलग बात है कि हमारे देश के दो प्रान्तों के अलावा सभी में पुरुष एवं महिलाओं के संतुलन में पुरुषों का पलड़ा काफी भारी रहता है। पहले से स्थिति बेहतर हुई है। इसके बावजूद 1000 पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या औसत 880 है। राजस्थान, हरियाणा में तो स्थिति और भी चिंताजनक है। हमारे कई धर्मगुरु भी महिलाओं को धर्मोपदेश के दौरान लड़का पैदा करने का नुस्खा बताते हैं। अतीत में भारतीय नारी का क्या स्थान रहा है इसके लिये दो उदाहरण काफी हैं। द्रोपदी को पहले जुए में दांव पर लगाया गया, इतना ही नहीं, जुए में हारने के बाद जब चीर हरण हुआ, 'धर्मराजÓ युधिष्ठिर सहित सभी प्रात: बंदनीय पराक्रमी पांडव देखते रहे। कृष्ण न होते तो द्रोपदी को नग्न कर दिया जाता। एक मुनि ने श्राप दिया और अहिल्या पत्थर बन गयी बाद में भगवान श्री राम ने अंगूठा लगाकर उसका उद्धार किया। यानि द्वापर युग में कृष्ण और त्रेता युग में राम ने क्रमश: द्रोपदी और अहिल्या का उद्धार किया।
आज के युग में नारी ने क्रांतिकारी कदम उठाये हैं अपने को शक्तिशाली बनाने में। बहुत से स्थानों पर वह पुरुष से दो कदम आगे दिखाई देती हैं। लेकिन यह भी कटु सत्य है कि अधिकांश महिलायें आज भी अंधकार में रहती हैं। पुरुष-महिलाओं का संतुलन ऊपर बता चुका हूं। हर तीन मिनट पर एक महिला का बलात्कार होता है एवं आये दिन दहेज एवं विसंगतियों और विषमताओं का वे शिकार होती हैं।
नारी को अपना स्थान बनाने के लिये कितना संघर्ष करना पड़ता है उसके कुछ ²ष्टांत मैं आपको दे रहा हूं। किसी लड़की ने भारत का गौराव बढ़ाया किन्तु उसे कितनी प्रताडऩा और यातनाओं से गुजरना पड़ा है।
दीपिका ने हाल ही में अपने पति अतनु दास के साथ मिश्रित युगल में स्वर्ण पदक लेकर खेल इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया है। बिलकुल निचले पायदान से निशानेबाजी के खेल में शुरुआत करने वाली वे आज अंतरराष्ट्रीय स्तर की शीर्ष खिलाडिय़ों में से एक है। तीरंदाजी सीखने के लिए अपने घर से निकलते हुए दीपिका के मन में संतोष इस बात का था कि उनके जाने से परिवार पर एक बोझ कम हो जायेगा। दीपिका के पिता शिवनारायण महतो एक ऑटो-रिक्शा ड्राइवर के रूप में काम किया करते थे। वहीं उनकी मां गीता महतो एक मेडिकल कॉलेज के ग्रुप डी कर्मचारी के रूप में काम करती है। दीपिका के पिता शिवनारायण बताते हैं जब दीपिका का जन्म हुआ तब उनकी हालत बहुत खराब थी। वे बहुत गरीब थे। पत्नी 500 रुपये महीना तनख्वाह पर काम करती थी और पिता एक छोटी सी दुकान चलाता था। दीपिका का जन्म एक चलते हुए ऑटो में हुआ था क्योंकि उनकी मां अस्पताल नहीं पहुंच पायी थी। दीपिका का तीरंदाजी की दुनिया में प्रवेश भी संयोगवश हुआ। उसने अपनी शुरुआत बांस से बने धनुष बाण से की। दीपिका कहती है साल 2007 में जब वह नानी के घर गयी तो वहां उनकी ममेरी बहन ने बताया उनके वहां पर अर्जुन आर्चकी एकेडमी है, वहां सब कुछ फ्री है। किट भी मिलती है, खाना भी मिलता है। दीपिका ने जब अपने पिता को बताया मुझे आर्चकी सीखने जाना है तो उन्होंने मना कर दिया। दीपिका के पिता ने बताया कि उनका समाज लड़कियों को घर से इतना दूर भेजना ठीक नहीं मानता है। छोटी सी बेटी को कोई भी 200 किलोमीटर दूर भेज दे तो लोग कहेंगे अरे बच्ची को खिला नहीं पा रहे थे, इसीलिए भेज दिया। लेकिन दीपिका आखिरकार रांची से लगभग दो सौ किलोमीटर दूर स्थित खरसावां आर्चकी एकेडमी पहुंच गई।
दुनिया की नम्बर वन तीरंदाज बनने से जुड़ा दीपिका का अनुभव बेहद रोमांच पैदा करने वाला है। दीपिका की नजर अब ओलंपिक मेडल पर है। अगले महीने टोक्यो में भाग लेने के लिए वह जापान जा रही हैं। खास बात ये है कि भारत की ओर से जा रही तीरंदाजी टीम में वह अकेली महिला हैं। उम्मीद है वे लक्ष्य में सफल होंगी।
भारत की दिग्गज तीरंदाज दीपिका कुमारी ने पेरिस में जारी तीरंदाजी वल्र्ड कप में इतिहास रचते हुए दीपिका ने एकल, महिला रिकवे टीम और मिश्रित युगल मुकाबलों में स्वर्ण पदक जीता है।
ऐसी बहुत सी लड़कियां हैं जो अपने संघर्ष से आगे बढ़ रही हैं। पिछली साल 11 साल की बैभवी के पिता मछली बेचते थे। अप्रैल में पिता की कोविड के कारण मृत्यु हो गयी। उनकी बेटी कक्षा 6 खी छात्रा बम्बई म्युनिसिपल स्कूल में पढ़ती है। घर संचालन के लिए वह भी अब मछली बेचती है। सुबह मछली बाजार में ढाई घंटे काम करती हुई वह घर आकर ऑनलाईन क्लास में पढ़ाई करती है।
जमशेदपुर में सड़क किनारे बैठकर 5वीं क्लास की छात्रा आम बेचती है। इसकी कहानी इस कदर वायरल हुई कि अपने सपनों को पंख लग गए। एक शख्स ने इस लड़ी को 12 आम के बदले सवा लाख रुपये दिये। पढ़ाई को लेकर इस बच्ची के अंदर जुनून देखकर एक शख्स ने सोने के दाम में आम खरीदा। जमशेदपुर में स्ट्रैट माइल्स रोड के बंगला नं, 47 के आउट हाऊस में रहने वाली 11 वर्षीया तुलसी पांचवीं क्लास की छात्रा है। उसके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छा नहीं है। क्योंकि ऑनलाईन क्लास के लिए उसके पास स्मार्ट फोन नहीं था। इसलिये तुलसी ने नये फोन के लिए पैसा जुटाने के लिए आम बेचने का फैसला लिया।
कहीं कृष्ण को द्रोपदी की लाज बचाने के लिए दौड़ कर आना पड़ता है तो कहीं मुनि महाराज के श्राप से पत्थर हुई अहिल्या को उद्धार के लिये वन में श्री राम की प्रतीक्षा करनी होती है, कहीं तुलसी को स्मार्ट फोन के लिए आम बेचते हुए वैल्युएबल एडुटेंटमेंट कंपनी के वाइस चेयरमैन अमेया होते की महती कृपा की वर्षा का। कब वह समय आयेगा जब तुलसी को पढ़ाई के लिए स्मार्ट फोन मिलेगा और वैभवी को मछली बाजार में जाकर मछली बेचना नहीं पड़ेगा। दीपिका जब अपने बचपन को समाज के अग्निकुंड में झोंकने की बजाय अपनी आकांक्षाओं को पूरा करेगी, तभी भारत की नारी किसी की कृपा से मुक्त होकर अपना इतिहास बनायेगी। दो-चार शानदार उदाहरण से नारी का इतिहास नहीं लिखा जा सकता।


बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteज्योतिष और वास्तु समाधान 🏠Vastu Guru_ Mk.✋
ReplyDelete👉WP. 9333112719
बहुत अच्छी लेख
ReplyDeleteAti sundar blog he.👌👌👌👍
ReplyDelete"भारत की बेटियाँ कब तक दया का पात्र बनी रहेगी " अति सुंदर लेख पर जिस भारत मे हम आज रहते है उस भारत मे बेटियाँ को आदि काल से दया का पात्र समझा गया है और जब तक हमारी मांसिकता बदली नही जायेगी तब तक युंही हम देवी रूपी बेटियाँ को दया का पात्र ही समझते रहेंगे और यही हमारी सबसे बड़ी भूल है
ReplyDeleteभारत सरकार को नारी एवं बेटियां पर विशेष ध्यान देना चाहिए एवं शिक्षा के प्रति भी धन्यवाद
ReplyDeleteप्रणाम महोदय,
ReplyDeleteभारत की बेटियां किसी की दया की पात्र नहीं है ।यह बात उन्हें खुद को समझने की आवश्यकता है, एक क्रांति की आवश्यकता है इस सोच को बदलने के लिए कि वे बिना पुरुष के सहारे अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सकती ,अपनी एक अलग पहचान नहीं बना सकती। जब तक भारत की बेटियां यह बात खुद नहीं समझेंगी तब तक उनकी स्थिति में बदलाव संभव नहीं हो सकता। जहां तक बात रही सहयोग की तो बिना नारी के सहयोग के पुरुष का जीवन भी अधूरा है। उसको भी पग-पग पर नारी के सहयोग की आवश्यकता रही है ।पर नारी ने कभी जताया नहीं है। घर परिवार समाज के लिए नारी अपना पूर्ण सहयोग देती है या यूं कहें देती आई है, आगे भी देती रहेंगी। नारी को भी सहयोग की आवश्यकता है समाज की देश की ।वह किसी की दया की पात्र नहीं है। वह चाहें तो अपनी महत्वाकांक्षाओं को अपने बल पर पूरा कर सकती है बस उसकी इन इच्छाओं को हवा देने की आवश्यकता है। नारी हो या पुरुष सभी को एक दूसरे के सहयोग की आवश्यकता है लेकिन नारी को कमजोर समझना यह पुरुष प्रधान समाज की निम्न सोच को दर्शाता है। आज की नारी अपनी पहचान के लिए संघर्षरत है समाज में बदलाव आ रहा है पर इस बदलाव की गति धीमी है इसमें तीव्रता की आवश्यकता है एक क्रांति की आवश्यकता है वह समय दूर नहीं जब पुरुष को यह समझना होगा की नारी किसी की दया की पात्र नहीं है वह स्वयं अपने बलबूते अपने जीवन का निर्वाह कर सकती है ।