घोषित एवं अघोषित आपातकाल

 घोषित एवं अघोषित  आपातकाल

सन् 1975 में प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी द्वारा देश में लगाये गये आपातकाल के 21 महीना का कार्यकाल को स्वतंत्र्योत्तर इतिहास का सर्वाधिक चर्चित व निन्दित कालखंड कहा जाता है। आपातकाल घोषित होते ही कई विपक्षी नेता गिरफ्तार कर लिये गये थे, कई भूमिगत हो गये, संविधान की धाराएं स्थगित कर दी गयी। इस आपातकाल के दौरान जो कुछ हुआ उसके लिए दबे रूप में कांग्रेस के अन्दर भी विरोध के स्वर उठे एवं विपक्ष में कुछ लोगों ने आपातकाल को उचित राष्ट्रीय कदम बताकर छुपे तौर पर तालियां बजायी। मसलन जब दिल्ली में जामा मस्जिद के इर्द-गिर्द झुग्गी-झोपडिय़ां नेस्तनाबूद कर इलाके को चकाचक बनाने को अंजाम दिया गया तो जो आज जो राष्ट्रवाद के हामी हैं,ने भूरि-भूरि प्रशंसा की और इन्दिरा पुत्र संजय गांधी को इस पहल के लिये कइयों ने तो बधाइयां दी।


आज केन्द्रीय विस्ता प्रकल्प, बनारस के घाटों का सौंदर्यीकरण, अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम का नाम परिवर्तन उस समय किया जब देश में हजारों लोग चिकित्सा की न्यूनतम सुविधा से भी वंचित किये गये। आपातकाल में भी भारी मतों से चुनी हुई सरकार ने शांति और सुरक्षा को अपनी सुविधानुसार परिभाषित किया। 2014 और फिर 2019 में दो तिहाई की बहुमत वाली सरकार भी जन समर्थन के नाम पर एक के बाद एक दमनचक्र के वह कदम उठाती रही है जिसके परिणामस्वरूप एक नयी स्थिति की तरफ देश बढ़ रहा है। गरीबों की संख्या में 15-16 करोड़ की वृद्धि हुई है और आज देश में अरबपति-खरबपति संख्या में वृद्धि की रफ्तार दुनिया में सबसे अधिक है। कोविड-19 के संक्रमण काल में जब मध्यम श्रेणी और निम्न मध्यम श्रेणी अस्पताल में बेड के लिये दर-दर ठोकरें खाती रही, ऑक्सीजन सिलेंडर के लिये कोसों तक पैदल जाना पड़ा वहीं हाल ही में समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ कि गत वर्ष यानि 2020-21 में निजी अस्पतालों को 15 से 17 प्रतिशत अधिक लाभ हुआ। साथ ही यह भी उल्लेख किया गया कि चालू वर्ष में उनका मुनाफा और अधिक होगा। देश की अर्थव्यवस्था छिन्न भिन्न हो गयी किन्तु भारत का कार्पोरेट सेक्टर का मुनाफा तुंग पर है जिसका प्रमाण यह है कि शेयर बाजार आज तक की सबसे ऊंचाई पर है।

आपातकाल के बाद प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गयी थी। सरकार विरोधी समाचार छपने पर गिरफ्तारी भी होती थी। इंदिरा निरंकुशता के खिलाफ लड़ाई इतिहास में दर्ज है। मोदी निरंकुशता के खिलाफ लड़ाई की शुरुआत के आसार दिख रहे हैं। लेकिन एक बात गौर करने की है। इंदिरा काल में खासकर इमजरजेंसी के दौरान (1975-77) सरकार की तरफ से संगठित तौर पर, योजना बना कर किसी खास समुदाय या समूह को निशाना नहीं बनाया गया (हां पुरानी दिल्ली में तुर्कमान गेट की घटना अपवाद है)। सरकार द्वारा पोषित और समर्थित गुंडा गिरोह नहीं थे, न हमलावर या हत्यारी टोलियां थी। हत्यारों और बलात्कारियों का तिरंगा अभिवादन नहीं हुआ था। बहुसंख्यकवाद व हिन्दू राष्ट्रवाद के आधार पर देश व सरकार को चलाने का संकल्प नहीं था। संविधान को बदलने या उसे तोडऩे-मरोडऩे की कोशिश नहीं की गयी, न ही धर्म पर आधारित नागरिकता का प्रस्ताव पेश किया गया।


2014 से 2021 तक के सात वर्षों में भारत लगभग अघोषित हिंदू राष्ट्र बन चुका है और हिंदुत्व फासीवाद इसकी विचारधारा बन चुकी है। अब इसकी सार्वजनिक एवं औपचारिक घोषणा की जरूरत नहीं है। 21 महीने की इमरजेंसी के दौरान आमलोगों में कोई भय नहीं था। उत्पीडऩ राजनीतिक रूप से विरोधी नेताओं का हुआ, हालांकि वह भी अक्षम्य है। इस समय लोग ज्यादा डरे हुए, शंकित और असुरक्षित हैं। घोषित तौर पर इस समय आपातकाल नहीं है। लेकिन लोगों के दिलों में बेलगाम, गैर जवाबदेह सरकारी दमनतंत्र का ऐसा जबर्दस्त मनोवैज्ञनिक डर बैठ गया है कि वह व्यक्ति की स्वतंत्र विचार प्रणाली को बाधित करने लगा है। मोदी सरकार की पूरी कोशिश है कि लोग दिमागी तौर पर सरकार के अनुकूल बन जायें। विचार, बहस, सवाल संदेह करने की स्वतंत्रता को अपराध और राष्ट्रद्रोह की संज्ञा दे दी जाती है। जो कोई भी विरोध या असहमति में आवाज उठाये, सरकार की आलोचना करे, जमीनी हकीकत की तस्वीर दिखाये - उन्हें जेल का रास्ता दिखा दिया जाता है। लिंचिंग बेरोकटोक जारी है।

एक कार्टून बनाने वाले को टीवी चैनल से हटा दिया गया क्योंकि चैनल मालिक पर सरकार का दबाव था। ''इकोनोकि एंड पोलिटिकल वीकलीÓÓ के सम्पादन से जुड़े 70 वर्षीय मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा, तेलुगु के प्रसिद्ध कवि 78 वर्षीय वरवरा राव, आदिवासियों के लिये संघर्षरत वकील अरुण फेरेरा महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव में हुई जातीय हिंसा के साथ सम्बन्ध होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिये गये। दर्शकों को झूठ परोसने वाले कुछ टीवी चैनलों ने इनका संबंध प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साजिश से भी जोड़ दिया। जवाहरहाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्रों को इस आरोप में गिरफ्तार किया गया कि उन्होंने भारत-विरोधी नारे लगाये। टीवी चैनल में कई दिन तक वीडिये दिखाये। पुलिस कमिश्नर ने लगातार टीवी कैमरों पर दावे किये कि पुलिस के पास इसके पुख्ता सबूत हैं, लेकिन अभी तक पुलिस आरोप पत्र भी दाखिल नहीं कर पायी।

लोकतंत्र का स्थान भीड़तंत्र लेता जा रहा है, भीड़ द्वारा गौहत्या का आरोप लगाकर खुलेआम की जाने वाली हत्याएं, महिलाओं को बाजारों में नंगा घुमाने और दलित-अल्पसंख्यकों को किसी बहाने पीडि़त करने की घटनाएं हुई हैं। दोषियों को जेल से जमानत मिलने पर रिहाई के बाद केन्द्रीय मंत्री माला पहनाकर उनका स्वागत करें तो क्या संदेश जाता है, बहुत स्पष्ट है।

आपातकाल के 46 वर्ष 25 जून 2021 को पूरे हुए। श्रीमती गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण, प्रीवीपर्स का खात्मा, पाकिस्तान के दो टुकड़े, सिक्किम के भारत में विलय, श्वेतक्रांति जैसे भारी-भरकम कदम उठाकर इतिहास में अपना नाम दर्ज करा लिया। आपातकाल लेकिन उनके चन्द्रमा जैसे उज्ज्वल काल पर काला धब्बा है। लेकिन मोदी द्वारा अघोषित आपात्काल में डिमोनिटाइजेशन, जीएसटी, धारा 370 का उन्मूलन, रेल, एलआईसी, बैंकों का आंशिक निजीकरण, कोविड-संक्रमण काल में चिकित्सा व्यवस्था में अराजकता ऐसे ²ष्टांत हैं जिनके बारे में आने वाला समय ही न्याय करेगा।




Comments

  1. माननीय, आपके विचारों से मैं सहमती नहीं रखता।

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  2. बहुत ही बेबाक विश्लेषण। आप अपने संपादकीय के लिए निसंदेह बधाई के हकदार हैं। घोषित आपातकाल के विरोध में ढेरों कविताएं, गीत रचे गए। "कटरा भी आर्जू" ( राही मासूम रज़ा) उपन्यास लिखा गया लेकिन इस अघोषित आपातकाल का क्या किया जाए जिसके खिलाफ कुछ बोलते ही भक्त लोग हमलावर हो जाते हैं। लेकिन बोलना तो पड़ेगा ही और आवाजें उठने भी लगी हैं। इस आपातकाल का खामियाजा भी देश के हुक्मरानों को भरना ही पड़ेगा।

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    1. महोदय बड़ा ही अच्छा होता अगर इस विश्लेषण में जेएनयू में भारत विरोधी नारेबाज़ी का जिक्र होता और
      शाहीन बाग में भारत को खंडित करने का जो षड्यंत्र रचा जा रहा था उसका जिक्र होता। किसी खास समुदाय को निशाना बनाने की बात तो आपने की पद भारत विरोधी जिस प्रकार की कार्रवाई चल रही है जितने बम विस्फोट किए जा रहे हैं वह किसी खास समुदाय के द्वारा ही किए जा रहे हैं
      अगर हम आज भी नहीं चेते तो भारत एक और विभाजन की ओर बढ़ रहा है।

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  3. मानसिकता में कांग्रेस की सोच की बदबू आ रही हैं क्या विश्लेषण होगा आपतकाल से इस समय का।

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    1. सही समझ रहे हैं आप ।
      एक सोची समझी साजिश के तहत सरकार और देश को बदनाम करने की कोशिश और देश को विभाजित करने की कोशिश की जा रही है ।बंगाल की स्थिति देखते जाइए अगर समय से कार्यवाही नहीं हुई एक दूसरा जम्मू-कश्मीर आपको बंगाल में देखने को मिलेगा।

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  4. Without going in debate whether Emergency was right or wrong, fact remains that the main architect of Emergency and the alleged excesses was late Sanjay Gandhi. Since a long time, his wife & son are in BJP but even today only the Congress is blamed for Emergency. People might be remembering the magazine Surya being published under editorship of Mrs Maneka Gandhi. Its irony that none in the Congress is not able to defend or put blame squarely on some leaders who were in Congress at that time and later on switched to other parties.

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