वैक्सीन के बनने से लगने तक का तिलिस्म

 वैक्सीन के बनने से लगने तक का तिलिस्म

सुप्रीम कोर्ट ने देश में टीकाकरण को लेकर सरकार से समस्त जानकारियां मांगी है। कोरोना संबंधी मामलों को लेकर स्वत: संज्ञान की सुनवाई में शीर्ष कोर्ट ने कहा- बजट में केन्द्र द्वारा टीकों की खरीद के लिए रखे गये 25 हजार करोड़ रुपये का बजट हिसाब भी पेश करे। केन्द्र सरकार की ओर से अब तक खरीदी गयी कोविशील्ड कोवैक्सीन और स्पुतनिक कापूरा ब्यौरा भी तलब किया गया है। मामले की सुनवाई 30 जून को होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केन्द्र सरकार की 18-44 आयु वर्ग के लोगों को प्राइवेट अस्पतालों में शुल्क सहित वैक्सीन की नीति प्रथम ²ष्टया ही असंगत व अतार्किक है। ये कैसा विरोधाभास है कि हेल्थवर्करों और 45 प्लस को तो मुफ्त टीका दिया जा रहा है और 18 प्लस के लिए प्राइवेट अस्पतालों को शुल्क वसूली की छूट दी जा रही है। केन्द्र सरकार ने 9 मई के अपने हलफनामने में कहा था कि राज्य फ्री वैक्सीन देंगे।



कोरोना महामारी संक्रमण अपने उद्गम से लेकर अपने विकराल रूप तक पहेली बनी हुई है। लेकिन इसके इलाज के लिये वैक्सीन ने भी कम रहस्य के जाल नहीं बुने हैं। वैक्सीन के उत्पादन से लेकर इसका वितरण, शुल्क में विविध कीमतं का छलावा के कारण वैक्सीन का तिलिस्म आज तक कोई समझ नहीं पाया।

इस बीच केन्द्र ने वर्ष के अंत तक देश के सभी नागरिकों का टीकाकरण करने के दावों को राज्य सरकारों ने एक धोखा करार दिया है। प्रारम्भ में प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत विश्व में औषधियों का सबसे बड़ा निर्माता बन गया है और हमारे टीकाकरण की रफ्तार का पूरी दुनिया ने लोहा माना है। लेकिन इसके कुछ समय बाद ही देश में वैक्सीन की कमी से

हाहाकार मच गया। पता चला कि कई देशों में हमने वैक्सीन का निर्यात कर दिया इसलिए टीका की कमी हो गयी। भारत में बनाने वाली दो कम्पनियों ने 8 करोड़ से अधिक वैक्सीन का उत्पादन किया उसमें 5 करोड़ प्लस का उपयोग हुआ। बाकी 3 करोड़ वैक्सीन कहां गयी यह रहस्य बना हुआ है।

कहां तो हमारे देश में टीका उत्पादन और द्रुत गति से टीका लगने के दावे के साथ प्रधानमंत्री ने अपनी उपलब्धि पर पीठ ठोकी लेकिन अब टीकाकरण के लिये हम विदेशों की ओर ताकने लगे। विदेशी कम्पनी मॉडर्ना और फाइजर टीके देने को तैयार हो गयी, लेकिन उनकी यह शर्त भारत को माननी पड़ी कि हम अपने देश में उसका ट्रायल नहीं करेंगे। इसका अर्थ यह हुआ कि विदेशों से बन्द डिब्बे में टीके आयेंगे एवं भारतीय नागरिकों की भुजाओं में घुसेड़ दिये जायेंगे। उनका अगर दुष्प्रभाव होगा तो उत्पादक विदेशी कम्पनियों की कोई जवाबदेही नहीं है। हर्जाना या मुआवजा का कोई प्रावधान नहीं है। चूंकि भारत को इन टीकों की सख्त जरूरत है इसलिए मरता क्या नहीं करता?

कोविशील्ड बनाने वाली भारतीय कम्पनी सीरम इंस्टीच्यूट ने देश में टीकाकरण की शुरुआत के साढ़े चार माह बाद बड़ा दांव चला है। टीकों की कमी के बीच सीरम का कहना है कि यदि फाइजर और मॉडर्ना जैसी विदेशी कंपनियों को सरकार कानूनी सुरक्षा देती है तो देशी कम्पनियों को भी वह सुरक्षा प्रदान की जाये।

इधर केन्द्र और राज्य सरकारों के लिए टीकों की खरीद की खातिर अलग-अलग दरें तय करने का फैसला भी आग में घी डालने जैसा है। कीमत उत्पादन लागत के आधार पर तय की जानी चाहिये। प्राइवेट टीका उत्पादक मनमानी ढंग से कीमत वसूल कर रहे हैं। कंपनियों को महामारी के बीच नाजायज फायदा उठाने की छूट मिल गयी है।

राज्य सरकारों द्वारा मुफ्त टीका लगाये जाने की बार-बार मांग हो रही है लेकिन इसके विपरीत केन्द्र की बेपेंदा नीति की वजह से टीकाकरण का अभियान अधर में लटका हुआ है। कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ सबसे मजबूत सुरक्षा कवच सिर्फ टीका है।

सरकारों कोरोना वैक्सीनेशन कराने के लिए जनता को लगातार जागरुक कर रही है। पर वैक्सीन उपलब्धता पर केन्द्र सरकार पर कई बार सवाल खड़े किये गये हैं। इसी तरह सरकार के जून में 12 करोड़ वैक्सीन आयेंगी वाला दावा भी खोखला प्रतीत हो रहा है। क्या मान लिया जाये कि दोनों कंपनियों की उत्पादकता में 40 फीसदी का इजाफा हो गया है? मई में वैक्सीन उत्पादन क्षमता 8.5 करोड़ थी जबकि वैक्सीन का उत्पादन 7.94 करोड़ ही हुआ। वहीं 6.1 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगायी गयी। इस तथ्य के मद्देनजर जून में 12 करोड़ के उत्पादन का दावा हास्यास्पद है।

वैक्सीन कोरोना संक्रमण को रोकने का एकमात्र डॉक्टरी इलाज है। दूसरी तरफ कोरोना की तीसरी लहर का खतरा भी मंडरा रहा है। कोरोना निरोधक वैक्सीन के अलग-अलग अस्पताल में अलग-अलग दाम हैं। जब वैक्सीन एक तरह की है तो उसके दाम अलग-अलग क्यों? मजे की बा यह है कि अस्पताल अपने स्टेटस के हिसाब से दाम वसूल कर रहे हैं। कोलकाता के एक सुप्रसिद्ध अस्पताल के संचालक को मैंने पूछा कि आप वैक्सीन कब से लगायेंगे तो उन्होंने कहा कि वे वैक्सीन खरीद नहीं पा रहे हैं क्योंकि नामी-ग्रामी अस्पताल वैक्सीन खरीद रहे हैं यानि वैक्सीन की जमाखोरी भी हो रही है ताकि मनमाना शुल्क वसूला जा सके। एक तरफ वैक्सीन की जमाखोरी और दूसरी तरफ वैक्सीन की कालाबाजारी दोनों इस बात का प्रमाण है कि इस महामारी की विभीषिका में भी कुछ लोग लूट-खसोट में लगे हुए हैं। कोरोना महामारी का आगाज 2020 की जनवरी में हो गया था। दूसरी लहर की चेतावनी भी गत वर्ष कई देशों ने दे दी थी। पर हमारी सरकार नींद भर सोयी हुई थी। उसने कोई योजना या रोड मैप नहीं तैयार किया। सरकार की इस निर्लिप्त प्रवृत्ति ने देश में कोरोना महामारी को सुरसा के बदन की तरह फैलने दिया। इसके बावजूद इस वर्ष के अंत तक सबको टीकाकरण जैसे दावे भी एक क्रूर मजाक जैसा है।


Comments

  1. मुझे ऐसा प्रतीत होता है की टीके को लेकर उत्पादकों और सरकारी प्रबंधन के बीच कोई समझौता हुआ है जिस कारण कई स्तरों की कीमतें , टीके लगाने के बहुत सारे अलग अलग संस्थान , अलग अलग पद्धति आदि चलन में आ गई है। फलत: आर्थिक रूप से समर्थ लोगो को सहूलियत और नियम से अपनी बारी की प्रतीक्षा करने वाले नागरिकों को हताशा हाथ लग रही है।

    उच्चतम न्यायालय के बीच बचाव से सरकार को हाथ झाड़ कर किनारे होने का लाभ मिल गया है

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  2. नमस्कार महोदय..!

    जन सरोकार से जुड़े हुए मुद्दों पर आपका ध्यान बड़ी गंभीरता से पड़ता है। भारत की जनता अपने भविष्य के तथाकथित स्वयंभू निर्माताओं अर्थात् राजनेताओं के भाषणों को संभवत सुनते ही भूल जाती है। विशेषतः वैसे भाषण जो चुनाव के समय दिए जाते हैं। सजे धजे मंच पर ताल ठोक ठोक कर 56 इंच का अपना सीना दिखा दिखा कर किए गए बहुतेरे जन आकांक्षाओं के अनुरूप उन भाषणों का क्या हुआ..? कौन किससे पूछेगा और किसको किसको वह याद है.??

    स्मृति पर जरा जो डालें। बिहार में चुनाव हुए थे। उस समय जहां तक मुझे स्मरण है, वादों के मंच पर चिल्ला चिल्ला कर यह कहा जा रहा था कि वैक्सीन जल्दी ही बन जाएगी। और, सब को मुफ्त टीकाकरण कराया जाएगा। इन सब बातों को सुनकर लोग मुफ्त टीकाकरण के आशान्वित थे।
    मुफ्तखोर लोगों ने बिजली पानी की मुफ्तखोरी में अपना भविष्य कई लोगों को समर्पित कर दिया है। इसका जीता जाता उदाहरण दिल्ली है। कभी दक्षिण भारत में लुभाने के लिए मुफ्त साइकिल, मुफ्त रेडियो, मुफ्त टेलीविजन इत्यादि इत्यादि (ब्लैक एंड व्हाइट के बाद रंगीन के लिए भी) के वादे चलते थे।

    पिछले दिनों लगे हाथों सबको मुक्त वैक्सीन देने की भी बात की गई थी। हश्र सामने है। कोई उन तथाकथित घोषणाकर्ताओं से यह पूछने वाला नहीं है कि उन घोषणाओं का क्या हुआ..?

    सरकारी अस्पतालों एवं उसके माध्यम से वैक्सीनेशन हो रहा है। किंतु प्राइवेट अस्पतालों में उसके चार्ज क्यों लग रहे हैं अब उनकी कीमत क्यों तय हुई..? वह भी अलग-अलग जगहों पर मनमाने तौर पर अपनी अपनी सुविधानुसार..?

    बहुतेरे बुद्धिमान अपने देश की वैक्सीन को छोड़ रूस से आए हुए स्पूतनिक की प्रतीक्षा में जी रहे हैं।
    कोई या पूछने वाला नहीं है कि मुफ्त में वैक्सीननेशन के उस वादे का क्या हुआ..?
    यह जानबूझकर आम जनता द्वारा खड़ी की गई कोई बीमारी नहीं है। यह वैश्विक आपदा है। इससे बचने के लिए सरकार अभी मुफ्त वैक्सीनेशन कराती तो यह आम जनता की उचित सेवा कही जा सकती थी। किंतु आम जीवन पर संकट वाले इस आपदा में भी अवसर तलाशे जा रहे हैं। लोगों की जान पर पड़ी है और उसे बचाने के नाम पर एक बड़ा वर्ग नोट बटोरने और संभालने में लगे हुआ है।

    बात यहीं समाप्त नहीं होती। बल्कि, पोस्ट कोविड कंप्लीकेशन टेस्ट के नाम पर बाजारों में भयंकर लूट मची है। कई प्रकार के टेस्ट कराए जा रहे हैं जिनमें सीटी स्कैन, सीआरपी एवं डी-डायमर जैसे आठ 10,000 वाले टेस्ट भी शामिल हैं। ऑक्सीजन और भेंडीलेटर का तमाशा किसी से छिपा हुआ नहीं है।

    ऊपर से वैक्सीनेशन, वह भी मनमानी कीमत चुका कर। आखिर सरकार कर क्या रही है..? सिस्टम में जुड़े हुए सब लोग हैंडशेक तो नहीं कर रहे हैं..?

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  3. धन्यवाद महोदय

    ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सरकार के सूचना तंत्र सेल ने आपके इस ब्लॉग को गंभीरता से लिया।

    आपको कोटिश: बधाई...!

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