विज्ञान पर भारी अंधविश्वास

 


विज्ञान पर भारी अंधविश्वास

कैसे हो कोरोना वारियर्स पर विश्वास

डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गेनइजेशन के वैज्ञानिक एवं डाक्टर्स ने कैसे एक साल के भीतर कोरोना की दवा लांच कर दी और खबर आ रही है कि वो काफी असरदार भी साबित हो रहीहै। जिन मरीजों को दवा पिलायी गयी, उनका ऑक्सीजन लेवल बढ़ गया। दूसरी तरफ देश में कुछ लोग हैं जिनका अंधविश्वास वाला इस विज्ञान के चमत्कार पर पानी फेरने में लगा हुआ है। आम आदमी किस पर करे विश्वास?


उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में कई महिलायें कोरोना माई की पूजा करती दिखाई दी। यहां एक तथाकथित बाबा के कहने से गांव के मंदिर में सैकड़ों महिलायें जमा हुई और कोरोना की पूजा करने लगीं। दरअसल बाबा ने गांव के लोगों को बताया था कि कोरोना माई की पूजा से ही यह महामारी खत्म होगी। यूपी के ही प्रतापगढ़ में कोरोना को भगाने के लिए हनुमान चालीसा का पाठ हुआ। बताया गया कि संघ के आह्वान पर सुबह 11 बजे तक 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ किया गया ताकि इस महामारी से निजात मिल सके। पाली (राजस्थान) के गोडवाड़ में आदिवासी क्षेत्र की बाली पंचायत समिति है जिसमें 13 ग्राम पंचायत है जहां 18 साल से ज्यादा उम्र के 50 हजार से अधिक लोग हैं। लेकिन अभी तक यहां महज 100 लोगों ने वैक्सीन लगवायी है। इसका कारण यह है कि इन आदिवासी क्षेत्रों में अफवाह फैला दी गयी है कि टीका लगवाने के बाद लोग विकलांग हो सकते हैं। औरतों में बांझपन की समस्या आ सकती है और यहां तक अफवाह फैलायी गयी कि मौत भी हो सकती है। मध्य प्रदेश के राजगढ़ में एक ट्रॉली में हवन कुंड बनाया गया, उसमें आहुति देते हुए पूरे इलाके में उसे घुमाया गया। ऐसा करने वालों का तर्क है कि हवन के धुएं से वायुमंडल शुद्ध होगा और कोरोना का वायरस मर जायेगा। राजगढ़ के सर्राफा एसोसियेशन ने इसका आयोजन करवाया। एसोसियेशन के अध्यक्ष निलेश सोनी के मुताबिक हवन कुंड में कई औषधियों का उपयोग किया गया जिससे वायुमंडल में मौजूद कीटाणुओं का नाश होगा। हरियाणा के झज्जर में भी कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने हवन का आयोजन किया। बजरंग दल के प्रांत संयोजक विकास त्यागी का दावा है कि ऐसा करने से कोरोना को मात दी जा सकती है। उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले के गौनरिया गांव में लोगों ने कोरोना को मात देने के लिए पूजा शुरू कर दी, 9 दिनों के पूजा अनुष्ठान में गांव की सभी महिलाएं और पुरुष बाहर खेतों में उगते सूरज और डूबते सूरज को अघ्र्य देकर महामारी से निजात पाने के लिए प्रार्थना कर रहे हैं। कानपुर के एक सरकारी अस्पताल में दो महिलायें मरीज के सामने मंत्रों का जाप कर रही है, दावा है कि ऐसा करने से उनकी तबीयत ठीक हो जायेगी।

अंधविश्वास न केवल अशिक्षित एवं निम्न आय वर्ग के लोगों में देखने को मिलता है बल्कि शिक्षित, विद्वान, अपने को बुद्धिजीवी कहने वाले एवं उच्च आय वर्ग के लोग भी इस मानसिकता से संक्रमित रहते हैं। हमारे नेतागण शिक्षा और विज्ञान की बात जरूर करते हैं, स्कूल-कॉलेज के अनुष्ठानों में शिक्ष के प्रसार और विज्ञान पर लेक्चर देते हैं किन्तु वे स्वयं दकियानूसी अंधविश्वास और कई तरह के टोटकों का शिकार होते हैं। कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा ने दुष्टात्माओं से मुक्ति के लिए कई बार ऐसे कर्मकांडों को आजमाया था जो उनकी जगहंसाई का कारण बना। वास्तुदोष के भ्रम के चलते एक राज्य के मुख्यमंत्री ने विधानसभा भवन कक्ष में तोडफ़ोड़ करायी थी।

देश इस वक्त कोरोना की दूसरी लहर का सामना कर रहा है, हर ओर मातम है। लोग बीमार पड़ रहे हैं, हजारों की संख्या में मौतें दर्ज हो रही हैं। महामारी का सामना करने के लिए देश के डॉक्टर या वारियर्स दिन-रात एक किये हुए हैं और वैक्सीन का काम भी जारी है। इन सबके बीच कोरोना के खिलाफ इस लड़ाई में देश के अलग-अलग हिस्सों में अंधविश्वास भी दिखाई दे रहा है। लोग कहीं हवन कर रहे हैं कहीं धूनी रमा रहे हैं। कोई गोबर के लेप को कोरोना की रामबाण दवा बताकर सीधे सादे लोगों को भ्रमित कर रहा है।

आज अनगिनत उपकरण व डिवाइस हमारे दैनिक जीवन के अंग बन चुके हैं परन्तु यह कैसी विडम्बना है कि एक तरफ तो हम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होने वाली खोजों का भरपूर लाभ उठा रहे हैं मगर दूसरी तरफ कुरीतियों, मिथकों, रूढिय़ों, अंधविश्वासों एवं पाखंडों ने भी हमारे जीवन और समाज में जगह बना रखी हैं। कैसी विडम्बना है कि हमारे देश के अंतरिक्ष वैज्ञानिक किसी भी मिशन का अंतरिक्ष प्रक्षेपण करने से पहले इसकी सफलता के लिए आंध्र प्रदेश के तिरुपति बालाजी  मंदिर में पूजा-अर्चना करना नहीं भूलते बल्कि बड़ा मिशन होता है तो उसके प्रक्षेपण से पहले उपग्रह के पुतले को बालाजी ले जाकर आशीर्वाद प्राप्त करवाते हैं। मंगलयान की शानदार सफलता हमारे कर्मठ वैज्ञानिकों की काबिलियत का ही कमाल था, मगर यह वही मंगलयान था जिसके प्रक्षेपण से पहले इसरो के तत्कालीन अध्यक्ष के. राधाकृष्णम ने इसकी सफलता के लिए तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर में पूजा-अर्चना की थी। आज डाक्टरेट की डिग्री प्राप्त ऐसे भी तथाकथित वैज्ञानिक भी मिल जायेंगे जो आपको रामराज्य की सटीक तिथि भी बता देंगे।

वैज्ञानिक ²ष्टिकोण हमारे अंदर अन्वेषण की प्रवृत्ति विकसित करती है तथा विवेकपूर्ण निर्णय लेने में सहायता करती है। विज्ञान को प्रमाण चाहिये। वैज्ञानिक ²ष्टि के महत्व को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1946 में अपनी पुस्तक ''डिस्कवरी ऑफ इंडियाÓÓ में विचारार्थ प्रस्तुत किया था। वैज्ञानिक ²ष्टिकोण दैनिक जीवन की प्रत्येक घटना के बारे में हमारी सामान्य समझ विकसित करती है।

दकियानूसी, आधारहीन मान्यताएं एवं अंधविश्वास का सबसे अधिक खामियाजा गरीब एवं अनपढ़ लोगों को भुगतना पड़ता है। टोटकेबाज एवं स्वयम्भू हकीमों के चलते विज्ञान के माध्यम से अर्जित तकनीक एवं इलाज का लाभ गरीबों को नहीं मिल पाता। वे हमेशा की तरह अंधकार में रहते हैं एवं जीवन के बोझ को ढोते-ढोते मर जाते हैं।

सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं विज्ञान से जुड़े कर्मियों को दो मोर्चे पर लाना पड़ रहा है। एक तरफ चिकित्सा महंगी होने के कारण सर्वसाधारण को उपलब्ध नहीं हो पाती जिसके परिणामस्वरूप साधनहीन लोग मर-मर के जीते हैं। दूसरी तरफ चिकित्सा कराने की बजाय गरीब मंत्र फूंकने वाले या झाडफ़ूंक कर बीमारी को भगाने वाले तथाकथित बाबाओं के चक्कर में पड़कर वह जीवन की आहुति देने के लिये बाध्य हो जाता है। कोरोना संक्रमित होकर उत्तर प्रदेश के चार मंत्रियों ने अपनी जान गंवा दी। उसी उत्तर प्रदेश में कोरोना का इलाज पॉकेट में रखकर कई तथाकथित बैद्यराज घूम रहे हैं। जरा सोचिये जिस वक्त पूरे हिन्दुस्तान ने वैज्ञानिक और डॉक्टर के दम पर दुनिया में पहचान बनायी है, कोरोना पर विजय के लिए दवा और वैक्सीन बनायी, उस देश के लोग अगर अंधविश्वास और अफवाहों के चक्कर में पड़ जायेंगे तो इस युद्ध को हम सब आगे कैसे ले जायेंगे।

Comments

  1. 'रविवारीय चिंतन' कॉलम में जो विचार व्यक्त किए गए हैं पूर्णतः सत्य है। हमारी भारतीय जनता इतनी भोली है कि सहजता से किसी के भी झांसेबाज बाबाओं के चक्कर में पड़ जाती है, तथा जब अपने घर परिवार पर मुसीबत आई हो इंसान सभी ज्ञान विज्ञान की शिक्षा को भूलकर कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। वैज्ञानिक शिक्षा का प्रचार प्रसार किया जाना अत्यंत आवश्यक है।

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  2. आपका लेख सराहनीय है। एक तरफ आपने दकियानूसी एंव अंध विश्वास का विरोध कर अपनी चिंता जताई है और दूसरी तरफ आप सरकार के प्रयासों का साथ देने के लिए प्रेरित किया है। परंतु यह भी सत्य है कि इस वैज्ञानिक युग की ही देन है ये कोरोना की महामारी। चाहे प्रकृति से छेडछाड के कारण या किसी युद्ध निति के कारण। तो फिर क्या हमें अपने वेद उपनिशदों की शिक्षा की उन्मुख होना गलत है। माना यह आंशिक ईलाज कितना प्रभावी है, यह जानना मुश्किल है। हवन, गोबर, गौमूत्र के अच्छे प्रभाव अब जग जाहिर है। और हमें हर चीज की सर्टिफिकेट पश्चिमी देशों से ही क्यों चाहिए

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  3. बहुत सही आकलन किया है, आप ने। देश की स्थिति का एकदम यथार्थ चित्रण, विज्ञान पर अंधविश्वास हावी है। अभी भी सैकड़ों लोग दिशा निर्देशों को ताक पर रख कर बिना मास्क के घूमते फिरते हैं। और झाड़ फूंक, मंत्र तंत्र पर तो साधारण जनता ही नहीं पढ़े लिखे डिग्रीधारी लोग भी विश्वास करते देखे ही जाते हैं। कोई गोमूत्र को रामबाण दवा बताता है तो कोई हवन के धुंए से इसे भगाने की जुगत लगाता है। न जाने हमारे देश के नागरिक कब सचेत होंगे।

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  4. बहुत अच्छा लगा पढ़कर , जागरूकता पूर्ण। ये लेख पढ़ने के बाद शायद लोगों की आँखें खुले, अशिक्षित का तो पता नहीं पर शिक्षितों पर कुछ तो असर करे।

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  5. अच्छा चिंतन अच्छे विचार किन्तु यज्ञ की महत्ता को कम नहीं किया जा सकता , कुल मिला कर लेख उत्तम है

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  6. बहुत ही अच्छा लेख है, मनुष्य को विज्ञान के प्रति जागरूकता और अंधविश्वास के प्रति सचेत एवं अपने सामान्य बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए|

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  7. लेख सचमूच मे सुन्दर है। सरकार के प्रयासों का साथ देने के लिए सांसद, बिधायक, जिला परिषद सदस्य व्लाक प्रमुख प्रधान सदस्य बी डी सी को कोविड '19 से मृत्यु प्राप्त लोगो के आश्रितों को सरकारी सहायता और अनुदान दिलवाने हेतु प्रेरित करना चाहिए

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  8. यथार्थ को आपने हूबहू उतार दिया है। इससे कैसे निपटा जाये।

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  9. बहुत प्रेरक लेख हैआपका।आज के इस कठिन समय में जागरूकता बहुत आवश्यक है ।सही कहा आपने कि आज शिक्षित वर्ग अधिक अंधविश्वास के अंधे कुएँ में डुबकी लगा रहा है ।यहां तक कि तान्त्रिक रिश्तों की दूरियों बनवा रहे हैं ।हाल ही में बहन -भाई के रिश्तों में दरार पड़ गई जिसे यह कर कि--तुम्हारी बहन ने तुम कोई जादू टोने करवा दिया है ।यह एक बार भी नहीं सोचा कि मेरी प्यारी बहना कैसे मेरा बुरा सोच सकती है ।बस,टूट गये रिश्ते प्यार भरे,एक क्षण में ।प्रार्थना शांति प्रदान करती है किन्तु जादू टोने,बच्चो की बलि,लाखों की राशि हवन इत्यादि में लगाकर भी
    व्यक्ति का नहीं बचना,कम से कम शिक्षित वर्ग को तो अपनी बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए ।यहां तक कि शिक्षित वर्ग के धुरंधर भाषण देते समय बङे आधुनिक विचार पेश करते हैं,वे ही अपने घरों में अंध विश्वास से घिरे हुए हैं ,जो समाज में स्वयं उदाहरण है ।

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