क्या बंद अस्पतालों के ताले अब कभी नहीं खुलेंगे?

 क्या बंद अस्पतालों के ताले अब कभी नहीं खुलेंगे?

कोविड-संक्रमण के बाद जिस प्रकार लोगों की मौतें हो रही हैं इससे पता लगता है कि हमारा स्वास्थ्य प्रबंधन कितना लचर है। हम बेड की कमी को रोते हैं, सरकार एवं निजी अस्पतालों में जहां जगह मिलती है बेड लगाये जा रहे हैं। कोरोना संक्रमण से पहले भी अगर सरकारी अस्पताल, मेडिकल कॉलेज जाने का अगर आपको मौका मिला हो तो आपने अवश्य देखा होगा कि अस्पताल के बरामदों में सीढिय़ों के पास, लॉबी में रोगी लावारिशों की तरह पड़े दिखाई दिये होंगे। अस्पतालों में बेड पाने के लिए उतनी ही मशक्कत करनी होती है जितनी स्कूल या कॉलेज में एडमिशन के लिये या फिर पढ़े-लिखे डिग्री होल्डरों को नौकरी के लिये। देश की आजादी के लगभग 75 वर्ष में हम लोगों को मूलभूत सुविधायें भी मुहैया नहीं करा पाये हैं। चिकित्सा, शिक्षा एवं सामाजिक सुरक्षा ये तीन आधारभूत जरूरतों को पूरा करने के लिये आम आदमी की कमर टूट जाती है। लेकिन न स्कूल की व्यवस्था है न अस्पताल की। शहर में बैठकर हम इसका अंदाजा नहीं लगा सकते गांव देहात में जाकर देखिये किस प्रकार गरीब बच्चे इधर-उधर गलियों में धूल फांकते हैं। भारत की सही तस्वीर देखनी है तो किसी ग्रामीण अस्पताल, यहां तक जिला अस्पताल में जाकर देखिये। मरीज किस तरह भगवान भरोसे छोड़ दिये जाते हैं रोगियों के आत्मीय जन ही बता पायेंगे।



स्ट्रैंड रोड पर मेयो अस्पताल का बंद गेट।

कभी कलकत्ता चिकित्सा के मामले में भारत में सबसे अग्रणी था। सिर्फ अस्पतालों की व्यवस्था ही नहीं बल्कि कलकत्ता में एक से बढ़कर एक डॉक्टर थे एवं वे कम से कम फीस में रोगियों का सही इलाज करते थे। सारे हिन्दुस्तान से लोग इलाज के लिये कलकत्ता आते थे। मुख्यमंत्री होने के बावजूद डा. विधानचन्द्र राय प्रतिदिन सुबह दो घंटे रोगियों को फ्री देखते थे। इसी तरह और भी डॉक्टर थे। मारवाड़ी समाज के कई दानवीर उदारमना सज्जनों ने अस्पतालों की शृंखला शुरू की। इनमें कई अस्पताल आज बंद पड़े हैं। कहीं दस वर्ष से कहीं पच्चीस-पचास वर्षों से ताला लटक रहा है। वहां लोगों ने अपने घर बना लिये हैं। कई कार्पोरेट कम्पनियों ने अस्पतालों का निर्माण जरूर किया जहां गरीब या मध्यम श्रेणी के लिए इलाज दिवास्वप्न है। साधन सम्पन्न लोग ही वहां चिकित्सा सेवा ले सकते हैं। लेकिन जो कम पैसे में इलाज करते थे उनके बंद दरवाजों पर जंग लग गयी है। मसलन स्ट्रैंड रोड में मेयो अस्पताल। 50 वर्षों से अधिक समय से यह बंद पड़ा है। कलकत्ता के पश्चिमी भाग में श्रमिकों के इस इलाके (आलू पोस्ता क्षेत्र) में अब कोई अस्पताल नहीं है। महर्षि देवेन्द्र रोड या आलू पोस्ता में किसी को गम्भीर चोट आ जाये तो वह कहां जायेगा? पास ही पोस्ता क्षेत्र में एक निजी अस्पताल था आशाराम भिवानीवाला अस्पताल। वह दस वर्षों से बंद है। उसे खोलने की कोई चेष्टा सरकार या समाज सेवियों द्वारा नहीं की गयी। गणेश टॉकीज के पास लोहिया मातृ सेवा सदन एक विख्यात मैटर्निटी होम था। उसके प्रबंधकों ने सोचा इतनी बड़ी प्रोपर्टी को अगर डेवलप किया जाये तो करोड़ों रुपये कमाये जा सकते हैं। उन्होंने एक तरकीब सोची और फिर अफवाह फैलायी गयी कि अस्पताल में भूत है। तरह-तरह की मनगढ़ंत अफवाहें फैलायी गयी। परिणामस्वरूप एक बेहद चलने वाला अस्पताल सुनसान हो गया जिसमें डेलीवरी केस आने बन्द हो गये। एक सुप्रसिद्ध बड़ी कार्पोरेट कम्पनी के इसे खरीद कर एक आधुनिक अस्पताल बनाने की बात आयी पर किसी कारण से उस कम्पनी ने भी हाथ खींच लिया और अब अस्पताल कई वर्षों से खाली पड़ा है। लगभग 50 क_े जमीन पर फैला हुआ शहर के बीच अस्पताल चिकित्सा और स्वास्थ्य के प्रति हमारी संवेदनहीनता का जीता-जागता उदाहरण है। डलहौजी क्षेत्र के पोलक स्ट्रीट में एक गुजराती अस्पताल था। नाम था गुजराती रिलीफ सोसाइटी। वह कुछ वर्षों से बंद है। बताया गया कि पांच वर्ष पूर्व उसे बेच दिया गया। अब वहां गोदाम खुल गये हैं। पता नहीं एक छोटा सा अस्पताल हमारे गुजराती भाई क्यों नहीं चला पाये? गुजराती देश चला रहे हैं पर एक छोटा सा चिकित्सा केन्द्र उनसे क्यों नहीं चल पाया? अगर हरीसन रोड (महात्मा गांधी रोड का पुराना नाम) पर 40-50 की दशक तक चल रहा हरलालका अस्पताल की बात करूं तो आप कहेंगे क्यों गड़े मुर्दे उखाड़ रहे हैं। इस अस्पताल का नाम इतिहास के पन्नों में सिमट चुका है। अस्पताल में दुकानें खुल गयी हैं। अस्पताल का साइनबोर्ड भी कई दशकों से गायब है।
हावड़ा आप जानते हैं एक औद्योगिक नगरी है। 50-60 की दशक तक हावड़ा नगर आबाद था। हर सौ गज की दूरी पर चिमनियों से धुआं निकलता था। छोटे-बड़े कारखाने बंद हो गये। कई कारखानों को बंद कर हाउसिंह इस्टेट बना दिये गये। लेकिन यहां एक बड़ा अस्पताल भी था। उसका नाम था हनुमान हॉस्पिटल। त्रेता युग में रामभक्त हनुमान जी ने हिमालय की शृंखला से सुमेरू पर्वत पर उगने वाली दुर्लभ संजीवनी जड़ी-बूटी लाकर मूर्छित लक्ष्मण को नया जीवन दिया। करोड़ों हिन्दुओं की आस्था के केन्द्र हनुमान के नाम पर बना अस्पताल विगत लगभग पैंतीस वर्षों से बंद है। कुप्रबंधन के कारण यह अस्पताल बंद हो गया था। दो-एक बार अस्पताल को खाली कराने का प्रयास किया गया पर बात नहीं बनी। अस्पताल के आसपास कई आवासीय इस्टेट बन गये। दो-तीन हजार फ्लैट बना कर बेच दिये गये पर आम आदमी की चिकित्सा करने के लिये खोला गया 80 बेड वाला हनुमान अस्पताल बंद पड़ा है।
मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी एक सौ वर्ष पुराना अस्पताल है एवं मारवाड़ी समाज बिना किसी सरकारी मदद के इस अस्पताल को चला रहा है। अस्पताल के मुख्य भवन के सामने एक शिशु अस्पताल खोलने की बात हुई थी। सोसाइटी के कुछ विभाग वहां काम कर रहे हैं पर शिशु अस्पताल की योजना की भ्रूण हत्या बहुत पहले ही कर दी गयी थी। सोसाइटी अस्पताल भवन के बगले में कई दशकों की कानून जंग के बाद वह जगह सोसाइटी को मिल गयी। किन्तु सोसाइटी अस्पताल का प्रसार नहीं हो पाया।
अस्पताल में लटकते हुए तालों में कुछ का हमने जिक्र किया। अब सोचिये वृहत्तर बड़ाबाजार एवं हावड़ा की जनसंख्या में विगत पचास वर्षों में दस गुनी वृद्धि हो गयी किन्तु नये अस्पताल खुलना तो दूर जो थे वे भी बन्द हो गये। क्या सरकार एवं समाजसेवी इस शर्मनाक स्थिति पर कुछ सोचेंगे?



Comments

  1. May be govt. will open school shortly.
    But management should be well.

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  3. Sarkar se kahenge to unke pass in kaamo ke liye operational fund Nahi h.
    Kuch sanstha & dharmik log aaj bhi hai
    Kintu pradeshik mansikta " Marwari funding Vs Bengali funding - ( non Bengali specially marwari ke pass paisa bahut faultu para h ) Iss Soch ki wajah se chup h.
    Abb aap Jaise senior journalist ki jarurat h jinhe har Tarah Ka anubhav h.
    Sarkar ko samjhaye aur unse aaswasan dilaye ki unhe ab koi bhi local political reservation aur interruption Ka saamna Nahi Karna hoga tabhi log fir se saamne aayenge . Agar doctor & staff par nakami Ka action Lagaya jaata h to koi bhi pressure ya interruption Nahi aayega saamne
    Thanks bahut behatrein mudda uthane ke liye .
    Aapke Saath khare h sab industrialist & vyapari .Aap aage badho

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  4. Ek mudda aur uthaye Apne blog mei

    HOWRAH junction railway station par Bani liquor shop ke baare me .
    Barricade laga Kar sabhi ko waha se pass Karne ke liye badhya Karna.
    Waise liquor shop ke liye koi niyam bhi tha ki social place etc etc

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  5. Kiya wb me Toto riders ke liye koi jagah nahi hai kya

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  6. इस सरकारी तंत्र और लाचार ब्यवस्था को दुरुस्त करना अब दूर की खीर हो गई है।क्यो की आज के समय मे लालची आदमखोर उस मांशभक्षी गिद्ध से भी ज्यादा खतरनाख हो गये है,जो मरे जानवर को खाते थे मतलब समाज और पर्यावरण को सुरक्छित रखने के लिए कृत कार्य करते थे। परन्तु जो आज का लालची समाज है जो अपने स्वार्थ के लिए जीते जी जोगो का गोश्त नोच रहे है और उनके स्वस्थ के साथ खिलवाड़ कर रहे है।अगर समाज को सुरक्षित और स्वस्थ रखने है तो अपने सोचने का तरीका बदलना होगा।।

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  7. First remove all reservation policy and provide help to backward classes. Second make two child policy. Third uniform civil code. Fourth priority to local people in employment. Only two political party system .

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  8. First remove all reservation policy and provide help to backward classes. Second make two child policy. Third uniform civil code. Fourth priority to local people in employment. Only two political party system .

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