कोरोना काल परीक्षा की यही है घड़ी
कोरोना को लेकर पूरे देश में जिस तरह अफरातफरी मची हुई है, वैसे पहले कभी नहीं हुआ। प्लेग फैलने की घटना कभी अतीत में कलकत्ता में हुई थी। शहर खाली हो गया। कहते हैं ग्रैंड होटल की जगह उसी वक्त ओबराय साहब ने पांच हजार रुपये में खरीदी थी जो प्रापर्टी आज पांच सौ करोड़ से अधिक की है। बीस वर्ष पहले सूरत (गुजरात) में प्लेग फैला। सूरत शहर से मजदूरों का पलायन हुआ। लोगों को संकट का सामना करना पड़ा। किन्तु प्लेग फैलना सूरत के लिए वरदान साबित हुआ। शहर का काया पलट हो गया। कोविड या कोरोना ने अभूतपूर्व संकट ला खड़ा कर दिया है। अस्पतालों की कमी है, अस्पताल में बेड नहीं हैं। सांस लेने के लिए ऑक्सीजन का संकट है। डाक्टर मरीज को कहते हैं कि भर्ती होना है तो अपना ऑक्सीजन साथ लेकर आओ। मरीज परेशान-उसके घर वाले ज्यादा परेशान। टीवी पर देखा ऑक्सीजन नहीं मिला तो परिजन मरीज के सीने को दबाकर सांस दिलाने की चेष्टा कर रहे हैं, देखकर दिल पसीज गया। इस संकट के समय भी ऑक्सीजन की कालाबाजारी की रिपोर्ट भी मिल रही है।
कोरोना की दूसरी लहर को बहुत हद तक सम्हाला जा सकता था अगर सरकार सजग रहती। किन्तु अमेरिका, इंग्लैंड में जब दूसरी लहर शुरू हुई तो हमारे कान खड़े होने की बजाय हमारे राजनीतिक आला कमान चुनाव की रैलियों में व्यस्त देखे गये। हमने सिनेमा हाल, स्कूल, सामाजिकता पर तो अंकुश लगा दिया, कुंभ मेले का भी बीच में ही अवसान कर दिया पर चुनाव की सभाओं में हजारों की भीड़ को इकट्ठा करने से परहेज नहीं किया। रोड शो में ट्रकों में खड़े होकर नेताओं ने वोटरों का अभिवादन किया पर यह भूल गये कि संक्रमण फैलेगा तो इसी भीड़ में हाथ हिलाने वाले लोग अस्पताल में बेड के लिए दर दर भटकेंगे। इसी चक्कर मे कई केन्द्रीय एवं प्रांतीय नेता भी कोरोना की चपेट में आ गये। प. बंगाल में दो प्रार्थियों के प्राण चले गये। कई नामधारी नेताओं को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। प. बंगाल में आठ चरणों के चुनाव को 'सोर्ट आउटÓ किया जा सकता था पर चुनाव आयोग ने इसे असंवैधानिक बताकर टाल दिया जबकि संविधान में विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने के पूर्व चुनाव कराने का प्रावधान है पर यह कहीं नहीं लिखा कि मतदान कितने चरणों में होगा। चुनाव चरणों को कम करने में नुकसान की आशंका से कोरोना संक्रमण फैलने के खतरे को ताक पर रख कर निर्वाचन की तारीखों को जस का तस रखा गया। चुनावी हवा को भांपकर जब प्रधानमंत्री ने रैलियां नहीं करने का ऐलान किया तो चुनाव आयोग भी हरकत में आ गया और रैलियां व रोड शो पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर दी। इसी से पता लग जाता है कि आयोग किसके इशारे पर काम कर रहा है?
इधर वैक्सीन जब स्वास्थ्य कर्मियों को लगाया जा रहा था, उस वक्त कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने केन्द्र से टीकाकरण के भावी कार्यक्रमों एवं दाम को तय करने की आवाज उठाई। पूछा गया था कि शेष करोड़ों लोगों को टीका फ्री लगेगा या कीमत चुकानी होगी। इन सब प्रश्नों को निरुत्तर रखा गया। चुनाव में जा रहे बिहार में प्रधानमंत्री ने फ्री वैक्सीन देने की घोषणा की थी। वैक्सीन के प्राईवेट अस्पताल में अलग, सरकारी अस्पताल में अलग दामों पर भी प्रश्न उठाया गया। एक राष्ट्र, एक झंडा, एक कानून की वकालत करने वाले यह नहीं बता पाये कि जीवन रक्षक वैकसीन के अलग-अलग दाम क्यों रखे। लोगों ने समझा कि वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों ने दाम बढ़ा दिया है। किन्तु सच्चाई यह हैं कि यह निर्णय सरकार का है।
ऑक्सीजन की कमी ने तो लोगों को रुला दिया। ऑक्सीजन सभी बड़े उद्योगों की जरूरत है। कोविड संकट से गुजरते एक वर्ष से अधिक हो गया। किन्तु ऑक्सीजन की आवश्यकता को क्यों नहीं भंापा गया? कोरोना वायरस संक्रमण के मामले में इस वक्त भारत की स्थिति दुनिया में सबसे खराब है। मुश्किल वक्त में जब भारत ने अमेरिका का रुख किया तो उसने भी मदद करने से इनकार कर दिया। बाइडन प्रशासन ने साफ कर दिया है कि उनका पहला दायित्व अमेरिकी लोगों की आवश्यकता का ध्याना रखना है। क्या विडम्बना है कि लोकतांत्रिक देश भारत में जो काम संसद को करना होता है वह सर्वोच्च न्यायालय कर रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार को आदेश दिया है कि वह उसे एक राष्ट्रीय नीति तुरंत बनाकर दे जो कोरोना से लड़ सके। मरीजों को ऑक्सीजन, इंजेक्शन, दवाइयां आदि समय पर उपलब्ध करवाने की वह व्यवस्था करे। जाहिर है न्यायपालिका को यह इसलिए करना पड़ा क्योंकि रोगियों को न दवा मिल पड़ रही है न ऑक्सीजन, न शैया। बेबस लोग दम तोड़ रहे हैं। टीवी चैनेलों पर श्मशान घाटों और कब्रिस्तानों में लगी लाशों की भीड़ को देखकर छाती फटने लगती है। मौत मंडरा रही है लेकिन कुछ लोग कालाबाजारी भी कर रहे हैं।
होना तो यह चाहिये था कि कोरोना का टीका और इसका इलाज मुफ्त किया जाता। बजट में जो चिकित्सा हेतु राशि निर्धारित की गई थी एवं प्रधानमंत्री केयर फंड में जो अरबों रुपये जमा हैं वे कब काम आएंगे? निजी अस्पताल अगर दो चार महीने कमाई नहीं करेंगे तो बंद नहीं हो जाऐंगे। भारत को दूसरे देशों के सामने दवाइयों के लिए झोली पसारनी पड़ रही है। चीन ने तो हिन्दुस्तान को दवाइयां दान देने की पहल कर ही दी है। यह परीक्षा की घड़ी है। सभी राजनीतिक दल एवं शासक दल के करोड़ों कार्यकर्ता मैदान में आयें एवं आफत में फंसे लोगों की मदद करें।

My dear brother jaantay to sabhi neta hai yeh baatain magar phir POWER koi chodna nahi chahta iskay liya kya JAWAN kya KISAN kya JANTA JANARDAN chahay kisi ki bali dayni paday magar POWER of RULING nahi janay daytay
ReplyDeleteHum sab desh k logon ko jagruk hona parega..... Kahan gaye woh log jo candle march nikala karte thy.....
ReplyDeleteरविवारीय चिंतन हकीकत के आईने में हकीकत को दिखाने जैसा है आज कोरोना की वैश्विक महामारी के चलते चारों तरफ अफरा-तफरी का माहौल है आम नागरिक अपनी जान बचाने के लिए अस्पताल की तरफ दौड़ा चला जा रहा है लेकिन वहां पर भी कोई सुकून नहीं है कहीं ऑक्सीजन की कमी कहीं दवाई की कमी तो कहीं कालाबाजारी और भ्रष्टाचार के चलते जीवन संघर्ष करता हुआ दिखाई दे रहा है वर्तमान हालातों को देखते हुए सरकार को जीवन रक्षक दवाइयों में छूट देकर आम नागरिकों की जान बचाने के लिए युद्ध स्तर पर कार्रवाई करना चाहिए और जो जीवन रक्षक दवाइयों का घोटाला कर रहा है कालाबाजारी कर रहा है उन्हें सीधे सीधे फांसी के तख्ते पर पहुंचाया जाए कोरोना की महा बीमारी के चलते आर्थिक रूप से बहुत परेशानी का सामना करना पड़ रहा हैं कोरोना की इस भयावह लहर ने चिंता के कई द्वार खोल दिए गए हैं इस डर और भय के माहौल में आम नागरिकों का जीना दुश्वार सा हो गया है श्मशान घाट पर लाशों की कतारें इस बात को इंगित करती है कि आम नागरिक को की जान की परवाह किसी राजनीति दल को नहीं है बल्कि उन्हें तो बस अपने राजनीतिक स्वार्थ को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है चाहे वह बंगाल का चुनाव हो या दक्षिण भारत का चुनाव ही क्यों ना हो ऐसे हालात में नेता लोग अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने में कतई पीछे नहीं हट रहे हैं महा संकट की इस घड़ी में आम नागरिक ही अपने बलबूते पर संघर्ष करता हुआ दिखाई दे रहा है
ReplyDeleteप्रकाश हेमावत टाटा नगर रतलाम मध्य प्रदेश 93015 43440
उक्त विचार प्रकाशन के योग्य हैं उन्हें प्रकाशित किया जाए पत्र संपादक के नाम मानते हुए
Korona se dare naa ,be strong ,chew haldi eat pineapple,orange,mango,lemom juice,avoid animal food,steam le,inhale kapur,di dhyan,yoga pranayam ,alom bilom kate,sit under sun at 6am.
ReplyDelete2.34pm
ReplyDeleteनमस्कार और धन्यवाद भी
ReplyDeleteएक और ज्वलंत मुद्दे पर कदम उठाने के लिए।
चारों तरफ चारक वंशजों की धूम मची है। वे झूम झूम कर झाल बजा रहे हैं और मालिक का गुणगान कर रहे हैं जबकि स्थिति ऐसी नहीं है। इन चारकों के आंख पर पट्टियां हैं। चाहें वे दृश्य, श्रव्य या लेखनी मीडिया से जुड़े हुए लोग हों। सबने व्यवसायिकता में घुले हुए लाभ का भांग पी रखा है। आपने साहस किया, आप साधुवाद के पात्र हैं।
कटु सत्य यह है कि चारों तरफ आपदा में अवसर तलाशे जा रहे हैं। डर का माहौल पैदा किया जा रहा है। रोग और संक्रमण का भय तो है किंतु अपने अपने नजरिए से रोकथाम का प्रबंधन दिखलाया जा रहा है। गाय की देह नहीं, बल्कि उसकी थन निहारी जा रही है।
आपको विशेष धन्यवाद इसलिए कि वर्तमान माहौल में आपने अपने कलम को कागज पर चलाया। आम आदमी की अभिव्यक्ति का माध्यम होना भी एक सौभाग्य है।
आपको कोटि कोटि प्रणाम्.!
अमर तिवारी
वर्तमान स्थिति को देखते हुए, मास्क पहनना समय की आवश्यकता है। आज 3.5 लाख मामले आ रहे हैं और मृत्यु दर खतरनाक है अगर हम अब सतर्क नहीं हुए तो वह दिन दूर नहीं जब कोई भी जीवित नहीं रहेगा और यह पृथ्वी जानवरों के लिए एकमात्र स्थान बन जाएगी।
ReplyDeleteप्रणाम मान्यवर
ReplyDeleteसही कहा आपने,यह परीक्षा की ही घडी है। परीक्षा हैं मनुष्यता की, परोपकार की।देखना यह है कि हमारे अन्दर मनुष्यता कितनी है,है भी या पूर्णतः खत्म हो गई है महामारी न जाने कब हमारे दरवाजे पर दस्तक दे दे,डरे सहमे से लोग हर पल गुजार रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में भी लोग कालाबाजारी कर रहे हैं, लोगों की मज़बूरी का फायदा उठाने से नहीं चुक रहे हैं। कुछ डाॅ. भी अपनी फीस दुगनी ले रहे है तो कहीं एम्बुलेंस वाले अघिक किराया ले रहे हैं। पैसा बटोरने में लगे हुए हैं,कौन समझाए इन अक्ल के दुश्मनों को कि जहाँ जीवन ही संकट में घिरा है वहाँ ये धन की लालच से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं। ऐसी भयंकर परिस्थिति में भी ऐसे लोगों की आत्मा झकझोर नहीं रही है। वोट बटोरने के लिए सभा करने वाले नेतागण चुनाव का फ़ैसला आने तक कोरोना से प्रभावित हुए बिना कितना बच पाएंगे ये तो वो भी नहीं जानते। मनुष्य की जान से भी बढ़कर चुनाव का प्रचार-प्रसार था।क्या हो गया है लोगों को,भावशून्य-चेतनाशून्य क्यों हो गये हैं।
यह समय है एक- दूसरें की यथासम्भव मदद करने का,साथ देने का, महामारी से लड़ने का,मानवता की कसौटी पर खरे उतरते का।
Thanks to newarji. You spoke so so perfect. We should not be afraid of Corona, we should fight with it. We should always maintain the precautions. Stay happy and healthy. Thanks again to Newarji for sharing your thoughts with me. Thanks 😊
ReplyDeleteRegards,
Tapashi Bose
New India banaya gaya hospital say jyda mandir ka importance diya gaya jaisreeram bolo SAB dur
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