बोलने की आज़ादी का अर्ध सत्य

बोलने की आज़ादी का अर्ध सत्य

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला के खिलाफ दायर याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने न केवल खारिज कर दिया, बल्कि याचिकाकर्ता पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। याचिका में मांग की गयी थी कि अनुच्छेद 370 को लेकर अब्दुल्ला ने जो टिप्पणी की है, वह देशद्रोह है, इसलिए उनके खिलाफ कार्रवाई की जाये। गौर करने की बात है, न्यायामूर्ति संजय किशन कौल और हेमन्त गुप्ता की पीठ ने इस याचिका को सुनवाई लायक भी नहीं माना था। जिस देश में करोड़ों मामले अदालतों में लंबित है, वहां किसी अदालत के समय को ऐसे बर्बाद करने की गुस्ताखी से पहले देश के बारे में जरूर सोच लेना चाहिए। किसी भी सभ्य देश के नागरिक समाज को ही नहीं बल्कि सरकारों को भी विपरीत विचार या विरोध के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। इसी से लोकतंत्र की खूबसूरती बढ़ती है। यह देश आपातकाल के दौर को बार-बार याद करता है, क्योंकि तब भी अभिव्यक्ति को खारिज करने को अंजाम दिया गया था। भले ही बहुत देर से राहुल गांधी को आपातकाल के बारे में पूछे गये सवाल पर कहते हैं कि वाकई वह एक गलती थी, जो हुआ था, गलत हुआ था तो इसका मतलब है कि राहुल ने समझ लिया कि आपातकाल का भूत उसको कभी नहीं छोड़ेगा। 43-44 साल बाद भी आपातकाल में विचारों की आजादी की हत्या भूत बन कर कांग्रेस को डरा रहा है। यदि आपातकाल न होता तो इंदिरा गांधी और कांग्रेस का दामन आज कितना चमकदार होता, इसका अन्दाज लगाया जा सकता है। लोकतंत्र में विचारों की अभिव्यक्ति कितनी अहम है, यह बताने की जरूरत नहीं है।



फारुक अब्दुल्ला के मामले में सुप्रीम कोर्ट की नसीहत को हवा में उड़ाने की अगर कोशिश होती है तो सरकार को यह भी समझ लेना चाहिए कि किस दिन उसकी भी हवा निकल सकती है।

फिल्मकार अनुराग कश्यप और अभिनेत्री तापसी पन्नू के यहां आयकर विभाग का छापा पड़ा तो सोशल मीडिया में बड़ी दिलचस्प प्रतिक्रिया पढऩे को मिली। किसी ने लिखा- आप बोलने के लिए आजाद हैं, लेकिन उसके बाद आपको किसी किस्म की आजादी नहीं है। एक दूसरे व्यक्ति ने लिखा- आपको बोलने की आजादी है पर ईडी, सीबीआई और आयकर विभाग की कार्रवाई के लिए भी तैयार रहें। यह वर्तमान भारतीय समय की ऐसी सच्चाई है जिसे दुनिया भी बहुत साफ-साफ देख रही है। तभी अमेरिकी संस्था फ्रीडम हाउस ने लोकतंत्र और आजादी को लेकर जारी की गयी अपनी ताजा रैंकिंग में भारत का स्थान नीचे कर दिया है। फ्रीडम हाऊस ने भारत को फ्री यानि आजाद मुल्क की श्रेणी से हटाकर पार्टली फ्री यानि आंशिक आजादी वाले देशों की श्रेणी में डाल दिया है। इसने 211 देशों की रैंकिंग की है, जिसमें भारत की रैंकिंग 83 से घटाकर 88 कर दी गयी है और एक सौ में से भारत को 67 अंक मिले हैं। पिछली बार भारत को 71 अंक मिले थे।

फ्रीडम हाऊस की इस रिपोर्ट से एक महीने पहले दो फरवरी को द इकोनॉमिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट ने अपना सालाना डेमोक्रेसी इंडेक्स जारी किया था। उसमें भी भारत दो स्थान नीचे गिर कर 53 स्थान पर पहुंच गया है। भारत को 10 में से 6.61 अंक मिले। पिछले साल 6.69 फीसदी अंक मिले थे और 2014 में जब भारत की स्थिति सबसे अच्छी थी तब उसे 7.92 अंक मिले थे। यानि 2014 के बाद से भारत में लोकतंत्र की स्थिति क्रमश: खस्ता होती जा रही है। द इकोनॉमिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट ने दुनिया के देशों को चार श्रेणी में बांटा है। उसने 167 देशों की सूची बनायी है, जिसमें 23 देशों को पूर्ण लोकतंत्र का दर्जा दिया है और 53 देशों को ''फ्लॉड डेमोक्रेसीÓÓ यानि खामियों वाले लोकतंत्र की श्रेणी में रखा है। भारत को इसी श्रेणी में जगह मिली है। अपने देश के लोगों के लिए खुश होने की बात यह हो सकती है कि अमेरिका, फ्रांस, बेल्जियम, ब्राजील आदि देश भी इसी श्रेणी में हैं। उसने दुनिया के 35 देशों को हाई ब्रीड मॉडल और 57 देशों को तानाशाही का मॉडल वाला बताया है। चाहे फ्रीडम हाऊस की रिपोर्ट हो या द इकोनॉमिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट का इंडेक्स हो, दोनों में भारत के बारे में कई बातें एक जैसी कही गयी हैं। दोनों ने कहा है भारत में लोकतंत्र नीचे जा रहा है और आम लोगों की आजादी पर हमले हो रहे हैं।

यह हकीकत है कि इंटरनेट की सेवा बंद करने के मामले में भारत दुनिया का नम्बर एक देश बन गया है। एक आंकड़ा तो यह भी है कि पिछले साल पूरी दुनिया में जितनी बार इंटरनेट की सेवा बंद की गयी है, उसमें 70 फीसदी मामले अकेले भारत के हैं।

इधर दिल्ली की सीमा पर देश के कई राज्यों के किसान आंदोलन पर बैठे हैं। वे केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाये गये तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं। किसानों का आंदोलन विगत पांच मार्च को एक सौ दिन पूराकर चुका है। इस दौरान पुलिस ने कई बार कानून व्यवस्था के नाम पर इंटरनेट सेवा निलंबित की या धीमी की। असल में यह नागरिकों की सुरक्षा या कानून व्यवस्था का मामला नहीं है। दरअसल एक सुविचारित सुनियोजित योजना के तहत इंटरनेट से छेड़छाड़ की जा रही है। जम्मू-कश्मीर में 370 हटाने के मामला हो या नागरिकता संशोधन कानून करने का या कृषि कानूनों के विरुद्ध किसानों का आंदोलन हर मौके पर सरकार ने इंटरनेट सेवा का इस्तेमाल लोकप्रिय विमर्श को प्रभावित करने के लिए किया। सरकार चाहती है कि इंटरनेट सेवा प्रतिबंधित करके लोग वही देखें और सुने जो सरकार दिखाना या सुनाना चाहती थी। जब इतने से भी बात नहीं बनी तो अब डिजीटल प्लेटफाम्र्स और सोशल मीडिया को नियंत्रित करने का नून लाया जा रहा है। इतनी पाबंदियों के बाद भी कोई कमलकार कुछ ऐसा लिख या बोल देता है तो सरकार उसकी स्थिति प्रबीर पुरकायस्थ, गीता हरिहरन, अनुराग कश्यप और तापसी पन्नू वाली होती है।

महात्मा गांधी ने कहा था-''मैं चाहता हूं कि मेरे कमरे के सारे दरवाजे-खिड़कियां खुली रहें ताकि उनसे दुनिया भर की हवायें मेरे कमरे में आती-जाती रहें लेकिन मेरे पांव मजबूती से मेरी धरती में गड़े हों ताकि कोई मुझे उखाड़ न ले जा सके।ÓÓ लेकिन सवाल तो उनका है जिनका अस्तित्व इसी पर टिका है कि उन्होंने अपने मन-प्राणों की हर खिड़की बंद कर रखी है ताकि कोई नयी रोशनी भीतर उतर न जाये। ये अंधकारजीवी प्राणी है।

देश में अभिव्यक्ति की आजादी या बोलने-लिखने की आजादी पर सरकारी पहरेदारी लोकतंत्र का न सिर्फ मजाक उड़ाना हुआ बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में देश के लोगों की कुर्बानी का भी मजाक है। जार्ज बर्नाड शॉ ने कहा कि मैं तुम्हारे विचारों से असहमत हो सकता हूं पर तुम्हारें बोलने की स्वतंत्रता के लिए अंतिम सांस तक लड़ूंगा।


Comments

  1. 🙏 *सोशल डिस्टेंसिंग के पालन नहीं किया तो कोरोना बढ़ सकता है-*

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  2. 🙏 *सोशल डिस्टेंसिंग के पालन नहीं किया तो कोरोना बढ़ सकता है-*

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  3. सही कहा आपने, सरकार चाहती है कि पूरे देश की जनता या तो उनके पक्ष में बोले या फिर चुप रहे। लेकिन ऐसा होना तो मुमकिन नहीं। जो बोलने वाले हैं वे बेशक बोलेंगे, गा़लि की आवाज में आवाज मिलाकर-
    "मैं भी मुँह में ज़बान रखता हूँ /काश पूछो कि मुद्दआ क्या है"
    रही बात इमरजेंसी की तो वह भारतीय इतिहास का एक काला अध्याय था ही लेकिन वर्तमान तो उससे भी अधिक भयावह है। काश! यह तस्वीर बदले..

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  4. Aap ki ray bahut galat h.Internate kya des ya samaj ke lie kabhi v kuchh v bsn karna chahie.Av jo kanun bana h jiska ss

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  5. Aap galat bole vo kanun congres rajy me hi ban jana chahie tha,par ve to galat hi chahta tha

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  6. सरकारी हठधर्मी भारत को कमजोर कर रहे हैं।

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  7. समसामयिक विषय पर अच्छा विश्लेषण। लेकीन लोकतंत्र की यह विशिष्टिता टू मच डेमोक्रेसी कही जा रही है। असहमति को कुचलने के प्रयासों को शिखर से प्रोत्साहित किया जा रहा है, इसके विरोध में स्टैंड लेकर, आवाज उठाकर आपने लोकतंत्र को मजबूती देने का काम किया है।

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  8. अभिव्यक्ति की आजादी पर सरकार के कुठाराघात से लोकतंत्र कमजोर हो रहा है।आपका लेख प्रेरणादायी ओर पठनीय है।

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