कब तक चलेगा यह क्रूर मजाक?

 कब तक चलेगा यह  क्रूर मजाक?

इस दिन मेरे आनन्द का ठिकाना नहीं रहा जब मैंने एक जूट मिल मजदूर के घर एक राष्ट्रीय पार्टी के पांच बड़े नेताओं को खाना खाते देखा। वैसे कुल मिलाकर बीस नेताओं ने वहां भोजन किया। खाने की पत्तल पर पांच प्रकार के व्यंजन हैं। नीचे माजम बिछी है। मजदूर के घर में बाहुबलियों को खाना खाते देख कम से कम एक बात के लिये हम आश्वस्त हो गये कि देश का मजदूर अब इतना सम्पन्न हो गया कि वह अपना भी पेट पालता है और बड़े नेताओं को भी भोजन वह भी ''पांच कोर्सÓÓ वाला भोजन परोस सकता है। कुछ दिन पहले दिल्ली बोर्डर के पास हजारों किसानों को भी दिखाया गया था कि वे सैंडविच, बिरयानी, पिजा, पकौड़े, रोटी और खीर जैसे महंगे व्यंजन तैयार कर रहे हैं। किसान आंदोलन विरोधियों ने यह सवाल उठाया कि हमारे किसान पांच सितारा होटल का आनन्द उठा रहे हैं फिर आन्दोलन किस बात का? किसान के एक नेता ने इस पर जवाब दिया था कि हम सबके लिये अन्न उपजाते हैं तो हम भरपेट खायें तो किसी के पेट में दर्द क्यों होता है? एक दूसरे किसान आंदोलन समर्थक ने कहा कि आंदोलन विरोधी क्या चाहते हैं कि देश का किसान कटोरा लेकर भीख मांगे। एक कहावत है ''कानी का काजल भी नहीं सुहायाÓÓ- यह इस पर चरितार्थ होता है। अरे भई पंजाब, हरियाणा का किसान है जो सम्पन्न है तभी आंदोलन को चलते तीन महीने से ऊपर हो गया और अभी इसका मध्यांतर भी नहीं हुआ। पता नहीं कब तक चलेगा। तो किसानों को खाता-पीता देख उनकी सम्पन्नता पर सवाल तो खड़े कर दिये पर मजदूर के घर पांचसितारा खाना और रहीसी परिवेश देखकर दांत तले अंगुली नहीं गयी कि एक जूट मिल में काम करने वाला मजदूर बीस नेताओं की उदरपूर्ति कर रहा है। क्या वास्तव में मजदूर इतना सम्पन्न हो गया? लॉकडाउन काल में लाखों मजदूरों को बाध्य होकर अपने गांव की ओर लौटना पड़ा। कितने ही मजदूर रास्ते में मर गये और कितने भयंकर बदहाली के शिकार हुए। ऐसी हालत में मजदूर अपने घर मोटे और तंदरुस्त मेहमानों को बुलाकर खाना खिलाये तो क्या समझा जाये? जो फोटो छपी है उसमें मजदूर कहीं नजर नहीं आ रहा। हां भोजन का आनन्द लेते हुए मेहमान जरूर दिखाई दे रहे हैं। यह क्रूर मजाक कोई एक राजनीतिक दल कर रहा है ऐसी बात नहीं। कमोबेस सभी करते हैं। कुछ महीने पूर्व एक युवा नेता किसी आदिवासी के घर जाकर रात भर रहे तो उनके नाटक की भी आलोचना हुई। एक आदिवासी के घर खाना खाकर ज्योंही नेता अपनी सरकारी गाड़ी में रुकसत हुए थोड़ी ही देर में एक टेम्पो आया और आदिवासी के घर से सोफा, टेबल, कुर्सी, आसन, पायदान उठाकर ले गया। किसी अखबार ने सामान ले जाते हुए की फोटो छापकर इस बात का पर्दाफाश कर दिया कि नेताजी के लिये डेकोरेटर के यहां से सामान आया था। उसी तरह एक और बड़े नेता ने लोक कलाकार के घर को धन्य दिया। वहां जाकर भोजन किया और चले गये। अखबारों में प्रकाशित हुआ कि हमारी लोक संस्कृति से नेताजी को बेहद प्यार है और लोक कलाकार के घर जाकर उन्होंने उस प्यार का इजहार किया। दूसरे ही दिन वही लोक कलाकार नेताजी की विरोधी पार्टी के मंच पर अपनी कलाकारी दिखाते हुए नजर आये और जिस पार्टी की सभा थी उसका झंडा थाम लिया।



जूट मिल श्रमिक देवनाथ यादव के घर पर भोजन का आनन्द लेते हुए नेतागण।


प. बंगाल के दौरे पर एक बार फिर पहुंचे अमित शाह ने यहां जोर-शोर से ममता सरकार और टीएमसी के खिलाफ हुंकार भरी। उन्होंने जय श्रीराम के नारे लगाये तो समर्थन में आये लोगों ने आकाश गूंजा दिया। इस दौरान शाह ने चुनावी ताल ठोंकते हुए कहा कि हम यहां बदलाव करने आये हैं। दोपहर में शाह दक्षिण 24 परगना जिला स्थित एक शरणार्थी के घर पहुंचे और यहां भोजन किया। दक्षिण 24 परगना जिला की अर्चना इस बात से बेहद खुश दिखीं कि उनके यहां देश के गृहमंत्री अमित शाह भोजन कर रहे हैं। उन्होंने अमित शाह को भोजन में भात, दाल, दो तरह की सब्जी, बैंगन की भजिया, पापड़, मिठाई और दही परोसा। अमित शाह के साथ भाजपा के अन्य नेता भी थे।

नहले पे दहला- बंगाल में मुफ्त मिलेगा तृणमूल के अंडा-चावल के जवाब में भाजपा का मछली-चावल : बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल-भाजपा की सियासी जंग अब थाली तक पहुंच गयी है। दरअसल तृणमूल कांग्रेस सरकार ने मां प्रोजेक्ट नाम से पांच रुपये में लोगों को अंडा-चावल की थाली परोसने का कार्यक्रम शुरू किया है। इसके जवाब में अब भाजपा ने बंगालियों का पसंदीदा मछली-चावल की थाली मुफ्त में परोसने का फैसला किया है। बताते चलें कि सत्तारुढ़ तृणमूल तीसरी बार सत्ता संभालने के लिए बेताब है। इसलिए सत्ताधारी पार्टी एक के बाद एक मास्टर स्ट्रोक का इस्तेमाल कर रहीहै। इस कड़ी में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गरीबों के लिए मां परियोजना शुरू की है। इसके अन्तर्गत लोगों को अंडा-चावल की थाली केवल पांच रुपये में मिलेगी। भाजपा भी कहां पीछे रहने वाली है। उसने तृणमूल के मां प्रोजेक्ट के जवाब में गरीब लोगों को मछली-चावल की थाली परोसना का फैसला किया है - वह भी मुफ्त में। इसका शुभारंभ पूर्व मेदिनीपुर जिले के एगरा में भाजपा नेताओं ने आम लोगों के साथ जमीन पर बैठकर दोपहर का भोजन किया। इस दिन दोपहर के भोजन में मछली, चावल, दाल, आलू की भुजिया तथा चटनी शामिल थी।

भारत के आदिवासी, लोक कलाकार, किसान और मजदूर के साथ इस क्रूर मजाक में सभी पार्टियों की भागीदारी है। यह सब जानते हुए भी कि चुनाव के बाद कोई नेता नजर नहीं आयेगा। कहीं से खबर आयेगी कि एक मजदूर ने बेकार होने पर आत्महत्या कर ली और कोई आदिवासी ठंड में ठिठुर कर मर गया तो सरकार की तरफ से यह साबित करने की कोशिश की जायेगी कि वह भुखमरी से नहीं मरा, किसी असाध्य बीमारी का शिकार हो गया।

गरीब मजदूर, आदिवासी, लोक कलाकार - ये सभी देश की वह प्रजाति है जो मर-मर कर जिंदा है। उनके साथ होने वाले इस उपहास में राजनीतिक पार्टियां ही भागीदार नहीं है - समाज के जागरुक पत्रकार, परिवर्तन की मशाल जलाये रखने वाले लेखक, साहित्यकार, कवि सभी इस नौटंकी में शामिल हैं। सब का मुंह सिला रहता है क्योंकि उन्हें भी उन पार्टियों में जाना होता है। बड़ी होटलों में तीन-चार हजार रुपये प्रति प्लेट के व्यंजन का मुफ्त लुफ्त उठाना होता है। हालांकि कभी ज्वालामुखी फूटेगा और तब तक हमें प्रतीक्षा करनी होगी।



Comments

  1. This is a joke. A labour feeds lavishly the leaders which have no knowledge how the public think

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  2. महोदय प्रणाम
    आपने सही कहा कि कभी तो ज्वालामुखी फूटेगा और गरीबों,लाचार मजदूरों,ज़रूरतमंदों के साथ क्रूर मजाक करने वालों को मुहँ तोड़ जवाब मिलेगा। मुफ्त में कुछ भी नहीं मिलता है,नेता क्या अपनी ज़ेब से खर्च कर आम जनता को खाना देते हैं? नेता कम ये अभिनेता ज़्यादा है इन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि जनता के हाथों में ही सत्ता की बागडोर हैं।
    "ये पब्लिक है सब जानती है .."

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    1. बिल्कुल सही कहा है आपने ।
      पर प्रयास हमें ही करना होगा ।

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  3. भई, जनता जानकर क्या कर लेगी . कहीं सांपनाथ कहीं नागनाथ . आपको कोई न कोई तो काटेगा ही .

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  5. ये परम्परों में एक परम्परा जो नेताओ को वोट लेने के लिए निभानी पड़ती है। इस परम्परा का इतिहास भी पुराना है कांग्रेस से लेकर BJP के नेता तक करते आये है।
    .
    जैसा अरेंजमेंट किया गया है एक गरीब मजदूर ऐसा नही कर सकता तो इसका निष्कर्ष ये निकलता है नेता ने मजदूर के घर भोजन किया ना कि मजदूर का भोजन। ये सारा अरेंजमेंट ये पहले से ही किया जाता है नेता के द्वारा, ना कि मजदूर के द्वारा। बस जगह एक गरब का घर होता है।

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  6. Bhagwan se yahi prathna hai ki
    Ye sare neta roj hi aise hi garibo ke saath baith kar khaye,

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  7. Azadi ke 70 sal ke bad bhi ham
    Azad nahi hai ham .

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  8. इस तरह के नाटकों का सत्य सभी जानते हैं
    जनप्रतिनिधियों को ऐसे नाटकों की बजाय जनता के हितों के ठोस कार्य करने चाहिए

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  9. 🙏🇮🇳 *जीएसटी सुधार*
    *1.गलतियां सुधारने व रिटर्न रिवाइज करने का अवसर दिया जाय।* *2.लेट फीस माफ हो व इसकी सीमा तय हो* . *3.कर चोरी के अतिरिक्त पैनल प्रावधान फिलहाल स्थगित हो.* *4.ब्याज की दर कम हो* . *5.परिवर्तनों व प्रयोगों की संख्या को अभी सीमित किया जाय.*

    *6. यदि कोई सुविधा दें जैसे QRMP तो उसकी प्रारंभिक अनिवार्यता की जगह विकल्प दें.*
    *7. ई इन्वोसिंग की व्यवहारिक तिथि 1 अप्रैल 21 रखें.*
    *8. ई वे बिल की चेकिंग व्यवहारिक भी हो.*
    *9.हेल्प डेस्क सक्षम हो.*
    *
    *10.मिसमैच का दोष क्रेता के समुचित दस्तावेजों के साथ विक्रेता पर डाला जाए।*
    *11.भुगतान नहीं होने पर ITC रोकने का अधिकार विक्रेता को दिया जाए।*
    *12. परिपत्रों,अधिसूचनाओं व परिवर्तनों की संख्या सीमित की जाए।*
    *13. 2021-22 को जीएसटी सुधार वर्ष.*
    *2021-22 should be declared as "GST Simplification Year".* *It is the need of the hour.*
    *GST को ईमानदार के लिए सरल एवं व्यवहारिक, बेईमान के लिए सख्त बनाते हुए 1st April 2021 से लागू करें,* *31st March 2021 तक के सभी मामले amnesty scheme लागू करके सुलझाने चाहिए।* 🙏

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  10. जासूसी के माध्यम से जो तथ्य मिलता है उससे आगे आने वाले विकट परिस्थितियों को टाला जा सकता है या उससे लड़ने के लिए उचित कदम समय पर उठाया जा सके। राजनीति में ये भी एक हथियार है । जो समय समय पर उपयोग किया जाता है ।

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  11. नेवर साहेब!! संप्रति भारतीय राजनीति पर आप का आलेख सठीक है परन्तु शीर्षक "भारतीय राजनीति गंगा की तरह मैली एवं कुछ हद तक विषैली हो रही है" कहीं न कहीं सनातनियों के भावना को आहत करता है। गंगा सनातनियों में अब भी उतना ही पूज्य एवं श्रद्धेय है जितना शदियों पूर्व समझी जाती है। अच्छा होता यदि आपने अपने आलेख का शीर्षक "भारतीय राजनीति नाले की तरह गैली और एवं कुछ हद तक विषैली हो रही है।" शेष पुनः । अशोक कुमार सोनकर। सहायक अध्यापक

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