रोंग नम्बर नहीं, मैं बाइडेन ही बोल रहा हूं

 रोंग नम्बर नहीं, मैं बाइडेन ही बोल रहा हूं


संयुक्त राज्य अमेरिका की सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था हमसे बिल्कुल भिन्न है। पूंजीवादी राष्ट्र का सामाजिक तानाबाना भी अंततोगत्वा पूंजीवादी मानसिकता एवं व्यवस्था को सु²ढ़ करने का ही होता है। इस ²ष्टि से अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव भारत के लिये खास अहमियत नहीं रखता है। किन्तु अमेरिका का लोकतंत्र एवं वहां की जनतांत्रिक व्यवस्था के साथ-साथ अमेरिका और भारत में कई समानतायें हैं जिसके कारण इस बार अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव का हमारे लिये महत्व है। सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् एवं चीन द्वारा भारत की सीमा का अतिक्रमण से जो परिस्थितियां उत्पन्न हुई हैं उसमें अमेरिका की आज के विश्व में भूमिका में भी परिवर्तन आया है। साथ ही दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र होने के नाते हम अमेरिका की उपेक्षा नहीं कर सकते।

गत चार वर्षों में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति काल में अमेरिका एवं दुनिया में जो घटनाक्रम हुये उसके मद्देनजर भी अमेरिका में चुुनाव के साथ-साथ नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा की गयी घोषणायें पूरी दुनिया में विशेषकर भारत में कुछ सोचने और चिन्तन करने जैसी स्थिति पैदा कर रहा है।

विगत चार वर्षों में राष्ट्रपति ट्रंप और भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के बीच घनिष्ठता हुई यह स्वागत योग्य है किन्तु ट्रंप ने अपने देश में जो किया, उससे अमेरिका के ही लोग परेशान नजर आये। उसी का परिणाम है कि रिपब्लिकन प्रार्थी ट्रंप को उनकी अपनी ही पार्टी में समर्थन नहीं मिला। यही नहीं दूसरी बार लगे महाभियोग में रिपब्लिकन दल के ही कई लोगों ने उनका समर्थन नहीं किया।

अमेरिका के नये राष्ट्रपति जो बाइडेन  का राष्ट्रपति काल कैसा होगा, भारत के साथ नये राष्ट्राध्यक्ष का कैसा सम्बन्ध होगा यह भविष्य ही बतायेगा लेकिन बाइडेन ने राष्ट्रपति पद की शपथ के साथ जो भाषण दिया वह भारतीय संस्कारों एवं हमारे इतिहास के पन्नों को छूता हुआ निकला। हमारे नीति निर्धारकों को इस भाषण के अन्तर्निहित माने को समझने का प्रयास करना चाहिये। उन्होंने 22 मिनट में 2381 शब्दों का भाषण दिया। 12 बार डेमोक्रेसी, 9 बार यूनिटी, 5 बार असहमति और 3 बार डर शब्द का इस्तेमाल किया। अपने स्पीच में निशाने पर डोनाल्ड ट्रंप भी रहे। 7 जनवरी को हुई हिंसा पर उन्होंने कहा कि आज हम जहां खड़े हैं वहां कुछ दिन पहले भीड़ थी। उन लोगों ने सोचा था कि वह हिंसा से जनता की ईच्छा को बदल देंगे। लोकतंत्र को रोक देंगे। हमें इस पवित्र जगह से हटा देंगे। ऐसा नहीं हुआ। ऐसा नहीं होगा। न आज, न कल और कभी नहीं।



राजनीति को अपनी राह में सब कुछ जला देने वाली आग होने की जरूरत नहीं है। हर असहमति युद्ध की वजह हो, जरूरी नहीं। हमें उस कल्चर को नकारना है, जहां तथ्यों को तोड़ा मरोड़ा जाता है।     -जो बाइडेन


राष्ट्रपति पद को सम्हालते ही जो बाइडेन एक्शन में आ गये। उन्होंने ताबड़तोड़ 17 एग्जीक्यूटिव आर्डर्स पर दस्तखत कर दिये। सबसे पहले उन्होंने मास्क पहनने को जरूरी किये जाने वाले आर्डर साइन किये। ज्ञातव्य है कि कोरोना संक्रमण में अमेरिका ने जितने लोगों को खोया वह संख्या द्वितीय युद्ध में मारे गये अमेरिका के लोगों से अधिक है। साथ ही पेरिस समझौते में शामिल, 7 मुस्लिम देशों में ट्रैवल वैन को हटाया। अमेरिका में सबका साथ सबका विश्वास की यह पहली किश्त कही जा सकती है।

बाइडेन बोलते हैं ये इतिहास बनाने का दिन है, उम्मीद बांधने वाला दिन है। आज एक कैंडिडेट नहीं, एक मकसद की जीत हुई। लोकतंत्र की जीत हुई है। हमने फिर सीखा है कि लोकतंत्र कीमती चीज है, नाजुक चीज है। अमेरिका किसी एक से नहीं, कुछ से नहीं, सबसे बना है। हमें बहुत सी चीज ठीक करनी है, बहुत सी चीजें फिर से बहाल करनी है। कोरोना के एक साल में लाखों बेरोजगार हो गये, हजारों बिजनेस बंद हो गये।

बाइडेन ने अपने पहले भाषण में अमेरिकी नस्लभेद पर खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि 400 सालों से नस्लीय इंसाफ की मांग हमें झकझोरती है, सबके लिए इंसाफ की मांग को इंतजार नहीं करना होगा। खुद हमारा ग्रह अपने अस्तित्व की गुहार लगा रहा है। राजनीति में कट्टरवाद बढ़ा है। श्वेत श्रेष्ठता, घरेलू आतंकवाद बढ़ा है, हमें इनका सामना करना होगा और हम इन्हें हरायेंगे। लेकिन जीतने के लिए हमें एकता की जरूरत है। आज मैं पूरी आत्मा से बस यही चाहता हूं अमेरिका एक साथ आ जाये, एकजुट हो जाये, एकता के कई दुश्मन हैं- गुस्सा, विरोध, नफरत, उग्रवाद, अपराध, हिंसा, बीमारी, ना उम्मीदी, बेरोजगारी, लेकिन एकता हो तो हम महान चीजें कर सकते हैं। हम गलत को सही कर सकते हैं, बच्चों को स्कूल भेज सकते हैं, नौकरियां पैदा कर सकते हैं, वायरस को हरा सकते हैं। हम मिडल क्लास को फिर खड़ा कर सकते हैं। हम नस्लीय इंसाफ दे सकतेहैं। हम अमेरिका को दुनिया का लीडर बना सकते हैं। मुझे मालूम है आजकल एकता की बात करना मूर्ख का ख्वाब माना जाता है। मुझे मालूम है कि हमें तोडऩे वाली ताकतें बड़ी हैं, लेकिन मुझे यह भी मालूम है कि वो नयी नहीं है। हमारा इतिहास समानता के अमेरिकी आदर्श और नस्लभेद, नफरत के बीच संघर्ष से भरा पड़ा है लेकिन विश्वयुद्ध, मंदी और 9/11 हर जह आखिर जीत अच्छाई की हुई है। ऐसे हर लम्हे में हम एकजुट हुए हम फिर से वही कर सकते हैं। हम एक दूसरे को प्रतिरोधी न मानें, एक दूसरे का सम्मान करें। एक जुट हो जायें, चीख चिल्लाहट बंद करें। यह चुनौती की घड़ी है और एकता का रास्ता ही सही है। राजनीति को अपनी राह में सब कुछ जला देने वाली आग होने की जरूरत नहीं है। हर असहमति युद्ध की वजह हो, जरूरी नहीं। हमें उस कल्चर को नकारना है, जहां तथ्यों को तोड़ा मरोड़ा जाता है।

बाइडेन कहते हैं, जिन लोगों ने मेरा समर्थन नहीं किया, वो सुन लें, अगर आप भी असहमत हैं तो रहिये, यही लोकतंत्र है, यही अमेरिका है। असहमति और शांंतिपूर्वक विरोध हमारी ताकत है। असहमति से हमारे बीच बैर नहीं होना चाहिए। जान लीजिये मैं पूरे अमेरिका का राष्ट्रपति हूं। वादा करता हूं कि जिन्होंने मुझे वोट नहीं दिया, मैं उनके लिए भी उतना ही आभारी हूं।

बाइडेन के इस भाषण में भारतीय संदर्भ झलकता है। हमारे देश की परिस्थितियों से अमेरिका की अन्तर्निकटता है। अमेरिका ने इतिहास से सबक लिया है, जो बाइडेन के भाषण में स्पष्ट है। हम विषय की गम्भीरता समझ नहीं पा रहे हैं जो दुनिया का सबसे पराक्रमी राष्ट्र समझ पा रहा है। अमेरिका में सत्ता परिवर्तन को अभी तक कलेण्डर के पन्ने बदलने जैसी मामूली घटना माना जाता रहा है पर इस बार सत्ता परिवर्तन कलेण्डर की तारीखों वाला पन्ना उलटना नहीं है जिस दीवाल पर कलेण्डर टंगा हुआ रहा करता है, वह दीवार ही नयी बन रही है, कम से कम बाइडेन का प्रारम्भिक भाषण तो यही बोल रहा है।




Comments

  1. भारत का लाभ कितना होगा यह देखना है
    जो बाइडेन के लिए कहा जाता है वो भारत से थोड़ा भिन्न स्वभाव रखते है
    लेकिन उनके लिए भारत को नकारना भी
    संभव नहीं है भारत को साथ लेके चलेंगे तो भारत के साथ अमेरिका का भी भला होगा

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  2. Replies
    1. Mujhe ummid hai aane walo barso mai bharat aur America ke sambandh aur acche hoge .

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  3. एकबी फिर लाजवाब लेख। हार्दिक बधाई

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