बड़े बेआबरु होकर तेरे कूचे से हम निकले

बड़े बेआबरु होकर तेरे कूचे से हम निकले

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का कार्यकाल खत्म होने के महज कुछ दिन पहले अमेरिकी कांग्रेस (संसद) के निचले सदन, प्रतिनिधि सभा ने उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पारित कर दिया। अमेरिकी संसद भवन जिसका वहां नाम कैपिटल बिल्डिंग है, में हुई हिंसा के मद्देनजर उनके खिलाफ महाभियोग लगाया गया है। बुधवार को देर रात डेमोक्रेटिक पार्टी के नियंत्रण वाली प्रतिनिधि सभा में इस प्रस्ताव को 197 के मुकाबले 232 मतों के साधारण बहुमत से पारित किया। ट्रंप के पहले तीन राष्ट्रपतियों पर महाभियोग चले हैं। 1865 में एंड्रू जा1नसन पर, 1974 में रिर्ज निक्सन पर और 1998 में बिल क्लिंटन पर। उपरोक्त तीनों राष्ट्रपतियों पर जो आरोप लगे उनके मुकाबले ट्रंप पर जो आरोप लगा है, वह अत्यधिक गंभीर है। ट्रंप पर राष्ट्रद्रोह या तख्ता-पलट या बगावत का आरोप लगा है।


ट्रंप अब अमेरिका के संवैधानिक इतिहास में पहले ऐसे खलनायक के तौर पर जाने जायेंगे, जिन पर चार साल में दो बार महाभियोग का मुकदमा चला है। इस महाभियोग में ट्रंप पर अपने समर्थकों को 6 जनवरी को ''राजद्रोह के लिए उकसाने" का आरोप लगाया गया है। हिंसा में एक पुलिस अधिकारी सहित 5 लोगों की मौत हो गयी थी।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की विदाई जिस लज्जाजनक ढंग से हो रही है, ढाई सौ साल के इतिहास में किसी अन्य की ऐसी मिट्टी पलीत नहीं हुई। अमेरिका में अब तक 45 राष्ट्रपति बन चुके हैं। ट्रंप ऐसे राष्ट्रपति हैं जो पहले न तो कभी विधायक या सांसद रहे, न राज्यपाल, न ही मंत्री। वे सीधे व्यापारी से राष्ट्रपति बन गये 2016 में। उन्होंने पिछले चार साल में अमेरिका का राज ऐसे चलाया जैसे कोई छुटभैया व्यापारी अपनी दुकान चलाता है। ट्रंप समर्थकों ने 6 जनवरी को अमेरिकी संसद भवन पर जो हमला किया, जो तोडफ़ोड़ की, जो नारे लगेये और झंडे फहराये, क्या ऐसी शर्मनाक घटना कभी हमने ब्रिटेन, कनाडा या फ्रांस जैसे लोकतांत्रिक देशों में होती हुए देखी? अमेरिका के परिपक्व लोकतंत्र में जब यह हादसा हुआ तो इसे ''तख्ता पलट" की कोशिश ही कहा गया। ये तो डरपोक ट्रंप थे कि ह्वाईट हाउस में बैठे-बैठे अपने अंध भक्तों को भड़का रहे थे। यदि उनमें नेपोलियन जैसा दुस्साहस होता तो जैसे वह 1799 में फ्रांसीसी संसद में घुड़सवार बनकर घुस गया था और उसने सत्ता हथिया ली थी, ट्रंप भी वैसा ही कर सकते थे। ट्रंप ने शायद पहले ऐसी ही परिकल्पना की थी कि वे कुछ ऐसा दुस्साहस करेंगे कि चुनाव निरस्त हो जाय और वे जस के तस बने रहे। लेकिन ट्रंप ठहरे एक व्यापारी आदमी, उनमें इतनी हिम्मत कहां? ट्रंप की हवा खिसक गयी। ट्रंप बिना गोले की तोप साबित हुए।



ट्रंप समर्थकों ने 6 जनवरी को इसलिए चुना क्योंकि उस दिन अमेरिकी संसद (कांग्रेस) के दोनों सदन ट्रंप की हार पर मुहर लगाने वाले थे। यदि संसद की वह बैठक नहीं होती तो संवैधानिक प्रावधान के मुताबिक 20 जनवरी को बाइडन की शपथ नहीं होती। ट्रंप ने उपराष्ट्रपति माइक पैंस को भी हिदायत दी थी कि वे दोनों सदनों की संयुक्त बैठक के अध्यक्ष के रूप में नए राष्ट्रपति के चुनाव पर मुहर न लगने दें। लेकिन पेंस ने निष्ठावान रिपब्लिकन होते हुए भी ट्रंप के निर्देश को नहीं माना और उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस की मुहर लगवा दी। ट्रंप ढीले पड़ गये। उन्होंने दंगाइयों को लौटने की सलाह दी और घोषणा की कि वे 20 जनवरी को ह्वाईट हाउस खाली कर देंगे। लेकिन वे अभी भी अड़े हुए हैं कि बाईडन की शपथ-विधि में शामिल नहीं रहेंगे।

ट्रंप जैसे धाकड़ और बड़बोले आदमी की हवा आखिर इतनी जल्दी कैसे निकल गयी? इसके मुख्य कारण यह है कि जब अमेरिकी संसद पर हमला हुआ तो सारी दुनिया ने उसे टीवी चैनलों के माध्यम से देखा इंटरनेट पर तुरंत खबर लग गयी। और फिर लोगों ने थू-थू की। कई देशों के नेताओं ने हमले की भत्र्सना की। यहां तक कि भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जिसे ट्रंप के मित्रों ने भी उन्हें नहीं बक्सा।

दूसरा कारण यह भी था कि ट्रंप की आशा के विपरीत अमेरिकी कांग्रेस ने अपनी मुहर लगाकर ट्रंप को सीधा संदेश दे दिया कि ट्रंप जी अब विदा होइये। उधर ट्रंप के कई बड़े अफसरों ने भी इस्तीफा दे दिया। ट्रंप की अपनी पार्टी के लोगों ने ट्रंप के विरोध में बयान दिया। ट्रंप समर्थकों ने दर्जनों उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में याचिकायें लगायी थी लेकिन वे निरर्थक सिद्ध हुई। ट्रंप ने ही जिन जजों को नियुक्त किया, वे भी पक्ष में नहीं बोले।

कुछ लोगों को डर है कि परमाणु हथियारों का खटका राष्ट्रपति के हाथ में ही होता है। पता नहीं वे उसे कब दबा डालें? पर ट्रंप चाहे जितना भी चालू आदमी हों, वे इतना बड़ा पागलपन नहीं करेंगे। उन्हें शांति से विदा होने दें। आशिक का जनाजा है, जरा धूम से निकले।

खैर, अमेरिकी राष्ट्रपति ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की धज्जियां उड़ा कर रख दी। लोकतंत्र की बात करना और लोकतंत्र के पवित्र संस्थान को बचाकर रखना दो अलग बातें हैं। ट्रंप साहब से भारतीय प्रधानमंत्री की दोस्ती के बड़े चर्चे हुए। अमेरिका ने महाभियोग भले ही चलाया हो, भारत में उनका बड़ा भारी स्वागत हुआ। यही नहीं अमेरिका में जाकर हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी ट्रंप-दोस्ती के इतने मुरीद हो गये कि वहां भरी सभा में ''अबकी बार ट्रंप सरकार" का नारा लगा दिया। इससे भारत की लोकतांत्रिक अस्मिता को भी बट्टा लगा है। अमेरिकी घटना से भारत को भी सीख लेनी चाहिये।

Comments

  1. शानदार आलेख है सर, आपके आलेख हम जैसे पत्रकारों को नई ऊर्जा देते हैं।

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  2. हमारे देश भारत में भी सत्ता के बंदे टू मच डेमोक्रेसी कह ही चुके हैं। ट्रंप की विदाई का घटनाक्रम एक नज़ीर है। सीख तो लेनी ही चाहिए।

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