कोविड प्रतिरोधक वैक्सीन के विरुद्ध भ्रमजाल के मजबूत किले को तोडऩा होगा
भारत में औषधि विज्ञान पौराणिक काल से ही उन्नत रहा है। प्रकृति की गोद में ऐसी-ऐसी जड़ी-बूटियों की सौगात मिली है जिसके उपयोग ने लोगों को जीवन दान दिया है। संजीवनी का नाम भारत के प्राचीन ग्रन्थों में मिलेगा। जब लक्ष्मण को तीर लगा और मूर्छित हो गये तो लंका के बैद्य ने उनके प्राण बचाने एक जड़ी-बूटी सुझायी जिसके लिए हिमालय जाकर हनुमान जी पूरा पूर्वत उठा लाये थे। इस घटनाक्रम में, लेकिन वैज्ञानिक सोच है कि हिमालय की गोद में ऐसी जड़ी-बूटियां थी जो ''लाइफ सेविंग'' यानि प्राण बचाने का काम करती थी। हमारा बैद्य-तंत्र भी चिकित्सा विज्ञान में निपुण था। उस वक्त का एक महत्वपूर्ण प्रसंग है जिसका मैं जिक्र करना चाहूंगा जो हाल ही में लॉकडाउन काल में रामानन्द सागर के रामायण सीरियल में मैंने देखा। जब लक्ष्मण को होश आ गया तो राम ने हनुमान के प्रति कृतज्ञता प्रकट की कि अगर वे यह प्राणरक्षक जड़ी-बूटी न लाते तो लक्ष्मण नहीं बच पाते। उस वक्त वहां एक पात्र यह कहते हैं कि इसका श्रेय उस बैद्यराज को है जिसे लंका से उठाकर हनुमान जी ही लाये थे। अगर बैद्यराज आकर औषधि नहीं सुझाते तो हनुमान जी क्या लेकर आते? भक्ति के साथ ज्ञान को भी उतना ही महत्व दिया गया था। पहले युद्ध में गोली लगने पर शरीर से कारतूस निकालने हेतु अग्नि के धधकते शोले इस्तेमाल किये जाते थे। पाषाण युग में पत्थर से पत्थर टकराकर आग पैदा की जाती थी। और इस क्रिया ने ही अग्नि पैदा करने को क्रमश: नये आयाम दिये। यानि हर क्रियान्वति के पीछे वैज्ञानिक सोच थी। इसी को विकसित कर हम आज के आधुनिक युग में प्रवेश कर चुके हैं। किन्तु दुर्भाग्य यह है हमारे देश का कि हर युग में ऐसे लोग रहे हैं जिन्होंने हमें आगे बढ़ाने की बजाय पीछे धकेलने की कोशिश की। धर्म और अंधविश्वास को आगे कर हमारी विज्ञान आधारित सोच को कुचलने का भी बड़े ही संगठित रूप में प्रयास चलता रहा है। आज चिकित्सा विज्ञान ने मृत्यु पर विजय तो प्राप्त नहीं की पर अकाल मृत्यु से लोगों को बचाने में सफलता प्राप्त की है। सन् 1935-40 तक भारत की औसत आयु 50-55 वर्ष थी जो आज 68-70 वर्ष हो गयी है जबकि पहले हवा, पानी, पर्यावरण आज के मुकाबले बहुत शुद्ध था। जानलेवा बीमारियों के बावजूद आज का चिकित्सा विज्ञान आदमी को आसानी से मरने नहीं देता। बीमारियां बढ़ी हैं तो उसका शर्तिया इलाज भी। पर समानान्तर रूप में आज भी गांव-गंज एवं छोटे शहर-कस्बों की गली-कूचे में झाड़-फूंकने वाले ओझा मिल जायेंगे जो अपना चमत्कार दिखाने से बाज नहीं आते। अंधविश्वास और बेतुकी चिकित्सा पद्धति से लोग जान गंवा बैठते हैं पर सबक नहीं लेते।
अब कोरोना की वैक्सीन हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रही है। पूरी दुनिया में गर्जन-तर्जन के साथ इसे विकसित किया जा रहा है। उम्मीद है कि दो-तीन महीनों में कोई वैक्सीन कारगार होगी। इस क्षेत्र में भी भ्रम फैलाने और इसके विकल्प के नाम पर कई चमत्कार दिखाने वाले लोग भी पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतर गये हैं। एशियन स्वास्थ्य विश्लेषण के संस्थापक सैयद नजाकत ने हाल ही में एक वक्तव्य में कहा है कि हमारे देश में ऐसे कुछ समूह हैं जो कोरोना संक्रमण की वैक्सीन को आने के पहले उसे बदनाम करने की मुहिम में जुट गये हैं और इस दानवीय कार्य में धर्म या मजहब उनका सबसे बड़ा सहारा है जिसके नाम पर लोगों को गुमराह किया जा रहा है। सैयद नजाकत 18 एशियायी देशों में कोविड-19 के उपचार अभियान में लगे हुए हैं। उन्होंने बताया कि कोरोना टीकाकरण के आने के पहले ही एक षडय़ंत्र के तहत लोगों में भ्रम पैदा करने में कुछ लोग जुट गये हैं। दुर्भाग्य है कि इस भ्रम जाल में कुछ कथित होम्योपैथ एवं प्राकृतिक चिकित्सकों का भी समर्थन उन्हें प्राप्त है। एक लॉबी द्वारा धुआंधार प्रचार हो रहा है कि कोरोना वैक्सीन से शरीर में गम्भीर प्रतिक्रिया एवं विकार पैदा होगा। वैक्सीन बेचने वाले आपके जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं आदि-आदि।
विश्वरूप राय चौधरी नाम के एक महाशय ने वीडियो तैयार किया है जिसकी शुरुआत फिल्म बॉबी के लोकप्रिय गाने ''पहले तुम, पहले तुम" जिसमें डिम्पल कपाडिय़ा और ऋषि कपूर एक दूसरे को गुन गुनाकर सुरीली आवाज में कहते हैं। चौधरी साहब का कहना है कि इसी तरह हमारे डाक्टर यह वैक्सीन का एक दूसरे पर पहले प्रयोग करने और बचने की चेष्टा कर रहे हैं। इसे फेसबुक एवं वाट्सअप ग्रुप में प्रचारित कर रहे हैं। सैयद नजाकत का यह कहना है कि जिम्मेदार लोगों द्वारा प्रचार की अनदेखी इसलिए हो रही है क्योंकि यह अधिकांश स्थानीय भाषाओं में है। एक एमएमआर वैक्सीन है जो चेचक, हिचकी, हकलाकर बोलना, जैसी बीमारियों से बचने के लिए बचपन में लगायी जाती है। पिछले साल दक्षिण राज्यों में लगभग ढाई लाख बच्चों के अभिभावकों ने अपने नौनिहालों को इस वैक्सीन लगाने से वंचित रखा क्योंकि वाट्सअप पर एक झूठ मैसेज वायरल किया गया था कि इस वैक्सीन के लेने से बच्चों को बहुत
नुकसान होगा। परिणामस्वरूप दो महीने तक वैक्सीन लगाने का अभियान रोकना पड़ा। बहुत लोगों को समझ में नहीं आता कि किस पर भरोसा करें। पुणे के न्यूट्रिशनिस्ट मुग्ध प्रधान के किसी ने गले उतार दिया कि वैक्सीन में टोकिसन यानि एक प्रकार का जहर मिला हुआ है। मुम्बई के एक मार्केटिंग विशेषज्ञ निशा कोइरी (उम्र 47 वर्ष) ने बताया कि उनके परिवार में कोई भी कोविड वैक्सीन नहीं लेगा क्योंकि यह बहुत ही खतरनाक है। ऐसे लोगों का मानना है कि वैक्सीन कोई दवाई नहीं बल्कि यह ड्रग (नशीली दवा) है।
पोलियो वैक्सीनेशन के 2014 में किये गये अभियान से भी भारत को कड़ा मुकाबला करना पड़ा था। मुस्लिम समुदाय में यह प्रचार लोगों को घर कर गया कि इसके सेवन से व्यक्ति नपुंसक या लड़कियां बांझ हो जाती है। बड़ी मुश्किल से और काफी मशक्कत और प्रचार के बाद लोगों में बैठे भय और भ्रम का निवारण किया जा सका। आज के इन्टरनेट युग में गलत सूचनाओं का प्रतिरोध नहीं किया जा सकता।
एक आंकड़े के अनुसार 3 करोड़ 10 लाख लोग फेसबुक में वैक्सीन विरोधी समूह का अनुसरण करते हैं जबकि 1 करोड़ 70 लाख लोग यू ट्यूब में इस तरह के प्रचार के शिकार हो रहे हैं। वैक्सीन से कोरोना मुक्त होने के रास्ते में इन अवरोधों से भी दो-दो हाथ करना होगा।

Well written article by Shri Bishambhar ji Newar. Congratulations.
ReplyDeleteवास्तविक तथ्य... प्रासंगिक.. बधाई हो।
ReplyDeleteपूर्वाग्रह से ग्रसित लोगों के लिए अच्छा लेख । वास्तव में लेखक बधाई के पात्र हैं ।
ReplyDeleteभक्ति, ज्ञान के सम्मिश्रण के साथ ही कुसंस्कारों से उबरने और जागरूकता के प्रति उन्मुख करने वाला संतुलित लेखन ।
ReplyDeleteअत्यंत प्रासंगिक एवं प्रयोजनीय ।
साधुवाद!!!!
अत्यंत महत्वपूर्ण एवं प्रासंगिक लेख के लिए साधुवाद। बधाई हो।
ReplyDeleteWell written article Congratulations
ReplyDeleteतथ्यपरक और सच्चाई पूर्ण विचार है। साथ ही वर्तमान परिस्थितियों में वैक्सीनेशन के संबंध में समाज में फैलाई जा रही झूठ और भ्रांतियों पर तथ्यपरक व्याख्या भी की गई है।
ReplyDeleteभारतीय उपचार पद्धति का एक अपना महत्व है, जिसका समेकित चित्रांकन किया गया है।
जहां आयुर्वेद की उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता वहीं झाड़-फूंक या मंत्रोपचार इत्यादि भी भारतीय समाज में एक सच्चाई रही है।
काल क्रम में यह पद्धति भले ही विलुप्त हो गई हो किंतु इस पर एक वर्ग विशेष का आधिपत्य और अंधविश्वास को इसके पतन का कारण कहा जा सकता है। वर्तमान वैज्ञानिक युग में मंत्र उपचार पर भी रिसर्च करने की आवश्यकता है क्योंकि भारतीय पौराणिक पटल पर इसका वर्णन अनायास ही नहीं किया गया होगा।
- अमर तिवारी
एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील लेख जो भ्रम जाल को तोड़ती है
ReplyDeleteसर प्रणाम🙏 आज से 2 वर्ष पूर्व भाषा भवन में आपको सुनने का मौका मिला था। आपके विचारों ने काफी प्रभावित किया। आपका आलेख सर्वथा उचित है। अपने देश में धर्म और अंधविश्वास की आड़ लेकर लोगों को गुमराह करने और उनके जीवन को नारकीय बनाने का खेल लंबे अरसे से जारी है। तकनीक के इस युग में मेरे समझ से सोशल मीडिया ने इसमें इजाफा ही किया है। कोरोना की वैक्सीन आने से पूर्व तक इसके प्रसार को रोकने में स्वदेशी काढ़ा की भी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।
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