श्री काशी विश्वनाथ सेवा समिति

 श्री काशी विश्वनाथ सेवा समिति

पर्चेबाजी नहीं बातचीत से समस्या का समाधान करे

मारवाड़ी समाज द्वारा स्थापित एवं संचालित मानव सेवा संस्थाओं में श्री काशी विश्वनाथ सेवा समिति अपना एक विशिष्ट स्थान रखती है। जल आपूर्ति के क्ष्त्र में इस संस्था का नाम लोगों की जुबान पर चढ़ा हुआ है। बंगाली समाज भी इस संस्था की सेवाओं का कायल रहा है। विगत कुछ समय से यह समिति संकट से गुजर रही है। इस संकट के दो मुख्य बिन्दु हैं। एक तो इसकी गतिविधियां सिकुड़ गयी हैं और दूसरी काशी विश्वनाथ  के कुछ पुराने पदाधिकारियों ने वर्तमान अधिकारियों के विरुद्ध जेहाद छेड़ रखा है। बेनामी पर्चेबाजी के कई दौर चल चुके हैं। गुमनाम पर्चेबाजी में बहुत से अभियोग लगाये गये हैं पर उनमें प्रमुख है कि संस्था का चुनाव 26 वर्षों से नहीं कराया गया है। वर्तमान अध्यक्ष श्री रवि पोद्दार हैं जो न सिर्फ एक सुविख्यात उद्योगपति हैं बल्कि स्व. आनन्दीलाल पोद्दार जो अपने समय में मारवाड़ी समाज की एक बड़ी हस्ती मानी जाती थी, के सुपुत्र हैं। सामाजिक क्षेत्र में भी उनकी अच्छी छवि है, मृदुभाषी  हैं और सुचिन्तक भी। सन् 2000 में श्री काशी विश्वनाथ सेवा समिति के अध्यक्ष श्री देवकी नन्दन पोद्दार का स्वर्गवास हो गया। समिति के सर्वोच्च पद पर आसीन करने के लिये उपयुक्त बड़े नाम की तलाश शुरू हुई, समिति के कर्ताओं की ईच्छा थी कि स्वनामधन्य पोद्दार परिवार का ही कोई व्यक्ति समिति के अध्यक्ष पद को सुशोभित करे। तब श्री अरुण पोद्दार से सम्पर्क साधा गया और कुछ लोगों ने रवि बाबू से बात की। अन्ततोगत्वा श्री रवि पोद्दार की अनुमति लेकर उन्हें समिति के अध्यक्ष पद पर मनोनीत कर दिया गया।


श्री राजकुमार बोथरा किसी परिचय मोहताज नहीं है। वे पहले से इस नामधारी संस्था के प्रधान सचिव हैं। नि:संदेह राजकुमार बोथरा ने समिति की यश कीर्ति के लिये अपना पूरा जीवन खपा दिया। आज श्री काशी विश्वनाथ सेवा समिति का जो भी स्वरूप है उसमें बोथरा जी की नि:सन्देह अहम् भूमिका रही है। श्री रवि पोद्दार के अध्यक्ष और श्री राजकुमार के प्रधान सचिव के संचालन में सन् 2016 तक यानी 16 वर्ष तक संस्था गाड़ी के दो पहियों पर चलती गयी। इसी बीच रवि बाबू और बोथरा जी के बीच समिति के कार्यान्वयन को लेकर विचार भिन्नता शुरू हुई। एक दो प्रभावशाली लोगों ने बीच-बचाव की भूमिका अदा की। बोथरा जी को उनकी दीर्घ सेवाओं के लिए मार्गदर्शक बनाकर संस्था का विवाद खत्म कर लिया गया। स्थानीय समाचार पत्रों में विज्ञापन के रूप में विज्ञप्ति प्रकाशित हुई कि बोथरा जी समिति के मार्गदर्शक होंगे। बोथरा जी के स्थान पर दीवान ज्वैलर्स के श्री बिमल दीवान प्रधान सचिव मनोनीत किये गये। नयी व्यवस्था के साथ समिति का संचालन होता रहा। बोथरा जी कहने को तो समिति से मुक्त हो गये पर ''ऊधो मोसे वृन्दावन विसरत नाईÓÓ की तरह समिति से मुक्त होना उन्हें रास नहीं आया। हो सकता है कि वे समिति के कार्यों से असंतुष्ट हो गये हों पर वे भूल गये कि समिति में अब आप महासचिव नहीं हैं और जो हैं वे संस्था को अपने ढंग से ही चलायेंगे।

अब पिछले कुछ महीनों से श्री काशी विश्वनाथ सेवा समिति को लेकर हैंडबिल महानगर के बहुत से विशिष्ट लोगों को भेजे गये हैं जिसमें श्री रवि पोद्दार पर मनमानी एवं तानाशाही का आरोप लगाया गया है। मुझे नहीं मालूम कि यह आरोप कहां तक सही है, पर मुझे एक बात पर घोर आपत्ति है एवं सामाजिक कर्मी होने के नाते बेनामी पर्चेबाजी पर बड़ी वेदना हो रही है  पर्चा प्रकाशित करने वालों ने अपना नाम देना उचित नहीं समझा सिर्फ दिया गया - ''श्री काशी विश्वनाथ सेवा समिति के सदस्यगण द्वारा समिति और समाज के हित में जारी।ÓÓ जब सारी शिकायतें समिति और समाज के कथित हित में है तो शिकायतकर्ताओं को अपना नाम देने से परहेज क्यों है? हैंडबिल में भाषा भी असंयमित है। वर्तमान पदाधिकारियों से इस्तीफे की मांग की गयी है। किसी भी संस्था के सदस्यों को शिकायत करने का अधिकार है एवं पदाधिकारी या पदाधिकारियों से त्यागपत्र मांगने का भी। पर किसी भी हालत में गुमनाम पर्चे बंटवाना अवांछित है। वैसे पर्चेबाजी के पीछे कौन है यह समिति से दिलचस्पी रखने वाले सभी जानते हैं पर अपना नाम नहीं देना कायरता की निशानी है। अगर पदाधिकारी अनुचित कार्य कर रहे हैं एवं उन्हें संस्था से अलग हो जाना चाहिये तो ऐसी मांग करने वालों में अपनी बात कहने की हिम्मत भी होनी चाहिये। सामाजिक संस्थाओं में विवाद पहले भी होते रहे हैं, प्रतिवाद सभायें भी हुई हैं। लेकिन उसका कारण स्पष्ट किया जाता है और हिम्मत एवं तर्क के साथ विरोध किया गया है। मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी जैसी राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त संस्था में मैं दस वर्ष तक उसकी कमिटी का सदस्य एवं कई विभागों का सचिव रह चुका हूं। इसमें भी कई बार प्रतिवाद किये गये पर उसमें पर्दे के पीछे से बिना उत्तरदायित्व लिये कोई विरोध नहीं हुआ। मैं इस बात में नहीं जा रहा हूं कि उक्त हैंडबिलों में जो अभियोग लगाये गये हैं वे कहां तक सत्य हैं क्योंकि यह समिति के सदस्यों का अख्तियार है और सदस्य ही यह फैसला ले सकते हैं कि कौन सही है कौन गलत। सामाजिक या सेवा के क्षेत्र में विवाद, विरोध की तो गुंजाइश है पर बेनामी या गुमशुदा प्रचार करने का समर्थन नहीं किया जा सकता। मैं स्वयं इस तरह के बिना नाम दिये पर्चेबाजी एवं पोस्टरों का दंश भोग चुका हूं एवं मैंने इस तरह की प्रवृत्ति के विरुद्ध लड़ाई की है।

श्री काशी विश्वनाथ सेवा समिति एक पुरानी संस्था है जिसने व्यापक सेवा कार्य किये हैं। स्व. देवकी नन्दन मानसिंहका, स्व. कृष्णचन्द्र अग्रवाल (सम्पादक दैनिक विश्वमित्र) एवं स्व. सांवरमल गोयनका जैसे विशिष्ट एवं वरिष्ठ लोग इसके अध्यक्ष पद को सुशोभित कर चुके हैं। श्रावण में कांवडिय़ों की सेवा, आमड़ागाछी में शानदार विश्रामगृह, जलवाहिनी द्वारा दूर-दूर तक जल आपूर्ति, प्राकृतिक आपदाओं के समय आपदा स्थल पर जाकर जन सेवा आदि-आदि सेवा कार्य भुलाये नहीं जा सकते।

मेरा अनुरोध है कि संस्था के नये और पुराने लोग मिल-बैठकर मामले को सुलझा लें। संस्था के सुनाम पर आंच नहीं आने दें। समिति का नाम खराब हो गया तो फिर देर हो जायेगी। ऐसे भी अब सामाजिक कार्यों का धीरे-धीरे अवसान हो रहा है और सेवा का काम भी कार्पोरेट घरानों की भेंट चढ़ रहा है। अत: समय रहते ही विवाद सुलझा लें इसी में भलाई है।


Comments

  1. समाज मे अच्छे कार्य का सराहना होनी ही चाहिए। विवाद होता ही रहता है।संस्था के हित में मिल-बैठकर विवाद सुलझाया जा सकता है।

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