जैसे-तैसे बीत गया 2020
वर्ष 2020 एक ऐसे मेहमान की तरह आया जिसके जाने का बड़ी बेसब्री से इन्तजार था। और जब वह चला गया तो फिर बेसब्री छोड़ गया जिसमें कुछ पाने की जबर्दस्त प्रतीक्षा है। कोरोना-19 की वैक्सीन बन रही है और अब आने वाली ही है इसके लिए हर व्यक्ति आश लगाये बैठा है। अच्छे दिन आने वाले हैं की सोच जितनी रोमांचकारी है उससे कहीं अधिक रोमांच यह सोचकर हो रहा है कि हमें इस महामारी से मुक्ति मिलेगी ताकि ये रोज-रोज का नकाब उतार सके, खुलकर सांस ले सकें। लोगों की खुशी में शरीक हो सकें और किसी की मैयत में सिर झुका सकें। साल 2020 सिर्फ बुरी यादें नहीं छोड़ कर जा रहा है। इस साल कुछ नयी चीजें हासिल हुई। हमारे रोजमर्रा शब्दकोष में कोरोना प्रायोजित नये शब्द जुड़ गये। ''मास्कÓÓ, दो गज की दूरी, क्वरेंटाइन, पैनडेमिक, सेनीटाइजेशन, सेफ्टी किट, कोविड, कोरोना, लॉकडाउन, डब्ल्यूएचओ, हेल्थ वर्कर आदि-आदि। सभी शब्द पहले भी शब्दकोष में थे पर हमसे कभी उनका वास्ता नहीं पड़ा और अब नौ महीनों से हम इन शब्दों को राम नाम की तरह रट रहे हैं। हमारे अखबार उद्योग में समाचार पत्र और चाय सुबह-सुबह घर-घर की मॉर्निंग रुटीन थी पर अखबारों में समाचारों की सुर्खियों की जगह पाठकों को कोरोना का नामुराद चेहरा रेंगता दौड़ता दिखाई दिया। घरों में डेली पेपर की नो इंट्री हो गयी। डब्ल्यूएचओ यानि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कई बार कैफियत दी कि अखबार के आने से संक्रमण नहीं फैलता है पर हमने इस वहम के कारण उस सलाह को भी दरकिनार कर दिया कि, कल न कुछ हो गया तो हम किसके पास जायेंगे, डब्ल्यूएचओ का तो ठिकाना भी हमें नहीं मालूम। खैर सावधानी हटी और दुर्घटना घटी के जुमले को हमने गांठ बांध ली। कोई कुछ कहे हम न अखबार छुएंगे न बाहर से आये सामान। पहले उन्हें नहलायेंगे यानि उसका सेनटीकरण करेंगे फिर उसे घर में लायेंगे। लेकिन एक दूसरी तस्वीर भी है जहां बाजारों में बिना मुखपट्टी के लोगो को घूमते देखा गया। आश्चर्य तो तब हुआ जब दिनरात चिन्ता करने वाला चपेट में आ गया और बिन्दास घूमने वाला अभी भी घूम रहा है, हमें अंगूठा दिखाता हुआ। हमारे एक मित्र तो शहर छोड़कर दूर चले गये और प्रण किया कि जब तक यह संक्रमण अपनी विनाशलीला समाप्त नहीं कर लेता वह घर लौटेंगे ही नहीं। लेकिन देखिये विडम्बना, एक दिन रात अचानक हमें छोड़कर चले गये।
कोविड-19 ने हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी। सारे दावे हास्यास्पद निकले। महामारी के लक्षण होते ही अस्पताल का ठिकाना पूछना शुरू हो जाता और अस्पताल में कोविड इलाज वालों को चौखट पर ''हाउस फुलÓÓ का बोर्ड देखकर एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल के चक्कर काटने लगे। कई मरीज अपनी पुरानी बीमारी लेकर अस्पताल में दाखिल हुये लेकिन वैश्विक रोग दायिनी कोरोना देवी की नजर पड़ गयी और मरीज के शरीर में पता नहीं कैसे घुस गयी। अंत बहुत बुरा हुआ। रोज अखबारों में देश भर में संक्रमित लोगों एवं मरने वालों की संख्या पढ़कर हमारा डेली खून जलता और लगता कि कोई गोलपिंड हमारे भी इर्द-गिर्द घूमता हुआ हमारा ठिकाना पूछ रहा है।
कोरोना काल की शुरुआत में ही हमसे थालियां और तालियां बजवायी गयी, दीपक जलवाये गये तो सच बतायें हमें बड़ा मजा आ रहा था। इस बुरे समय में भी जैसे हम घर बैठे इंडोर गेम्स खेल रहे हों। पर संक्रमण ने जब अपना विकराल रूप धारण कर लिया और सुरसा के वदन की तरह बीमारी बढ़ती गयी तो हमारे होश उडऩे लगे। एक के बाद एक वज्रपात तो तब हुआ जब कुछ आत्मीय स्वजन दुनिया छोड़ कर जाने लगे और हम उनके लिए दो आंसू भी बहा नहीं पाये, न ही उनका अंतिम बार चेहरा देख सके क्योंकि उस पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था। कहा गया घर पर रह कर ही आंखें नम कर लें। जिन अस्पतालों को इलाज करने का दायित्व दिया गया था उन्होंने शव संस्कार का स्वयंभू दायित्व ले लिया। भारतीय संस्कृति और परम्परागत सौजन्यता को संक्रमण का आतंक सांप सूंघ गया। हमें कड़वी घूंट पीनी पड़ी। घाव पर नमक छिडऩे की बारी तब आयी जब शोक सभायें भी ''झूम-झूमÓÓ पर होने लगी और कम्प्यूटर या लैपटॉप के स्क्रीन पर हमें गमगीन और लटके हुए चेहरे दिखाई देने लगे।
सभी तरफ मायूसी छा गयी हो, ऐसी बात नहीं है। कुछ को यह संक्रमण काल खुशियां भी दे गया। बच्चे को स्कूल से एक दिन छुट्टी मिल जाये तो क्या खुश होता है उधर लंबा वीकेंड आ जाये और ऑफिस नहीं जाना पड़े तो हम कितने प्रफुल्लित होते हैं। जब ''वर्क फ्रॉम होमÓÓ शुरू हुआ तो बच्चे पूरी तरह घर बैठ गये और ऑनलाईन कक्षायें ही चलीं। यह सही है कि बच्चे अब ऊबने लगे हैं। रोजाना ट्रॉफिक जाम से बच गये भले ही वर्क लोड ने शरीर का तेल निकाल लिया पर वे बिना तेल के दीये में बाती की तरह जलते रहे। ऊपर से बाबू, नीचे कच्छा पहनकर ही काम चला लिया। श्रीमती जी को भी आराम रहा। मेरे एक मित्र तो अपने ससुराल से ही आपरेट करते थे क्योंकि उनके बॉस को कम्प्यूटर में क्या मालूम कि वे कोलकाता में हैं या भागलपुर में।
जिनके साथ बहुत बुरा हुआ उनकी कहानी नहीं लिखी जाती क्योंकि अब अपने दु:ख को रोयें या उत्पीडऩ, वंचना की त्रासदी लिखें। ऐसे क्रम में करोड़ों मजदूर रास्ते पर सैकड़ों मील पैदल चल कर अपने घर पहुंचने को मजबूर हुए। कई रास्ते में ही चल बसे। छोटे-मोटे व्यापार उद्यम इस महामारी में विसर्जित हो गये। आत्महत्यायें इसी दौरान बढ़ीं और बड़ी संख्या में लोग गरीबी के नर्क में धकेल दिये गये।
2020 साल को, सोशल मीडिया पर वायरल हुई एक मजेदार कव्वाली ने यूं कह कर विदा किया है:-
तुझे क्यूं याद रखूं ऐ ट्वंटी-ट्वंटी
कष्ट दिए हैं तूने प्लेंटी प्लेंटी
और 20-20 तेरा यूं जाना, याद रखने के काबिल नहीं है
तुमने हमको जो इतना सताया, भूल जाने के काबिल नहीं है।
तू भांड़ में जाये....


2020 की कोरोना बीमारी गत 100 वर्षों की मानव मात्र के विरूद्ध सबसे बड़ी त्रासदी है। इसकी शुरुआत चीन के वुहान प्रान्त से हुई। कई लोगों का मत है कि अमरिकी राष्ट्रपति के द्वारा अन्तराष्ट्रीय व्यापार में चीन पर अत्यधिक अनैतिक दबाव बनाने से क्रुद्ध होकर चीन ने अमेरिका से बदला लेने के लिए इस बीमारी के virus को अपने वुहान प्रान्त की laboratory मे बनाया। यह बात बहुत कुछ सत्य प्रतीत होती है। भारत मे यह बीमारी बहुत कुछ नियन्त्रित हो गई है और आशा है कि अगले 3-4 महीनों में भारत से यह बीमारी पूर्ण रूप से विदा ले लेगी।
ReplyDelete2020 की कोरोना बीमारी गत 100 वर्षों की मानव मात्र के विरूद्ध सबसे बड़ी त्रासदी है। इसकी शुरुआत चीन के वुहान प्रान्त से हुई। कई लोगों का मत है कि अमरिकी राष्ट्रपति के द्वारा अन्तराष्ट्रीय व्यापार में चीन पर अत्यधिक अनैतिक दबाव बनाने से क्रुद्ध होकर चीन ने अमेरिका से बदला लेने के लिए इस बीमारी के virus को अपने वुहान प्रान्त की laboratory मे बनाया। यह बात बहुत कुछ सत्य प्रतीत होती है। भारत मे यह बीमारी बहुत कुछ नियन्त्रित हो गई है और आशा है कि अगले 3-4 महीनों में भारत से यह बीमारी पूर्ण रूप से विदा ले लेगी।
ReplyDelete2020 की कोरोना बीमारी गत 100 वर्षों की मानव मात्र के विरूद्ध सबसे बड़ी त्रासदी है। इसकी शुरुआत चीन के वुहान प्रान्त से हुई। कई लोगों का मत है कि अमरिकी राष्ट्रपति के द्वारा अन्तराष्ट्रीय व्यापार में चीन पर अत्यधिक अनैतिक दबाव बनाने से क्रुद्ध होकर चीन ने अमेरिका से बदला लेने के लिए इस बीमारी के virus को अपने वुहान प्रान्त की laboratory मे बनाया। यह बात बहुत कुछ सत्य प्रतीत होती है। भारत मे यह बीमारी बहुत कुछ नियन्त्रित हो गई है और आशा है कि अगले 3-4 महीनों में भारत से यह बीमारी पूर्ण रूप से विदा ले लेगी।
ReplyDeleteReally ammmmmazing! Actually being a child I can understand that how boring the online classes are.. 2020 is the worst year I have ever seen. I can relate every word of your article with my daily life and that's the reason why I like to read your articles uncle.. As everything is very much relatable and very much true. We all are waiting for the vaccine eagerly and I pray to God that the vaccine may work😄Hope that 2021 brings a fresh light to all of our lives and lightens everyone's life. Wishing you, your family and everyone a very Happy New Year 2021 in advance! Lots of respect, will wait for your next interesting article! Till then, thank you so much for sharing your valuable thought.
ReplyDeleteRegards.