नमस्ते ट्रंप!
भारत के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव पहले कभी अहमियत नहीं रखता था पर इस बार जितनी दिलचस्पी भारत में देखी जा रही है, अमेरिका के बाहर अन्यत्र नहीं। भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक अपनी पसंद पर बंटे हुए रहते हैं। इस साल के चुनाव में करीब 20 लाख भारतीयों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया है। चुनाव के पहले हमारे प्रधानमंत्री और ट्रंप साहब की दोस्ती की चर्चा करवायी गयी। भारत-अमेरिकी सम्बन्धों से इतर ट्रंप-मोदी हमजोली पर सरकारी तंत्र ने ज्यादा फोकस किया। भारत के गणतंत्र दिवस परेड में मुख्य अतिथि के तौर पर आने वाले भी वे ुपहले अमेरिकी राष्ट्रपति थे। अमेरिका के ह्यूस्टन रैली में हमारे प्रधानमंत्री गये थे जहां ''हाउ डी मोदीÓÓ के नारे के साथ प्रधानमंत्री का अभिनंदन किया गया। दूसरी तरफ अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष में गत फरवरी में ट्रंप यहां आये। तब प्रधानमंत्री ने अपने प्रदेश गुजरात में बहुत बड़ी रैली की। 24 फरवरी को अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम में ''नमस्ते ट्रंपÓÓ कार्यक्रम आयोजित किया जहां बहुत बड़ी संख्या में गुजराती ट्रंप को सुनने आये। ट्रंप ने अपने भाषण में मोदी की तारीफ के पुल बांधे और हाउडी मोदी के नहले के जवाब में दहला मार कर ट्रंप को आह्लादित कर दिया। उस वक्त भी चर्चा हुई कि ट्रंप अपने राष्ट्रपति पद के लिए कवायद कर रहे हैं।
अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम में ''नमस्ते ट्रंप'' कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी के साथ ट्रंप दम्पत्ति।
आमतौर पर अंदाजा है कि भारतीय अमेरिका समुदाय में से लगभग 80 फीसदी लोग डेमोक्रेटिक का समर्थन करते हैं। अमेरिका में अल्पसंख्यक होने के नाते उन्हें डेमोक्रेट राजनीति में थोड़ी जगह मिलती है। पिछले महीने एक प्री-इलेक्शन पोल में पाया गया कि इस समुदाय का 30 फीसदी समर्थन ट्रंप को मिल रहा है। यानी 10 फीसदी वोट ट्रंप को इसलिए ज्यादा मिल रहे थे, क्योंकि उन्हें लगा है कि ट्रंप का भारत के प्रति रवैया अच्छा है और भारतीय पीएम से मित्रता का व्यवहार है। 2016 में उन्हें भारतीय-अमेरिकियों के 17-18 फीसदी ही वोट मिले थे। लेकिन ट्रंप-मोदी दोस्ती को अमेरिकी हितों की कसौटी पर उतरने का जब मौका मिला तो हमें कड़वी घूंट निगलनी पड़ी। कोविड-19 संक्रमण के प्रारम्भिक दौर में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन टेवलेट अमेरिका ने भारत से मंगवाई तो भारत अमेरिका उसकी बड़ी खेप भेजने हेतु प्रस्तुत था। फिर भी ट्रंप ने भारत से बनायी मित्रता को यह कहकर झटका दिया कि नहीं दी तो आपको हम देख लेंगे। यही नहीं हाल ही में भारत पर हवा को बदतर बनाने का आरोप लगा कर यह साबित कर दिया कि भारत से दोस्ती की असलियत क्या है। हालांकि इसके जवाब में दुनिया में प्रदूषण के मामले में अमेरिका की बड़ी हिस्सेदारी को भारत गिना नहीं पाया। अमेरिका के भारत के प्रति रवैये का पुराना उदाहरण यह है कि वाजपेयी मंत्रिमंडल में रक्षामंत्री समाजवादी नेता जार्ज फर्नांडिस को अमेरिका में प्रवेश के लिये कपड़े खोल कर सुरक्षा जांच करवानी पड़ी। हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तो उन्हें अमेरिका ने वीजा देने से भी इनकार कर दिया था।
भारत के साथ अमेरिका के रिश्ते में कभी बड़ा परिवर्तन नहीं रहा। यहां यह कहना अप्रासंगिक नहीं होगा कि अमेरिका में अहमियत या तो उन्हें मिलती है जो उसके पिट्ठू होते हैं या फिर उन्हें जो अमेरिका के दांत खट्टे करके रखते हैं। भारत इन दोनों श्रेणियों में नहीं है। हाल ही में ट्रंप ने भारत के साथ सम्बन्ध मजबूत करने की चेष्टा इसलिये भी की क्योंकि उसका विश्व राजनीति में चीन सबसे बड़े शत्रु है। इस परिपेक्ष में वह भारत के साथ सम्बन्ध पहले से बेहतर बनाना चाहता है। अगर हम डेमोक्रेट पार्टी का भारत के प्रति रवैया पर ²ष्टिपात करें तो देखेंगे कि बाइडेन ने सिनेट की विदेश संबंधों की समिति के अध्यक्ष के तौर पर भारत के खिलाफ प्रतिबंध हटाने के लिये जार्ज बुश को चि_ी लिखी। 2013 में उपराष्ट्रपति के रूप में बाइडेन भारत आये और कहा था कि भारत के साथरिश्ते महत्वपूर्ण होंगे। इस बार भी 15 अगस्त को उन्होंने वीडियो जारी कर कहा कि हम आतंकवाद व सीमा मामलों पर भारत का समर्थन करते हैं। वर्ष 2000 में क्लिंटन आये थे, जो डेमोक्रेटिक थे। वह बहुत अच्छा दौरा रहा। उनके बाद रिपब्लिकन राष्ट्रपति जार्ज बुश ने परमाणु सहयोग समझौता किया। फिर डेमोक्रेटिक बराक ओबामा थे, उन्होंने यूएनओ में भारत की स्थायी सदस्यता को समर्थन दिया एवं भारत को प्रमुख रक्षा साझेदार बनाया। दो बार भारत दौरा किया जो उससे पहले किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने नहीं किया था।
ट्रंप का इस बार चुनाव अभियान किन्तु दुनिया भर में बहुचर्चित और बहुनिन्दित रहा। इस का महत्वपूर्ण आयाम रहा है डर की राजनीति। ट्रंप कह रहे थे कि अगर डेमोक्रेट सत्ता में आ जायेंगे तो विभिन्न करों में बढ़ोतरी होगी। बाइडेन जीते तो चीन खुश होगा वगैरह-वगैरह। डर के माहौल को बढ़ावा देने में सबसे आगे ट्रंप ही रहे हैं। बाइडेन ने हालिया बयानों में देश को एक साथ जोडऩे की बात कही है, पर ट्रंप ने एक बार भी ऐसी बात नहीं की। ट्रंप को अमेरिकी समाज में बढ़ते विभाजन ध्रुवीकरण का बहुत लाभ मिला है। इसलिए भी बाइडेन की जीत उन्हें सबको साथ लेकर चलने में आसानी होगी जो अमेरिका के लिए बहुत जरूरी है। ट्रंप ने चुनाव जीतने के लिए विभाजनकारी बातों को हवा दी।
राष्ट्रहित ही संबंधों का मूलाधार होता है। अमेरिकी चुनाव में इन पंक्तियों के लिखेने तक जोसेफ बाइडेन चुनाव जीत रहे हैं। ट्रंप के सारे दांव चित्त होते जा रहे हैं। उनका सुप्रीम कोर्ट जाकर बाजी पलटने का अंतिम दांव भी फुस्स हो गया। बाइडेन के जीतने से भारत के लोगों में ज्यादा खुशी होगी क्योंकि हमारे देश के लोगों ने ट्रंप के साथ मोदी जी के हाथ मिलाने को तो पसन्द किया पर ट्रंप के हाथों कोहिलाने और दोस्ती का अतिरेक दिखाने को पसन्द नहीं किया। भारत को बाइडेन की जीत से इसलिये भी खुशी होगी क्योंकि पहली बार भारतीय मूल की दक्षिण भारतीय महिला कमला हैरिस उपराष्ट्रपति बन जायेंगी और हो सकता है चार वर्ष बाद वे अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिये डेमोक्रेट की उम्मीदवार हों। भारत के 40 लाख लोग अमेरिका के सबसे अधिक समृद्ध, सुशिक्षित और सौम्य लोग हैं। ऐसी भी संभावना है कि भारतीय मूल के लोग बाइडेन प्रशासन के उच्च अधिकारी बनें। विशेष बात यहहै कि ओबामा के राष्ट्रपति काल में बाइडेन बतौर उपराष्ट्रपति भारत के प्रति सदैव संवेदनशील रहे। यह ठीक है कि बाइडेन और कमला ने मानवाधिकार, कश्मीर और नागरिकता संशोधन कानून जैसे मुद्दे ंपरभारत का विरोध किया था लेकिन उसका मूल कारण यह था कि ट्रंप ने इन्हीं मुद्दों पर हमारा समर्थन किया था। बाइडेन के जीतने से भारत में भी लोकतंत्र के पक्ष में हवा मजबूत होगी, भले ही कुछ मुद्दों पर हम अमेरिका से सहमत न हों। हां अन्त में, ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद ऐसा लगा दुनिया के शक्तिशाली देशों में दक्षिणपंथी एवं तथाकथित राष्ट्रवादियों की बयार बहने लगी थी, उसको भी ब्रेक लगेगा।

Modi is victory
ReplyDeleteअत्यन्त बेबाक विश्लेषण। निश्चित रूप से भूतकाल में बाईडेन द्वारा किए गए भारत का विरोध उस समय उनकी तात्कालिक राजनीतिक कारणों से थी जो ट्रंप के विरुद्ध थी। इससे भारतीय राजनीति को कुछ लेना-देना नहीं होना चाहिए। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारत को बाईडेन की वर्तमान नीतियों में ही भारत के प्रति सकारात्मक बिंदुओं पर विचार करने की और आशा रखने की आवश्यकता है।
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