उग्र सुधारवादियों के सामने टाटा को भी घुटने टेकने पड़े

 उग्र सुधारवादियों के सामने टाटा को भी घुटने टेकने पड़े

सास-बहू के रिश्ते पर गिरी धर्म की गाज

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का प्रिय भजन था - ''ईश्वर अल्ला तेरो नाम, सबको सनमति दे भगवान।Ó बापू अगर जिन्दा होते तो उन्हें किसी एक को चुनना होता। क्योंकि आज के भारत में ईश्वर और अल्ला इक_ा नहीं रह सकते। साम्प्रदायिक सद्भाव की बात करने में बड़ी जोखम है हमारे देश में। नि:सन्देह हिन्दू-मुस्लिम संगठित दंगों की वारदातों में कमी आई है पर हम एक दूसरे से इतने अलग हो गये हैं कि हमारे बीच सौहाद्र्र या सद्भाव की बात या तो कहानी किस्सों में है या किसी फिल्म के ²श्य में। आप हिन्दू धर्म के सभी अनुशासन एवं प्रवृत्तियों को मानते हैं फिर भी अपने को हिन्दू होने का तभी दावा कर सकेंगे जब गैर हिन्दुओं विशेषकर मुसलमानों को दो-चार गाली रोज न दें या सोशल मीडिया पर कुछ मनगढ़ंत बातें ट्रोल कर मुसलमानों के विरुद्ध विषवमन न कर दें।




अब तो उग्र सुधारवादियों ने इस देश के सबसे पुराने औद्योगिक घराने टाटा को भी घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया है। साफ है, बहुसंख्यकवाद इस देश की हकीकत बन गया है। ऐसा लगता है कि भारत अब पाकिस्तान की तरह का धार्मिक देश बनता जा रहा है। स्थिति यह है कि महाराष्ट्र के राज्यपाल मुख्यमंत्री की धार्मिकता को लेकर आपत्तिजनक सवाल पूछते हैं जबकि हमारा संविधान देश को संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करता है। अगर यही हाल रहा तो बहुत संभव है कि आने वाले दिनों में मुहम्मद रफी, तलत महमूद जैसे गायकों व नौशाद जैसे संगीतकारों के संगीत सुनने पर पाबंदी लगा दी जायेगी। आपको ये भूलना पड़ेगा कि मदर इंडिया जैसी हिंदी फिल्म जिसमें भारत की आत्मा का सही रुपांतरण है, का निर्माता, निदेशक, संगीत निदेशक, मुख्य पात्र सभी मुसलमान हैं। यहां तक कि हिन्दी फिल्मों में कई लोकप्रिय भजन जो लोगों की जुबान पर हैं, इसी मुस्लिम गीतकार ने लिखे हैं। लोकप्रिय टीवी सीरियल महाभारत के संवाद जिसे सुनने के लिए लोग अपने टीवी पर चिपक कर बैठे रहते थे, किसी मुसलमान ''राही माजूम रजा ने लिखे थे।

भारत के लगभग हर शहर में जेवरात बनाने वाले प्रतिष्ठान ''तनिष्क के शोरूम हैं। यह टाटा की टाइटन कम्पनी का हिस्सा है। इस त्यौहार के मौसम में तनिष्क का एक विज्ञापन प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एवं सिनेमाघरों में दिखाया जाना शुरू हुआ था। विज्ञापन में एक अन्तर्धार्मिक विवाह के बाद बहू की गोदभराई रस्म दिखायी गयी है जिसने साड़ी पहन रखी है और उसकी सास उसे सेरेमनी यानि रस्म पर आयोजित समारोह में ले जा रही है। वीडियो खत्म होने के बाद महिला अपनी सास जिन्होंने सलवार-सूट पहन रखा है और सिर पर दुपट्टा डाल रखा है उससे पूछती है- मां लेकिन यह रस्म तो आपके घर में होती भी नहीं है न? इस पर सास का जवाब आता है- लेकिन बिटिया को खुश करने की रस्म तो हर घर में होती है न। तनिष्क ने गोल्ड जूलरी का कलेक्शन का नाम एकत्वम रखा है। लेकिन अब यह वीडियो कंपनी के यू ट्यूब चैनल पर भी ओझल हो गया है।

इस विज्ञापन को लेकर सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग और बायकॉट करने की मांग उठने लगी थी, जिसके बाद कंपनी ने अपना ऐड वापस ले लिया है। तनिष्क द्वारा अपने विज्ञापन को हटाने पर बॉलीवुड के मशहूर डायरेक्टर ओनिर ने अपने ट्वीट में इस ऐड को हटाये जाने पर दु:ख जताया है। उन्होंने लिखा -''हम निराश हैं...बहुत दु:ख की बात है।ÓÓ कांग्रेस नेता शशि थरूर ने भी विज्ञापन का समर्थन किया था। स्वरा भास्कर, ऋचा चड्ढा और दिव्या दत्ता जैसी अभिनेत्रियों ने भी विज्ञापन का समर्थन किया है।

वहीं कंगना ने अपने ट्वीट में विज्ञापन के खिलाफ भड़ांस निकाली है। लिखा है - ''ऐड का कन्सेप्ट और कनक्लूजन दोनों ही गलत थे....एक हिंदू लड़की बड़े सहमे स्वर में अपनी सास से कुछ पूछ रही है। क्या वो लड़की उस घर की नहीं है? एक हिंदू बहू जो उस घर में रह रही है, लेकिन उसे स्वीकार तब किया जाता है जब उसकी कोख में घर का वारिस आ जाता है। ये विज्ञापन सिर्फ लव जिहाद को ही नहीं प्रमोट करता, बल्कि सेक्सिज्म को भी बढ़ावा देता है। प्तञ्जड्डठ्ठद्बह्यद्धह्न।ÓÓ

अपने जेवरात के सेल्स प्रमोशन हेतु तनिष्क ने इस एड में साम्प्रदायिक सद्भाव एवं सास-बहू के सम्बन्धों के बीच धर्म की दीवार गिराकर तनिष्क ने आभूषण को गृहणियों की पसन्द बनाने का प्रयास किया। हालांकि यह विज्ञापन व्यवसायिक ²ष्टि से ही बनाया गया था पर इसमें सद्भाव एवं धार्मिक सौहाद्र्र को आधार बनाकर कम्पनी ने सराहनीय कार्य किया पर साम्प्रदायिक विद्वेष एवं विकृति पैदा करने वालों की कुंठा को यह कतई रास नहीं आया।

न्यूयार्क स्थित इंटरनेशनल एडवर्टाइजिंग एसोसियेशन (आईएए) जिसके दुनिया के 76 देशों में बड़े-बड़े क्लाइंट हैं ने अपने वक्तव्य में कहा है कि ''हम सम्बन्धित सरकार से अपील करते हैं कि धमकी देकर एवं भय पैदा कर विज्ञापन वापस लेने के इस मामले को गम्भीरता से लें।ÓÓ भारत की कई ऐड एजेन्सियों एवं उनके राष्ट्रीय संगठनों ने भी तनिष्क के विज्ञापन को लेकर साम्प्रदायिक तनाव फैलाने एवं भय दिखाकर अपनी बात मनवाने वालों की निन्दा की है। किन्तु तनिष्क ने विज्ञापन वापस लेना ही उचित समझा क्योंकि उसे भय था कि उसके बेशकीमती शोरूम पर हमला हो सकता है।

हिन्दू-मुस्लिम सौहाद्र्र का एक तरफ कुछ सम्प्रदायवादियों से खतरा बढ़ रहा है वहीं दूसरी ओर देश में इन दोनों कौम के प्रति परस्पर प्रेम बढ़ाने एवं गले लगाने के भी कई उदाहरण हैं। अन्तर्धार्मिक विवाहों को मैं बहुत व्यवहारिक नहीं मानता रहा हूं क्योंकि दोनों का खानपान, रीति-रिवाज, सामाजिक व्यवस्था काफी भिन्न हैं पर कोई प्रेमी युगल दाम्पत्य सूत्र में बंधना चाहे और उसका निर्वाह कर सके तो उसका स्वागत किया जाना चाहिये। सुपरिचित हिन्दी नाट्य शिल्पी उमा झुनझुनवाला ने अपने नाटकों के निदेशक अजहर आलम से शादी करने का मन बनाया तो उमा के घर वाले राजी नहीं हुए। मैंने और कुछ मित्रों ने उमा को समर्थन दिया लेकिन हमारी शर्त यह थी कि वह शादी के बाद भी अपना धर्म परिवर्तन नहीं करेगी। अजहर ने इस शर्त को स्वीकार किया। आज उमा के दो होनहार पुत्र हैं एवं अपने फ्लैट के एक कोने में उसने मन्दिर भी बना रखा है। सुनील दत्त ने नर्गिस से विवाह किया पर नर्गिस को हिन्दू नहीं बनाया। आज दोनों हमारे बीच नहीं हैं पर पूरे देश में उनका सम्मान है। जोधा-अकबर के बारे में तो आप सभी जानते हैं। पर ऐसा कब तक चलेगा कहा नहीं जा सकता।


Comments

  1. ।।नेवर जी निस्संदेह पत्रकारिता के अनुभवी खिलाड़ी हैं,परंतु उपरोक्त लेख का पहला वाक्य ""उग्र सुधारवादी " इसे पढ़ते ही समझ में आया था कि ये महाशय क्या बकवास करने वाले हैं। असल में हिंदू मुस्लिम सारी प्रजा को मूर्ख बनाने में निम्नलिखित तत्वों का योगदान है। चौथा स्तंभ माने जाने वाला मीडिया, तथा अन्य तीनों स्तंभ भी। सबों में प्रजा को लूटने,संस्कृति विहीन करने की होड़ मची है । इन लोगों को किसी धर्म की ना तो कोई जानकारी है और ना ही कोई मतलब अपने आप को अंधों में काना राजा समझकर अपनी लंतरानियाँ हाँकने रहते हैं। जनता के सरोकार से कभी भी इनका कोई मतलब नहीं होता यही आज का सत्य है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. खेद है ....शीर्षक बहुत ही निन्दनीय है।
      यहाँ द्वेष-घृणा की बात नहीं
      जो समय-समय सर्व घात सही
      क्यों न हो ऐसा
      बात हो सच्चा जैसा
      है लचीला सदियों से जो
      सहर्ष आकर उसमें विलय हो।
      *****
      उसी में क्यों न सब विलय हो

      Delete
  2. सिर्फ आप लोग हिन्दुओं को ही ज्ञान ,,,, लते हो, हिम्मत है तो मुस्लिमों के बारे में भी बोलो

    ReplyDelete
  3. निःसंदेह आप एक साहसी व्यक्ति हैं।
    हिन्दुओं और मुसलमानों को धर्म के नाम पर आपस में उलझाए रखना, लोगों को समाज, देश में व्याप्त अन्य गंभीर समस्याओं की तरफ़ से ध्यान हटाए रखने का एक आसान तरीका है।
    यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर लोग बात करने से सहमते है। दोनों ही धर्मो के बुद्धिजीवियों को यह बात समझ में आती ही होगी कि आपस में लड़ते रहने में सभी का नुकसान है पर सभी खामोश है।मुक दर्शक बने बैठे हैं।
    हमारे हृदय में देशभक्ति है या नहीं यह तथाकथित देशभक्त तय करने लगे हैं। धर्म
    के ठेकेदारों को धर्म को गहराई से समझने की आवश्यकता है। महान समाज सुधारक कवि कबीर की याद आती है जिन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित करने का आजीवन प्रयास किया। आज शिक्षित समाज को सजग होने की नितांत आवश्यकता है। हमारे देश की एकता ही हमारी पहचान है। मानवता से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। दोनों ही पक्षों को इस पर विचार करना चाहिए।



    ReplyDelete
  4. अब हिंदु कब से उग्र वादी हो गए और किस मुस्लिम को गाली दे दी हमेशा गांधी को बीच में लाने की कोई जरूरत नहीं है हम गोडसे जी को मानने वाले हैं वंदे मात्रम

    ReplyDelete
  5. I think that there is only one caste which is human and there is only one religion which is humanity as the color of the blood is same( red). Unity is our strength and division is our weakness. So we should stay united,then everything will be okay. Thank you for sharing your valuable thought.
    Regards,
    Tapashi Bose.

    ReplyDelete
  6. जब अल्लाह इश्वर को मानने वालो को मारने की इजाजत देता है तब एक होने का सवाल ही पैदा नही होता। गांधी जी के पहले अकबर महान ने भी कोशिश की थी। विफल रहे और गांधी भी विफल हो गए।

    ReplyDelete

Post a Comment