वेबसीरीज ने फिर बिग बुल के उत्थान और पतन की याद ताजा कर दी

 हर्षद मेहता स्कैम 1992

वेबसीरीज ने फिर बिग बुल के उत्थान और पतन की याद ताजा कर दी

स्मरण होगा कि 1980 से 1992 तक हर्षद मेहता नाम के एक शेयर ब्रोकर ने देश के युवा उद्यमियों के दिलों पर एकछत्र राज किया था। हर्षद भाई के नाम का मीठा जहर इस तरह धुल गया था कि हर युवक हर्षद बनने का स्वप्न देखने लगा। लेकिन उसके दु:खद अन्त को लोग भूल गये जिसकी हाल ही में हंसल मेहता द्वारा निर्मित ''हर्षद मेहता स्कैम-1992ÓÓ वेब सीरीज ने याद ताजा कर दी। पहले अगर हम फिल्म की बात करें तो यह फिल्म कई महापुरुषों पर बनी बायोपिक (जैसे गांधी, आंधी, मैरीकॉम, गुरु, शकुन्तला देवी आदि-आदि) से अलग अपने समय के एक बहुचर्चित एवं बहुनिंदित कांड पर आधारित बड़ी संजीदगी से पेश की गयी वेब सीरीज है। इसके निर्माता हंसल मेहता ने जिस ढंग से फिल्म का निर्माण किया वह दर्शक को अंत तक बांध कर रखती है। एक बार में सीरीज के दस एपीसोड देखना सम्भव नहीं है क्योंकि सभी 50-50 मिनट के हैं पर दो-तीन किश्तों में देखा जा सकता है। इस फिल्म में हर्षद मेहता के साथ उस वक्त के शेयर बाजार के कई बड़े खिलाडिय़ों को फिल्माया गया है। जितने लोगों ने किरदार निभाया है वे अपनी भूमिका के साथ न्याय संगत है। हालांकि फिल्म में एक बड़े प्लेयर अजय केडिया को कोलकाता के सुप्रसिद्ध स्टॉक ब्रोकर अजय कायां हैं, से मैंने फिल्म के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि इसमें फैक्ट कम फिक्शन ज्यादा है। लेकिन अपने ढंग की पहली फिल्म उन सबको देखनी चाहिये जो शेयर बाजार या वित्तीय मार्केट से किसी प्रकार जुड़े हुए हैं।

हर्षद मेहता 1980 से 90 के दशक में स्टाक मार्केट का वह बेताज बादशाह था जिसने स्टाक मार्केट की दशा और दिशा ही बदल डाली। मगर किसे पता था, जिसे स्टाक मार्केट अपना मसीहा मान बैठा है, जिसे 25 से 40 साल का जवान उद्यमी अपनी किस्मत की कुंजी समझ रहा है वो एक बड़ा घोटालेबाज है जो उन्हें बर्बादी के नर्क में पटक देगा। हर्षद मेहता वो नाम है जिसने हमारे देश में 5000 करोड़ का घोटाला किया था। यह सही है कि अपने समय में भारत की बैंकिंग व्यवस्था के छिद्रों (लू पोल) का उसने भरपूर फायदा उठाया और अंत में तमाम शेयर धारकों के सपने और उनके हजारों करोड़ लूट कर ले गया। हर्षद मेहता की ऊंची उड़ान का गुरु मंत्र था जो पहले एपीसोड में ही वह कहता है - ''गुजराती तो वैसे भी पैसे को धर्म से बड़ा समझता है।ÓÓ स्पष्ट है जब कोई व्यक्ति अपने कौशल एवं वाक्पटुता का बेजा इस्तेमाल करता है उसे यह सोचकर ही मन बनाना पड़ता है कि वह जो कुछ कर रहा है - एक महान पराक्रमी कार्य है। हर्षद ने इसीलिये धर्म को पैसे के आगे झुकाया ताकि उसे कभी दुविधा नहीं हो और अपने दुस्साहस को अंजाम दे सके।


हर्षद का जन्म बम्बई के घाटकोपर इलाके में हुआ जहां हजारों मध्यम श्रेणी के गुजरात प्रवासी परिवार रहते हैं। उनके पिता कपड़े के साधारण व्यापारी थे। बी कॉम करने के बाद युवा हर्षद ने आठ साल कई जगह काम किया। इसी क्रम में न्यू इंडिया अश्योरेंस कंपनी में बतौर सेल्स पर्सन काम किया और वहीं से उसके मन में शेयर बाजार के लिये रुझान पैदा हुआ। बाद में मेहता ने स्टॉक मार्केट के हर पैंतरे सीखे और 1984 में ''ग्रो मोरÓÓ नाम से अपनी कम्पनी बनाकर बम्बई स्टाक एक्सचेंज में बतौर ब्रोकर मेंबरशिप ली। यहां से शुरू हुआ बेताज बादशाह का तूफानी सफर जिसे आगे चलकर शेयर बाजार के लोग मार्केट का सुपर स्टार अमिताभ बच्चन और बिग बुल के नाम से जानने लगे। शेयर बाजार में बीयर और बुल क्रमश: मंदडिय़ों एवं तेजडिय़ों को कहा जाता है। हर्षद जिस कम्पनी में पैसा लगाता था उसके शेयरों के भाव बढ़ते या फुदकते नहीं उछलते थे और छूने के लिये आसमान भी कम पड़ जाता था। जब उसने मिट्टी को सोना बनाना सीख लिया तो वह उन कम्पनियों के शेयर खरीदने लगा जो किसी कोने में सिसक रही थी। चार-पांच रुपये के शेयर पर दांव लगाकर उसे सैकड़ों और हजारों में उछालकर  हर्षद ने लाखों शेयरधारकों को पैसे की बरसात में झमाझम नहलाया। हर्षद के इस करिश्मे का असर शेयर बाजार तक सीमित नहीं था, समाचार पत्रों की सुर्खियां बना, मैग्जिन के कवर पर उसके फोटो छपने लगे और सत्ता के गलियारे में भी हर्षद-हर्षद के नाम का जादू छा गया। घाटकोपर के तंग इलाके से निकलकर वह सी फेसिंग पेंट हाऊस में आ गया और इम्पोर्टेट महंगी गाडिय़ों में घूमने लगा।

हर्षद मेहता को अगर सारे घटनाक्रम या भाग्य चक्र का हीरो कहा जाय तो टाइम्स ऑफ इंडिया की फाइनांस-एडीटर सुचेता दलाल के मेरे जैसे प्रशंसकों को घोर आपत्ति हो सकती है जिसने अपने अखबार के सीनियर पत्रकारों से तर्क-बितर्क कर हर्षद मेहता के स्कैम का पर्दाफाश किया। पत्रकारिता में साहस के लिए सुचेता को राष्ट्रपति ने पद्मश्री सम्मान से नवाजा था। सुचेता ने ही सबसे पहले प्रकाशित किया था कि स्टेट बैंक में बड़ा घोटाला हुआ है जिससे देश की सबसे बड़ी बैंक को कई हजार करोड़ का चूना लगा है। सुचेता ने ही टाइम्स में प्रकाशित किया कि मेहता बैंक से 15 दिन का लोन लेता था और उसे मनचाहे स्टाक में निवेश कर उनके शेयरों के भाव बेतहाशा बढ़ावा कर हजारों करोड़ रुपये पीट लेता था। इसी क्रम में उसने और भी कई धोखाधड़ी की जिसके कारण सीबीआई ही नहीं भारत सरकार को जेपीसी यानि ज्वाइंट पार्लियामेंटरी कमिटी बनानी पड़ी जो सारे बैंक व्यवस्था की लू पोल समझने में जुट हुई। हर्षद पर 72 क्रिमिनल और सात सौ सिविल मामले दर्ज हुए। हर्षद ने 1993 में पूर्व प्रधानमंत्री और उस वक्त कांग्रेस अध्यक्ष श्री पी वी नरसिम्हा राव पर केस बचाने के लिए 1 करोड़ घूस लेने का आरोप लगाया था। फिल्म में यहीं बहुचर्चित  चन्द्रास्वामी भी प्रकट होते हैं जो हर्षद को नरसिम्हा राव का नाम नहीं लेने और उसके एवज में उसे सीबीआई जांच से मुक्त कराने का ऑफर देते हैं।


पद्मश्री सुचेता दलाल की किरदार

''धर्म से बड़ा धनÓÓ मानने वाला सचमुच पैसे को भगवान समझने की भूल कर गया और आर्थिक अपराधों के मकडज़ाल में इस कदर फंसता चला गया कि एक केस में बाहर आता तो जेल के बाहर दूसरे केस में उसे गिरफ्तार करने के लिये पुलिस दल मौजूद मिलता।

अंत में वही हुआ जो ''अहम् ब्रह्मास्मि, द्वितीयो नास्तिÓÓ की चादर ओढऩे वाले का होता है। जेल में ही उसे दिल का दौरा पड़ता है। इलाज के लिये थाणे सिविल अस्पताल में उसे ले जाया गया जहां चिकित्सा के पहले ही उसकी मौत हो गयी- 31 दिसम्बर 2001 की रात जब मायानगरी मुम्बई नये वर्ष के जश्न मनाने में रात भर जग रही थी।

बहरहाल, मैं समझता हूं हर उस व्यक्ति को यह वेब सीरीज जरूर देखनी चाहिये जो ''धन को धर्म से बड़ाÓÓ समझने की भूल कर बैठते हैं एवं उनको भी जिन्होंने उस वक्त कलकत्ता के इंडिया एक्सचेंज बिल्डिंग के पास एक बड़ा होर्डिंग लगवाया था जिसमें लिखा था - ''जब तक सूरज चांद रहेगा, हर्षद तेरा नाम रहेगा।ÓÓ



Comments

  1. एक दुर्भाग्यपूर्ण अविस्मरणीय घटना... बहुत ही रोचक ढंग से समीक्षा दी है आपने इस वेब सीरीज के बारे में। बधाई हो!!
    उग्र महत्वकांक्षी स्वभाव मनुष्य के व्यक्तित्व के साथ-साथ उसके अस्तित्व को भी तार तार कल देता है।

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  2. आदरणीय
    आज की युवा पीढ़ी को हर्षद मेहता के दुर्भाग्यपूर्ण अन्त से सीख लेनी चाहिए।
    कम से कम समय में बहुत धन कमाना,और भौतिक सुख प्राप्त करने को ही जीवन का उद्देश्य समझने वाले लोग अपने लक्ष्य की प्राप्ति में यह भूल जाते हैं कि कब और कैसे वो उन राहों पर चल पड़े है जो एक अंधेरी खाईं में जाकर खत्म होती है। पैसा बहुत महत्व रखता है हम सब की ज़िदगी में पर इसका नशा हमें जीवन के वास्तविक सुखों से दूर कर देता है। मानसिक सुख ही सर्वोपरि होता है। छल ,कपट,धोखे से पैसा कमाने वाले कुछ क्षण के लिए ऐशो-आराम की ज़िंदगी तो जी लेते हैं पर अंत उनका हर्षद मेहता जैसे ही होता है। सिर्फ हर्षद ही नहीं ऐसे अनेक उदाहरणों से हमारा समाज भरा पड़ा है।

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