भारत में बलात्कार एक सामाजिक समस्या है

 मोमबत्ती लेकर हम किसे ढूंढ़ रहे हैं?

भारत में बलात्कार एक सामाजिक समस्या है

राजनीति में इसका कोई हल नहीं है

भारत में बलात्कार हमारे पुराने सामाजिक आचरण का ही फलादेश है, जिसका राजनीतिक पार्टियों एवं उसके नेताओं के पास कोई कारगर हल नहीं है। इसका एक घिनौना रूप देहातों में मिलता है लेकिन शहर के कथित सभ्य समाज में इसका रूप और भी घिनौना है। जिस प्रकार दहेज, बाल विवाह, बेमेल विवाह, बेजातीय विवाह, शादियों में पात्र की बिक्री, वैवाहिक आयोजन में शराबखोरी आदि-आदि सामाजिक विसंगतियों का दुष्परिणाम है, वैसे ही बलात्कार एक सामाजिक उत्पीडऩ है जिस पर पुरुष अपना हक समझता है। हमारे यहां कभी इस गहन समस्या पर न बहस हुई है और न ही समाज में इस पर कभी कोई गम्भीर चर्चा। एक बलात्कारी भी इसे अपराध मानता है किन्तु वक्त आने पर वह इस अंधेरे कुएं में कूद पड़ता है। भारत में बेरोजगारी के बारे में संसद में भी बहस हुई है पर इस बेरोजगारी से उत्पन्न कुछ गम्भीर समस्याओं पर कभी बातचीत नहीं हुई। आजादी के समय विभाजन के बाद भी भारत की जनसंख्या 36 करोड़ के आसपास थी। 73 वर्षों में जनसंख्या 130 करोड़ है तो बेकार युवकों की फौज में भी बेतहाशा वृद्धि हुई है। यह एक अकाट्य सत्य है कि भोजन के बाद व्यक्ति की जरूरत सेक्स होती है। बेकार बेरोजगार युवकों से कोई शादी नहीं करना चाहता। शादी हो भी गयी तो वह परिवार नहीं बसा पाता, एक आवारा जीवन उसे जीना पड़ता है। इसी तरह के निराश युवक गैंगरेप में शामिल होते हैं। गांवों के खेत-खलिहानों में गैंगरेप एक आये दिन की वारदात है। इसका मतलब यह भी नहीं कि बेकार आवारागर्दी युवकों का ही बलात्कार पर एकाधिकार है। नहीं। देहाती क्षेत्रों में सामंतवाद का यह खंडहर बचा हुआ है जहां लोगों के पास असीम शक्ति होती है जिससे वे अपराध करते हैं और पैरवी कर छूट जाते हैं। इस तरह के अपराध कई ²श्यों में फिल्माये गये हैं। कुछ लोग निरीह औरतों को अपना शिकार बनाते हैं एवं अपराध करके बामुलायजा मूंछ पर ताव देकर बाहर आ जाते हैं। इसी पर बाबा तुलसी दास ने लिखा है-''समरथ को नहीं दोष गौसाईं।ÓÓ जहां-जहां सामंती सामाजिक अवशेष किसी भी कराण से बचे हुए हैं, वहां-वहां ऐसी घटनाएं बहुतायत में होती है पर रिपोर्ट इक्का-दुक्का लिखी जाती हैं।



देश के सही परि²श्य को समझने के लिए कुछ आंकड़ों पर नजर डालना जरूरी है। भारत में औसत में हर 3 घंटे पर बलात्कार की एक घटना होती है। वर्ष 2019 में महिलाओं के खिलाफ कुल 4 लाख 5 हजार 861 मामले दर्ज किये गये। इनमें बलात्कार के मामलों की संख्या 45,536 है जिनमें किसी तरह की जांच हुई। इनमें मात्र 4640 लोगों को ही कोई सजा हुई, बाकी मामले रफा-दफा हो गये। बलात्कार के मामले में कोई चश्मदीद गवाह नहीं होता और अगर होता है तो वह गवाह बनना नहीं चाहता। कई लोग पैसा लेकर बलात्कार की घटना नहीं हुई- इसके गवाह बन जाते हैं। 

हमारे देश की विडम्बना है कि हम कृष्ण के उन्मुक्त प्रेम की तो पूजा करते हैं, लेकिन कृष्ण की भक्त मीरा जब कहती है कि ''जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोईÓÓ तो हमारा सामन्ती वजूद हिलोरो खाने लगता है और मीरा को भी विष का प्याला भेज दिया जाता है। हमारे समाज में सड़क पर खड़े होकर लड़की किसी लड़के से बात कर ले तो कई लोगों की भृकुटी तन जाती है। खुदा न खास्ता अगर लड़का या लड़की किसी प्रतिबंधित जाति के हों तो फिर खाप पंचायत में उन्हें मौत की सजा भी मिल सकती है। गांव में ही नहीं शहरों में भी सभ्य समाज की स्थिति विस्फोटक है। कलकत्ता में आज से लगभग पैंसठ साल पहले धानुका परिवार के एक लड़के ने घर के पास स्कूल की लड़की से प्रेम प्रसंग के पश्चात विवाह करने का मन बनाया। उसका अंजाम यह हुआ कि लड़की वाले ने लड़के को बातचीत करने के बहाने घर बुलाया।  वहां उसकी नृशंस हत्या की गयी। शरीर के कई टुकड़े कर बोरे में बंद कर कहीं फेंकने की योजना बनायी गयी पर बात लीक हो गयी। उस समय लड़के की नृशंस हत्या के प्रतिवाद में हजारों लोगों का जुलूस निकला था। बचपन की धुंधली-सी स्मृति मेरे मानस पटल पर आज भी है। कलकत्ते में बहुत समय तक धानुका हत्याकांड की चर्चा रही।



सच तो यह है कि हम प्रेम को बर्दाश्त नहीं कर सकते चाहे व प्रेम मीरा का हो या किसी आम लड़के का। दूसरी तरफ बलात्कार के प्रति हमारे मन में कितनी आतुरता है उसका एक उदाहरण देना चाहता हूं। मैं उन दिनों बिहार में पटना के एक समाचार पत्र में काम करता था। किसी कार्य से मैं मुजफ्फरपुर गया जहां अपने मित्र के साथ फिल्म शो देख रहा था जिसमें बलात्कार का एक ²श्य था। बस ठीक उसी समय हॉल की बत्ती गुल हो गयी। दर्शकों ने सीटी बजानी शुरू की एवं बड़ा हो-हल्ला किया। थोड़ी देर में बिजली आ गयी तो उस सीन को दोबारा चलाये जाने की मांग हुई।

हम बलात्कार के आरोपितों की प्रोफाइल का अध्ययन करें तो पायेंगे कि इनमें केवल गुंडे और अपराधी तत्व ही शामिल नहीं हैं। संत, नामधारी बाबा, पुलिसकर्मी, वकील, जज, मंत्री, शिक्षक, डॉक्टर, इंजीनियर, यानि नामी-गिरामी लोग भी हैं। ऐसे में क्या कहा जाए?

बलात्कारहीन समाज बनाने का रास्ता क्या है? एक रास्ता है-खुले समाज का निर्माण जिसमें जाति-धर्म की दीवारें टूट जाए। स्त्री से दो बातें अक्षम्य हों- बलात्कार और वादाखिलाफी। कानून सख्त बनाकर देख लिया, कोई बदलाव नहीं आया। जहां एंटी रोमियो स्क्वायड बने, वहीं ज्यादा रेप हो रहे हैं। जिस समाज के लोगों ने वेलेन्टाइन डे को नफरत भरी निगाह से देखा और आजकल के लड़के-लड़कियों पर तंज कसा, उसी समाज ने प्रेमी युगल को गुंडों से पिटवाया, कहीं पेड़ पर लटका दिया तो कहीं शरीर के टुकड़े कर गुप्त जगह गाड़ देने की योजना बनायी। कुछ नौजवानों ने संस्कार के नाम पर वेलेंटाइन कार्ड बेचने वाली दुकानों को लूटा तो कुछ ने ऐसे कार्डों की होली जलायी। दुर्भाग्य है कि इसे हमने संस्कार की संज्ञा दी।

जिस पश्चिम की हम घोर निन्दा करते हैं, वहां अनेक देशों और समाजों में बलात्कार के मामले नगण्य होते जा रहे हैं। नैसर्गिक यौवन से उत्पन्न प्रेम को कोपभाजित करने की नहीं, उसे उत्सव का निश्छल रूप देने की जरूरत होती है। सिर्फ शिक्षित होना ही काफी नहीं, मानवधर्मी होना भी जरूरी है।  अहिल्या का उद्धार करने के लिए भगवान राम के अंगूठे की जरूरत न हो, द्रोपदी को अपने सतीत्व रक्षा के लिए भगवान को बुलाना न पड़े, इसके लिए नारी को स्वयं सिद्धा बनना पड़ेगा। द्रोपदी हो या अहिल्या, दिल्ली की निर्भया हो या हाथरस में दलित कन्या के साथ नर-पशुओं द्वारा किया गया कुकर्म, सभी एक ही विष-बेल के फल हैं। महिलाओं को देवी नहीं महिला ही समझें तो ज्यादा सम्मानजनक होगा।

बलात्कार के बाद मोमबत्ती लेकर हम किसे ढूंढ़ रहे हैं? आखिर यह अंधेरा तो हमारे ही कर्मों का फल है और हम कस्तूरी की खोज में नाहक घूम रहे हैं। बलात्कारी को चौरस्ते पर लटका दिये जाने की मांग कर हम अपने गुस्से का इजहार करते हैं पर फिर  बलात्कार व हत्या की दूसरी घटना होने तक हमारा गुस्सा शमित हो जाता है।



Comments

  1. सुप्रभात 🙏
    आदरणीय आज प्रकाशित `संपादक की कलम से ' पढ़कर मैं
    आपके विचारों से सहमत हूँ।
    मुझे भी यह लगता है कि वर्तमान समय में अपने पहनावे-ओढ़ावे में, खान-पान में,रहन-सहन में तो आधुनिकता को हम तेजी से अपना रहे हैं पर अपने विचारों को हम आधुनिक नहीं बना रहे हैं जिसकी हमें नितांत आवश्यकता है। आज भी हमारी सोच दकियानुसी हैं,आज भी हम बलात्कार जैसे गंभीर मुद्दे पर खुलकर बहस नहीं कर पाते जबकि इस विषय पर गहराई से सोचने-समझने की आवश्यकता है साथ ही साथ महिलाओं को भी
    स्वयं को सशक्त करना होगा। नई पीढ़ी को गुमराह होने से रोकने का प्रयास करना होगा। माता-पिता को अपनी संतान को वह चाहे बेटा हो या बेटी उन्हें सही शिक्षा देनी होगी। संतान के मन को छू कर प्यार से उन्हें नैतिक शिक्षा देने की जिम्मेदारी अभिभावक को उठानी होगी।
    मोमबत्ती जलाकर हम बाहर जिस अंधेरे को मिटाने का प्रयास कर रहे हैं वह तो हमारे अंदर विराजमान है।मन के अंधेरे को मिटाने की आवश्यकता पहले है।
    सही कदम उठाकर एक साथ मिलकर हम अपने समाज को बलात्कार जैसे दुष्कर्मों से मुक्त करा सकते हैं।

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  2. नमस्कार सर,
    पूर्णतः सहमत हूं। सत्य कहा आपने।
    यह समस्या बिल्कुल सामाजिक विसंगतियों का परिणाम है।
    जिसका राजनीति से कुछ भी लेना देना नहीं बल्कि राजनीतिक लोग अपनी रोटी सेकने के लिए इसमें अपनी उपस्थिति दर्ज करते हैं। जिससे इस समस्या का कोई अंत नहीं होता और ना ही समाज का कुछ भला होता है।
    यह आज के यूरोपीय समाज द्वारा प्रभावित खुलेपन शिकार युवा वर्ग का एक विकार है। इसका हल केवल सामाजिक स्तर पर ही संभव है। खबरिया चैनलों द्वारा परोसी जा रही नग्नता एवं फिल्म द्वारा वितरित किया गया समाज आज इस रोग से ग्रस्त है कि आप परिवार के साथ टेलीविजन के सामने बैठ नहीं सकते। इसमें राजनीति कहां आती है।
    आपने समाज को एक आईना दिखाया है जिस की अति आवश्यकता और अनुपालन करने की जरूरत है।

    अमर तिवारी
    पटना (बिहार)

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  3. मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूं आपने बिल्कुल सही दिशा में लोगों का ध्यान आकर्षित किया है बलात्कार होने का जो सही कारण है उस पर आप ने प्रकाश डाला है जो बिल्कुल ही सटीक है बलात्कार का कारण केक बेरोजगारी भी है यह बिल्कुल ही सही बात है

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