एक अनार, करोड़ों बीमार
फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध मौत फिल्म जगत की पहली घटना नहीं है जिसमें किसी प्रसिद्ध अभिनेता ने आत्महत्या की हो या उसकी हत्या की गयी हो। श्रीदेवी की मृत्यु के उपरान्त कई दिनों तक हलचल रही, हालांकि दक्षिण भारतीय इस अभिनेत्री की हिन्दी फिल्मों पर धाक सुशान्त से कहीं अधिक थी। अपने समय की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री मीना कुमारी की मृत्यु पर भी सवाल उठे थे पर पानी के बुलबुले की तरह। पाठकों को स्मरण होगा कि अपने समय के चोटी के अभिनेता गुरुदत्त ने भी आत्महत्या की थी। परन्तु सुशान्त सिंह राजपूत की रहस्यमय मृत्यु ने फिल्मी दुनिया को तो हिला कर रख ही दिया बल्कि उसकी जांच को लेकर भी अभूतपूर्व विवाद खड़ा हुआ कि जांच मुम्बई पुलिस करेगी या सीबीआई। मुम्बई पुलिस द्वारा तीन महीने जांच के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जांच सीबीआई को सौंपी गयी। यही नहीं इस होनहार अभिनेता की मृत्यु पर छिड़ी सियासत ने महाराष्ट्र और बिहार की सीमाओं को लांघकर अन्य राज्यों की राजनीति पर भी असर दिखाना शुरू कर दिया। बिहार में शीघ्र चुनाव होने वाले हैं अत: उसे बिहार का नायक बनाकर ''सुशांत के लिये न्याय चाहियेÓÓ का नारा लगाया गया। महाराष्ट्र में विरोधी दलों की सरकार है इसलिये इसे बिहार का पुत्र बताकर महाराष्ट्र को खलनायक बनाकर पेश किया गया। लेकिन सबसे बड़ा महायुद्ध छिड़ा दो कथित राष्ट्रीय स्तर के चैनलों में कि कौन इस मामले को चिल्ला-चिल्ला कर घर-घर में फिल्मी जगत की घटना को चर्चा का विषय बना सकता है। फिल्मी दुनिया का यह मामला देश की एक बड़ी घटना बना दी गयी। एक बड़े चैनल ने खुलकर कहा सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु की घटना की कवरेज ने उसे देश का नम्बर वन चैनल बना दिया है। किन्तु दूसरे एक चैनल ने जिसके गले में उससे भी बड़ा माइक्रोफोन फिट था, ने जमकर तांडव मचाया और बाद में उसने भी टीआरपी में अपने चैनल को नम्बर वन बनाने का दावा किया। प्रिन्ट मीडिया से कहीं ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने सुर्खियां बटोरी और 14 जून से लेकर अगस्त के अन्त तक कम से कम दो मीडिया चैनलों ने ऐसा कोहराम मचाया मानों हमारे देश में सुशान्त की मौत की असलियत जानना और उसे न्याय दिलाना ही सबसे बड़ा मुद्दा है। इसी बीच एक और अभिनेत्री का रंगीन पर्दे को फाड़कर भारतीय लोकतंत्र के अखाड़े में प्रवेश होता है। बम्बई नगर निगम (बीएमसी) द्वारा कंगना के अवैध रूप से निर्मित कार्यालय को तोड़ा जाता है। हालांकि मुम्बई में अवैध निर्माण को कानूनन ईमानदारी से तोड़ा जाय तो शायद आधी मायानगरी को ध्वस्त करना पड़ेगा। किन्तु कंगना ने जब शिवसेना के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और सांसद संजय राउत के विरुद्ध ताल ठोकी तो मामला पूरा राजनीतिक रंग में सन गया। और फिर उसे बाबर द्वारा राम मन्दिर तोडऩे जैसा कांड बताकर बाबर से लेकर झांसी की रानी, दाऊद इब्राहिम, वीर शिवाजी की पुत्री, हिमाचल की बेटी और न जाने कौन-कौन से उत्तेजक मसालों की छोंक लगाकर इसे शिवसेना बनाम भाजपा से जोड़ दिया गया। पुरानी हमजोली शिवसेना द्वारा भाजपा का दामन छोड़ कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने से हुई किरकिरी का बदला लेने का सही वक्त आ गया और युद्ध का बिगुल फूंक दिया गया।
सुशांत सिंह राजपूत की मौत के रहस्योद्घाटन में मुम्बई की फिल्मी दुनिया में नशाखोरी एवं पत्ताखोरी का खेल उजागर हुआ। सुशान्त की प्रेमिका रिया चक्रवर्ती को नशे के खेल में घेरा गया और उसे अपने पहले वाले कथन से कि उसने कभी नशा सेवन नहीं किया, से मुकरना पड़ा। उसके वकील का कहना है कि एनसीबी की घनघोर पूछताछ और दबाव के कारण रिया को नशा लेने की बात कबूलनी पड़ी।
बिहार विधानसभा चुनाव में बालीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत पर जनता की भावनाओं को भुनाने के लिये गत दिनों भारतीय जनता पार्टी ने कुछ पोस्टर और बैनर जारी किये हैं जिसमें सुशांत सिंह राजपूत की फोटो के साथ ''जस्टिस फोर सुशांतÓÓ और ''न भूले हैं न भूलेंगेÓÓ लिखा है। सूत्रों के अनुसार भाजपा के कला और संस्कृति सेल की तरफ से ऐसे करीब 30 हजार पोस्टर और पर्चे छपवाये गये हैं। इसी सेल ने बिहार के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर पटना में राजीव नगर चौक को सुशांत चौक के नाम पर रखने की मांग की है। पत्र में नालंदा के राजगीर स्थित फिल्म सिटी को भी एक्टर के नाम पर रखने के लिए कहा गया है।
इधर पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस के चार दिन पूर्व चुने गये अध्यक्ष श्री अधीर चौधरी ने यह बयान दिया कि सुशान्त का बिहार के चुनाव में इस्तेमाल हो सकता है तो रिया भी बंगाली ब्राह्मण की बेटी है, बंगाल के चुनाव में हम उसका इस्तेमाल करेंगे।
टीवी चैनलों पर बहस को लोग उसी तरह देख रहे हैं जैसे दो महीने पूर्व महाभारत और रामायण को देखते थे। बड़े उत्तेजक ढंग से घटना को प्रस्तुत किया गया और मुख्य रूप से टीवी चैनलों ने टीआरपी बढ़ाने की होड़ में आम आदमी के दिमाग में बड़ी चतुराई से यह घुसा दिया कि अब देश की सबसे बड़ी समस्या गरीबी या भुखमरी नहीं, मृत सुशांत को न्याय दिलाने की है। दूसरी तरफ भारत की बेटी, वीरांगना कंगना के घर पर बुलडोर चलाने की हिमाकत मानों चीनी सेना की घुसपैठ से भी बड़ी घटना हो। गौरतलब है कि बिहार में सुशान्त बड़ा वोट बैंक है और कंगना शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी से राजनीतिक प्रतिशोध का सशक्त हथियार।
बीजेपी काफी सोची-समझी राजनीति के तहत दोनों मामलों का भरपूर राजनीतिक लाभ ले रही है। यही नहीं चरम आर्थिक दुर्दशा, रसातल में जीडीपी, कोरोना संक्रमण में भारत अब पहले स्थान पर पहुंचने के कगार पर, विस्फोटक होती बेरोजगारी, चीन की भारतीय सीमा में बार-बार घुसपैठ, चीन विवाद के मामले में परस्पर विरोधी वक्तव्य से बुरी तरह घिरी सरकार को सुशान्त की रहस्यमयी मौत एवं कंगना का झांसी की रानी अवतार डूबते को तिनके का सहारा का काम कर रहा है। देश के करोड़ों लोगों का ध्यान असली मुद्दे एवं समस्या से हटाकर सुशांत की मौत के रहस्य एवं कंगना के विरुद्ध अन्याय की ओर भटका दिया गया है। सबसे गम्भीर और शर्मनाक बात यह है कि इन घटनाओं से मीडिया खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की विश्वसनीयता गिर गयी है। गत दिनों प्रधानमंत्री ने इशारों-इशारों में मीडिया को उसकी मर्यादा की याद दिलायी थी। प्रधानमंत्री ने कहा था कि सोशल मीडिया के युग में अब मीडिया की भी आलोचना होने लगी है। टीआरपी के नाम पर भारतीय मीडिया ने बार-बार मर्यादाओं की लक्ष्मण रेखा को पार किया है। देश के अहम मुद्दे मीडिया से गायब हो गये हैं एवं उनकी जगह फिल्मी दुनिया में नशाखोरी में डूबकर आत्महत्या के मामलों पर बहस हो रही है जिसका आम आदमी से दूर-दूर का भी सम्बन्ध नहीं है। इसीका परिणाम है कि अब कंगना ने लोकतंत्र को बचाने की मुहिम छेड़ी है और कुछ टीवी चैनल उसका भौंपू बन गये हैं।


Such likh tay raheya yehi sacchi patrkarita hai jo aap kar rahe hai newar sb mujhay aapki laykhni usi tarha ki lagi jaisi ek aur shaqs ravish ki tarha ki nirbheek
ReplyDeleteBrilliantly said. A few channels are ruining the image of Indian media
ReplyDeleteC C is right
ReplyDeleteJane kaha gaye wo din (achey)
सच्ची बात कही आपने.... ध्यान भटकाने की सोची समझी चाल कह सकते है.... देश में इससे बढ़कर भी कई बड़े मुद्दे है.... चीन सीमा विवाद और करोना महामारी की दिन ब दिन बढ़ती मरीजों की संख्या, वैक्सीन जैसे कई बड़े मुद्दे है पर न्यूज़ चैनेलो में तों "एक अनार सौ बीमार" ही चल रहा है|
ReplyDeleteSachchi baat aur sahi patrakarita. Dhanyawad.
ReplyDeleteMai jo na samajh paya hoon aajtak sub log tamam hindustan may chai khanay say laykar 5 star hotels tak jahan bhi mai jata hoon kah to rahe hai ki dhayan bhatkanay kay liya yeh naye naye program ko highlight kar rahe hai Magar dukh hota hai ki itni samjhdar awaam phir bhi Jai Prakash Jaisa neta nahi koi jo saamnay aye sarkar kay khilaf 1 muhim laykar .
ReplyDeleteBahut afsoos kay saath kah raha hoon ki janta to hai he murkh laykin desh kay tamam NETAGAN VIBHINN PARTY kay kew nahi 1 manch pay aa rahe janat kay dukh baatnay tub jubki GDP apnay subsay nichale istar pay Bayrozgari apnay sarvochch istar pay Bazar may dum nahi Kisan pareshan ..
KADWA HAI PAR SACH HAI
ReplyDeleteYAHI AAJ KI HAMARI MEDIA KAR RAHI HAI
MASLAN -
TAIMUR NE KIS COLOUR KI CHDDI PAHNI
WAGERAH. WAGERAH.........
आपने बिल्कुल सही कहा सर बेरोजगारी की गंभीर समस्या और कोरोना जैसी महामारी से देश को जूझने के बजाय दूसरे भटकाने वाले मुद्दे पर सोशल मीडिया सभी आम आदमियों का ध्यान आकर्षित कर रही है सोशल मीडिया का हमारी जिंदगी में अहम रोल होता है उनकी भी एक मर्यादा होनी चाहिए
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