प्रणब दा का जाना एक ऐसे युग का अंत है जिसमें राजनीति मिशन हुआ करती थी

 प्रणब दा का जाना एक ऐसे युग का अंत है जिसमें राजनीति मिशन हुआ करती थी

संपादक विश्वम्भर नेवर की कलम से

प्रणब मुखर्जी भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह थे। उन्हें सभी प्रणब दा कहते थे एवं बिना किसी अपवाद के सभी राजनीतिक दलों में उनका यही नाम सिक्के की तरह चलता था। प्रणब बाबू जमीन से उठे थे। प. बंगाल के बीरभूम जिले में सिउड़ी में कभी स्कूल के अध्यापक रहे प्रणब कुमार मुखर्जी जब राष्ट्रपति बन गये तो एक बार पुन: अध्यापक बनने की उनके मन में आयी और उसी स्कूल में कुछ देर के लिये मास्टर मोशाय बन कर अपने मन की मुराद पूरी की। शिखर पर पहुंचे व्यक्ति के जीवन में इस प्रकार के उदाहरण नहीं के बराबर है।

प्रणब बाबू के राजनीतिक सफर में बड़े उतार-चढ़ाव आये। गृहमंत्री एवं प्रधानमंत्री पद के अलावा वे सभी उच्च पदों पर रहे। उनका प्रधानमंत्री नहीं बनना भी एक घटना है जिसका यहां जिक्र करना प्रासंगिक नहीं होगा। प्रणब दा राजनीति के चतुर खिलाड़ी थे पर उन्होंने भारतीय राजनीति पर अपने पांडित्य की छाप छोड़ी। मिलनसार एवं सहजता के बावजूद वे चुनावी राजनीति में बहुत सफल नहीं हुए जिसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि उन्होंने कई चुनाव हारे। राज्यसभा में पांच बार मनोनीत किये गये, एक बार गुजरात से। कई बार हारने के बाद जंगीपुर (मुर्शिदाबाद) से लोकसभा का चुनाव जीते। उनके बारे में कहा जाता है कि यह चुनाव भी वे सीपीएम के सहयोग और ममता के समर्थन से जीत पाये। खैर यह भी उनके राजनीतिक प्रखरता का उदाहरण है कि प्रणब बाबू की सभी राजनीतिक दलों में गहरी पैठ थी। जब विपक्ष की केन्द्र में सरकार थी तब उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष मनोनीत किया गया और इस पद पर रहने के कारण सभी मुख्यमंत्रियों को चाहे वह किसी भी दल का हो, चुनाव आयोग के सर्वोच्च पद पर बैठे प्रणब के यहां दरबार लगाना होता था। पूर्व राष्ट्रपति के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आम प्रार्थना सभा में उनका जाना एक बड़ी घटना थी। कांग्रेस के नेताओं को उनका जाना नागवार गुजरा था। यहां तक कि उनकी पुत्री शर्मिष्ठा ने भी उनके वहां जाने का विरोध किया। आरएसएस की सभा में उनका प्रार्थना में हाथ को सीने के पास पोज करते हुए फोटो सोशल मीडिया पर वायरल की गयी और बाद में उसका खंडन भी किया गया कि प्रणब बाबू ने ऐसा नहीं किया था।

प्रणब बाबू के साथ मेरी कई मुलाकातें हुई जिसमें पाठकों की दिलचस्पी नहीं होगी। किन्तु दो-तीन संस्मरण के उल्लेख का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूं। 1966 के आसपास की बात है। प्रणब बाबू अजय मुखर्जी के साथ बंगला कांग्रेस में शामिल हो गये थे। मेरा सम्पर्क उसके पहले से था। बंगला कांग्रेस का अधिवेशन होने वाला था और  उन दिनों मैैं एक प्राइवेट फर्म में जिसका दफ्तर धर्मतल्ला में था, कार्यरत था। प्रणब मुखर्जी मुझसे मिलने वहां आये, मैं उस वक्त दफ्तर में नहीं था तो मेरे नाम से बंगला में एक छोटी सी स्लिप पर संदेश लिख गये थे। दरअसल मुझे उनके साथ आलू पोस्ता किसी व्यापारी के यहां जाकर बंगला कांग्रेस अधिवेशन के लिए आलू-प्याज की व्यवस्था करनी थी। फिर कांग्रेस में वे एक के बाद एक सीढ़ी से ऊपर चढ़ते गये और पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने। उसी दौरन मैं कांग्रेस का औपचारिक रूप से सदस्य बना। प्रणब बाबू से प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में उनके साथ बैठकर कई बार मूड़ी खायी। उन्हें झाल मूड़ी खाने का बड़ा शौक था। मैंने प्रदेश कांग्रेस का हिन्दी में मुखपत्र ''हमारा हाथÓÓ प्रकाशित किया जिसका सम्पादक मुझे प्रणब बाबू ने ही नियुक्त किया था। सोमेन मित्रा परामर्शमंडल में थे। इस पत्र के लिये मैंने एक बार एक आलेख तैयार किया कि उस वक्त केन्द्र में श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बन गयी थी। आलेख का विषय था कि केन्द्रीय सरकार ने कई बड़े प्रतिष्ठान बेचने का निर्णय लिया। श्री अरुण शौरी इस विनिवेश विभाग के केन्द्रीय मंत्री थे। मैंने दिल्ली में प्रणब बाबू के निवास पर जाकर उन्हें वह आलेख दिखाया। प्रणब दा ने मुझे परामर्श दिया कि मैं उन प्रतिष्ठानों का संभावित मूल्य भी दूं एवं उनके साथ केन्द्र सरकार किस दाम में उन्हें बेच रही है यह भी लिखूं ताकि पाठकों को यह पता चले कि इससे भारत सरकार को राजस्व का कितना नुकसान होगा। और फिर एक लम्बा अन्तराल। प्रणब बाबू वित्तमंत्री के रूप में एसएमई के एक सेमीनार में आने वाले थे जिसका आयोजन मेरे मित्र स्व. बंसीलाल बाहेती ने बंगाल चेम्बर सभागार में किया। बंसीलाल जी के आग्रह पर मैं ढाकुरिया स्थित उनके निवास स्थान पर गया। प्रणब बाबू को उन्हीं की गाड़ी में मैं साथ था। पीछे की सीट पर मैं और प्रणब बाबू एवं आगे की सीट पर ड्राइवर के साथ उनकी सिक्यूरिटी। आधे घंटे के करीब रास्ते में उनसे कुछ गपशप हुई, हंसी-मजाक भी। प्रणब बाबू की यह खासियत थी कि वे हंसते-हंसते चीयरफुल मूड के बाद अचानक गम्भीर मुद्रा में आ जाते।

प्रणब बाबू से मेरी यह अंतिम मुलाकात थी। अब जब वे इस संसार में नहीं रहे प्रणब बाबू के अवदान का मूल्यांकन अवश्य होगा। प्रणब बाबू को केन्द्र की भाजपा सरकार ने भारत रत्न के उच्चतम सम्मान से विभूषित किया। वे इसके उपयुक्त भी थे।

Comments

  1. Wow! it's Amazing.
    शानदार संस्मरण प्रणव दा के साथ आपके। असाधारण प्रतिभा के धनी, जमीन से जुड़े प्रणव बाबू के बारे मे कुछ जानकारियाँ भी आपके माध्यम से हमें मिली इसके लिये आपको हृदय से साधुवाद ।

    ReplyDelete
  2. प्रेषक- रमेश गोयनका ।

    ReplyDelete
  3. Thank you so much for sharing your memorable moments with us. Really he was extraordinary. He was really an inspiration just like you😊. Thank you to you from the core of my heart. He will be remembered every moment, every second, every minute and every time. REST IN PEACE. 😞😞😞😞😞😞😞😞😞
    Thank you.
    Tapashi Bose.

    ReplyDelete

Post a Comment