संयुक्त राष्ट्र के 75 साल
नक्कारखाने में तूती की आवाज
संयुक्त राष्ट्र कोविड-19 महामारी के बीच अपना 75वां स्थापना वर्ष मना रहा है। इस वैश्विक संस्था की 75वीं वर्षगांठ पर संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र को सम्बोधिथ करते हुए महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने कहा कि कोरोना वायरस महामारी ने विश्व को कमजोर बना दिया है। विश्व संस्था की ऐतिहासिक 75वीं वर्षगांठ का विशेष समारोह व्यापक रूप से डिजिटल रहेगा। क्योंकि कोविड-19 महामारी को लेकर विश्व के नेता न्यूयार्क की यात्रा नहीं करेंगे। सप्ताह भर चलने वाली आमचर्चा में राष्ट्रों एवं सरकारों के प्रमुख तथा मंत्री पहले से रिकार्ड किये गये वीडियो बयान के जरिये भाषण देंगे। वैश्विक संस्था के 75 वर्ष के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा। संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देश आम सहमति से एक राजनीतिक घोषणा पत्र स्वीकार करेंगे।
संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय न्यूयार्क में है। कहने को विश्व के 193 सदस्य देशों का यह मंच है किन्तु प्रधानत: अमेरिका ही इसे वित्तीय पोषण प्रदान करता है। इसका उद्देश्य दुनिया में शांति, समन्वय, सहयोग स्थापित करने एवं युद्ध मुक्त विश्व बनाने का था। 1945 के बाद एक तीसरे विश्वयुद्ध को नहीं होने देने को अक्सर संयुक्त राष्ट्र की एक सफलता मानी जाती है। यह इस तथ्य के बावजूद है कि 2016 के अंत तक दुनिया भर में साढ़े छह करोड़ से अधिक लोग युद्ध और हिंसक संघर्ष से विस्थापित हुए हैं जो कि दूसरे विश्वयुद्ध के बाद इस प्रकार का सबसे बड़ा आंकड़ा है। विश्व की सुरक्षा के प्रमुख लक्ष्य से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की स्थापना की गयी, जिसमें प्रारम्भिक पांच स्व चयनित स्थायी सदस्य - फ्रांस, चीन, ब्रिटेन, अमेरिका और सोवियत संघ के अलावा छह गैर-स्थायी सदस्य भी शामिल थे जो हर दो वर्षों में बारी-बारी से चयनित होंगे। यह कहना उचित होगा कि 1945 में संयुक्त राष्ट्र के गठन के बाद से दुनिया के राजनीतिक परि²श्य में आमूल परिवर्तन आया है। यह संयुक्त राष्ट्र महासभा की सदस्यता से स्पष्ट होता है, जो 1945 में 51 थी और आज 193 देश इसके सदस्य हैं। लेकिन पिछले तीन दशकों के दौरान अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को प्रभावित करने वाली घटनाओं से उत्पन्न संकटों के स्वरूप और संख्या में बढ़ोतरी हुई है। संयुक्त राष्ट्र के एक पूर्व महासचिव ने सार्वजनिक रूप से कहा था, ''शांति के बिना कोई विकास नहीं हो सकता।ÓÓ सुरक्षा परिषद, लेकिन इस तरह के संकटों को रोकने में असमर्थ रही है और उन्हें हल करने में नाकाम रही है। वर्तमान संकटों को इन पांच स्थायी सदस्यों में से कोई भी रोकने या हल करने में कामयाब नहीं हुआ है। शांति और सुरक्षा के लिए वैश्विक चुनौतियां, विशेषकर आतंकवाद के प्रति संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिक्रिया प्रभावहीन रही हैं। सुरक्षा परिषद् द्वारा 30 से अधिक आतंकवाद विरोधी प्रस्तावों को अपनाये जाने के बावजूद स्थिति जस की तस बनी हुई है। परिषद उन आतंकवादियों के खिलाफ मुकदमा चलाने और दंडित करने में सफल नहीं रहा है जिनके द्वारा अफ्रीका और एशिया में परिषद् के अधिदेश के तहत तैनात संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिक मारे गये हैं या बंधक बनाये गये हैं। यह मुख्य रूप से सुरक्षा परिषद के संरचनात्मक और प्रक्रियात्मक खामियों के कारण हैं।
भारत के लिये विशेष गर्व की बात है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा गांधी जंयती 2 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस पूरे विश्व में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा के 177 सदस्यों के अभूतपूर्व सह-प्रायोजन प्राप्त हुए क्योंकि हम इस साझा प्रतिबद्धता में विश्वास करते हैं।
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के 75 साल पूरे होने के मौके पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतरेस ने ठीक ही चेताया कि आज दुनिया एक ऐसे अंधे मोड़ पर खड़ी है, जहां से आगे बढऩे के लिए असाधारण एकता और विश्वस्तरीय साझा प्रयास की जरूरत है। द्वितीय विश्वयुद्ध का विध्वंसक रूप देखने के बाद शांति के जिस सपने को साकार करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन किया गया था वह इस रूप में कमोबेश सफल कहा जा सकता है। लेकिन जैसी चुनौतियां अभी हमारे सामने हैं, उन्हें देखते हुए यह चिंता लाजमी है कि मनुष्य समाज कोरोना जैसी भीषण महामारी और उससे पैदा हो रही आर्थिक समस्याओं से जल्दी पार पा जाएगा, या इनसे मुंह चुराने की कोशिश में कुछ और भी ज्यादा भयानक समस्याएं अपने सामने खड़ी कर लेगा।
ऐसे में यूएन चीफ ने मौके की नजाकत और अपनी जिम्मेदारी के अनुरूप सभी सदस्य राष्ट्रों से यह आह्वान किया कि अगले 100 दिनों के लिए वे सारे आपसी विवादों और टकरावों को ठंडे बस्ते में डालकर कोरोना वायरस और उससे उपजी दूसरी समस्याओं से निपटने में जुट जाएं। छोटे-बड़े, अमीर-गरीब जैसे भेदों का कोई मतलब नहीं है। सवाल यह है कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव के इस अति महत्वपूर्ण प्रस्ताव को दुनिया के नेता कितनी गंभीरता से लेते हैं। दुर्भाग्यवश, इसका जवाब संयुक्त राष्ट्र महासभा की इस बैठक में ही मिल गया, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इस आह्वान के सर्वथा विपरीत तेवर अपनाते हुए कोरोना महामारी का पूरा दोष चीन पर मढ़ दिया और कहा कि सबसे पहले उसकी जवाबदेही तय की जानी चाहिए। दरअसल, शीतयुद्ध के बाद के लगभग दो दशकों में एकध्रुवीय विश्वव्यवस्था का स्वाद चख लेने के बाद अमेरिका के लिए इस संभावना को स्वीकार करना आसान नहीं है कि उसकी वह हैसियत उससे छिन भी सकती है। चीन के वैश्विक नजरिये में कई समस्याएं हैं, लेकिन न केवल आर्थिक मोर्चे पर बल्कि विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में भी वह अमेरिका के सामने लगातार चुनौती खड़ी कर रहा है। ऐसे में यह उम्मीद भी तर्कसंगत नहीं लगती कि दोनों का टकराव अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आने के साथ ही हल हो जाएगा। जाहिर है, एंटोनियो गुतरेस समेत उन सभी लोगों और संस्थाओं को, जो दुनिया को कोरोना की यातना से जल्दी मुक्त होते देखना चाहते हैं, उन्हें अपनी आवाज में बहुत ज्यादा असर पैदा करना होगा।
कोरोना वैश्विक महामारी ने दुनिया के 9 लाख 84 हजार लोगों की जान ले ली है जबकि 3 करोड़ 23 लाख के लगभग लोग इस महामारी से प्रभावित हुए हैं। भारत जैसे विकासशील देश पर यह वज्रपात साबित हो रहा है। ऐसी विकट परिस्थिति में संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका का उल्लेख किस रूप में किया जाय? विश्व स्वास्थ्य संगठन पर चीन अपना कब्जा करने में लगा है। अमेरिका ने सबसे अधिक लोग खोये हैं। चीन में इस महामारी की शुरुआत हुई थी। महाविनाशलीला के इस खेल में संयुक्त राष्ट्र संघ किनारे पर खड़े होकर तमाशायी दिखता रहा। पहली बार विश्वयुद्ध से इतर एक ऐसी घटना हुई जिससे पूरी दुनिया कमोबेश रूप में प्रभावित हुई। विश्व संगठन संयक्त राष्ट्र जिस प्रकार दुनिया को सुरक्षा देने में विफल रहा, आतंक के राक्षस का संहार करने में असमंजस में है, क्षेत्रीय संघर्ष पर लगाम नहीं सका, लिंगभेद एवं रंगभेद रोकने में आंशिक कारगर हुआ। ऐसी स्थिति में पूरी दुनिया के कोहराम में यूएन की आवाज मेमने के मिमियाने से अधिक सुनाई नहीं दी। यह बिडम्बना ही है कि इन सबके बावजूद संयुक्त राष्ट्र संघ की आवश्यकता को नकारा भी नहीं जा सकता।
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