एक विलक्षण व्यक्ति का अवसान
दोस्तों के लिए इतिहास भी बदल सकते थे
अमर सिंह
27 जनवरी सन् 2004 अमर सिंह का 48वां जन्म दिन। एक शानदार पार्टी नई दिल्ली की अशोका होटल में। इसमें मैं भी आमंत्रित था। ऊपर के बड़े विशाल बैनक्वेट कॉन्वेंशन हॉल के दरवाजे पर हंसता हुआ नुरानी चेहरा वाले अमर सिंह के साथ एक और युवा भी लोगों की आवाभगत कर रहा था। उनका नाम था अमिताभ बच्चन। मैं और फिल्म एक्टर राज बब्बर एक साथ ही पहुंचे। अमर सिंह से दुआ-सलाम हुआ तो उन्होंने अमिताभ से मेरा परिचय कराया - ''विश्वम्भर नेवर जी, मेरे बचपन के दोस्त, मेरे हमदमÓÓ। मैंने बच्चन साहब से हाथ मिलाया और तुरन्त अन्दर चला गया क्योंकि तीन-चार और लोग प्रवेश की प्रतीक्षा कर रहे थे। अन्दर लोगों का हुजूम पुरुष, महिलायें हाथों में जाम, गपियाते हए। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता में बहुत सी पार्टियों में मैंने शिरकत की है लेकिन इस पार्टी का कोई जवाब नहीं था। हर क्षेत्र की नामचीन हस्तियां। फिल्मी दुनिया के चमकते सितारे थे तो उद्योग जगत की ऐसी कोई सख्सियत नहीं बची थी जो वहां नहीं हो। पत्रकारिता व मीडिया जगत के हेवी वेट, उच्च प्रशासनिक अधिकारी, लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों के सुप्रीमो, जज, बैरिस्टर, राजदूत, हाई कमिश्नर वगैरह-वगैरह। यानि हर क्षेत्र के चोटी के लोगों को किसी एक पार्टी में देखने का मेरा यह पहला अवसर था। उम्र के इस पड़ाव में भी दुबारा ऐसा नजारा शायद ही देखने को मिले। मुझे भी अंदाज था कि अमर सिंह के जन्मदिन की पार्टी में बड़े-बड़े लोग आयेंगे पर हाई-प्रोफाइल व दिग्गजों की इतनी बड़ी जमघट होगी इसका मुझे अंदाज भी नहीं था। ऐश्वर्य राय ने मुझे आइसक्रीम खिलाई तो मैं भला ना क्यों करता। हालांकि दिल्ली में जनवरी के अंतिम सप्ताह कंपकंपाने वाली सर्दी होती है पर इस पार्टी की उष्णता का पारा इतना चढ़ा हुआ था कि सभी मेहमान आइसक्रीम चट कर रहे थे। सुनील दत्त साहब मिले, हमने उनके साथ बाहर लॉबी में कुछ देर गपशप की। मीडिया हस्ती रजत शर्मा को कुछ पुरानी याद दिलायी तो ऐसे ही तीन घंटे कैसे बीते पता ही नहीं चला। अनिल अम्बानी से लेकर ओ पी जिंदल जैसे धनकुबेर भी दिखाई दिये। मुझे अचानक याद आया कि भाड़े की गाड़ी वाला मुझे कोस रहा होगा क्योंकि मैंने कहा था अधिक से अधिक 10 बजे तक लौट आउंगा पर रात के लगभग ग्यारह बजे जब डीनर लेकर मैंने सोचा कि अब रुकसत हो जाऊं तो अमर सिंह ने यह कह कर जाने नहीं दिया कि अभी तो अपनी बात ही नहीं हुई। खैर, अमर सिंह का जलवा 2004 में किस बुलंदी तक पहुंच गया था इसकी एक झांकी मैंने दिखाने की कोशिश की है।
अमर सिंह के साथ लेखक।
अमर सिंह से मेरा परिचय कब कैसे हुआ याद नहीं और याद करने वाली बात भी नहीं क्योंकि यह उस दौर की बात है जब हम दोनों ही बड़ाबाजार की गलियों की धूल फांका करते थे। अमर सिंह राम मन्दिर के पास पार्वती घोष लेन में रहते जहां दो-तीन बार मैं गया हूँ। वे मेरे बागबाजार में बोस पाड़ा लेन स्थित पुराने घर में कई बार आये थे। उन दिनों घर पर आने-जाने की कोई विशेष वजह नहीं हुआ करती थी।
मारवाड़ी सम्मेलन में आपस की खेमेबाजी और फसाद तुंग पर था। आसनसोल में पश्चिम बंगाल प्रादेशिक मारवाड़ी सम्मेलन का अधिवेशन था। कलकत्ता से समाज के कई नामधारी लोग आये हुए थे। मेरे और भाई सत्यनारायण बजाज के बीच तलवारें खिंच चुकी थी। बजाज के साथ मारवाड़ी समाज के कई वजनदार लोग थे। मैं श्री रामकृष्ण सरावगी के साथ था जिनका बजाज से कई वर्षों तक हनीमून के पश्चात् सम्बन्ध विच्छेद हो चुका था। अमर सिंह सुब्रत मुखर्जी के सिपहसालार थे और मेरे साथ भी कई कार्यकर्ता थे- राजकुमार सरावगी, श्याम सुन्दर पोद्दार वगैरह। पूरे दमखम के साथ अमर सिंह ने मेरा साथ दिया। आसनसोल में काफी बवाल हुआ। बाद में हम जब कलकत्ता लौटे तो अमर सिंह ने सत्यनारायण जी के घर फोन किया। जब वे फोन पर नहीं मिले तो उनकी पत्नी को बेलगाम फटकार लगायी। अमर सिंह धाराप्रवाह बिना लाग लपेट के बोलते थे, उनको होश नहीं रहता था कि वे किसको क्या बोल रहे हैं। इस बात की कड़ी आलोचना हुई थी अमर सिंह ठाकुर हैं फिर मारवाड़ी समाज के मामलों में किस अधिकार से दखल दे रहे हैं। जवाब में अमर सिंह ने सन्मार्ग में एक लेख छपवाया जिसका आशय था कि ठाकुर भी कभी राजस्थान की मिट्टी में ही उपजे थे। यानि साथ देने में उन्होंने नया इतिहास ही रच डाला। ऐसे थे अमर सिंह यारों के यार। यार की खातिर किसी हद तक जाने को तैयार। लेकिन अमर सिंह की सबसे बड़ी ''क्वालिटीÓÓ थी कि वे अबाउट टर्न करना भी जानते थे। किसी से पहले झगड़ा मोल ले लेते और झगड़ा भी ऐसा कि सामने वाला अगले जन्म में भी उन्हें बात न करे, इस सीमा तक। फिर दो-चार घंटे बाद ही उसके घर जाकर क्षमा मांगने और उससे दोस्ती करके ही उठेंगे इस प्रण के साथ कि वे सम्बन्ध बना सकते थे। यह कूबत विरले में ही होती है। दरअसल अमर सिंह दिल के बहुत साफ थे इसलिये कभी बात छिपाते नहीं। जो मन में आया बोल देते। भगवान ने उन्हें मुस्कुराता हुआ गोल चेहरा भी दिया जो मुफलिसी के दिनों में भी राजवंशी लगता था।
अमर सिंह दिल्ली गये। दिल्ली में उन्होंने सम्बन्ध बनाने शुरू किये और अपने अतीत को दफना दिया। फिर एक नयी जिंदगी शुरू की। पर अतीत के दोस्तों को नहीं भूले। मैं जब भी दिल्ली जाता शुरू के दिनों में बावा गेस्ट हाउस में मिलता जहां वे काफी समय रहे। कई बार अपनी गाड़ी भी मुझे दे देते थे। दिल्ली में उन्होंने अपनी राजनीतिक पारी एक उभरते हुए युवा तुर्क के रूप में शुरू की। हर दिल अजीज बने। जिन ऊंची जगहों में प्रवेश निषेध होता है वह वहां भी घुस जाते जैसे हनुमान जी सूक्ष्म रूप धारण कर सुरसा के विराट बदन के अंदर घुसकर बाहर निकल कर लंका में प्रवेश कर गये थे। सभी राजनीतिक पार्टियों के शीर्ष नेताओं के नजदीकी अमर सिंह लक्ष के रूप में अर्जुन की तरह सिर्फ चिडिय़ा की आंख देखते थे। मुलायम सिंह यादव के वे खास हो गये थे। कांग्रेस से समाजवादी बने। समाजवाद से उनका कोई लेनदेन नहीं था किन्तु मुलायम के पूरे कुनबे के अजीज हो गये। एक बार मेरे क्रीक रो कार्यालय में अखिलेश यादव (उस वक्त एम.पी.) और मुम्बई के अबू आजमी (एम.पी.) को साथ लेकर आये और दो घंटा रुके। फिल्मी दुनिया के सभी चमकते सितारे और नायिकाएं अमर सिंह की हमजोली बन गयी। अमिताभ को संकट से उबारा, और भी कइयों के संकट मोचक बने। सभी राजनीतिक दलों ने अमर सिंह का इस्तेमाल किया। ''नोट फोर वोटÓÓ जैसा संसदीय कबाड़ा उन्होंने खुलकर किया। संसदीय इतिहास में पहली बार सदन में नोट उछाले गये। अमर सिंह की खूबी थी कि वे कभी पीछे से वार नहीं करते। ''खुल्लमखुल्ला प्यार करेंगे, इस दुनिया से नहीं डरेंगेÓÓ वाली हिम्मत उनकी घुट्टी में मिली हुई थी। भारत की राजनीति में इतना चर्चित व्यक्ति कोई दूसरा नहीं हुआ। सोनिया गांधी तक से झगड़ा मोल ले लिया। अपने इस उठापटक के कारण बाणों की शैय्या पर भीष्म पितामह की तरह उन्हें लेटना पड़ा। अमर सिंह को महान कहना तो अतिश्योक्ति होगी पर उनका व्यक्तित्व बेजोड़ था। राजनीति में सबकी जुबान पर उनका नाम था, फिल्मी हस्तियों के वे चेहते थे। बड़े उद्योगपतियों के सखा थे और यारों के यार थे, भले ही वह विजय उपाध्याय ही क्यों न हो। प्रेस वालों ने उन्हें कई बार घेरने की कोशिश की पर वे गोल होने से बचना जानते थे। ऐसे व्यक्ति राजा के प्राण जिसमें बसते थे उस तोते की तरह थे पर राजगद्दी पर खुद नहीं बैठे पर लोगों को बैठाते रहे।

Really its great remembrancable personalities fact as wrote
ReplyDeleteGreat unfeared issues in life
Met once in Guwahati in a meeting
God get kingmaker the best of Passage in Heaven
Regards to the Newarji
EXTREMELY MARVELLOUS,NEWARJI
ReplyDeleteअमर सिंह जी वह *शून्य* थे जिसकी अपने आप मे अकेले कोई हस्ती नही होती है, पर जिस अंक के दाहिने वह बैठ जाता है, उसे दस गुना कर देता है। शिव खेमका
ReplyDeleteअमर सिंह के हमनिवाला,हमपियाला रहे हैं विमलेश्वर जी। कोलकाता में रहते हुए उनके साथ गुज़री कई कहानियां उन्होंने बताई हैं। लेकिन आपने उनके बारे में जिन बातों का ज़िक्र किया है, उससे उनका जो चित्र उभरता है, उससे उनकी जो छवि बनती है,वह राजनीतिक जीवन में अर्श से फर्श तक पहुंचने की कहानी बयां करती है। कोलकाता से दिल्ली तक की उनकी यात्रा दिलचस्प तो है ही,साथ ही और भी बहुत कुछ कह जाती है। यारों के यार अमर सिंह को जिस तरह आपने याद किया है, उन्हें शब्दांजलि दी है, काबिले तारीफ है।
ReplyDeleteनमन.........
लाजबाब लिखा है आपने।
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