...क्योंकि अभिव्यक्ति कभी रुकती नहीं है
कोरोना ने जुगाड़ा साहित्य का अपना मंच
पिछले पांच महीनों से कोरोना महामारी ने जीवन, साहित्य, दर्शन और व्यापार सभी पर असर डाला है। बहुत सी चीजें और विषय पूरी तरह से बदल चुके हैं। व्यापारी अपने धंधे और मुनाफे के लिए परेशान है। लेखक अपनी रचना और साहित्य को प्रसारित करने के लिए व्याकुल है। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे व गिरजाघर बंद है तो एक श्रद्धालु व्यक्ति की दुनिया, उसका नजरिया और उसकी आस्था भी बहुत हद तक प्रभावित हुई है। इन सबका प्रतिविम्ब सोशल मीडिया पर साफ नजर आ रहा है।
कोरोना महामारी में जब सब कुछ ठप्प है, अचल है तो साहित्य सृजन भी ठहर गया है। कई प्रकाशन बंद पड़े हैं। कई किताबें छपने की प्रतीक्षा में है। कई साहित्यिक मंच सूने हो गए हैं। पुस्तकें धूल चाट रही हैं। लाइब्रेरी के पट बंद पड़े हैं। यह संकट इतना गहरा और विकराल है कि इसने बुद्धिजीवियों और रचनाकारों के सोचने का तरीका और नजरिया भी बदल दिया है। अब कविताओं का केन्द्र बिन्दु कोरोना महामारी है, उसकी मजबूरियां हैं, उससे समाज में आये बदलाव पर रचनाएं केन्द्रित हो गयी हैं। महामारी पर कविताएं और कहानियां लिखी जा रही हैं। अपनी निजी डायरी को कोरोना डायरी या लॉकडाउन डायरी कहा जा रहा है। कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि अब साहित्य लेखन कोरोना के इर्द-गिर्द घूमने लगा है।
लेकिन, यह अच्छी बात है कि ''कोरोना माईÓÓ के प्रकोप और खौफ के बावजूद अभिव्यक्ति या भावनायें मुखरित हो रही हैं, कलम रुकी नहीं है। ग्राहक के अभाव में या बीमारी से भयाक्रान्त दुकानों के दरवाजे नहीं खुले पर लिखवाड़ चुप नहीं बैठा। उसका कारोबार जारी है। जनभावना हृदय से बाहर आने के लिए जोर मार रही है। ऐसे में सोशल मीडिया की भूमिका बेहद अहम हो जाती है। कुछ अन्य कारणों से सोशल मीडिया की जमकर आलोचना हो रही है, निन्दा हो रही है पर वैचारिक अभिव्यक्ति और साहित्य सृजन के मामले में सोशल मीडिया एक बड़े मंच के तौर पर उभर कर सामने आया है।
आलेख और कविता या कहानी के अंश पहले भी फेसबुक पर पोस्ट किये जाते रहे हैं। लेकिन अब जिस तरह से इसे एक अवसर के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है यह बेहद ही अच्छी बात है। कोरोना काल के दौरान फेसबुक के माध्यम से साहित्य का सम्प्रेषण बेतहाशा तौर पर बढ़ा है। जो लोग पहले शेयर नहीं करते थे अब वे भी अपनी कविता या कहानी को शेयर कर रहे हैं।
इस दुर्योग कालखंड, जिसे इतिहास में कोरोना काल के नाम से जाना जायेगा, में साहित्य की किताबें पढ़ी-गुनी ही नहीं जा रही है, बल्कि उन्हें जिया भी जा रहा है। आज सूचना और संचार हमारे विचार ौर व्यवहार के संचालक बन गए हैं। देखते ही देखते कोरोना और ऑनलाईन किताबों का अघोषित रिश्ता जुड़ गया है। दूसरी तरफ घर पर उपलब्ध नयी और पुरानी चुनिंदा किताबों की अलमारियों की कैद से एकबारगी मुक्ति भी मिल गयी। वक्ता की मांग को समझने की कोशिश की और युवा पीढ़ी व साहित्यकारों से ऑनलाईन संवाद कर अच्छी बातों का एक निहायत नया दौर भी देखने को मिला।
तकनीक हमारे जीवन की बुनियाद शर्त बन चुकी है। परम्परागत माध्यम हासिये पर सिमट रहे हैं। साहित्य, समाज, शिक्षा, धर्म, आध्यात्म का हर पहलू नए जमाने की नयी प्रौद्योगिकी के पीछे चल रहा है। डिजिटल दुनिया ने लोकल से ग्लोबल तक इंसान की सोच, कार्यक्षमता और काम करने के तरीकों को पूरी तरह बदल दिया है।
एक और अच्छी बात यह भी है कि साहित्य की बोझिल और उबाऊ महफिलों और गोष्ठियों से लोगों को निजात भी मिली है। यहां स्वतंत्रता भी मिली है कि कौन किसे पढ़े या देखे यह उसकी मर्जी है। इसमें साहित्यिक पाठ के दौरान किसी बंद कमरे में फंस जाने का डर नहीं कि कोई एक बार कहानी सुनने बैठ गया तो वह बीच में उठ नहीं सकता। जहां अच्छा लिखा जा रहा है वहां श्रोता ठहरते हैं और उसे आगे शेयर करते हैं। जहां ठीक नहीं है वहां बगैर प्रतिक्रिया दिये ही आगे बढ़ जाने की सुविधा है। कुल मिलाकर यह साहित्य की तरह ही एक आजाद ख्याल है।
किन्तु इसका एक दूसरा पहलू भी है। कई पुराने और स्थापित लेखक और कवि सोशल मीडिया पर चल रही साहित्य की गम्भीरता और मौलिकता पर सवाल उठा सकते हैं। लेकिन किसी के रचना धर्म पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। क्योंकि ऐसे कई नये लेखक हैं जिन्होंने इस मंच का बेहतर उपयोग करके कुछ हद तक अपनी जगह बना ली है। कई ऐसे नाम हैं जिनके लेखन और कविता को नकारा नहीं जा सकता। कोरोना काल में विपरीत स्थितियों में हाथ-पांव चलाते-चलाते एक मंच बना लिया गया है। वैसे भी संप्रेषण का मतलब ही मेरे ख्याल से यह होता है कि दुनिया के किसी अज्ञात कोने में बैठ कर अपनी जेब से मोबाइल निकाल कर आप अपनी बात लिखें और वह दुनिया के हर कोने तक पढ़ी जाये।

Very nice thinking. Really when everything is stopped in this period only social media is active. I think that in this period social media has become our best friend and it has also become a platform where we can show our creativity. Thank you so much for sharing your appreciable thought with me. I will be waiting for your next article.. .. Thank you.
ReplyDeleteMany many thanks for presenting the real truth before Readers .Now we all old one,youth both gents &ladies should learn to live in Dizital world inorder to face corona period .The whole facts are explored by Respected Newarji .I congratulate him for this valuable article .with best wishes $shankar somani
ReplyDeleteIt is the actual fact,we should take this situation as a positive way, and this is the perfect time for writing, reading and of course express our views on the social media,people really appreciate our views ...Manisha Gupta Kolkata
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