तू छिपी है कहाँ?

 तू छिपी है कहाँ?

कोरोना वायरस की वैक्सिन खोज निकालने रातदिन जुटे हैं दवा वैज्ञानिक पर कुछ ऊंचे पदों पर बैठे लोग इसकी दवा जेब में लिए घूम रहे हैं कोरोना संक्रमण पर नजर रखने और इसकी चेन तोडऩे के लिए पूरी दुनिया प्रयासरत है। आधुनिक तकनीकों पर आधारित कुछ ऐप इस जंग में कारगर हथियार साबित हो रहे हैं। भारत में जैसे आरोग्य सेतु ऐप का इस्तेमाल हो रहा है उसी प्रकार चीन में ''हेल्थ कोड' प्रत्येक नागरिक के लिए अनिवार्य है। चीन ने भले ही पूरी दुनिया को ऐसे मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया, जहां इस महामारी के समक्ष बड़े-बड़े सूरमा भी हांफ रहे हैं लेकिन अपने यहां कोरोना प्रसार को रोकने के लिए उसने अपने तकनीकों के सहारे सफलता पायी है।
दक्षिण कोरिया दुनिया का पहला ऐसा देश है जिसने कोरोना से निपटने के लिए बहुत पहले ही तकनीक का सहारा लिया, जिसका उसे काफी फायदा भी मिला।


 जर्मनी में एप्पल तथा गूगल की मदद से कोरोना संक्रमण की ट्रेसिंग की जाती है और ऐप यूजर्स का डाटा उनके फोन में सेव करने के बाद सरकार को अपडेट दिया जाता है। आस्ट्रेलिया में कोरोना संक्रमितों को ट्रैक करने के लिए ब्लूथ के सिग्नल पर आधारित ''कोविड सेफ' ऐप इस्तेमाल हो रही है। इजरायल में भी कोरोना संक्रमण की चेन तोडऩे के लिए ऐप का इस्तेमाल कांटैक्ट ट्रेसिंग की जा रही है। रूस में लोगों की गतिविधियों का पता लगाने के लिए ''क्यू आर' कोड लागू हुआ है। लंदन में किंग्स कॉलेज अस्पताल में शोधकर्ताओं द्वारा बनाया गया ऐप ''सी-19 कोविड सिम्प टम्स ट्रैकर' अलर्ट देता है कि कहां कोरोना संक्रमण का खतरा है। सिंगापुर में भी कांटैक्ट ट्रेसिंग स्मार्ट फोन ऐप के जरिये अधिकारी कोरोना मरीजों का आसानी से पता लगा सकते हैं।

बहरहाल, विभिन्न देशों में तकनीक पर आधारित अलग अलग तरह के ऐप कोरोना ट्रेसिंग में काफी कारगर साबित हो रहे हैं।

इधर ऑक्सफोर्ट से आशा की किरण प्रस्फुटित हो रही है। लन्दन के विश्व प्रसिद्ध ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी कोविड-19 वैक्सिन के ट्रयल की प्राथमिकी से पता चला है कि यह काफी सुरक्षित है और इससे भविष्य की आशा जागृत हुई है। ऑक्सफोर्ड के ट्रयल के सुपरिणाम के बाद भारत में वैक्सिन उत्पादक सेरम इंस्टीच्यूट ने यह घोषणा की है कि वह भारत में चिकित्सा सम्बन््धी संस्थान से अनुमति लेकर इसका ट्रयल करेगा और शीघ्र ही भारत में बड़ी तादाद में वैक्सिन तैयार कर सकेगा। सेरम इंस्टीच्यूट का ब्रिटिश फार्मा क्षेत्र के बहुत बड़े सूरमा अस्ट्रा जेनेका के साथ उत्पादन में साझेदारी है और करोड़ों डोज बनाने की उसमें क्षमता है। हालांकि प्रारम्भिक सफलता मिली है लेकिन अभी इस वैक्सिन को रामबाण बनने में कई चरणों से गुजरना होगा और इसमें समय लगेगा।

कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर खबरें चल रही है कि भारत में कोरोना की दवा बन गयी है। लोग इस दवा का नाम भी खूब शेयर कर रहे हैं। फैबिफ्लू नाम की इस दवा को कोरोना के तोड़ के तौर पर पेश किया जा रहा है। भारत में यह दवा ग्लेनमार्क फार्मा कम्पनी बनाती है। इस दवा को बनाने वाली फार्मास्यूटिकल कंपनी ग्लेनमार्क का दावा है कि कोविड-19 के माइल्ड और मॉडरेट मरीजों पर इसका इस्तेमाल किया जा सकता है और परिणाम सकारात्मक आये हैं। कम्पनी का दावा है कि ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) ने इस दवा के ट्रायल के लिए सशर्त मंजूरी दी है। कोविड-19 के इलाज में इस दवा के आने से उम्मीद की नयी किरण जरूर नजर आयी है। अब सीधे डॉक्टर इस दवा के इस्तेमाल करने की सलाह मरीजों को दे सकते हैं। इस दवा का दुनिया के कई देशों में कोविड-19 के इलाज के लिए ट्रायल चल रहा है। इसमें जापान, रूस, चीन जैसे बड़े देश हैं।

फार्मा कम्पनी हेटे रो की तरफ से भी यह दावा किया गया है कि भारत में अब 'कोवि फॉर' बनाने की मंजूरी ड्रग कंट्रोरल जनरल ऑफ इंडिया से मिल गयी है। ये दवा भी कोरोना के इलाज में कारगर मानी जा रही है।

अर्जुन राम मेघवाल (केन्द्रीय मंत्री) पापड़ से कोरोना भगाने का मंत्र दे रहे हैं।


भारत की विभिन्न प्रयोगशालाओं में कोविड-19 का जिन्न दूर भगाने के लिए विभिन्न प्रयोग चल रहे हैं। इससे आशा बंधी है कि भारत के चिकित्सा वैज्ञानिक जो रात दिन कोरोना का समाधान निकालने में लगे हैं, देर-सबेर सफल होंगे। इन वैज्ञानिकों की हौसला आफजाई करना हम भूल गये। हमारे डॉक्टर एवं स्वास्थ्यकर्मियों के लिए प्रधानमंत्री के आग्रह पर हमने तालियां बजायी, घंटियां हिलायी, दीया जलाकर उनके सुकृत्यों को रोशन किया पर वैज्ञानिकों की पीठ थपथपाने की भी उतनी ही जरूरत है, यह किसी ने याद नहीं दिलाया। दरअसल इसका एक कारण यह भी है कि हम आज भी विज्ञान-उन्मुखी होने की बजाय बाबाओं और पोंगापंथियों की चमत्कार के प्रति आस्था को माथा नीचे कर मंत्र के रूप में मानने लगे। बीस-तीस साल पहले जब मौसम विभाग के वैज्ञानिक वर्षा की भविष्यवाणी की यह कहकर मजाक उड़ाते थे कि बारिश की भविष्यवाणी है यानि आज बरसा नहीं होगी और फिर जब वर्षा नहीं आती तो हम जी भर कर मौसम वैज्ञानिकों की धज्जियां उड़ाया करते। हम भूल गये कि वैज्ञानिक तंत्र को विकसित करने में भी वक्त लगता है। इस क्षेत्र में अब सटिक भविष्यवाणी करने लगे किन्तु प्रशंसा के दो शब्द किसी ने नहीं कहा। वर्षा, ज्वारभाटा के समय के फोरकास्ट से पता नहीं समुद्र तट पर रहने वाले कितने मछुआरों की जान बचती है, कितनी नौकाएं डूबने से बचती है। खेती करने वालों को इसका लाभ मिलता है। आज कोरोना की बीमारी को लेकर भी बड़े ओहदों पर बैठे कुछ जिम्मेदार लोग बीच-बीच में बेतुकी बातें करते हैं वह हमारे इसी ज्ञान-विज्ञान विरोधी चरित्र को उजागर करता है। मसलन मध्य प्रदेश के एक माननीय मंत्री का कहना है कि 5 अगस्त को राम मन्दिर का शिलान्यास होते ही कोविड रोगियों की संख्या तेजी से घटने लगेगी। प. बंगाल भाजपा के अध्यक्ष श्री दिलीप घोष का कहना है कि गंगाजल से कोरोना भाग सकता है। और तो और इसी शुक्रवार को केन्द्रीय मंत्री और बीकानेर से सांसद अर्जुन राम मेघवाल ने एक निजी कम्पनी का पापड़ लांच करते हुए कहा कि इस पापड़ को खाने से कोरोना से लडऩे की ऐंटीबॉडी डेवलप होगी। किसी की आस्था पर मैं सवाल नहीं खड़ा करता, और यह भी मानता हूं कि विश्वास के सामने तर्क नहीं चलता पर अपनी व्यक्तिगत मान्यता को सार्वजनिक कर हमारे विज्ञान साधकों की ''लेग पुलिंग' भारत के भविष्य हेतु शुभ नहीं है। हमें पाषाण युग की ओर लौटना है या एक आधुनिक भारत का निर्माण करना है इस पर गम्भीरता से सोचना चाहिये।

Comments

  1. मैने भी अनुभव किया है कि आनंदलोक अस्पताल की स्थिति अब पहले वाली नही है, शायद सराफ जी ने इस ओर ध्यान देना छोड़ दिया है और अन्य काय॔ जैसे गरीबों का मकान बनवाना, बच्चियों का विवाह करवाना आदि-आदि।
    जबकि मेरे विचार से उन्हें इस एक चिकित्सा के क्षेत्र में ही पुरा ध्यान देकर एक उच्च मुकाम हांसिल करना चाहिये था ।
    इस क्षेत्र में काफी अवसर हैं, आज इस करोना के दौर मे अगर गरीबों की सेवा की जाती तो शायद ईश्वर की ही सेवा होती क्योंकि आज मध्यम वर्गीय परिवार को भी अच्छी चिकित्सा नहीं मिल पाती है तो गरीब की क्या बिसात है।
    आशा है सराफ जी अब भी इस ओर ध्यान देगे।
    धन्यवाद।

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