राम! राम!!
भारत-नेपाल सम्बन्ध अभी बड़े खराब दौर से गुजर रहे हैं। नेपाल की भारत से बेरुखी एवं सीमा विवाद बड़ा कष्टदायक है क्योंकि भारत ने नेपाल को अपना सहोदर भाई ही माना है। दोनों देशों में आपसी सम्बन्ध की जड़ें अतीत के पाताल में है क्योंकि भारत से भी ज्यादा प्राचीन मन्दिर नेपाल में है। वैसे भी मन्दिरों की यह विशेष बात रही है कि दुनिया का सबसे प्राचीन हिन्दू मन्दिर भारत या नेपाल में नहीं बल्कि कम्बोडिया में है। पांच वर्ष पूर्व मैं जब नेपाल सरकार के आमंत्रण पर वहां गया तो प्राचीनतम मंदिरों को देखने का मुझे अवसर मिला। भारत और नेपाल हिन्दू धर्म एवं बौद्ध धर्म के संदर्भ में सामान संबंध साझा करते हैं, उल्लेखनीय है कि बुद्ध का जन्मस्थान लुम्बिनी नेपाल में है और उनका निर्वाण स्थान कुशीनगर भारत में स्थित है। भारत-नेपाल से जुड़ी धार्मिक भावना एवं सहधर्मिता के चलते नेपाल और भारत को कभी दो देश नहीं समझा गया। सिर्फ सरकारी स्तर पर ही नहीं दोनों देशों के लोग भावनात्मक तौर पर इतने जुड़े रहे कि उन्हें सीमा अलग नहीं कर सकी। दोनों देशों के बीच वीसा की औपचारिकता नहीं है और न ही पासपोर्ट का प्रावधान है। वैसे भी नेपाल के 8 लाख नागरिक भारत में रहते हैं और भारतीय सेना में 60 हजार सैनिक गोरखा रेजीमेन्ट के हैं। पूर्व सेनापति ले. ज. मानेक शॉ ने एक बार कहा था कि अगर कोई सैनिक यह कहे कि मुझे जान की परवाह नहीं है तो समझ लें कि वह जरूर कोई गोरखा है।![]() |
| केपी शर्मा ओली- नेपाल के प्रधानमंत्री |
इसी संदर्भ में नेपाल का भारत से दूर जाना हमें बड़ा नागवार गुजरा। हम पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों से तो बैर मोल ले सकते हैं पर नेपाल कुछ ऐसा करे जो भारत की भावना को ठेस पहुंचाये तो हम स्वाभाविक तौर पर अपने को ठगा महसूस करते हैं। इसीलिये हमारे राजनीतिक नेता आये दिन आपस में चाहे अमर्यादित भाषा का प्रयोग करते हों किन्तु हम अपने प्यारे पड़ोसी नेपाल के बारे में सभी दलों के नेताओं ने मर्यादा बरती हैं और कभी भी ऐसे कुछ नहीं कहा कि किसी नेपाली को आघात पहुंचे।
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| राम- भारत के पुत्र या नेपाल की धरती के? |
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| सीता- नेपाल की कन्या हिन्दू समाज में देवी के रूप में पूजी जाती हैं |
नेपाल के प्रधानमंत्री श्री के.पी. शर्मा ओली ने यह कहकर आग में घी डालने का काम किया कि रामायण के राम भारतीय नहीं बल्कि नेपाली थे। यह भी कहा कि राम की नगरी अयोध्या वास्तव में नेपाल के वीरगंज शहर के पश्चिम में स्थित एक गांव है। दुनिया के करोड़ों हिन्दुओं के सदियों से चले आ रहे विश्वास के विपरीत जाने वाले ओली के इस बयान को बहुत से लोग हास्यास्पद मानेंगे, लेकिन एक तरह से देखा जाए तो यह उतना अजीब भी नहीं है। जिन विभूतियों पर पूरी मानव जाति को गर्व है, उन्हें कौन नहीं अपनाना चाहेगा? उनकी जन्मस्थली आदि को लेकर परस्पर विरोधी मान्यताएं बन जाना स्वाभाविक है। यह तो बात मर्यादा पुरुषोत्तम राम की है, जिन्हें ईश्वरीय अवतार माना गया है। राम के जीवन पर आधारित 300 से अधिक रामायण मौजूद हैं, जिनमें कई गाथाओं में भिन्नता है। भारत में भी इस पर विभिन्न विचार सामने आ चुके हैं कि रावण की लंका वहां नहीं थी जहां हम समझते हैं, वह वर्तमान मध्य प्रदेश में कहीं थी। ऐसे में राम के नेपाल में भी कोई कथा प्रचलित हो, किसी खास गांव को स्थानीय स्तर पर अयोध्या मानने का चलन हो तो इसमें न कोई बहुत आश्चर्य की बात है, न ही इस पर आपत्ति करने की किसी को जरूरत है। कोई इतिहासज्ञ एकडेमिक विद्वान पर्याप्त प्रमाण जुटाकर इसे बहस का मुद्दा भी बना सकता है। समस्या पैदा तब होती है जब हम ऐसे किसी स्थानीय विश्वास का कूटनीतिक इस्तेमाल होते देखते हैं। कोई तटस्थ बुद्धिजीवी नहीं, नेपाल के निर्वाचित प्रधानमंत्री बाकायदा बयान जारी करते हैं कि असली अयोध्या उनके देश में है। यहां तक भी कोई विशेष आघात वाली बात नहीं थी, पर वे यहीं नहीं रुके। उनका कहना है कि भारत ने नकली अयोध्या खड़ी करके नेपाल का सांस्कृतिक अतिक्रमण किया है। इस बयान का समय भी ऐसा, जब भारत व नेपाल के राजनयिक संबंध लगभग अपने समूचे इतिहास के न्यूनतम बिंदु पर पहुंच गए हैं। इससे अंदेशा यही बनता है कि दोनों देशों के रिश्तों को अधिक से अधिक बिगाडऩे में ही नेपाल का मौजूदा सत्ताशीर्ष अपना फायदा मान रहा है।
जाहिर है, ओली सरकार के इस कदम ने दोनों देशों के रिश्तों को नुकसान पहुंचाया है। ऐसे में इन रिश्तों को सुधारने की दिशा में विश्वास बहाली के कदम उठाने के बजाय भारत की अयोध्या और राम को नकली बताना और चाहे जो भी हो, अच्छा राजनय बिलकुल नहीं है।
भगवान राम के बारे में हमारी ²ढ़ मान्यता है कि वे कण-कण में बसे हैं। इसलिये राम भारत की अयोध्या के हों या नेपाल की अयोध्या के हों, हमारी मूल भावना इससे विचलित नहीं होती है। वैसे मां सीता तो नेपाल में जनकपुर की ही थीं। राम नेपाल के धरती पुत्र हों या नेपाल के दामाद, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वैसे दामाद भी पुत्र स²श्य ही होते हैं। सामान्य समय में ओली साहब यह बोलते तो हमें खुशी होती, भले ही ऐतिहासिक तौर पर इसका कोई प्रमाण उपलब्ध न हो। ओली साहब भगवान राम को अपनी धरती का पुत्र बताते हैं तो फिर चीन की शह पर हमारे पुराने सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक सम्बन्धों पर आघात क्यों करते हैं? ओली साहब भारत-नेपाल को अपनी राजनीति का आहार नहीं बनायें। ओली तो कम्युनिस्ट हैं जिनकी धर्म के प्रति निष्ठा नहीं होती, फिर क्यों इस पचड़े में पड़ते हैं कि राम का जन्म भारत की अयोध्या में हुआ या नेपाल की अयोध्या में। इसे इतिहासकारों पर छोड़ दें और भारत के साथ अपने स्वाभाविक सम्बन्धों को मजबूत करें। भारत-नेपाल के बीच जो विवाद हैं वे कोई गम्भीर नहीं है, हलके-फुलके हैं। बंगलादेश और भारत के बीच दो गांवों को लेकर विवाद था जिसे हमने कुछ वर्ष पहले चुटकी में सुलझाया। नेपाल के साथ तो हमारा ऐसा सम्बन्ध है जिसमें हम विवाद को प्रतिष्ठा का सवाल नहीं बनाना चाहेंगे। ओली राजनीतिक गर्दिश में हैं, इस तरह के विवाद उठाकर वे चीन को खुश करने में भले ही सफल हों पर भारत-नेपाल के ऐतिहासिक सम्बन्धों में वे खलनायक ही कहलायेंगे।



बहुत अच्छी समीक्षा की गई है। राम को जिस तरह राजनीति के गलियारों में अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए उछाला गया है वह ओली के लिए भी लाभदायक न होगा। भारत ने सदैव नेपाल की मदद ही की है। आपने बहुत ही सुंदर ढंग से विवेचना की है। वरिष्ठ पत्रकार की दृष्टि से आपने अपने अनुभवों से बहुत सही लिखा। धन्यवाद - डॉ वसुंधरा मिश्र
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