अपराध की जड़ें पाताल लोक में है

अपराध की जड़ें पाताल लोक में है
विकास दुबे ने अपनी जान देकर कई महाजनों की आबरु रख ली
कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या कर रोंगटे खड़ा कर देने वाली घटना का दुर्दांत अपराधी विकास दुबे की एनकाउंटर में मौत पर शायद ही किसी ने दांत तले अंगुली दबाई हो। अधिकांशलोगों का कहना है कि यह तो होना ही था। हिस्ट्रीशीटर का एनकाउंटर में मारे जाने की खबर जैसे ही कानपुर के आसपास ग्रामीणों को लगी बड़ी संख्या में लोग घटना स्थल पर पहुंच गये और पुलिस जिंदाबाद के नारे लगाने लगे। ग्रामीणों का कहना था कि पुलिस ने इस कुख्यात अपराधी को मार कर जनता को राहत की सांस दी है। इसके आतंक से पूरा क्षेत्र खौफ में था। आम आदमी एनकाउंटर चाहता था और इससे खुश है। और तो और जिस पुलिस अधिकारी को विकास दुबे ने एक हफ्ते पहले मौत के घाट उतार दिया था, उसका बेटा भी बोला कि उसका एनकाउंटर होना चाहिये। लेकिन दूसरी ओर विपक्ष के सभी राजनीतिक नेताओं ने पुलिस और प्रशासन पर निन्दा के गोले दागे। उनका कहना है कि पुलिस ने झूठा एनकाउंटर दिखाकर विकास दुबे का काम खत्म किया ताकि उसके साथ ही यह राज भी दफन हो जाये कि कौन-कौन से राजनीतिक नेता इस बाहुबली के संपर्क में थे, किसने इसका कितना फायदा उठाया, कई बिचौलियों ने विकास दुबे के नाम पर पैसा कमाया, कई पुलिस अधिकारी इस शातिर अपराधी को सलाम करते थे। विकास दुबे ने अपनी बलि देकर कितने महाजनों की आबरु रख ली। कई सफेदपोश तथाकथित सभ्य और रसूखदार धज्जियां उड़ जाने के खतरे से बच गये। उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था पर सवाल उठाने का सुनहरा मौका, हाथ से चला गया। आम आदमी का यह भी तर्क है कि इस तरह के जघन्य अपराधी को अंतोतगत्वा फांसी ही तो होती, सो अब उसकी मौत हो गयी, बात तो बराबर की ही रही। समय बचा, सरकार का पैसा बचा।

विकास दुबे को जिन्दा पकड़ा गया था और जब उसे कानून के हवाले किया जाना था, उसके पहले वह मर गया या उसे मार दिया गया। कुछ दिनों में लोग इस कांड को भूल जायेंगे और सारी वारदात अपराध इतिहास के पन्नों में सिमट जायेगी। लोग कोरोना से ग्रस्त हैं, आर्थिक बदहाली से टूट गये हैं और वे लोग विकास दुबे के एनकाउंटर पर उठाये सवालों के पचड़ों को यह कह कर खारिज कर देंगे कि यह सब राजनीति है, अपराध के हम्माम में सभी नंगे हैं। कुछ हद तक यह बात सही भी है। किस के राज में अपराध नहीं हुए। विकास दुबे बसपा का घर देख आया था, अभी सपा में था। कांग्रेस की कई वर्षों से सत्ता नहीं थी, वर्ना वहां भी घुस जाता। कौन नहीं जानता कि देश की राजनीति और सत्ता अपराधियों के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। इस संदर्भ में मुझे एक पुरानी बात याद आ गयी। इमरजेंसी के बाद श्री केशवदेव मालवीय, भारत के पूर्व पेट्रोल मंत्री से मैं लोकसभा चुनाव के दौरान उनके चुनाव क्षेत्र गोंडा (यूपी) गया था। उन्होंने मुझे कुछ प्रिंटिंग का काम दिया था, सो छापकर उन्हें देने गया था। सुबह उनसे बहुत लोग मिलने आये। उन्होंने एक-एक करके सबको बुलाया। मैं उनके पास ही बैठा था। मैंने देखा आधे से अधिक लोगों ने उनसे पिस्तौल का लाइसेंस दिलवाने की गुहार लगायी। ऐसे लोग भी उनमें थे जिनके पास पहले से दो-तीन पिस्तौल का लाइसेंस था। इसी से पता लगा सकते हैं कि उत्तर प्रदेश में पिस्तौल कितनी अहम है। आज स्थिति उससे भी अधिक भयावह हो गयी है। फर्क बस यही है कि गेरुवाधारी योगी आदित्य नाथ जी के राज में अपराधी स्वयं जाकर मंदिर में अपने को गिरफ्तार करवाते हैं। इस घटना से विकास दुबे के खत्म होने पर खुश लोगों के बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का रौब भी खूब जमा। बहुतेरे यह कहते सुने गये योगी जी ने बड़ी हिम्मत का काम किया कि एक दुर्दांत क्रिमिनल का काम तमाम कर दिया। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। राम द्वारा रावण के संहार से दुबे के एनकाउंटर की तुलना की गयी। वैसे आमलोगों द्वारा एनकाउंटर को अंजाम देने का औचित्य अकारण नहीं है। जन साधारण को पता है कि अगर वह कानपुर लाया जाता - उसे कोर्ट में पेश करना होता। कोर्ट उसे हिरासत में रखने का आदेश देता। फिर मुकदमा चलता। तारीख पर तारीख पड़ती। चश्मदीद गवाह बुलाये जाते। किसकी हिम्मत है कि विकास दुबे के खिलाफ गवाही दे। खैर उसे सजा हो भी जाती तो वह शातिर अपराधी जेल से भी भाग सकता था। या फिर उचित गवाही के अभाव में कुछ समय में ही उसे ''न्याय" मिल जाता और वह फिर अपने गोरखधंधे में लग जाता। कई निर्दोष लोगों की हत्या विकास दुबे ने की हो या आठ पुलिस जवानों के कत्ल का अपराधी विकास दुबे को अगर जेल भी हो जाती तो वह अपना कारोबार गुर्गों के जरिये चलाता रहता।
विकास दुबे की सदा के वास्ते खामोशी से अपराध में कोई खलल नहीं हुआ और वह बाजाफ्ता चलता रहेगा। राजनीति-अपराध और धनबल की त्रिवेणी बहती रहेगी और इसमें डुबकी लगाने वाले बेतरणी पार करेंगे। अब रही राजनीति प्रतिक्रिया या बहुद्धिजीवियों की इस व्यवस्था से उपजी परेशानी की बात तो यह बता दें कि इन अपराधों की जड़ें पाताल लोक में है। सतयुग या त्रेतायुग में भी खूंखार राक्षत साधना या तपस्या करके भगवान को प्रकट होने पर मजबूर कर देते। भगवान वैसे भी भक्तों के वश में रहते हैं। और फिर साधक ब्रह्माजी या शंकर जी या भगवान इन्द्र से अमर होने या इच्छामृत्यु का वरदान ले लेता था। कई ने तो वर लेकर भगवान पर ही उसे आजमा दिया - भस्मासुर की कहानी आपने सुनी होगी। आज भी उसी का रीटेक है। अपराधी अपने कार्यों से मंत्रियों, पुलिस अफसराना या आकाओं को खुश करते हैं और फिर उनसे अभयदान ले लेते हैं। आज अपराध की दुनिया ऐसे ही भस्मासुरों से भरी है।
तरीका तो बाली को मारने का भी गलत था, भीष्म को मारने का भी सही नहीं था, द्रोण को भी ऐसे ही छल का शिकार होना पड़ा, कर्ण भी ऐसे ही मारा गया, अभिमन्यु का वध कई धर्मरक्षकों के सिंडिकेट ने किया। महाभारत में वासुदेव ने कहा है ''जब छल का आशय धर्म हो तो छल भी धर्म है।" (वैसे विकास दुबे के एनकाउंटर से इसका कोई सीधा संबंध नहीं है।)
तेल के अभाव में भी दिया बुझ जाता है
हर समय हवा की गलती नहीं होती। -गुलजार

Comments

  1. हर समय हवा की गलती नहीं होती। वाह बहुत सुंदर लिखा है। अभिमन्यु को धर्रमरक्षकों के सिंडिकेट ने मार डाला। नया प्रयोग और समाज की कड़वी सच्चाई को आपने लिखा है। अपराधी विकास दूबे का एनकाउंटर ने कई विषयों को दबा दिया। व्यवस्था की कलई फिर खुलने से रुक गई। साधुवाद

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  2. अंतिम लाईन कायरता की निसानी है l

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  3. अंतिम लाईन कायरता की निसानी है l

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  4. अंतिम लाईन कायरता की निसानी है l

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  5. जितेन्द्र धीर
    कोलकाता
    अपराध और राजनीतिक गठजोड़ का विकास दुबे अकेला चेहरा नहीं है। ऐसे तत्व हर गांव कस्बे, नगर, महानगर में हैं,यह किसी से अजाना नहीं है। कोई भी राजनीतिक दल ऐसे अपराधियों को संरक्षण देने से नहीं हिचकिचाते जो उनके लिए,सत्ता प्राप्ति में सहायक होते हैं। यह सच्चाई है, कोई भी इसे अस्वीकार नहीं कर सकता। जब तक अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण मिलता रहेगा,यह बदस्तूर जारी रहेगा। धनबल, राजनीति और अपराध का गठजोड़
    जब तक बना, रहेगा कुछ नहीं बदलेगा। पुलिस प्रशासन भी कहां स्वतंत्र हैं, उन्हें राजनीतिक दबाव में काम करना होता है,यह भी किसी से छिपा नहीं है। कुल मिलाकर वर्तमान में स्थिति ऐसी बन गई है कि इससे निजात पाना मुश्किल ही दिखता है।
    यह तभी संभव है जब सभी राजनीतिक दल यह तय कर लें कि वे किसी भी प्रकार,प्रत्यक्ष या अपरोक्ष रूप से अपराधियों को संरक्षण नहीं देंगे, उन्हें अपना प्रत्याशी नहीं बनाएंगे। चुनाव जीतने के लिए उनका इस्तेमाल नहीं करेगी। साथ ही यह भी जरूरी है कि आम मतदाता ईमानदार, स्वच्छ छवि वाले प्रत्याशी को अपना जनप्रतिनिधि चुनें। क्या ऐसा हो सकता है,यक्ष प्रश्न यही है।

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  6. विकास दुबे तो बस एक प्यादा था जिसे मार गिराया गया लेकिन शतरंज का खेल खेलनेवालों और प्यादों को इस्तेमाल कर उधका इनकाउंटर करनेवालों का इनकाउंटर कब होगा। विकास दुबे जैसे प्यादों को भस्मासुर बना कर फिर उनका संहार करनेवालों तथाकथित देवताओं का भी संहार कभी होगा या नहीं।
    और अब तो पुलिस और प्रशासन ने अनुकरणीय रास्ता आम जनता को दिखा दिया है कि सारे झगड़े सड़क पर ही सुलटा लिए जाएंगे, कोर्ट कचहरी का चक्कर लगाने की जरूरत ही क्या है। और तथाकथित लोकतंत्र में पुलिस से उम्मीद भला किसको होगी जो पहले तो अपराध को अपने साए में पनपने का माहौल मुहैय्या करवाती है और फिर अपराध के सरगनाओं को बचाने के लिए प्यादों को ढेर करके वाहवाही लूटती है। जय हो लोकतंत्र के भक्षकों की और इन भक्षकों का गुणगान करनेवाले तथाकथित बुद्धिजीवियों की।

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  7. Very nice writing. I feel very excited for the next article everytime. Your writings are really wonderful. Thanks,
    Tapashi Bose
    I will be waiting for your next article!😊😊😊☺☺👌👌👌👌👍👍👍💐💐💐💐💐💐💐💐

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  8. Beautiful✨✨✨✨. Very thoughtful blog. I am always ready to read. Taaza TV, Chappte Chappte, Newar ji jug jug jiyo! 👏👏👏👏👍👍👍😀

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  9. कड़वी सच्चाई बयां करता अति उत्तम आलेख
    बधाई

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  10. Very nice article I am always waiting for your next article..... God bless you sir

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