अमेरिका में नस्ली हिंसा
सतर्क हमें भी रहना चाहिये
46 वर्षीय अश्वेत जार्ज फ्लॉयड की मौत ने पूरे अमेरिका को एक बार फिर झकझोर दिया। 52 वर्ष पूर्व मार्टिन किंग लूथर की मौत के बाद जो परिस्थिति पैदा हुई थी, न्यूयार्क, फिलाडेल्फिया, शिकागो और वाशिंगटन डीसी समेत अमेरिका के कई शहरों में उससे भी बदतर स्थिति हो गई है। चालीस शहरों में घटना के बाद कफ्र्यू लगाना पड़ा ताकि उपद्रवियों पर काबू पाया जा सके। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को उनकी सुरक्षा हेतु भूमिगत बंकर में ले जाया गया। ट्रंप ने कहा कि स्थिति नहीं सम्हली तो सेना को सड़क पर उतार दूंगा, लेकिन अमेरिका के प्रतिरक्षा सचिव ने उनकी मांग खारिज कर दी। गत आठ दिनों से अश्वेत की हत्या के प्रतिवाद में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। कफ्र्यू के बावजूद रैलियां निकाली जा रही हैं। बड़े पैमाने पर लूटपाट भी हुई। संपत्ति और स्मारकों को नुकसान पहुंचाया गया।
वॉशिंगटन में महात्मा गांधी की प्रतिमा को नुकसान पहुंचाए जाने के बाद उसे कवर कर दिया गया है।
वाशिंगटन में भारतीय राजदूतावास के बाहर महात्मा गांधी की एक मूर्ति को ग्राफिटी और स्प्रे पेंटिंग से बिगाड़ दिया। यह घटना सामने आने के बाद भारत में अमेरिकी राजदूत केन जस्टर ने माफी मांगी है। खास बात यह है कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म स्नैपचैट ने भी अब माना है कि राष्ट्रपति टं्रप नस्ली हिंसा को भड़काते हैं। स्नैपचेट कम्पनी की ओर से कहा गया है कि हम उन आवाजों को अपने प्लेटफार्म पर बढ़ावा नहीं देना चाहते हैं जो समाज में हिंसा पैदा करे और बंटवारा करे।
अमेरिका का यह दावा रहा है कि वह दुनिया का सबसे समतामूलक, स्वतंत्रतामूलक और न्यायमूलक राष्ट्र है। इस रंगभेदी आंदोलन ने मार्टिन लूथर किंग जैसे महान अश्वेत नेता पैदा किए। लूथर, गांधी के सिद्धान्तों पर चलने वाले भारतप्रेमी नेता थे। इस समय अमेरिका में 33 करोड़ लोगों में कालों की संख्या लगभग 4 करोड़ है लेकिन ये अश्वेत लोग बहुत विपन्न अवस्था में हैं। कोरोना से मरने वालों में सबसे ज्यादा संख्या इन्हीं अश्वेत लोगों की है। यह अपवाद है कि अश्वेत बराक ओबामा राष्ट्रपति पद तक पहुँच गए।
भारत को भी अमेरिका में हुई इस हिंसा से सबक लेना चाहिये। घटनाक्रम का सिर्फ मूकदर्शक रहना भारत के लिये उचित नहीं होगा। भारत में दलितों से अश्वेत की तुलना तो ज्यादती होगी। हमारे देश में पुराने जमाने में हरिजन या दलित की स्थिति आज के अश्वेतों की सी रही है। कालान्तर में वे मुख्य धारा में ही नहीं आये बल्कि भारतीय राजनीति में उनकी अहम् भूमिका बनी हुई है। यह सही है कि जात पात से हम मुक्त नहीं हुये हैं जिसके दुष्परिणामस्वरूप हमारे देश में गाहे-बगाहे दुर्भाग्यजनक घटनायें होती हैं। ऐसी वारदातों में प्रशासन भी सख्त कदम उठाता है। अमेरिका जैसी चिन्ताजनक स्थिति नहीं होते हुए भी हमारे देश में जिस तरह साम्प्रदायिकता एवं अति राष्ट्रवाद के नाम पर कट्टरवाद पनप रहा है, हमें सावधान रहने की जरूरत है।
भारत में साम्प्रदायिक दंगों जैसी दुर्भाग्यजनक घटनायें होती रही है। सोशल मीडिया पर किसी सम्प्रदाय विशेष के विरुद्ध विष वमन किया जाता है। ज्यादा दिन नहीं हुए राजधानी दिल्ली में तीन दिन तक हिंसक दंगे हुए जिसमें 58 लोगों की मौत हो गई। इस तरह की घटनाओं का सहारा लेकर कई बार एक राग अलापा जाता है कि हिन्दू और मुसलमानों के रिश्ते बेहद खराब हो गये हैं। भारत की सीमाओं के पास से मुसलमानों के लिए कई देशों से आक्रामक एवं कटुतापूर्ण वक्तव्य आते हैं। अभी अमेरिकी घटना के बाद दबे स्वर से ये प्रश्न किया जा रहा है कि भारतीय मुसलमानों की हालत क्या अमेरिका के काले लोगों की तरह है? हालांकि मैं इस बात को कतई नहीं मानता पर इस तरह की बात किसी भी कोने से आना बेहद बेचैनी पैदा करने वाली होती है। भारत में तो देश के सर्वोच्च पद चाहे वह राष्ट्रपति का हो या मुख्य न्यायाधीश का, मुसलमान सुशोभित करते रहे हैं। यही नहीं भारतीय जीवन का कोई ऐसा अंग नहीं है जहां भारतीय मुसलमान या अल्पसंख्यक नहीं रहे हैं और पूरे सम्मान व शक्ति के साथ रहे हैं। कश्मीर के हालात पर बहस हो सकती है, तीन तलाक या लव जेहाद, सीएए या एनआरसी को लेकर सरकार की आलोचना एक स्वर से प्राय: सभी विरोधी पार्टियां कर चुकी हैं। भारत के स्वभाव में लोकतंत्र ऐसा रम गया है कि कोई नेता अपने आप को कितना ही बड़ा तीसमार खां समझे, भारत की जनता उसे सबक सिखाना जानती है। जहां तक हिन्दू-मुसलमानों के आपसी सम्बन्धों का सवाल है, भारत में गजब की मिसालें मिल रही हैं। लुधियाना के पास मच्छीवाड़ा गांव में एक मजदूर अब्दुल साजिद ने अपने दोस्त बीरेन्द्र कुमार की बेटी की शादी खुद उसका बाप बनकर हिन्दू रीति से करवा दी। वीरेन्द्र वगैरह तालाबांदी के कारण उ. प्र. में फंस गये थे। केरल की मस्जिद में हवन करके एक हिन्दू वर-वधू ने फेरे लिये। मुस्लिम जमात ने दहेज का इंतजाम किया और इमाम का पांव छूकर वर-वधू ने उनसे आशीर्वाद लिया। इसी प्रकार गुजरात के एक मुस्लिम परिवार ने पिछले दिनों अपने एक हिंदू मित्र पंड्याजी का दाह-संस्कार करवाया। ऐसे भी कई उदाहरण है जबकि किसी हिन्दू मन्दिर की देखभाल पूरे विधि विधान से मुसलमान ने की। किन्तु यह भी सत्य है कि सोशल मीडिया के माध्यम से मसलमानों के विरुद्ध हिन्दुओं और हिन्दुओं के खिलाफ मुसलमानों में घृणा पैदा करने की चेष्टा की जा रही है। मुझे पूरा भरोसा है कि ऐसे लोग कामयाब नहीं होंगे क्योंकि भारत में सहिष्णुता और अनेकता में एकता की जड़ें पाताल तक पहुंची हुई है।
अमेरिका की स्थिति को ध्यान में रखते हुये हमें सतर्क रहने की जरूरत है क्योंकि वहां भी आक्रमण का शिकार गांधी की मूर्ति होती है। घृणा के तार जुड़े हुए हैं उन्हें तार-तार करने की जरूरत हमारे यहां भी है।

विचारणीय
ReplyDeleteA very unexpected incident. Every thing you said is absolutely.We should protest. Waiting for your next article.👍👍👍👍👍👌👌👌😢😢😢😢😢😢😢My heart felt condolence to George. REST IN PEACE! RIP.
ReplyDeleteनस्लवादी भेद-भाव को लेकर लिखा हुआ आपका यह लेख और संपादकीय बहुत ही उदार भाव से लिखा गया है। रंग लिंग भाषा जाति वर्ण धर्म आदि सभी क्षेत्रों में सदियों से मानवीयता को दरकिनार किया गया है। मानव स्वभाव आचार विचार पर फिर से विचार विमर्श करने की आवश्यकता है।
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