बंद रहेंगे मंदिर-मस्जिद

बंद रहेंगे मंदिर-मस्जिद

खुली रहेगी मधुशाला

ये कैसी महामारी है

सोच रहा ऊपर वाला

लॉकडाऊन अवधि में सरकार ने यह फैसला लिया कि मॉल एवं बाजार को छोड़कर गैर आवश्यक सामानों की भी दुकानें खोली जा सकती है। 4 मई को इस छूट की नसीहत मिलते ही ठेका शराब की दुकान खुल गई। इनका समय सीमित था इसलिये खरीददार असीमित थे। दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई और कुछ अन्य महानगरों में शराब खरीददारों की लम्बी लाईन लग गयी। सुबह खुलने के इन्तजार में घंटों पहले ही दुकान के सामने लोगों ने वैसे ही लाईन लगा दी जैसे बस्तियों में नल में पानी आने के समय के पहले लोग अपनी बाल्टियां या कनस्तर रख देते हैं। मसलन दिल्ली में दो किलोमीटर की लाईन में दो हजार से ज्यादा लोग खड़े थे। अब जाहिर है पीने वालों से यह उम्मीद कैसे कर सकते हैं कि वे दो गज की दूरी बना कर खड़े हों। ''सोशल डिस्टेंसिंग जिस शब्द को कोरोना ने घर-घर में लोकप्रिय कर दिया है - की ऐसी की तैसी करने लोग खड़े हो गये। कतार में सभी लोग मास्क पहने हुए थे। प्राय: लोग वरमुडा, हाफ पैन्ट एवं टी शर्ट में थे जो आजकल नौजवानों की कैजुअल ड्रेस बन चुकी है। पुलिस भी पास में खड़ी थी पर मैंने टीवी में देखा वह किसी पर लाठी बरसाते हुए हुए नजर नहीं आये, हाँ बीच-बीच में लाठी घुमाती दिखाई दी जिससे किसी को चोट नहीं लगे। दिल्ली में पहले दो दिनों के दस घण्टों में एक सौ करोड़ की शराब ठेके से बिक गयी। सरकार ने शराब की तलब में विस्फोटक वृद्धि को भांपते हुए 70 प्रतिशत तक दाम बढ़ा दिये पर सुरसा के बदन की तरह कतार छोटी होने की बजाय और बढ़ती गयी।

अजीब विडम्बना है कि यही आज सरकारी रेवेन्यू का बड़ा स्रोत भी साबित हो रहा है। सरकारी राजस्व का बड़ा हिस्सा इस शराब की बिक्री पर लगने वाले आबकारी शुल्क यानी एक्साइज ड्यूटी से आता है। कई साल पहले हरियाणा सरकार ने आनन-फानन में शराब बन्दी की घोषणा की थी। हरियाणवी लोगों पर जैसे मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा। पुलिस चौकियों से ब्लैक में खरीदकर पीनी पड़ती थी। राजस्व में कमी के चलते राज्य सरकार दिवालिया होने के कगार पर थी। फिर प्रोहिबीशन यानि शराबबन्दी का आदेश बामुलायजा वापस लेना पड़ा। अभी गुजरात, बिहार में शराबबन्दी है एवं दोनों राज्य इसके लिए बधाई के पात्र हैं। लॉकडाऊन में शराब बिक्री पर रोक के कारण सरकारी राजस्व को भारी घाटा उठाना पड़ रहा था। लॉकडाऊन में सरकार की आमदनी के अन्य स्रोत भी सूख से गये हैं। शायद यह भी एक कारण है कि दलगत प्रतिबद्धताओं और विरोध की परिधि को लांघ कर अधिकतर राज्य सरकारों ने लॉकडाऊन के दौरान शराब बिक्री जारी रखने का फैसला किया है। केन्द्र सरकार ने भी इसे हरी झंडी दिखा दी है। नतीजा सामने है। प्राप्त सूचनाओं के अनुसार सिर्फ एक दिन में 1000 करोड़ रुपये से अधिक की शराब बिकी।

पर क्या यह लम्बी कतार सिर्फ पीने वालों या जिन्हें बोलचाल की भाषा में हम पियक्कड़ कहते हैं, उनकी थी। शायद नहीं। इसमें बड़ी संख्या में बिचौलिये थे। ऊंचे दाम में शराब खरीद कर भी उन्होंने बेचकर पैसा कमाया। कुछ लोग जो लाईन में खड़ा होना आत्मसम्मान के खिलाफ समझते हैं उनके मुलाजिम या एजेन्ट भी थे। वैसे भी इस तरह की भीड़ एवं जिस कारण लम्बी कतार थी, उनके लिए सोशल डिस्टेन्सिंग सम्भव या व्यवहारिक भी नहीं थी। उनके जहन में था कि वे अपने पॉकेट से खर्च कर पीने वाले हैं। इस कॉम्प्लेक्स के कारण भी दूरी बनाना उनकी प्रकृति से बाहर था। इसीलिये मैंने जैसा ऊपर लिखा पुलिस भी उनके प्रति नर्म थी। और कहीं लाठी चार्ज नहीं हुआ। कोलकाता में शराब की दुकान के सामने भीड़ पर एक-दो बार लाठी चार्ज करना पड़ा। उसका कारण था कि कुछ दूरी पर ही मुख्यमंत्री का आवास था।


शराब के लिए लम्बी लाईन और शराबियों की धमाचौकड़ी का जो नजारा दिख रहा है, वैसा शायद पहले कभी दिखाई नहीं पड़ा। लेकिन इसमें पियक्कड़ों का दोष क्या है? उन्होंने तो शराब पिए बिना सवा महीने गुजार दिए, लेकिन हमारी सरकारें और ज्यादा इंतजार के मूड में नहीं थीं। तालाबंदी में थोड़ी ही ढील होते ही शराब की दुकानें खुलवा दी। शराब सेवन करने वालों के देश-प्रेम पर भी आप अंगुली नहीं उठा सकते। सरकारी खजाने में दो-तीन घंटों में ही उन्होंने अरबों का राजस्व प्रदान किया और उफ तक नहीं की। शराब पर सरकारी संरक्षण में की गयी मुनाफाखोरी के खिलाफ एक शब्द नहीं कहा। सभी कड़वी घूंट पी गये। शराब से इन सेवनकर्ताओं के शरीर में प्रतिरोधक क्षमता घटेगी, यह जानते हुए भी उन्होंने अपना गला तर किया।




पीने वालों के सांस्कृतिक पैमाने को भी कभी कम मत आँकिये। शराब और मयखानों के लिये महाकाव्य लिखे गये हैं। बच्चन जी की मधुशाला साहित्य प्रेमियों की जुबान पर है। शराब और पीने वालों पर न जाने कितनी गजलें एवं कविताएं न्यौछावर की गयी है।

शराब पीने वाले दुकानों के सामने जो उमड़े उस पर कुछ लोगों ने हमारे देश में गरीबी पर भी प्रश्न चिह्न लगा दिया। हमारे देश की हकीकत से बेखबर लोगों ने यह भी प्रश्न किया- कहां है गरीबी, क्या इन्हीं के लिए राजनीतिक पार्टियां रातदिन आंसू बहाती है। उन लोगों को लम्बी कतार में देश का गरीब खड़ा नजर आया। उन्हें नहीं मालूम कि गरीब शराब पाने के लिए अपना खून भी इस देश में ही बेचता है। किसी ब्लड बैंक के सामने सुबह-सुबह ब्लड डोनरों की लाईन देखी हैं। ये वे लोग होते हैं जो चन्द रुपयों के लिए अपना खून बेचते हैं क्योंकि उन्हें खाने से अधिक शराब की तलब होती है। लेकिन वे उन दुकानों से शराब नहीं खरीदते जिसकी अभी हम चर्चा कर रहे हैं। वे देशी शराब या ठर्रे के खरीददार हैं एवं कई प्रान्तों में ''इलीसीट (नकली) दारू पीकर सैकड़ों लोग मर जाते हैं, वे इसी श्रेणी में आते हैं। शराब पीने वालों की लम्बी कतार से देश में गरीबी पर प्रश्न चिह्न लगाने वाले या गरीबी का उपहास करने वालों को देश की जमीनी सच्चाई का अहसास नहीं है।

अंत में, शराब के ''जनवादी चरित्र को समझने हेतु एक उदाहरण ही काफी है कि गाँव या शहर में सभी साईनबोर्ड अंग्रेजी मिें लिखे रहते हैं पर सिर्फ ''ठेका शराब का बोर्ड हिन्दी में रहता है फिर चाहे वह देशी शराब का हो या विलायती का।

Comments

  1. बहुत सटीक वर्णन किया है लॉक डाउन में शराब की दुकानों की बिक्री ने करोड़ों तक पहुंचा दिया तो इसमें बुराई क्या है। उद्योग तो मंदी में हैं, पैसे वाले घर में बंद हैं। विलासिता का समय तो अमीरों के लिए ही है और गरीब तबका तो वैसे ही बहादुर है मरने से भी नहीं डरता। पीकर मरेगा वह भी अपने पैसों की कमाई से। बधाई

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