हिन्दी पत्रकारिता दिवस (30 मई)
कलकत्ता है हिन्दी पत्रकारिता की जन्म स्थली
कोरोना और कोविड-19 पूरी दुनिया को अपनी धुन पर नचा रहे हैं। ''जिक्र हो आसमां का या जमीं की बात हो, खत्म होती है तुम्हीं पर अब कहीं की बात हो - इस तरह टीवी स्क्रीन पर हो या अखबारों की सुर्खियां सब तरफ कोरोना....कोरोना....कोरोना.....। प्रधानमंत्री के भाषण से लेकर गांव की चौपाल तक यह वायरस सबकी जुबान पर बैठा है। महामारी का दौर कब तक चलेगा, यह भी कोई बता नहीं पा रहा है। पर ''दुनिया में गम बहुत है प्यार के सिवा - इसी तरह कुछ अन्य अहम् विषयों पर भी थोड़ी-बहुत चर्चा होनी चाहिये।
30 मई सन् 1826 को हिन्दी का पहला समाचार पत्र कलकत्ता शहर से प्रारम्भ हुआ था। कलकत्ता से प्रकाशित करने का संभवत: यह कारण रहा होगा कि यह ब्रिटिश-भारत की राजधानी थी एवं सभी राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र कलकत्ता ही था। यही नहीं कलकत्ता व्यापार का भी केन्द्र था इसीलिये यहां के व्यापारी समाज का भी आर्थिक समर्थन पत्र को संभावित था। लेकिन पत्र दो-ढाई वर्ष से अधिक सांस नहीं ले पाया। ब्रिटिश सरकार कैसे बर्दाश्त करती कि अखबार निकाल कर कोई ब्रिटिश हुकूमत की खिलाफत करे। बाद में एक के बाद एक कई हिन्दी पत्र प्रकाशित हुए। लेकिन सबका यही हस्र हुआ। राजा राममोहन राय ने भी दुभाषी (हिन्दी-बंग्ला) अखबार प्रकाशित किया था। उस समय और भी कुछ दुभाषी या त्रिभाषी अखबार निकले थे। लेकिन ब्रिटिश हुक्मरान उनकी प्रेस जब्त कर लेते थे। कई सम्पादकों को जेल हुई। यह हिन्दी पत्रकारिता का आदि इतिहास है। कलकत्ता हिन्दी पत्रकारिता की जननी है। मजे की बात यह है कि यहां से उर्दू का भी पहला अखबार निकला, गुरुमुखी भाषा का परचा भी प्रकाशित हुआ। हमारे महानगर से चीनी भाषा में भी अखबार निकलता है। अत: हमारा कलकत्ता शहर कई भाषायी पत्रों की जन्मस्थली है। उत्तर भारत में राजस्थान, हरियाणा, यूपी, बिहार से बड़ी संख्या में रोजगार के लिए लोग मुख्यत: कलकत्ता आकर बसे उसकी जमीन हिन्दी पत्रों ने ही तैयार की थी। वैसे भी कलकत्ता हिन्दी भाषियों का गढ़ रहा है। श्रमिकों से लेकर दुकानदार और उद्योगपति तीनों जमात में हिन्दी भाषी प्रमुख थे। कालान्तर में हिन्दी को राजभाषा बनाने की मांग भी इसी शहर से उठी। कविगुरु रवीन्द्र नाथ टैगोर, केशव चन्द्र सेन, सुभाष चन्द्र बोस जैसी महान विभूतियों ने हिन्दी को सेतु भाषा यानि राजभाषा का दर्जा देने की वकालत की। और बाद में संविधान के आठवें अनुच्छेद में भी हिन्दी को राजभाषा के रूप में मान्यता मिली। यह भी गौरव का विषय है कि हिन्दी और बंगला विद्वत्जनों में काफी सद्भाव था। हिन्दी को लेकर देश में विशेषकर दक्षिण भारत में विरोध हुआ पर बंगाल में ऐसी कोई अप्रिय बात नहीं हुई।
आज हिन्दी के समाचार पत्रों में दैनिक विश्वमित्र सबसे पुराना अखबार है। विगत 105 वर्षों से अनवरत इसका प्रकाशन हो रहा है। दिलचस्प बात यह है कि हिन्दी के सभी राष्ट्रीय समाचार पत्र जैसे - नवभारत टाइम्स और हिन्दुस्तान का प्रकाशन कलकत्ता से हुआ पर दोनों ही पत्र यहां अपना पांव नहीं जमा सके। टाइम्स ऑफ इंडिया का अंग्रेजी अखबार का प्रसार हो रहा है किन्तु इस समूह का हिन्दी पत्र नवभारत टाइम्स कुछ वर्ष प्रकाशित हुआ फिर उसे बन्द करना पड़ा। हिन्दुस्तान टाइम्स कलकत्ता से कुछ वर्ष निकला किन्तु तीन वर्ष पहले उन्हें कलकत्ता संस्करण समेटना पड़ा और हिन्दुस्तान तो निकलते-निकलते ही रह गया पर कभी निकला नहीं। जबकि दूसरी तरफ अंग्रेजी के कई राष्ट्रीय दैनिक टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ इंडियन एक्सप्रेस, हिन्दू यहां से सीमित रूप में प्रकाशित हो रहे हैं। बंगला प्रकाशकों ने भी हिन्दी में हाथ आजमाया पर वे सफल नहीं हुए। परिवर्तन समूह ने हिन्दी पत्रिका का प्रकाशन किया पर हिन्दी-बंगला दोनों ही बंद हो गये जबकि बंगला के सबसे बड़े समूह आनन्द बाजार पत्रिका की साप्ताहिक पत्रिका 'रविवारÓ का कई वर्षों तक प्रकाशन हुआ, अंततोगत्वा बंद हो गया। इस प्रकार कलकत्ता में हिन्दी समाचार पत्रों का अपना अजीब इतिहास है।
आज इन्टरनेट का जमाना है। इसने पत्रकारिता पर जबर्दस्त असर डाला है। अब समाचार पत्र में प्रकाशन सामग्री प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। राष्ट्रीय स्तर एवं अंतरर्राष्ट्रीय समाचार एवं सूचनायें आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। चित्रों का अभाव नहीं है। सिर्फ स्थानीय खबरों या समाचार विश्लेषण की प्रतियोगिता है। बहुत लोगों की धारणा है कि अब अखबार या किताबें पढऩे वालों की संख्या कम हो रही है। इन्टरनेट या टेलीविजन से सारी जानकारी मिल जाती है। लेकिन ठीक इसके विपरीत समाचारपत्रों की पाठक संख्या में इजाफा हो रहा है। इँडियन रीडरशिप सर्वे (आईआरएस) की पिछले साल की रिपोर्ट के अनुसार प्रिन्ट मीडिया का ग्राफ ऊपर की ओर जा रहा है। हां, धीरे-धीरे अंग्रेजी अखबारों के पाठक घट रहे हैं एवं और घटेंगे। इंटरनेट, ई-पेपर अंग्रेजी के पाठकों को आकर्षित कर रहे हैं। हिन्दी एवं भारतीय भाषाओं के अखबारों का पाठक किन्तु विचलित नहीं हो रहा है।
रीडरशिप सर्वे के अनुसार हिन्दी दैनिक पत्रों के पाठकों में 1 करोड़ के आसपास की बढ़ोतरी हुई है। हिन्दी पत्रों की पाठक संख्या 18.6 करोड़ हो चुकी है। क्षेत्रीय दैनिक की पाठक संख्या 21.1 करोड़ है जो पिछले सर्वे से 0.8 करोड़ ज्यादा है। जानकर प्रसन्नता होगी कि ग्रामीण पाठक बढ़े हैं। साक्षरता के बढऩे से यह संख्या बढ़ रही है।
हिन्दी दैनिक समाचारपत्र पाठक संख्या में अपना परचम लहरा रहे हैं। समाचारपत्र पाठकों में हिन्दी पत्रो ंका वर्चस्व बाजब्ता कायम है। देश में हिन्दी के पांच सर्वाधिक पढ़े जाने वाले अखबारों में क्रमश: शामिल हैं- दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, अमर उजाला, राजस्थान पत्रिका और प्रभात खबर। देश के दस सबसे अधिक पढ़े जाने वाले समाचार पत्रों में आधे हिन्दी के हैं। पाठक संख्या के हिसाब से अंग्रेजी पत्र टाइम्स ऑफ इंडिया नौवें पायदान पर है।
दुर्भाग्यवश अंग्रेजी पत्र सरकार की नीतियों एवं निर्णयों पर हावी है। केन्द्रीय सरकार के बड़े आईएएस अधिकारी एवं प्रशासन के शीर्ष पर बैठे हुक्मरानों को अंग्रेजी के अखबार ही रास आते हैं। यही वजह है कि शासन और शासित लोगों के बीच एक बड़ी खाई है जो पाटी नहीं जा पा रही है। साथ ही यह भी दुर्भाग्य है कि एक बड़ी संख्या में हिन्दी भाषी भी अंग्रेजी का पत्र पढऩा पसन्द करते हैं क्योंकि अंग्रेजी पत्र पढऩे से उनके अहम् का तुष्टीकरण होता है। ऐसे लोग अंग्रेजी अखबार खरीदते तो हैं पर वे पढ़ नहीं पाते क्योंकि उनका अंग्रेजी ज्ञान सीमित है। परिणामस्वरूप उनका साधारण ज्ञान बहुत दुर्बल होता है एवं वे समाचार पत्रों एवं सूचनाओं के मामले में चंडूखाने की गप पर ज्यादा भरोसा करते हैं। रही सही कसर सोशल मीडिया ने पूरी कर दी। सनसनी फैलाने वाली झूठी खबरों एवं चित्रों के जाल में फंसकर ऐसे लोग अपना विवेक खो बैठते हैं। इस दुर्भाग्यजनक स्थिति का हिन्दी भाषी लोग ज्यादा शिकार हो रहे हैं। अखबार उसी भाषा का पढ़ें जिस पर आपका अधिकार है।
खैर हिन्दी पत्रकारिता दिवस (30) मई के अवसर पर सभी हिन्दी पाठकों को शुभकामनायें। फकीर का वह कहना दोहराता हूं-
''जो दे उसका भी भला, न दे उसका भी भला।


A very happy journalism day! What a glorious journey! Congratulations to all the hindi newspaper readers. Your article was very realistic. I am impressed. I will be waiting for your next articles.
ReplyDeleteRegards,
Tapashi Bose.