कोरोना के हजार अभिशाप पर एक वरदान भी
गंगा भारत की वह नदी है जो इतिहास के उषाकाल से ही भारतीयों के दिलों पर छायी हुई है तथा असंख्य लोगों को अपने तटों की ओर आकर्षित किया है। गंगा की कथा, इसके उद्गम से समुद्र तक, प्राचीन से आधुनिक काल तक, भारत की सभ्यता और संस्कृति, साम्राज्यों के उत्थान, पतन, महान व गौरवपूर्ण नगरों और मनुष्य की यात्रा की कथा है।
मानव सभ्यता की गंदगियों को सदियों से अपने में समेट रही मां गंगा को कोरोना संक्रमण के कारण हुए लॉकडाउन ने लेकिन ऑक्सीजन देने का काम किया है। इसकी बानगी सिटी ऑफ जॉय यानी कोलकाता के गंगा घाटों पर डॉल्फिन की मस्ती के तौर पर देखने को मिली है। गंगा में पायी जाने वाली यह डॉल्फिन अपने किस्म की इकलौती ऐसी प्रजाति है जो मीठे पानी में पायी जाती है। ये करीब तीन दशक के बाद कोलकाता लौटी है। इसकी वजह यह है कि गंगा के उद्गम गोमुख से सिंधु तट के संगम के बीच पडऩे वाले उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल की राह में मां गंगा के किनारे सारे उद्योग धंधे लॉकडाउन के चलते बंद है और कल कारखानों की गंदगी नदी में नहीं बह रही है। बताना नहीं होगा कि नालों से निकले मल-जल कल-कारखानों से निकले अवशिष्ट पदार्थ, रासायनिक अवशेष, बड़ी संख्या में पशुओं के शव, अधजले मानव शरीर छोड़े जाने और यहां तक कि धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान बड़ी संख्या में देवी-देवताओं की प्रतिमाएं आदि विसर्जित करने के कारण आज इसका अमृततुल्य जल अत्यन्त दूषित हो गया था। हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (ङ्ख.॥.ह्र.) ने गंगा को विश्व की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक मानते हुए इसका प्रदूषण स्तर निर्धारित मानक स्तर से 300 गुणा अधिक बताया है। पवित्रता और धार्मिक आस्था से जुड़ी भारत की सबसे बड़ी नदी के जल का इतना प्रदूषित होना अत्यन्त चिन्ताजनक रहा है। इस सन्दर्भ में कवि नीरज के ये पंक्तियां समीचीन प्रतीत होती है:-
आग बहती है यहां गंगा और झेलम में
कोई बतलाए कहां जाके नहाया जाए?
कोरोना ने पूरे विश्व को झकझोर कर रख दिया है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक दुनिया में 32 लाख से अधिक लोग इससे संक्रमित हो चुके हैं एवं लगभग 2 लाख 30 हजार लोगों की इस बीमारी से मृत्यु हो चुकी है। भारत में भी 34 हजार लोगों को इस भयावह वायरस ने अब तक चपेट में ले लिया और ग्यारह सौ इस बीमारी के कारण मर चुके हैं। कोई नहीं जानता और कितने जन बल की यह बीमारी बलि लेगी और कितने सारे लोग और इस वायरस से जूझेंगे। ऐसा कालखंड किसी ने कभी नहीं देखा जिसमें पूरी दुनिया में सन्नाटा छा गया हो। इस भयावह रोग ने सिर्फ लोगों को बीमार ही नहीं किया बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है। संसार के अन्य भागों में क्या होगा पर भारत में आम आदमी लाचारी और भुखमरी का शिकार हो रहा है। सामाजिक गतिविधियों, धर्म और आस्था के कार्यों को सांप सूंघ गया है। लोग घरों में कैद हैं और बड़ी संख्या में मजदूरों को घर जाने की छटपटाहट है।
30 साल बाद गंगा में डॉल्फिन की अठखेलियां
हजार अभिशापों के बावजूद, लेकिन कोरोना-वायरस की मजबूरी ने कुछ ऐसे उपकार हम पर किये हैं जिसके लिये हम कोरोना के प्रति कृतज्ञता तो नहीं प्रकट कर सकते क्योंकि राक्षसी प्रवृत्ति कई सत्पुरुषों एवं भगवान के अवतरित होने का कारण बनती है। प्रदूषण मुक्त होने के कारण नदी के सतत प्रवाह के फलस्वरूप गोमुख से निकलने वाला पानी सागर तक स्वच्छ हो गया है। इसकी वजह से डॉल्फिन अब कोलकाता की गंगा में अठखेलियां करती नजर आई हैं। पिछले सप्ताहांत में कई लोगों ने इसकी तस्वीरें, वीडियो आदि सोशल साइट पर साझा की है। पर्यावरण विशेषज्ञों ने भी इसकी पुष्टि की है कि हुगली नदी में अब कई जगह डाल्फिन जल क्रीड़ा करती देखी जा सकती है। करीब तीन दशक पूर्व कोलकाता में गंगा घाटों पर डॉल्फिन का जमघट रहता था लेकिन गंगा में प्रदूषण बढ़ता गया और डॉल्फिन ने कोलकाता से हरिद्वार की ओर रुख कर लिया था। अब अगर यह वापस आई है तो इसका मतलब है कि पानी की गुणवत्ता में जबर्दस्त सुधार हुआ है।
गंगा के शुद्धिकरण हेतु गंगा कार्य योजना का विचार सर्वप्रथम तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के मन में आया था। तब 79-80 में एक विस्तृत सर्वेक्षण की योजना बनायी गयी थी। उनके पश्चात् प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी द्वारा 462 करोड़ रुपये की गंगा कार्य योजना का प्रारम्भ किया गया। किन्तु 15 वर्षों में कुल 901.71 करोड़ खर्च किए जाने के बाद भी गंगा कार्य योजना को सफलता नहीं मिली। दूसरे चरण का प्रारम्भ 462 करोड़ रुपये की स्वीकृति के साथ यह योजना पुन: प्रारम्भ की गयी। सन् 2009 में गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने के साथ-साथ नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी (एनजीआरबीए) का गठन किया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को इसका अध्यक्ष बनाया गया। अथॉरिटी द्वारा योजना को कार्यान्वित करने हेतु 3031 करोड़ रुपये स्वीकृति किये गये। दिसम्बर 2009 में विश्व बैंक ने गंगा सफाई हेतु 1 अरब डॉलर कर्ज देने पर सहमति दी। वैसे विश्व की दूसरी बड़ी नदी होने और अत्यन्त प्रदूषित होने के कारण यह राशि बहुत अधिक नहीं है। वर्ष 2014 में भाजपा की सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा नमामि गंगे योजना का प्रारम्भ किया गया है। निश्चय ही गंगा को स्वच्छ बनाना एक विकट समस्या है।
खरबों रुपये खर्च के बाद गंगा सफाई के नाम पर ढाक के वही तीन पात। गंगा ज्यों की त्यों रही। साध्वी उमा भारती जैसे धर्म परायण राजनीतिज्ञ से लेकर कई नेताओं ने गंगा प्लान का विभाग सम्भाला। पर गंगा कितनी स्वच्छ हुई यह आप सभी जानते हैं।
अब कोरोना के अभिशाप के बीच वरदान साबित होकर गंगा का पानी साफ हो गया है तो सरकार अभी से इस धरोहर को बचाकर रखने की योजना बनाये। अभी से तत्पर हो ताकि लॉकडाउन खुलने के बाद फिर गंगा का भाग्य पहले की तरह अभिशप्त न हो जाये। गंगा साधकों एवं गंगा योजना से संलग्न लोगों का दायित्व है कि वह सरकार पर अभी से दबाव बनाना शुरू करे ताकि हजार अभिशापों के बीच मिले इस वरदान को अक्षुण्ण बनाकर रखा जा सके।

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