डाक्टरों को तो हम पहले से भगवान
मानते हैं अब नयी बात क्या हुई?
हमारा देश धर्म प्रधान या कृषि प्रधान देश है। हमारी आस्था सिर्फ देवी-देवताओं के प्रति ही नहीं है बल्कि उन सबके प्रति रहती है जिनका हम पर उपकार है, हमारे लिये वे देवतुल्य हैं। अतीत साक्षी है हम जिनसे भयाक्रान्त होते हैं उन्हें भी देवी-देवताओं की श्रेणी में शामिल कर लेते हैं। शनिचर की दशा खराब होती है, शनीचर को भी देवता मानते हैं एवं शनि भगवान की पूजा करतेहैं। सूर्य, चन्द्रमा, सभी देवता है क्योंकि हमारा जीवन इनके बिना नहीं चलता। पढ़े-लिखे लोग भले ही न समझें पर गांव के लोग एवं सभी निरीह एवं साधारण प्राणी डॉक्टर, बैद्यराज यहां तक कि झाड़-फूंक करने वाले ओझाओं को भी ईश्वर का ही रूप समझते हैं एवं वक्त पडऩे पर हाथ जोड़कर उनकी विनती भी करते हैं, सिर भी झुकाते हैं। इसका एक और एक मात्र कारण है कि बुरे वक्त में हमारी जिन्दगी उनके हाथ में रहती है। जन साधारण की नजर में डाक्टर भगवान ही होते हैं।
कोरोना के चलते कुछ ऐसी घटनायें हुई जिनमें स्वास्थ्यकर्मी यानि डॉक्टर, नर्स जब कोरोना की जांच हेतु किसी स्थान विशेष पहुंचे तो उन पर पत्थर फेंके गये। ऐसी शर्मनाक घटनाओं के चलते सरकार ने उनकी सुरक्षा से जुड़ा नया अध्यादेश जारी कर दिया। इस अध्यादेश में दोषियों के विरुद्ध काफी सख्त प्रावधान किये गये हैं जो यकीनन डॉक्टरों के असुरक्षा बोध को दूर करेंगे। हमले की घटनाओं से किन्तु डॉक्टरों के प्रति जनसाधारण की आस्था में कोई कमी नहीं आयेगी क्योंकि पथराव करने वालों के दिमाग में यह भर दिया गया था कि आगन्तुक इलाज करने नहीं बल्कि उनको जहर देकर मारने आ रहे हैं। प्रचार किया गया कि उन्हें ऐसा इंजेक्शन देंगे कि मरीज नपुंशक हो जायेगा। ऐसे दुष्प्रचार को हम रोक नहीं सके और कई स्थानों पर ऐसी लज्जानजक घटनायें हुई।
महाराष्ट्र के पालघर मॉब लिंचिंग मामला तो आपने अखबारों मेंं पढ़ा ही होगा। वहां दो साधुओं एवं उनके एक ड्राइवर को बच्चा चोर गिरोह होने के संदेह में गांव के लोगों ने पीट-पीट कर मार डाला। यह भी कोई कम दर्दनाक घटना नहीं है। बेचारे साधु कहीं जा रहे थे एवं वहां कई दिनों से चल रहे दुष्प्रचार के वे शिकार हो गये। कुछ लोगों ने इसे भी साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश की। महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने बताया कि साधुओं पर हमले के मामले में 110 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है। कुछ अन्य लोगों की तलाश है जो संभवत: पास के जंगल के रास्ते कहीं भाग गये हैं। लेकिन इस मामले को भड़काने की कोशिश जारी है। जिस भीड़ ने साधुओं पर कातिलाना हमला किया उनमें कोई मुस्लिम नहीं था किन्तु कुछ लोगों को तब तक संतोष नहीं होगा जब तक इस अपराध में कोई मुसलमान की भागीदारी साबित न हो। लोग मुंगेरीलाल के हसीन सपने देखने का काम कर रहे हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना की प्रमुख भागीदारी वाली सरकार है जो अपने को अव्वल हिन्दू मानती है। अब राजनीति से प्रेरित लोगों ने यह कहा कि इस शर्मनाक घटना की सोनिया गांधी ने निन्दा क्यों नहीं की पर उन्हें यह नहीं मालूम है कि न तो प्रधानमंत्री मोदी जी एवं न ही गृहमंत्री अमित शाह जी ने इस पर अपनी कोई प्रतिक्रिया जाहिर की है।
कोरोना के संदर्भ में यह बार-बार कहा गया है कि पूरा देश स्वास्थ्यकर्मियों के साथ है। प्रधानमंत्री की अपील पर उनके शौर्य एवं त्याग हेतु तालियां भी बजाई, घंटियां भी बजी, शंखनाद किया गया और उनके सम्मान हेतु दीया भी जलाया गया। लेकिन हमने इस बात पर कतई ध्यान नहीं दिया कि हमारे डाक्टर कितने दबाव में काम करते हैं, यह तो आम आदमी भी बखूबी जान गया है। उन पर न सिर्फ मरीजों की भारी संख्या का, बल्कि आधे-अधूरे संसाधनों के बीच ही काम करने का दबाव रहता है। और इस वक्त तो खुद अपनी जान जोखिम में डालकर भी अपने फर्ज को अंजाम देने का नैतिक दबाव उन पर सबसे ज्यादा आयद है। ऐसे में उनके साथ किसी तरह की बदसलूकी अक्षम्य है। समाज में गुमराह करने वाले, अंधविश्वासी और शातिर लोग हमेशा से रहे हैं और आगे भी रहेंगे। पर शासन का इम्तिहान यहीं पर होता है कि वह अव्यवस्था और असामाजिक तत्वों से निपटने में कितना तत्पर है।
सेना के प्रति भी पूरा सम्मान है पर सैनिक तो शस्त्रधारी होता है, घातक हथियारों से लैश पर डाक्टर के पास कोई अस्त्र नहीं होता, न ही कोई कवच होता है। होता है रोगी को बचाने के हल्के उपकरण जिससे वह वार नहीं कर सकता। अपनी रक्षा के लिये डॉक्टरों के पास सिर्फ बचती है लोगों की आस्था, रोगी का विश्वास।

जिन दोनों प्रसंगों में आपने लिखा है उन दोनों के मूल में अफवाहें हैं। अफवाहें फैलाई जाती हैं। इसका निदान क्या है, शाय़द कोई नहीं।
ReplyDeleteइसके मूल में एक तरह की असुरक्षा की भी भावना है। साधुओं की हत्या के मामले में चाहे बच्चा चोरी की अफवाह हो या कोरोना के मामले में इंजेक्शन दे कर नपुंसक बना देने की अफवाहें।
हर बात को राजनीतिक रंग देने वाले,हर बात को सांप्रदायिक रंग देने वाले तो ऐसा करेंगे ही।
बहरहाल आपने सही मुद्दे पर क़लम चलाई है।
कमेंट तो दे दिया है। नाम लिखना भूल गया था।
ReplyDeleteजितेन्द्र धीर