कोरोना संक्रमण ने हमारे अंधविश्वासों को भी आइना दिखाया है

कोरोना संक्रमण ने हमारे 
अंधविश्वासों को भी आइना दिखाया है

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की घोषणा - 5 अप्रैल रविवार रात ठीक नौ बजे नौ मिनट के लिये सभी देशवासी घर में अंधेरा करके दीया, मोमबत्ती जलाकर राष्ट्र एकबद्ध होकर इस संक्रमण का मुकाबला कर रहे हैं, इस एकबद्धता का परिचय देंगे। वैसे यह अपील मर्मस्पर्शी है और साधारण लोगों की नजर में इससे हमारी राष्ट्रीय प्रतिबद्धता भी प्रतिवंबित होती है। लेकिन भक्त तो भगवान को अपनी भक्ति का अतिरेक दिखाना चाहता है। भक्तों ने भगवान को खुश करने सिर्फ दीया ही नहीं जलाया आतिशबाजी भी की। पटाखे भी फोड़े। कोलकाता में पुलिस ने इस अपराध के लिये 127 लोगों को हिरासत में ले लिया।


व्यक्ति गोमूत्र पीते हुए।

इस तरह की भक्ति का यह पहला और अंतिम उदाहरण नहीं है। अखिल भारतीय हिन्दू महासभा ने दिल्ली में बाकायदा गोमूत्र पार्टी का आयोजन किया। उनका दावा था कि कोरोना वायरस को नेस्तानाबूद करने की यह सबसे कारगर रामबाण दवा है। जब देशी दवा है तो इधर-उधर की बात क्यों सोचें। अध्यक्ष चक्रपाणि महाराज जो मुख्य संयोजक थे ने लोगों समझाया कि कोरोना वायरस को निरस्त करने जिन तत्वों की जरूरत है, वे सभी गोमूत्र में विराजमान हैं। ऐसा कह कर उन्होंने दुनिया के तमाम वैज्ञानिकों को जो वायरस की दवा खोजने में जुटे हैं, को चुनौती दे डाली। ज्ञात रहे यह मामला सिर्फ अंधविश्वास का ही नहीं है बल्कि इस अंधविश्वास का लाभ उठाकर उसकी बुनियाद पर राजनीतिक लाभ उठाने का भी है।

सिर्फ भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में पाखंड और ज्ञान-विज्ञान विरोधी वायरस फैला हुआ है। इस्लाम अपने मूल से सबसे मजबूती से जुड़े रहने वाला धर्म है। उसमें भी तबलीगी जमात संगठन के तौर पर बना ही इस घोषित उद्देश्य के साथ था कि मुसलमानों को पैगंबर मोहम्मद के जमाने की परम्पराओं की तरफ लौट जाना चाहिए और उनकी शिक्षाओं के अनुकूल अपना जीवन बिताना चाहिए। उनका मानना है कि जब मुसलमान शुद्ध इस्लामी रास्ते पर लौट आयेंगे तो अल्लाह का वादा है कि उन्हें विश्व का शासन (खिलाफत) सौंप दिया जायेगा। कोरोना पर भी तबलीगी जमात बिना किसी लाग-लपेट के मानती है कि इसे अल्लाह ने इंसानों को उसके दिखाये रास्ते से भटक जाने के कारण सजा देने के लिए भेजा है। जमात के मुखिया मौलाना साद की आवाज में कई ऑडियो वायरल हुए हैं, जिनमें उसने सोशल डिस्टेंसिंग को मुसलमानों को बांटने का षड्यंत्र बताया है। मस्जिदों में होने वाली संभावित मृत्यु को उनके लिये शबाब बताया गया। यहां भी अल्लाह की भक्ति के सामने देश का कानून कमजोर पड़ गया और ये सवालउठाने की किसी ने हिमाकत नहीं की कि इस जमात को मार्च महीने में, जब वायरस का खतरा मंडराने लगा था, वहां इक_ा होने की किसने इजाजत दी? हमारी पुलिस क्या कर रही थी? पुलिस का इंटेलिजेंस क्या कर रहा था? उस मौलाना के अंडरग्राउंड होने की खबर है, जबकि लॉकडाउन की परिस्थिति में इतने शोर-शराबे में मौलाना कैसे अंडरग्राउंड हो गये? यह सारी बातें अब उठेंगी नहीं क्योंकि मामला मजहब का है। हमारे गृहमंत्री इस बड़ी घटना जो कोरोना वायरस को भारत में फैलाने में अहम् है, पर अपनी चुप्पी बनाये हुये हैं। आला अधिकारी ही टीवी पर आकर अपना बयान देते हैं, गृहमंत्री कहीं दिखाई नहीं देते।


मौलाना साद

पन्द्रह हजार से ज्यादा मौतों वाले अमेरिका के ईसाई धर्मगुरु टोनी स्पेल के नेतृत्व में एक दर्जन से अधिक पादरियों ने घोषित किया है कि सरकार कुछ भी कहे, वे चर्च में रविवार की प्रार्थनायें स्थगित नहीं करेंगे। वे भूल गए कि दक्षिण कोरिया में कोरोना पहुंचा ही चर्च में वुहान से लौटी एक संक्रमित भक्त की उपस्थिति से। दूसरी तरफ वेटिकन सिटी में पोप ने शुरुआती दौर में ही अपने सारे कार्यक्रम स्थगित कर दिए थे।

अयोध्या में रामनवमी के अवसर पर बहुत बड़ा मेला लगता है। इस बार नवरात्रि के शुरू होने के पहले ही कोरोना शुरू हो गया था। पहले तो महंतों ने मेला स्थगित करने से इनकार कर दिया। उनके अनुसार अपने भक्तों की रक्षा तो भगवान राम स्वयं करेंगे, इसमें सरकार को चिंतित होने की जरूरत नहीं है। गनीमत है कि सरकारी सख्ती से उन्हें सद्बुद्धि आ गई।

कुछ दिनों पहले तक तिरुपति में दर्शन चलते रहने की खबरे हैं। इसलिए सिर्फ तबलीगी जमात को निशाना बनाना उचित नहीं है। मानव जाति ने इतिहास में इससे बड़ी मुसीबतों पर विजय पाई है और इस बार भी वह जीतेगी। पर क्या धर्मान्धता या अंधविश्वास वाली सोच में कुछ बदलाव आयेगा?

पूरी दुनिया में धर्म और विज्ञान के बीच इस समय एक दिलचस्प मुठभेड़ चल रही है। इसलिये हमारी मान्यता कि ''हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथÓÓ- कोरोना बिमारी में यह समझ गड़बड़ा रही है।

अंधविश्वास अनपढ़ एवं गरीब लोगों के बीच व्याप्त है उसे दूर शिक्षा से ही किया जा सकता है। लेकिन अंधविश्वास के आधार पर राजनीति पढ़े-लिखे और साधन सम्पन्न लोग करते हैं अत: उसे उखाडऩा आसान नहीं है पर असंभव भी नहीं है। कोरोना ने ऐसे पाखंडों को उजागर किया है पर उसे नेस्तनाबूद करना शायद कोरोना के वश की बात नहीं है।

''जिन्दगी भर मैं यह खता करता रहा
धूल चेहरे पर थी और मैं आइना मलता रहा''



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