स्वांत: सुखाय!

स्वांत: सुखाय!

यह पहला मौका है जब दुनिया ऐसी बिमारी की चपेट में है जो न अमीर देखती है न गरीब, न राजा न रंक। इंग्लैंड की रॉयल फैमिली भी इससे ग्रसित हो तो प्रिन्स चाल्र्स में भी कोरोना पॉजिटिव पाया गया है। महारानी और प्रिन्स दोनों आइसोलेशन (प्रकोप भवन) में चले गये हैं।



कोरोना महामारी के कारण देश भर में हुई तालाबन्दी के परिणाम- स्वरूप हर व्यक्ति चारदिवारी में सिमट गया है। लेकिन प्रधानमंत्री द्वारा बतायी गयी इस लक्ष्मण रेखा के अन्दर भी कई तरह की समस्यायें हो रही हैं। सोने के हिरण की मृग मरीचिका के वशीभूत होकर सीता ने लक्ष्मण से जाने को कहा और फिर क्या हुआ आप सभी जानते हैं। इसलिए उसका नाम लक्ष्मण रेखा पड़ा क्योंकि उस सीमा को लक्ष्मण ने ही सीता के लिए खींचा था। कोलकाता के कई काम्प्लेक्स में हमारे बन्धुगण बिना नौकर या मेड सर्वेन्ट के काम नहीं चला सकते। कई स्थानों पर पुलिस के आदेशानुसार मकान के सुरक्षा गार्ड ने बाहरी व्यक्तियों पर रोक लगा दी तो फ्लैट मालिक या मालकिन सुरक्षा गार्डों पर टूट पड़े। एक टीवी चैनल ने दिखाया कि एक मेम साहब ने गाड़ी के पीछे अपनी मेड सर्वेन्ट को बैठा रखा है। मकान का दरवाजा खोलने हेतु बारबार हॉर्न बजाया पर सुरक्षा गार्ड ने कहा कि आप जा सकती हैं पर पीछे बैठी आया को अन्दर जाने की अनुमति नहीं है। फिर काफी टकराव और थाना पुलिस के बाद भद्र महिला ने बात सुनी पर उसका गुस्सा बरकरार रहा। इसी तरह कई स्थानों पर कॉम्प्लेक्स के फ्लैट मालिकों के बीच ''गृह युद्धÓÓ जैसी स्थिति पैदा हो गयी। कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर राजा बाजार एवं मुटियाब्रुज में 22 मार्च को जनता कफ्र्यू के दौरान का ²श्य वायरल किया। इसमें कुछ लुंगी पहने नौजवान जनता कफ्र्यू के दौरान निर्लिप्त भाव से घूम रहे हैं एवं पुलिस कुछ भी नहीं कर रही है और दूसरी तरफ पूर्ण लॉकडाउन के दौरान सड़क पर घूमने वालों को दंड बैठक करा रहे हैं एवं कहीं-कहीं उन्हें पुलिस बेरहमी से पीट रही है। इस तरह के ²श्य वायरल करने वालों का मकसद साफ था। पर यह भी देखा गया कि जनता कफ्र्यू के समय उत्तर प्रदेश के पीलीभीत शहर में डीएसपी के साथ झुंड में लोग घंटी और शंख बजाकर कोरोना वीरों के प्रति कृतज्ञता प्रकट कर रहे हैं। इस पर क्षेत्र के निर्वाचित सांसद वरुण गांधी ने यूपी के मुख्यमंत्री से ऐसे पुलिस अधिकारी के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करने को कहा। कहने का अर्थ इस संकट की घड़ी में भी लोगों का नजरिया विभाजित था। ऐसे लोगों को यह जानकारी मिलकर निराशा हुई होगी कि मुसलमानों ने जुम्मे की नमाज मस्जिदों में नहीं अता करने का फैसला लिया है ताकि इबादत की जगह पर भीड़ न हो।




इस तालाबन्दी (लॉकडाउन) में मेरे जैसा व्यक्ति भी बड़ा अलग-थलग महसूस कर रहा था। मीडिया काम कर रहा था पर मुझे पुत्र द्वय ने घर पर ही रहने का अनुरोध किया। इस परिस्थिति पर यह अनुरोध एक प्रकार से मेरे हित में दिया गया आदेश था। फिर मैंने घर पर ही बैठकर अपे परिजन, मित्रों एवं हितैषियों से फोन पर सम्पर्क साधा। फोन उठाते ही मेरा पहला सवाल होता था - आप घर पर ही हैं न, जाहिर है इसका उत्तर सकारात्मक ही मिला। इसके पश्चात् अगर में यह पूछता भाभी जी घर पर हैं, तो यह सवाल बेहूदा होता और कुछ फिल्मी भी। पर कुल मिलाकर ऐसे समय बात करना मुझे भी अच्छा लगा और जिनसे बात हुई उन्होंने भी इसे कृतज्ञता भाव से लिया।

हाँ, घर बैठे भी कुछ लोगों ने अपनी रचनात्मकता यानि ष्ह्म्द्गड्डह्लद्ब1द्बह्ल4 का परिचय दिया। कइयों ने इस स्थिति पर एकदम फिट कविताएं, गीत या गजल पोस्ट की। बैजू बाबरा फिल्म का अपनी समय का बेहतरीन शास्त्रीय संगीत पर आधारित गाना - ''महल उदास और गलियां सूनी, चुप चुपहै दीवारें, दिल क्या उजड़ा, दुनिया उजड़ी....।ÓÓ रोम शहर के वीरान महल और मूर्तियां और फिर सूनी पड़ी गलियां देखकर ऐसा लगा कि स्थिति को उस वक्त किसी ने भाप लिया होगा। एक गजल जो मन को छू गई उसे आपके साथ साझा करना चाहूंगा-

रफ्तार करो कम कि बचेंगे तो मिलेंगे
गुलशन न रहेगा तो कहां फूल खिलेंगे
वीरानगी में रह के खुद से भी मिलेंगे
रह जायें सलामत तो गुल खुशियों के खिलेंगे
अब वक्त आ गया है, कायनात का सोचो
ये रुठ गई गर तो ये, मौके न मिलेंगे
जो हो रहा है समझो क्यूं हो रहा है ये
कुदरत के बदन को और कितना ही छिलेंगे
मौका है अभी देख लो, फिर देर न हो जाये
जो कुदरत को दिये जख्म वो हम कैसे सिलेंगे
है कोई तो जिसने जहां हिलाकर रख दिया
लगता था कि हमारे बिन पत्ते न हिलेंगे
झांको दिलों के अन्दर क्या करना है सोचो
खाक में वर्ना हम सभी जा के मिलेंगे।

और इस तरह कुछ मित्रों ने वीरानगी दूर करने की चेष्टा की और संदेश भी दिया। इस भयानक माहौल में भी कुछ बातों का हम शुक्रिया अदा करेंगे। आकाश साफ था, प्रदूषण मुक्त, परिष्कार, प्रच्छन्न। मेरे कॉम्प्लेक्स में नीचे एक पीपल का पेड़ है। कोरोना दहशत के पहले यह पेड़ नंगा हो गया था, सारे पत्ते झड़ चुके थे। आज जब मैं ये पंक्तियां लिख रहा हूँ पेड़ में नये पत्ते आ गये हैं और पीपल का वह पेड़ घने पत्तों से ढक गया है जबकि महानगर के भीड़-भाड़ वाले रास्ते गलियां अब नग्नावस्था में आ गई है - सुनसान वीरान। पेड़ पर चिडिय़ा चहक रही हैं। सुबह देखा तो दो-तीन चिडिय़ा चहलकदमी करते हुये लड़ रही थी पेड़ की डाली पर बैठने के लिये। डालियों की कमी नहीं है पर बाल हठ कि एक जहां बैठी है दूसरी भी वहीं बैठेगी। पहली बार अहसास हुआ कि हम प्रकृति से कितनी दूर जा चुके हैं। तो किसी का यह पोस्ट बीत राग का अहसास करता हुआ भी मिला-

न दिन पता चल रहा है, न रात
न sunday  न  monday
न मार्च न अप्रैल.....ना नोट आ रहे हैं न जा रहे हैं
इन सबसे अब मैं ऊपर उठ गया हूं.....
हे प्रभु, क्या मुझे मोक्ष प्राप्त हो गया है।
नये संवत् की हार्दिक शुभकामनाओं सहित...!

Comments

  1. *जीवन* के इस जर्जर पथ पर जाने क्या क्या *घट* गया..
    जो *अंदर* रहा वो *खड़ा* रहा, जो *बाहर* आया वो *टूट* गया..

    स्वस्थ रहें .. स्वच्छ रहें .. जागरूक रहें .. सावधान रहें .. *ईश्वर मंगल ही करते है* .. 🙏🏻

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  2. कोरोना संबंधित आपका संपादकीय पढ़ा। जो भी इस समय लाकडाउन की अनदेखी कर रहे हैं वो जाने अनजाने अपने साथ साथ अपने परिवार सहित दूसरे के जीवन से भी खिलवाड़ कर रहे हैं।
    इस वैश्विक आपदा के समय केवल सतर्कता, सावधानी और सोशल डिस्टेंसिंग के सुझाए गए उपाय ही हम सबके पास एकमात्र रास्ता है और कुछ नहीं। भारत में कोरोनावायरस से लड़ने की जो चिकित्सा व्यवस्था है वह अपर्याप्त है,यह सभी जानते हैं।
    एकांतवास में कोई भी रचनात्मक मन कवि हो जाता है,यह आपके संपादकीय को पढ़ते हुए लगा।
    सपरिवार स्वस्थ सानंद रहिए यही कामना है।इति शुभम्......
    जितेन्द्र धीर
    कोलकाता

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  3. बहुत सही आकलन किया है।इस घरबंद से यदि जीवन मिलता है तो फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा। पहले जीवन है। बधाई और शुभकामनाएं
    -डॉ वसुंधरा मिश्र

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