परीक्षाओं का महापर्व
महानगर कोलकाता में अभी परीक्षाओं का दौर शुरू हो गया है। प. बंगाल माध्यमिक परीक्षा 18 फरवरी से शुरू हो गयी थी। फिर सीबीएससी कक्षा 10 और 12, आईएससी, आईसीसीएसई के इम्तिहान भी शुरू हो गये हैं। परीक्षाओं का यह दौर हर वर्ष होता है लेकिन अब यह महापर्व बनता जा रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि महापर्व में शोरगुल अवश्यम्भावी है जबकिपरीक्षा के इस पर्व के दौरान हल्ला-गुल्ला वर्जित है। यहां तक कि राजनीतिक पार्टियों को भी पुलिस सभा की अनुमति नहीं दे रही है ताकि परीक्षा केन्द्रों में विद्यार्थी एकाग्र होकर प्रश्नपत्रों का जवाब दे सकें। इस मौके पर कई स्थानों पर Exam-Special
बसें भी चलायी गयी हैं। हमारी मुख्यमंत्री भी अपने व्यस्ततम समय में से निकाल कर परीक्षा केन्द्र जाकर परीक्षार्थियों से मिली हैं। दीदी ने राज्य सरकार के इश्तिहार छपवा कर माध्यमिक, उच्च माध्यमिक आदि-आदि के परीक्षार्थियों की पीठ थपथपाई और उनको शुभकामना दी। हमारे समय में (60-70 दशक) परीक्षायें तो ऐसे ही होती थी पर सरकार या समाज में उसकी कोई हलचल नहीं हुई थी। पर अब सबको पता चल जाता है कि परीक्षायें चल रही हैं। एक बड़ा परिवर्तन यह हुआ है कि लड़कियां शिक्षा के महापर्व में शंख फूंकती दिखाई देती हैं। यह देखा गया है कि लड़कियां पढ़ाई के मामले में ज्यादा गम्भीर हैं। उनके लिये परीक्षा लगता है अग्नि परीक्षा बन गयी है। कन्यायें जब परीक्षा के लिये तैयारी करती हैं तो मोहल्ले को पता चल जाता है कि किसी लड़की की परीक्षा चल रही है। अपने पूरे परिवार को परीक्षामय बना देती है। मेरे घर के पास एक बंगाली परिवार रहता है जिसमें एक बच्ची आईसीएसई परीक्षा दे रही है। हम हिन्दीभाषी तो यह सोच भी नहीं सकते कि किसी छात्र या छात्रा की परीक्षा हो और उसके माता-पिता दोनों ने अपने दफ्तर से बच्चे की परीक्षा की तैयारी के लिए छुट्टी ले ली हो। पर उनके लिये यह आम बात है। फिर माँ खुद अपने हाथ से खाना खिलाती है ताकि बच्चा या बच्ची पाठ्यक्रम को ''रिवाइजÓÓ कर लें। परीक्षा की तैयारी के दौरान स्टुडेन्ट को ''वीवीआईपीÓÓ का दर्जा मिल जाता है और घर की सारी गतिविधियां परीक्षार्थी की सुविधा पर केन्द्रित हो जाती हैं। ऐसा लगता है कि परिवार में ''इमर्जेन्सीÓÓ घोषित हो गयी है और परीक्षा तक घर के सारे नियम कायदे स्थगित कर दिये गये हैं।
परीक्षा के इस आलम को देख कर एक सुख की अनुभूति होती है। समाज में परिवर्तन का अहसास होता है। शिक्षा को दी जाने वाली प्राथमिकता से लगता है कि देर से ही सही लोगों ने समझा है कि शिक्षा का कोई विकल्प नहीं है। यह अलग बात है कि आज शिक्षा रोजगार दिलाने का सर्वमान्य हथियार बन चुका है। शिक्षा को रोजगार परक बनाया गया है। आम आदमी सोचता है कि शिक्षा प्राप्त कर किसी अच्छे या बड़े उद्यम में नौकरी न मिले तो वह शिक्षा किस काम की। विशेष रूप से लड़कियों के दिल-दिमाग पर यह बात बैठ गयी है कि आर्थिक रूप से अपने पांव पर खड़ा होना जरूरी है। इन छात्राओं ने समाज में यह महसूस किया है कि अब तक उनकी दादी या नानी समाज में हाशिये पर रखी गई या वंश वृद्धि का हथियार बनी। वे सब कुछ करके समाज में समान अधिकार प्राप्त नहीं कर सकी। उन्हें पुरुष-प्रधान समाज में दोयम दर्जे का ही नागरिक माना गया। इसलिये वे अब वह भूल नहीं कर सकती जो उनके पहले की पीढिय़ों ने की है। उन्होंने इस मर्म को समझ लिया है कि जिसके पास आर्थिक ताकत होती है, उसी को समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। इसलिये वे अब इस नये स्वरूप में अपने को ढाल रही हैं। समाज में बढ़ते हुए तलाक या सम्बन्ध विच्छेद के मामलों के केन्द्र में भी यही भावना है। एक सीमा के बाद उनका धैर्य जवाब दे देता है। इस मामले में लड़कियां अपने माता-पिता से अपना अलग व्यक्तित्व भी चाहती हैं। अपने करियर के मामले में या अपने भावी जीवन साथी के मामले में आज की शिक्षित कन्यायें कोई समझौता नहीं चाहती।
समय के इस बदलाव को आज स्वीकार करें या न करें पर जमीनी सच्चाई से आप आँख नहीं मूंद सकते। शिक्षा के महत्व को तो सबने स्वीकार किया, शिक्षा के महात्म की प्रशस्ति भी की पर शिक्षा जब अपना असर दिखाने लगती है तो पुरानी पीढ़ी विचलित हो जाती है। आज के समाज में संकट का यही केन्द्र बिन्दु है। तब वे पहले के काल का हवाला जरूर देते हैं कि कितना अच्छा समय था जब बच्चे अपने बुजुर्गों की इज्जत करते एवं उनका सम्मान करते थे।
यह शायद संक्रमण काल है। इसके बाद शिक्षित लोगों के मानस के अनुरूप जो समाज तैयार होगा उसमें आज वाला संकट ²ष्टिगोचर नहीं होगा। पर समाज कभी संकट मुक्त नहीं होता। नर्म समाज में अपने संकट का मोचक बनने की क्षमता होगी। वह नयी पीढ़ी को रोयेगा नहीं। मतभेद के बावजूद पीढिय़ों में समन्वय स्थापित होगा।
परीक्षा महापर्व के माध्यम से हम एक उज्ज्वल भविष्य एवं सुरक्षित और सुसंयोजित समाज की परिकल्पना कर सकते हैं।
हमारा विश्वास है कि रात जितनी भी संगीन होगी - सुबह उतनी ही रंगीन होगी।

Comments
Post a Comment