देश में महिलाओं की दो तस्वीरें

देश में महिलाओं की दो तस्वीरें
भारत भाग्य विधाता!

भारत में महिलाओं की दो तस्वीरें हैं। एक तस्वीर ऐसी है जिस पर हर भारतवासी को गर्व होगा और दूसरी ऐसी जिसपर हम शर्मिन्दगी के अलावा कुछ व्यक्त नहीं कर सकते। लेकिन दोनों ही तस्वीरें हमारे देश की हैं, कहीं बाहर की नहीं। दोनों को स्वीकार करना हमारी नीयति है। स्वतंत्रता के 73 वर्ष बाद एक तरफ हम स्वतंत्र भारत के नये मुकाम पर जब भारतीय नारी को खड़ा देखते हैं तो लगता है हमारे देशभक्तों का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। हमारे बुजुर्गों ने जो सपना देखा था, उसे पूरा होता देख हर भारतीय का सीना गर्व से फूल जाता है लेकिन दूसरी तस्वीर ऐसी भी है जिसे देखकर हम कभी-कभी महसूस करते हैं कि क्या हम भारत को उस मध्यकालीन युग की ओर ले जा रहे हैं जहां औरत को वस्तु समझा जाता था और उसका लेन-देन और मोल भाव किया जाता था।


सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसा क्रांतिकारी फैसला किया है, जो भारतीय महिलाओं का सिर्फ फौज में ही नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में महत्व काफी बढ़ा देगा। अदालत ने भारत सरकार की इस परंपरा को रद्द कर दिया है कि महिलाओं को मैदानी युद्ध-कार्य से दूर रखा जाए।महिलाओं को भारतीय फौज में नौकरियां जरुर मिलती हैं लेकिन वे नौकरियां होती हैं, प्रशासकीय, डाक्टर और नर्स की, पायलट की, शिक्षिका की। उनको न तो जमीनी युद्ध के मैदान में उतारा जाता है और न ही उनको फौजी टुकडिय़ों का कमांडर बनाया जाता है।


हमारी सरकारों ने इस ब्रिटिश परंपरा को कायम रखते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय के 2010 में दिए गए एक फैसले के खिलाफ बड़ी अदालत में कई तर्क दिए थे। उसका सबसे वजनदार तर्क यह था कि फौज के ज्यादातर जवान गांवों के होते हैं। वे किसी औरत आफिसर के आदेश कैसे मानेंगे? अदालत ने कहा कि यह तर्क बिल्कुल अमान्य है, असंवैधानिक है और देश की महिलाओं का अपमान है। क्या सरकारी वकील को यह पता नहीं है कि दुनिया के 19 देश ऐसे हैं, जिनमें महिलाओं को वर्षों से लड़ाकू भूमिका दी जाती रही है? जिस ब्रिटेन की हम अभी तक हर बात में नकल करते हैं, उसने भी अपनी सेना में 2016 से महिलाओं के लिए सभी द्वार खोल दिए हैं। अमेरिका और कई यूरोपीय देशों में यह सुविधा महिलाओं को पहले से मिली हुई है। इजराइल और पाकिस्तान-जैसे एशियाई देश भी इस मामले में काफी जागरुक दिखाई पड़ते हैं। अदालत ने ऐसी 11 भारतीय महिला अफसरों के विलक्षण करतब गिनाए हैं, जिसके द्वारा उन्होंने देश और विदेशों में भारत का नाम रोशन किया है। मैं तो वह दिन देखने के लिए बेताब हूं जबकि कोई महिला भारत की सर्वोच्च सेनापति बनेगी। यदि इंदिरा गांधी अपने आप को एक बेजोड़ प्रधानमंत्री साबित कर सकती हैं तो कोई महिला सेनापति भी चमत्कारी क्यों नहीं सिद्ध हो सकती? जिस दिन कोई महिला भारत की सर्वोच्च सेनापति बनेगी, उस दिन भारत की हर महिला का मस्तक गर्व से ऊंचा होगा और भारत एक समतामूलक समाज बनने की तरफ बढ़ेगा।

इसी तस्वीर का ही हिस्सा है भारत की उद्यमी महिलायें। भारत में ''महिलाओं की उद्यमशीलताÓÓ पर बेन एण्ड कम्पनी एवम् गूगल ने मिलकर एक रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 1 करोड़ 50 लाख प्रतिष्ठानों पर मालिकाना हक किसी महिला या महिलाओं का है। यानि देश के कुल प्रतिष्ठानों में लगभग 20 प्रतिशत प्रतिष्ठान महिलाओं द्वारा संचालित हो रहे हैं। इन प्रतिष्ठानों में 2 करोड़ 20 लाख से 2 करोड़ 70 लाख लोग रोजगार कर रहे हैं। वर्ष 2030 तक महिलाओं द्वारा संचालित उद्यमों में 15 से 17 करोड़ लोगों को अतिरिक्त रोजगार मिलेगा। यह संख्या 2030 तक आवश्यक नये रोजगार का चौथाई से भी अधिक हिस्सा है।

अगर यह कल्पना साकार होती है तो भारत दुनिया के विकसित देशों में होगा जहां 40 प्रतिशत प्रतिष्ठानों की मालिक नारीशक्ति हैं।

चलिये देर-सबेर हम विकास के उस पथ पर हैं जिसकी परिकल्पना हमारे स्वतंत्रता संग्रामियों एवं दूरदर्शी राजनेताओं ने की थी।

और अब तैयार हो जाइये एक ऐसे शर्मनाक घटनाक्रम को जानने जिस पर आपका सिर शर्म से झुक जायेगा।
गुजरात के भुज इलाके के सहजानंद गल्र्स इंस्टीट्यूट में छात्राओं के मासिक धर्म के दौरान अंतर्वस्त्र उतरवाकर जांच करने का मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि स्वामी नारायण मंदिर के एक स्वामी का विवादित बयान सामने आ गया है। भुज मंदिर के स्वामी कृष्णस्वरूपदासजी का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। इसमें स्वामीजी कह रहे हैं कि मासिक धर्म के दौरान अगर महिला के हाथ से बना हुआ खाना अगर कोई खा लेता है तो उसे कुत्ते और बैल की योनि में जन्म लेना पड़ता है। दरअसल, स्वामीजी महावारी विषय पर अपने विचार प्रकट कर रहे थे। सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होने के बाद लोग स्वामीजी से यह सवाल भी पूछ रहे हैं कि उनके ऐसे स्वामी समाज की बुराइयों को किस तरह समाप्त करेंगे। ऐसे समय जब महिला सशक्तिकरण की बात हो रही है और मासिक धर्म को लेकर समाज में फैली भ्रातियों को मिटाने का प्रयास किया जा रहा हो, स्वामीजी का यह बयान शर्मनाक कहा जा सकता है।

68 लड़कियों की पवित्रता की जांच : गुजरात में कच्छ जिले में एक कॉलेज के प्रधानाचार्य समेत 4 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया, जिन पर आरोप है कि एक सप्ताह पहले उन्होंने कथित तौर पर 68 से ज्यादा छात्राओं को यह देखने के लिए अपने अंत:वस्त्र उतारने पर मजबूर किया कि कहीं उन्हें माहवारी तो नहीं हो रही है। एक अधिकारी ने यह जानकारी दी। श्री सहजानंद गर्ल्स इंस्टिट्यूट के न्यासी प्रवीण पिंडोरिया ने कहा कि प्रधानाचार्य रीता रानींगा, महिला छात्रावास की रेक्टर रमीलाबेन हीरानी और कॉलेज की चतुर्थ श्रेणी की कर्मचारी नैना गोरासिया को उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होने के बाद निलंबित कर दिया गया। भुज पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी में इन तीनों के अलावा अनीता चौहान नाम की एक महिला को भी आरोपी के तौर पर नामजद किया गया है। वह कॉलेज से संबद्ध नहीं है। अधिकारी ने बताया कि उक्त चारों नामजद आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 384, 355 और 506 के तहत मामला दर्ज किया गया है। एसएसजीआई स्व:वित्तपोषित कॉलेज है, जिसका अपना महिला छात्रावास है। यह संस्थान भुज के स्वामीनारायण मंदिर के एक न्यास द्वारा चलाया जाता है। कॉलेज क्रांतिगुरु श्यामजी कृष्ण वर्मा कच्छ विश्वविद्यालय से संबद्ध है। इस मामले के सामने आने के बाद राष्ट्रीय महिला आयोग के सात सदस्यों के एक दल ने छात्रावास में रहने वाली उन छात्राओं से मुलाकात की, जिन्हें कथित रूप से यह पता लगाने के लिए अंत:वस्त्र उतारने पर मजबूर किया गया था कि कहीं उन्हें माहवारी तो नहीं आ रही। ऐसे में राष्ट्रीय गीत की अंतिम दो पंक्तियां लगता है आज के हालात पर करारा व्यंग्य है:-
जन गन मन अधिनायक जय हे, भारत भाग्य विधाता।

Comments

  1. बहुत ही शर्मनाक स्थिति है। आपका लेख आंखें खोलने वाला है। आपकी नई सोच महिलाओं को नई दिशा देती है अपनी पहचान को मजबूत करती है।

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