आनन्दलोक के सराफ जी कृपया ध्यान दें
निराशा एवं वैराग्य से ग्रस्त लोगों
के वश की बात नहीं है जनसेवा
आनन्दलोक के श्री देव कुमार सराफ के बारे में जनहित में मुझे पहले भी दो बार लिखना पड़ा था। उसके बाद उनके बेहूदे, बेतुके एवं बेसिरपैर के विज्ञापन पर रोक लगी थी। मैंने सोचा शायद उनमें बुद्धि आ गई और अपनी हरकतों पर प्रायश्चित भी। इधर पिछले कुछ दिनों से देख रहा हूँ फिर उनमें पागलपन का दौरा शुरू फिर हो गया है। आश्चर्य है दानदाताओं ने उन्हें अस्पताल और जनसेवा हेतु धन दिया जिसका वे अपने मन की भड़ांस निकालने में खर्च कर रहे हैं। पाठक शायद भूले न होंगे कि साल भर पहले उन्होंने हजारों रुपये के विज्ञापन छपवा कर यह बात बताने की कोशिश की थी कि उनके पास सब्जी खरीदने के पैसे भी नहीं बचे हैं। जाहिर है साधारण ज्ञान रखने वाला कोई भी व्यक्ति सराफ जी के इस मूर्खतापूर्ण दलील पर हंसेगा। लेकिन यह हंसने वाली बात नहीं है। चिकित्सा सेवा केन्द्र की एक शृंखला चलाने वाला व्यक्ति सिर्फ हंसी का पात्र ही नहीं बना, इससे बड़ा सवाल यह है कि समाज के कई उदारमना लोगों ने समय-समय पर आनन्दलोक चलाने के लिये देव कुमार जी सराफ को मोटी रकम दी कि वे जनसेवा के काम को आगे बढ़ायें। बिड़ला जी आगे आये, कानोडिय़ा जी ने उदारतापूर्व दान दिया, जूट उद्योगपति कांकरिया, बंसल जी, रूपा वाले अगरवाल जी, सलारपुरिया और भी समाज के कई वरिष्ठ और विशिष्ट लोगों ने सराफ जी की झोली भर दी। कुछ लोग उनके काम से प्रभावित थे और कुछ ने यह सोच कर दिया कि जनसेवा के क्षेत्र में एक जीवन दानी व्यक्ति का प्रादुर्भाव हुआ है, उसकी मदद करनी चाहिये। लेकिन सराफ जी का सिद्धान्त है जिस पत्तल में खाना, उसी में छेद करना। किसी एक सज्जन श्री पवन कुमार धूत ने उन्हें राजारहाट इलाके में सस्ती जमीन दी अस्पताल बनाने हेतु लेकिन सराफ जी के साथ उनका क्या विवाद हुआ कि धूत जी को महामानव बताने वाले सराफ जी ने उनके विरुद्ध एक दो बार नहीं कई बार बड़े-बड़े विज्ञापन छपवा कर उन्हें समाज में खलनायक बताने की कोशिश की। अगर धूत जी ने सराफ जी के कथनानुसार कोई अन्याय किया भी हो तो उसके कई रास्ते थे, सुलह करने के किन्तु बहुत ही घटिया भाषा में आनन्दलोक के बैनर के नीचे उन्होंने पवन धूत जी के विरुद्ध विष वमन करने में कोई कसर नहीं रखी। अभी तक वह सिलसिला जारी है और कब तक रहेगा, कहना मुश्किल है। धूत जी के कथित व्यवहार से सराफ जी के मन में इस कदर घृणा के भाव उत्पन्न हो गये कि उन्होंने पूरे समाज को ही अधम बता दिया। एक विज्ञापन में उन्होंने यहां तक ठाकुरजी से विनती कर डाली कि अगले जन्म में उन्हें किसी मारवाड़ी के घर में पैदा मत करना। पूरे समाज के प्रति इस तरह की घिनौनी भाषा का इस्तेमाल करने वाले श्री देवकुमार सराफ भूल गये कि इसी समाज की बदौलत उनकी यह पहचान बनी। इसी समाज के बल पर मोटर गैरेज में शुरू किया गया आनन्दलोक धीरे-धीरे एक वटवृक्ष बन गया जिसकी छांव में चिकित्सा केन्द्रों की शृंखला चल रही है। मारवाड़ी समाज से इतर किसी समाज ने या सरकार ने उनकी मदद नहीं की। ''यह मारवाड़ी समाज ही है जो जन कल्याण मूलक कार्य में आधे पेट खाकर भी उदारतापूर्ण सहयोग करता है। -रूसी मोदी के भाषण का अंश
देव कुमार सराफ
पशु योनि चाह...
सराफ जी के इस आत्मघाती एवं विश्वासघातक रवैये का खामियाजा आनन्दलोक के अन्तर्गत चल रहे सेवा कार्यों को भुगतना पड़ रहा है। आनन्दलोक की आभा एवं सुनाम तेजी से ओझल हो रहे हैं। अब आनन्दलोक को चन्दा दाताओं के अकाल का सामना करना पड़ रहा है। अब बहुत कम लोग अब इस संस्था के प्रति सहानुभूति रखते हैं। इनके कार्यक्रम में सराफ जी उनके कुछ कर्मचारी ही दिखाई देते हैं। बाहर से प्रतिष्ठित लोग नगण्य ही रहते हैं। हाल ही में सिर्फ दो कर्मचारियों ने इस विशाल संस्थान के खिलाफ मुख्यमंत्री से लेकर कई महत्वपूर्ण लोगों को खत लिखकर आनन्दलोक के अन्दरूनी घोटाले एवं अनियमितता की ओर ध्यान आकृष्ट किया। यही नहीं आनन्दलोक के अध्यक्ष श्री अरुण पोद्दार अपने पद से इस्तीफा देकर संस्था से अलग हो गये। अभी एक विज्ञापन के माध्यम से सराफ जी ने यह सार्वजनिक किया कि उन्होंने पोद्दार जी को मना लिया है और वे अब पहले की तरह काम करेंगे। खास बात यह है कि यह विज्ञापन अंग्रेजी के अखबारों में भी छपवाया गया क्योंकि श्री अरुण पोद्दार एक विशिष्ट व्यक्ति हैं। उनका परिवार महानगर का एक प्रतिष्ठित परिवार है और मारवाड़ी समाज के साथ ही बंगाली समाज भी उनका सम्मान करता है। अब सराफ जी ने उन्हें कैसे मना लिया और पोद्दार जी ''पहले की तरहÓÓ क्या काम करेंगे - सराफ जी का विज्ञापन इस बारे में नि:शब्द है। इसके पहले आनन्दलोक के अध्यक्ष चीनी मिल के मालिक ओम प्रकाश धानुका ने भी पद से इस्तीफा दिया था पर सराफ जी के बहुत अनुनय विनय के बावजूद उन्होंने निर्णय वापस नहीं लिया। मारवाड़ी समाज को बेलगाम अपशब्द कहने वाले देव कुमार जी लेकिन अरुण जी की रुसवाई बर्दाश्त नहीं कर सके और जैसे भी हो उनको मना लिया। यानि सराफ जी यह भी समझते हैं कि इस समाज के बिना उनका कोई अस्तित्व नहीं है। वर्ना अरुण जी के पैर पकडऩे की क्या जरूरत थी? आप समझ गये होंगे कि समाज को बुरा-भला कहने वाले देव कुमार जी अन्दर से कितने दुर्बल और मरुदण्डविहीन व्यक्ति हैं। उल्लेखनीय है कि आनन्दलोक के कई ट्रस्टियों ने भी संस्था से किनारा कर लिया जिनमें श्री अशोक तोदी, श्री श्याम सुन्दर बेरीवाल, श्री ललित बेरीवाल प्रमुख हैं। खास बात यह है कि ये ट्रस्टी आनन्दलोक से प्रारम्भ से ही जुड़े हुए थे। अस्पताल के इलाके में रहने वाले इन महानुभावों ने आनन्दलोक से पल्ला झाड़ लिया, बाकी ट्रस्टियों के लिए आनन्दलोक दूर का सुहावना ढोल बना हुआ है।
अरुण पोद्दार
नरसिंहावतार
श्री अरुण पोद्दार का आश्वासन मिलते ही सराफ जी फिर उसी हिस्टीरिया से ग्रस्त हो गये हैं। अब तो उन्होंने ठाकुर जी से अंतिम इच्छा जाहिर की है कि उन्हें मरणोपरान्त मनुष्य योनि मत देना। किसी पशु की योनि दे देना पर भूल कर भी मनुष्य जीवन मत देना। मनुष्य का जीवन पशु से भी अधम है। इस आशय का विज्ञापन 17 जनवरी Ó20 को आनन्दलोक के बैनर में हिन्दी के ही अखबारों में छपवाया। इस विज्ञापन को अंग्रेजी अखबार में छपवाने की उन्होंने भूल नहीं की। ताकि हिन्दी के अलावा इतर समाज यह न समझे कि बंगाल के हिन्दी समाज में इस तरह के नौटंकीबाज, मानसिक बिमारी से ग्रस्त ऐसा अजीबोगरीब आदमी भी है जो अपने जीवन की संध्या में मानव योनी को दुत्कारने की हिमाकत करता है। खैर सराफ जी के ठाकुर उन्हें मानव योगी दें या पशु योनी यह तो उनकी मर्जी है पर मानव सेवा का कार्य उन्हीं को शोभा देता है जो आशावादी होते हैं। निराशा या वैराग्य भव रखने वालों को सेवा कार्य के क्षेत्र से परहेज रखना चाहिए। जनसेवक का काम होता है आशा और विश्वास बनाये रखना, यही नहीं अंधेरे में भी उम्मीद की किरण बिखेरना सेवक की भावना का अभिन्न अंग है। निराशा फैलाने वालों को मानव सेवा के पवित्र कार्य से दूर ही रहना चाहिये।
सराफ जी, अन्त में आपसे यही कहना चाहूंगा कि जब आपको मानव योनी से ही विरक्ति हो गई है तो शेष जीवन में क्यों सेवा के क्षेत्र को कलंकित करते हैं। अपने सेवा के भ्रम जाल को समेटिये और आनन्दलोक सेवा संस्थान को अपने जीवन काल में ही नेस्तनाबूद करने से बाज आइये।


Why he is not leaving the Anandlok or Society make him leave the position.
ReplyDeleteGirish Parekh
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