हिन्दी मेला का रजत जयन्ती वर्ष

हिन्दी मेला का रजत जयन्ती वर्ष
कहीं भी बिखरे होंगे हम 
मिलेंगे हिन्दी मेले में
मैं जबसे हिन्दी मेले से जुड़ा हूं, पहली बार इस मेले में नहीं जा सका। इसका मुझे बड़ा अफसोस है। कैसे इसका प्रायश्चित करूं समझ में नहीं आता। संयोग से हिन्दी मेले का यह रजत जयन्ती वर्ष था, इस बार मेला भी असाधारण था। बाहर से भी हिन्दी सेबी और हिन्दी प्रेमी बड़ी संख्या में आये। इस अनोखे आयोजन में कई हिन्दी सेवकों ने कहा कि इस तरह का सांस्कृतिक आयोजन देश के विभिन्न हिस्सों में होना चाहिये। मेले की रूपरेखातैयार करने से लेकर इसके रुपायन के पीछे प्रमुख भूमिका प्रो. शम्भुनाथ की थी पर डा. संजय जायसवाल एवं दर्जन भर सक्रिय कर्मियों ने अपने श्रम बल पर इस आयोजन को सफल बनाया। आज के युग में मेले की तरह इसमें कोई रोशनबाजी या तामझाम नहीं था पर जो था उसे अद्वितीय कहा जा सकता है। इस मेले के विराट स्वरूप का इस तथ्य से अंदाजा लगाइये कि 90 शिक्षण संस्थानों के विद्यार्थियों और युवाओं ने सात दिनों तक हिन्दी मेला को जीवन्त और रंगारंग बना कर रखा। इसमें हिंदी के अलावा संस्कृत, बांग्ला, उडिय़ा, पंजाबी, भोजपुरी, राजस्थानी भाषाओं की विशेष उपस्थिति थी। आयोजक संस्था सांस्कृतिक पुननिर्माण मिशन के संयुक्त महासचिव प्रो. संजय जासवाल ने कहा कि हिन्दी मेला सिर्फ हिन्दी नहीं सभी भारतीय भाषाओं का आंगन है और आगे भी बना रहेगा। हमें हिन्दी मेला को एक आंदोलन का रूप देना है।


कोलकाता में हिन्दी की जड़ें हैं। हिन्दी का शायद ही कोई बड़ा लेखक हो चाहे व जयशंकर प्रसाद हों या निराला, जिसका कलकत्ता से सम्बन्ध नहीं रहा हो। हिन्दी भाषी प्रान्तों के लोगों के लिये कलकत्ता शहर उसकी प्राण वायु रही है। 25 सालों से लगातार इस हिन्दी मेला का कलकत्ता शहर में आयोजन हो रहा है। इसमें हिन्दी के लेखकों, शिक्षकों, साहित्य प्रेमियों तथा विद्यार्थियों की विशेष भूमिका होती है। इसमें दूर-दूर से लोग आते हैं। नववर्ष का पहला दिन भारतीय सोच के युवाओं ने अपने उच्च कलाओं, साहित्य और संस्कृति के साथ मनाया। डा. राजेश मिश्र ने कहा कि हिंदी मेला ने साहित्य का आनंदोत्सव का रूप दे दिया है।

हिंदी मेला में गाने वाला संगीतज्ञ अजय राय को उनके बड़े योगदान के लिए सम्मानित किया गया। अजय राय ने कहा कि हिन्दी परिवारों में हिन्दी काव्य के गायन को बाकायदा शिक्षा दी जानी चाहिए जिसका अभाव है। हिन्दी मेले में अजय विद्यार्थी को युगल किशोर सुकुल पत्रकारिता सम्मान और भोगेन्द्र झा को प्रो, कल्याण मल लोढ़ा शिक्षक सम्मान से नवाजा गया। मिशन के संरक्षक रामनिवास द्विवेदी ने कहा कि हिंदी मेला भारतीय आत्मा की अभिव्यक्ति है जिसका संदेश मानवता है। हिंदी मेला के समापन पर ढाई सौ से अधिक युवाओं को स्मृतिचिन्ह, उपहार, मैडल और नगद राशि से सम्मानित किया गया।



सप्त दिवसीय इस हिन्दी कार्निवल में जितनी विधाओं एवं धाराओं का समावेश हुआ, उसका लेखा भी अद्भुत है। लघु नाटकों से मेले की हर वर्ष शुरुआत होती है। सामाजिक विषमता, अंध विश्वास एवं विसंगतियों पर चोट करते हुए नाटक पूरे समाज को संदेश देता है। श्वेत एवं श्याम फिल्मों की तरह नाटक आडम्बर रहित और बिना चकाचौंध के होते हैं पर उनका प्रस्तुतिकरण लाजवाब होता है। हिन्दी साहित्य के इतिहास पर ज्ञान प्रतियोगिता में विभिन्न शिक्षण संस्थाओं के छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। प्रसाद, पंत से लेकर बच्चन, फैज, नागार्जुन के गीतों का गयन वाद्ययंत्र एवं वादक के साथ इस मेले के आकर्षणों में से था। हिन्दी के लोकगीतों को गाने की प्रतियोगिता ने हमारी सांस्कृतिक विरासत का स्मरण कराया तो भारतीय भाषाओं मं रचित कविताओं पर आधारित नृत्य की प्रतियोगिता में छात्रों ने बड़े उत्साह से भाग लिया। अन्य प्रतियोगिताओं में रचनात्मक लेखन पुरस्कार, चित्रांकन प्रतियोगिता, कविता पोस्टर प्रतियोगिता, युवा काव्य उत्सव, आशु भाषण प्रतियोगिता, वाद-विवाद प्रतियोगिता एवं युवा शिखर सम्मान से बहुआयामी एवं बेजोड़ मेला अविस्मरणीय रहेगा।

हिन्दी मेला अपसंस्कृति के विरुद्ध एक प्रहार भी था। आधुनिकता के नाम पर विलासिता को परोसे जाने के कई संस्थाओं के उपक्रम को इस मेले से करारा जवाब भी मिला। हिन्दी के प्रति उपेक्षा एवं अंग्रेजी मोह को ज्ञान की कुंजी समझने वालों की शर्मिन्दगी के लिए यह मेला काफी था। अंग्रेजी के अनावश्यक शब्दों से हिन्दी के अतिक्रमण और विशुद्ध हिन्दी के नाम पर संस्कृत शब्दावली का उपयोग कर साधारण लोगों से दूर ले जाने के कुप्रयास को इससे उचित जवाब भी मिला।

सही कहा गया कि मेले में भटके हुए लोग मिल जाते हैं, हिन्दी मेला बिखरे हुये लोगों को मिलाने में कामयाब रहा। इतने सारे हिन्दी साधकों, शिक्षण संस्थाओं और युवाओं को मिलाने वाले इस महाकुम्भ की वन्दना में एक स्वर मेरा भी।

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