71वें पायदान पर भारत का गणतंत्र

71वें पायदान पर भारत का गणतंत्र
खुशियां मनाइये 
क्योंकि गम बहुत है


भारतीय लोकतंत्र 71वीं पायदान पर पहुंच गया है हमारा संविधान लागू हुए। इस अन्तराल में भारत ने सभी क्षेत्रों में कीर्तिमान हासिल किये हैं। जब गणतंत्र प्रभावी हुआ, कृषि प्रधान भारत में अनाज का आयात होता था। पीएल 480 की शर्तों पर अनाज मंगाया जाता था। इस दौरान हरित क्रान्ति हुई, कृषि और कृषकों के लिए प्रारम्भ की तीन पंचवर्षीय योजनाओं को समर्पित कर दिया गया। परिणामस्वरूप हम कृषि के क्षेत्र में अपने पांव पर खड़े हो गये, यही नहीं समय-समय पर कृषि उत्पादों का भारत से निर्यात भी होता है। देश में खुले बाजर के चलते कई बार जरूरी जिनसों के दाम बढ़ जातेहैं एवं उनका कृत्रिम अभाव पैदा किया जाता है तो सरकार बाहरी देशों से आयात कर दामों पर अंकुश लगा देती है। अभाव की पूर्ति भी करती है जैसा कि हाल में प्याज के मामले में किया गया। देश के औद्योगिक उत्पादन में हम दुनिया के कई विकसित देशों से पीछे हैं पर इस्पता, पेट्रोल, अलूमूनियम, मशीनें, इन्जीनियरिंग उत्पाद सभी क्षेत्रों में देश में जो प्रगति हुई, वह किसी से छिपी नहीं है। पारम्परिक उत्पाद जैसे कपड़ा, जूट, चाय में भी भारत विश्व के नक्शे पर हैं।

पर 71वें पायदान पर आकर हमारे पांव क्यों डगमगा रहे हैं। जो हालात हैं उनसे सावधान होने की जरूरत है। ऐसा लगता है हमारी चौमुखी प्रगति पर किसी की बुरी नजर लग गई है। बेरोजगारी सुरसा के बदन की तरह बढ़ रही है। 2016-18 सिर्फ दो सालों में 1.1 करोड़ नये लोग बेकार हो गये। बड़े उद्योग देश में बेरोजगारी की समस्या को दूर नहीं कर पा रहे हैं। देश के लगभग 80 प्रतिशत धरों में आय के कोई नियमित साधन नहीं है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल 81 लाख रोजगारों की जरूरत है। शिक्षित युवकों में बेरोजगारी देश के लिये अभिशाप साबित हो रही है। इसी बीच सीएए, एनसीआर को लेकर देश का युवक सड़क पर आ गया है। आने वाले वर्षों में यह बड़ी समस्या उभर कर आने वाली है, ऐसा सोचकर युवकों ने आंदोलन शुरू कर दिया है। अभी पूरे देश में 22 विश्वविद्यालयों में पढ़ाई ठप्प है। एक सौ से अधिक कॉलेज अशांत हैं। इसीलिये कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का यह कहना है कि देश के असली मुद्दों से ध्यान भटकाने हेतु भारत सरकार ने सीएए कानून पास किया और सारे विरोध के बावजूद अड़ी हुई है कि वह इसे लागू करके रहेगी। कई गैर भाजपा राज्य सरकारों ने सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पास कर इसे लागू नहीं करने की घोषणा की है। कई राज्य विधानसभाओं के विशेष अधिवेशन बुलाकर सीएए के विरुद्ध ऐलान करने वाले हैं। प. बंगाल विधानसभा 27 जनवरी को विशेष सत्र बुला रही है।

केन्द्रीय सरकार के दोनों हाथ में लड्डू है। सीएए पर माथापच्ची करते रहिये संविधान के प्रावधान के अनुसार कोई राज्य सरकार उसे लागू करने से इनकार नहीं कर सकती। अब इस टकराव से देश में क्या स्थिति पैदा होगी कहा नहीं जा सकता पर यह निश्चित है कि बेकारी, बेरोजगारी के अजगर को विश्राम मिलेगा और यह अहम् मुद्दा बैकफुट पर चला जायेगा।

इसी बीच खबर आई है कि भारत के 2 प्रतिशत लोगों के पास देश की 70 प्रतिशत सम्पत्ति आकूत है। देश के 80 प्रतिशत साधनों पर एक प्रतिशत परिवारों का कब्जा है। आज भारत में जनसंख्या के अनुपात में सबसे अधिक अमीर हैं। देश में गरीबी में भी इजाफा हुआ है। अमीर और गरीब के बीच की खाई इतनी चौड़ी है कि दुनिया में इसकी मिसाल बहुत कम है। इस पर भी तुर्रा यह है कि देश का धनी वर्ग भी सरकार की नीतियों से खफा है। उनमें एक वर्ग तो भारत छोड़कर अन्यत्र बस गया है। कहां तो मोदी जी ने स्टार्ट अप और ''मेक इन इंडियाÓÓ जैसी योजनाओं को कार्यान्वित कर दुनिया में बसे भारतीयों को अपनी पितृ भूमि वापस लाने का ऐलान किया था लेकिन संसद में रखी गई रिपोर्ट के अनुसार 117 भारतीय उद्योगपति विदेश में बस कर वहां रोजगार लगा रहे हैं। विजय माल्या भारत छोड़कर लन्दन घूम रहे हैं, उनको भारत लाने का कई बार ऐलान किया गया पर उनके स्वदेश आने के अभी तक कोई आसार नहीं है। इसके बाद तो और कई लोगों ने माल्या का अनुसरण किया।
बैंको ंका एनपीए बढ़ रहा है। यानि बैंकों ने जो ऋण दिये हैं उसका एक बड़ा हिस्सा वापस आता नजर नहीं आ रहा है। बैंकों से ऋण लेकर उसे बड़ी होशियारी से हड़पने के निमित्त कुछ एजेन्सियां हैं जो बाकायदा कारोबार कर रही है। एक अनुमान के अनुसार बैंकों के उच्च पदाधिकारियों ने वी. आर. एस. (स्वेच्छा अवकाश) लेकर यही कारोबार शुरू कर दिया है। दूसरी तरफ ऐसे उच्च अधिकारी हैं जो अपने पदों पर रह कर बड़े कारोबारियों को मोटा धन जुगाड़ कर देते हैं एवं बदले में अपनी बेनामी कम्पनी में उसका एक हिस्सा ले लेते हैं। आईसीआईसीआई बैंक के व्यासपीठ पर बैठकर श्रीमती चन्दा कोचर ने वीडियोकॉन को बड़ा धन जुटाकर दिया और बदले में वीडियो के मालिकों ने चन्दा के पति दीपक कोचर की कम्पनी में बड़े धन का निवेश कर दिया। ऐसे कई उदाहरण हैं जो इन वर्षों में चर्चा में है।

गणतंत्र के 71वें पायदान पर हमारे कदम डगमगा रहे हैं क्योंकि हमारी जमीन खिसक रही है। सोचिये बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर श्रीमती इन्दिरा गांधी ने साहसिक कदम उठाया था। कहा गया कि अब देश की पूंजी कुछ लोगों के हाथ से निकलकर व्यापक रूप से छोटे, मझोले उद्यमियों को मिलेगी। सूक्ष्म से सूक्ष्म कारोबारी को भी बैंकों का धन उपलब्ध होगा। को-ऑपरेटिव सेक्टर आगे बढ़ेगा। बड़े उद्योगों को भी विकास का मौका मिलेगा। प्रारम्भ में ऐसा हुआ भी। छोटे दुकानदारों एवं हॉकरों को भी बैंकों का धन उपलब्ध हुआ और उन्होंने धन वापस भी कर दिया। किन्तु कुछ वर्षों में छोटे-मझोले व्यापारियों का कारोबार ही ठप्प हो गया। डी मोनिटाइजेशन के अन्तर्गत हजार-पांच सौ के नोटों के चलन को बन्द कर देश में कैश इकॉनोमी को ठप्प कर दिया। परिणामस्वरूप देश में बेशूमार आर्थिक ह्रास हुआ। जीडीपी सबसे निचले स्तर पर चली गयी। कहते हैं अभी और नीचे जायेगी।

71वें पायदान पर लडख़ड़ाते कदम के साथ ही सही हम गणतंत्र दिवस पूरे उत्साह से मनायेंगे। खुशियां भी मनेगी, देशप्रेम के गीत भी गूजेंगे। पर सच्चाई तो सच्चाई है।

सच्चाई छुप नहीं सकती कभी झूठे उसूलों से
खुशबू आ नहीं सकती, कभी कागज के फूलों से।

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